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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 49 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 49/ मन्त्र 3
    ऋषिः - कविभार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    घृ॒तं प॑वस्व॒ धार॑या य॒ज्ञेषु॑ देव॒वीत॑मः । अ॒स्मभ्य॑य वृ॒ष्टिमा प॑व ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    घृ॒तम् । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । य॒ज्ञेषु॑ । दे॒व॒ऽवीत॑मः । अ॒स्मभ्य॑म् । वृ॒ष्टिम् । आ । प॒व॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    घृतं पवस्व धारया यज्ञेषु देववीतमः । अस्मभ्यय वृष्टिमा पव ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    घृतम् । पवस्व । धारया । यज्ञेषु । देवऽवीतमः । अस्मभ्यम् । वृष्टिम् । आ । पव ॥ ९.४९.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 49; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे करुणानिधान जगद्रक्षकपरमात्मन् ! त्वं (यज्ञेषु) सत्रेषु (देववीतमः) देवानामतितृप्तिकारकोऽसि। (धारया घृतं पवस्व) त्वं स्वज्ञानधारया मद्हृदये स्नेहमुत्पादय। तथा (अस्मभ्यम् वृष्टिमापवस्व) अस्माकं सर्वमभीष्टं वर्षय ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मनन् ! आप (यज्ञेषु) यज्ञों में (देववीतमः) देवताओं के अत्यन्त तृप्तिकारक हैं (धारया घृतं पवस्व) आप अपनी ज्ञानधारा से हमारे हृदय में स्नेह को उत्पन्न करिये और (अस्मभ्यम् वृष्टिमापवस्व) हमारे लिये सब कामनाओं की वर्षा करिये ॥३॥

    भावार्थ

    जो लोग ज्ञानयज्ञ या कर्म में तत्पर होकर परमात्मा का यजन करते हैं, परमात्मा उनको सर्वेश्वर्यसम्पन्न बनाता है ॥३॥

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    विषय

    आनन्द की वृष्टि

    पदार्थ

    [१] हे सोम ! तू (धारया) = अपनी धारणशक्ति से (घृतं पवस्व) = मलों के क्षरण व ज्ञानदीप्ति को (पवस्व) = प्राप्त करा । तू (यज्ञेषु) = उत्तम कर्मों के होने पर (देववीतमः) = अधिक से अधिक दिव्य गुणों को प्राप्त करानेवाला हो। [२] (अस्मभ्यम्) = हमारे लिये (वृष्टिम्) = आनन्द की वर्षा को (आपव) = सर्वथा प्राप्त करा । सोमरक्षण से ही योग में प्रगति होकर हम धर्ममेघ समाधि तक पहुँचते हैं और आनन्द की वर्षा को प्राप्त करते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से [क] मल नष्ट होते हैं, [ख] ज्ञानदीप्त होता है, [ग] दिव्य गुणों का वर्धन होता है, [घ] हम यज्ञात्मक कर्मों में प्रवृत्त होते हैं, [ङ] समाधि में आनन्द की वर्षा का अनुभव होता है।

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    विषय

    स्वामी से यज्ञ द्वारा वृष्टि और परमेश्वर से वाणी द्वारा ज्ञानप्रकाश की प्रार्थना।

    भावार्थ

    हे प्रभो ! तू (देव-वीतमः) किरणों से प्रकाशित सूर्य के समान अति कान्तियुक्त होकर (यज्ञेषु) यज्ञों में (धारया) धारा से (घृतं पवस्व) घृत प्रदान कर और (अस्मभ्यं वृष्टिम् आ पव) हमारे लिये उत्तम वृष्टि करा। इसी प्रकार तू (यज्ञेषु) सत्संगों में (धारया) वाणी से (घृतं पवस्व) तेजोवत् ज्ञान प्रकाश दे। और हम पर सुखों की वृष्टि कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कविर्भार्गव ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५ निचृद् गायत्री। २, ३ गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Let ghrta shower in streams, pure and powerful in our yajnas, O lord and guardian of the noble and divine worshippers. Bring us fulfilment and purify all our intentions, purposes and motivations of life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक ज्ञानयज्ञ किंवा कर्मात तत्पर होऊन परमात्म्याचे यजन करतात, परमात्मा त्यांना सर्वैश्वर्यसंपन्न करतो. ॥३॥

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