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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 5 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 5/ मन्त्र 5
    ऋषि: - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - आप्रियः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    उदातै॑र्जिहते बृ॒हद्द्वारो॑ दे॒वीर्हि॑र॒ण्ययी॑: । पव॑मानेन॒ सुष्टु॑ताः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उत् । आतैः॑ । जि॒ह॒ते॒ । बृ॒हत् । द्वारः॑ । दे॒वीः । हि॒र॒ण्ययीः॑ । पव॑मानेन । सुऽस्तु॑ताः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उदातैर्जिहते बृहद्द्वारो देवीर्हिरण्ययी: । पवमानेन सुष्टुताः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उत् । आतैः । जिहते । बृहत् । द्वारः । देवीः । हिरण्ययीः । पवमानेन । सुऽस्तुताः ॥ ९.५.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 5; मन्त्र » 5
    अष्टक » 6; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (देवीः, हिरण्ययीः) प्रकृतेर्दिव्यशक्तयः धनाद्यैश्वर्यदात्र्यः (पवमानेन) पूजार्हपरमात्मना सह (सुष्टुताः) उपवर्णिताः (बृहद्द्वारः) ऐश्वर्यमूलानि भवन्ति (आतैः) तद्विज्ञानेन विज्ञानिनः दिग्भिः (उद्, जिहते) सर्वत्र व्याप्नुवन्ति ॥५॥

    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (देवीः हिरण्ययीः) प्रकृति की दिव्य शक्तियें, जो धनादि ऐश्वर्य्यों के देनेवाली हैं, वे (पवमानेन) पूज्य परमात्मा के साथ (सुष्टुताः) वर्णन की हुई (बृहद्द्वारः) ऐश्वर्यों का मूल होती हैं और (आतैः) उनके विज्ञान से विज्ञानी लोग दिशाओं द्वारा (उद् जिहते) सर्वत्र फैल जाते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    जो लोग प्रकृति-पुरुष की विद्या को जानते हैं कि परमात्मा निमित्त कारण और प्रकृति संसार का उपादान कारण है अर्थात् प्रकृति में ही नाना प्रकार की विद्याओं के बीज भरे पड़े हैं, उसके तत्त्वज्ञान से वे लोग सब दिशाओं में फैल सकते हैं। तात्पर्य यह है कि अभ्युदय तथा निःश्रेयस दोनों के विज्ञान से होते हैं, एक के विज्ञान से नहीं ॥५॥२४॥

    English (1)

    Meaning

    The golden doors of divinity vast as space celebrated along with the divine spirit of universal purity, open to the seekers in response to their effort in meditation and research.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक प्रकृती पुरुषाची विद्या जाणतात की परमात्मा निमित्त कारण व प्रकृती जगाचे उपादान कारण आहे अर्थात् प्रकृतीमध्येच नाना प्रकारच्या विद्यांचे बीज भरलेले आहे. त्याच्या तत्त्वज्ञानाचे ते लोक सर्व दिशांना पसरू शकतात. तात्पर्य हे आहे की अभ्युदय व नि:श्रेयस या दोन्हीच्या विज्ञानाने ते विद्वान होतात, एका विज्ञानाने नव्हे. ॥५॥

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