ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 49/ मन्त्र 5
पव॑मानो असिष्यद॒द्रक्षां॑स्यप॒जङ्घ॑नत् । प्र॒त्न॒वद्रो॒चय॒न्रुच॑: ॥
स्वर सहित पद पाठपव॑मानः । अ॒सि॒स्य॒द॒त् । रक्षां॑सि । अ॒प॒ऽजङ्घ॑नत् । प्र॒त्न॒ऽवत् । रो॒चय॑न् । रुचः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
पवमानो असिष्यदद्रक्षांस्यपजङ्घनत् । प्रत्नवद्रोचयन्रुच: ॥
स्वर रहित पद पाठपवमानः । असिस्यदत् । रक्षांसि । अपऽजङ्घनत् । प्रत्नऽवत् । रोचयन् । रुचः ॥ ९.४९.५
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 49; मन्त्र » 5
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पवमानः) सर्वपवित्रकर्ता परमात्मा (रक्षांसि अपजङ्घनत्) असत्कर्मिणां नाशं कुर्वन् तथा (प्रत्नवत् रुचः रोचयन्) पूर्ववदेव सम्पूर्णब्रह्माण्डे स्वतेजो विस्तारयन् (असिस्यदत्) सर्वत्र व्याप्नोति ॥५॥ इति ऊनपञ्चाशत्तमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पवमानः) सबको पवित्र करनेवाला परमात्मा (रक्षांसि अपजङ्घनत्) असत्कर्मियों को नष्ट करता हुआ और (प्रत्नवत् रुचः रोचयन्) पहले ही के समान सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अपने प्रकाश को फैलाता हुआ (असिस्यदत्) सर्वत्र व्याप्त हो रहा है ॥५॥
भावार्थ
परमात्मा चराचर के हृदय में स्थिर है, इसलिए उसकी स्थिति को अत्यन्त सन्निहित मानकर सदैव परमात्मपरायण होना चाहिए ॥ यह ४९ वाँ सूक्त और ६ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
रक्षोहनन
पदार्थ
[१] (पवमानः) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाला सोम (असिष्यदत्) = शरीर में प्रवाहित होता है। यह शरीर के अंग-प्रत्यंगों में रक्षांसि अपने रमण के लिये हमारा क्षय करनेवाले इन रोगकृमियों को (अपजङ्घनत्) = विनष्ट करता है। इस प्रकार यह सोम हमें नीरोग बनाता है। यह नीरोगता हमारी तेजस्विता का कारण बनती है। [२] यह सोम प्रत्नवत् उस सनातन प्रभु की तरह (रुचः) = दीप्तियों को (रोचयन्) = हमारे में दीप्त करता है । सोमरक्षण से हम प्रभु की तरह दीप्त हो उठते हैं। सोम हमें प्रभु की तरह दीप्त ज्ञानवाला बनाता है, तेजस्वी बनाता है। यह सोमरक्षक ब्रह्म का ही छोटा रूप प्रतीत होने लगता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हम नीरोग अतएव तेजस्वी बनते हैं, हमारे में ज्ञानदीप्ति चमक उठती है। यह दीप्त ज्ञानवाला व्यक्ति सोमरक्षण के उद्देश्य से ही प्रभु के स्तुति वचनों का उच्चारण करता । ये स्तुति-वचन 'उचथ' हैं, इनमें उत्तम यह 'उच्थ्य' है । यह सोम के लिये कहता है-
विषय
परमेश्वरवत् राजा से राक्षसों के नाश की प्रार्थना।
भावार्थ
तू (प्रत्नवत्) पुरातन प्रभु के समान (रुचः रोचयन्) कान्तियों को प्रकाशित करता हुआ (पवमानः) पवित्र होता हुआ, (असिष्यदत्) वेग से गमन करे, और (रक्षांसि अप जंघनत्) दुष्ट पुरुषों का नाश करे। इति षष्ठो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कविर्भार्गव ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ४, ५ निचृद् गायत्री। २, ३ गायत्री॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
May Soma, pure and purifying, all pervasive, destroy all evils and negativities, and continue to illumine the brilliant regions of the universe, macrocosmic as well as microcosmic, as ever before.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर चराचराच्या हृदयात स्थिर आहे. त्यासाठी त्याच्या स्थितीला अत्यंत सन्निहित मानून सदैव परमात्मपरायण राहिले पाहिजे. ॥५॥
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