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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 49/ मन्त्र 2
    ऋषिः - कविभार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    तया॑ पवस्व॒ धार॑या॒ यया॒ गाव॑ इ॒हागम॑न् । जन्या॑स॒ उप॑ नो गृ॒हम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तया॑ । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । यया॑ । गावः॑ । इ॒ह । आ॒ऽगम॑न् । जन्या॑सः । उप॑ । नः॒ । गृ॒हम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तया पवस्व धारया यया गाव इहागमन् । जन्यास उप नो गृहम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तया । पवस्व । धारया । यया । गावः । इह । आऽगमन् । जन्यासः । उप । नः । गृहम् ॥ ९.४९.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 49; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (तया धारया पवस्व) हे जगदीश्वर ! त्वं तया आनन्दधारया पवित्रय (यया) यया धारया (गावः) दशेन्द्रियाणि (जन्यासः) सर्वजनहितत्वमुत्पाद्य (इह नः गृहम्) स्वसदनरूप- शरीराभ्यन्तरे एव (उपागमन्) आयान्तु ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (तया धारया पवस्व) हे परमात्मन् ! आप मुझे उस आनन्द की धारा से पवित्र करिये (यया) जिस धारा से (गावः) सम्पूर्ण इन्द्रियें (जन्यासः) सब जनों का हितकारक होकर (इह नः गृहम्) अपने गृहरूप शरीर के अभ्यन्तर ही में (उपागमन्) आयें ॥२॥

    भावार्थ

    हे परमात्मन् ! आप हमारी इन्द्रियों को अन्तर्मुखी बनाकर हमको संयमी बनाइये ॥२॥

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    विषय

    जन्यासः गावः

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! तू (तया धारया) = अपनी उस धारणशक्ति के साथ (पवस्व) = हमें प्राप्त हो, (यया) = जिस से (गाव:) = वेदवाणियाँ (हि) = यहाँ इस जीवन में आगमन् हमें प्राप्त हों । [२] (जन्यास:) = [जननं जनः, तत्र उत्तमाः] सद्गुणों के विकास में उत्तम ये वेदवाणियाँ (नः) = हमारे (गृहम्) = इस शरीररूप घर में (उप) = समीपता से प्राप्त हों। सोमरक्षण से बुद्धि तीव्र होती है और हम ज्ञान की वाणियों को अपनाने के लिये तैयार होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से हमें वे वेदवाणियाँ प्राप्त होती हैं जो कि हमारे जीवनों में सद्गुणों को जन्म देनेवाली होती हैं।

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    विषय

    वाणीदाता प्रभु वा स्वामी।

    भावार्थ

    हे प्रभो ! स्वामिन् ! (यया) जिस (धारया) धारा से (जन्यासः गावः) सब मनुष्यों की हितकारिणी गौओं के समान सुखप्रद वाणियां (इह) इस लोक में (नः गृहम् उप अगमन्) हमारे घर में आती हैं (तया धारया नः पवस्व) हमें उसी धारा या वाणी से पवित्र कर, वा हमें सुख प्रदान कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कविर्भार्गव ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५ निचृद् गायत्री। २, ३ गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Shower and purify us with that stream of power and purity of peace and plenty by which our senses, mind and intelligence, socially and positively motivated, may be balanced in our personality and we may feel at home with ourselves.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    हे परमात्मा! तू आमच्या इंद्रियांना अंतर्मुखी बनवून आम्हाला संयमी कर. ॥२॥

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