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ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 53/ मन्त्र 4
तं हि॑न्वन्ति मद॒च्युतं॒ हरिं॑ न॒दीषु॑ वा॒जिन॑म् । इन्दु॒मिन्द्रा॑य मत्स॒रम् ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । हि॒न्व॒न्ति॒ । म॒द॒ऽच्युत॑म् । हरि॑म् । न॒दीषु॑ । वा॒जिन॑म् । इन्दु॑म् । इन्द्रा॑य । म॒त्स॒रम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं हिन्वन्ति मदच्युतं हरिं नदीषु वाजिनम् । इन्दुमिन्द्राय मत्सरम् ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । हिन्वन्ति । मदऽच्युतम् । हरिम् । नदीषु । वाजिनम् । इन्दुम् । इन्द्राय । मत्सरम् ॥ ९.५३.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 53; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 10; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(मदच्युतम्) आनन्दक्षरणकर्ता (हरिम्) सर्वदुःखोपहर्ता (नदीषु वाजिनम्) समस्तशब्दायमानविद्युदादिशक्तिषु बलाविर्भावकर्ता (इन्दुम्) सम्पूर्णब्रह्माण्डे देदीप्यमानः (इन्द्राय मत्सरम्) विद्वद्भ्यो गर्वजनकधनरूपं त्वां (हिन्वन्ति) विद्वांसो बुद्ध्या प्रेरयन्ति ॥४॥ इति त्रिपञ्चाशत्तमं सूक्तं दशमो वर्गश्च समाप्तः |
हिन्दी (3)
पदार्थ
(मदच्युतम्) आनन्द को क्षरण करनेवाले (हरिम्) सब दुःखों के हरनेवाले (नदीषु वाजिनम्) सब शब्दायमान विद्युदादि शक्तियों में बल को निवेश करनेवाले (इन्दुम्) अखिल ब्रह्माण्ड में प्रकाशमान (इन्द्राय मत्सरम्) विद्वानों के लिये गर्वजनक धनरूप आपको विद्वान् लोग (हिन्वन्ति) बुद्धि द्वारा प्रेरित करते हैं ॥४॥
भावार्थ
आनन्दस्त्रोत परमात्मा ही सबका प्रकाशक है, उसी के प्रकाश से सम्पूर्ण विश्व प्रकाशित होता है ॥४॥ यह ५३ वाँ सूक्त और १० वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
'गति - संयम-ज्ञान'
पदार्थ
[१] (तम्) = उस (इन्दुम्) = शक्ति को देनेवाले सोम को (इन्द्राय) = परमैश्वर्यशाली प्रभु की प्राप्ति के लिये (हिन्वन्ति) = अपने अन्दर प्रेरित करते हैं । इस इन्दु के रक्षण से ही हमारे जीवनों में ज्ञान की ज्योति का उदय होता है, और हम प्रभु का दर्शन करनेवाले बनते हैं । [२] उस सोम को ये उपासक अपने अन्दर प्रेरित करते हैं जो कि (मदच्युतम्) = आनन्द को ही हमारे में क्षरित करनेवाला है । (हरिम्) = हमारे सब दुःखों का हरण करनेवाला है । (नदीषु) = गंगा, यमुना व सरस्वती 'गति, संयम व ज्ञान' इन तीनों के प्रवाहित होने पर हमें (वाजिनम्) = अत्यन्त शक्तिशाली बनानेवाला है । तथा (मत्सरम्) = एक अद्भुत हर्ष का हमारे में संचार करनेवाला है । [३] इस सोम को शरीर में ही प्रेरित करके हम वास्तविक आनन्द को प्राप्त करते हैं। यह हमें शक्ति सम्पन्न करके गतिशील बनाता है, यही 'गंगा' का बहना है । यह हमारे दुर्भागों को विनष्ट करके हमें संयत जीवनवाला बनाता है, यही हमारे जीवन में 'यमुना' का प्रवाह है। यह मस्तिष्क में ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है, यही 'सरस्वती' का प्रकाश है । एवं सोमरक्षण हमारे में तीनों नदियों को प्रवाहित करके हमें शक्तिशाली बनाता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से शरीर में 'गंगा', हृदय में 'यमुना' तथा मस्तिष्क में 'सरस्वती' का प्रवाह चलता है और हमारा जीवन 'गति, संयम व ज्ञान' से परिपूर्ण होता है । अगले सूक्त में भी अवत्सार ऋषि ही कहते हैं-
विषय
प्रजा-समृद्धयर्थ बलवान् राजा की स्थापना।
भावार्थ
(इन्द्राय) ऐश्वर्ययुक्त राज्य के लिये (म-त्सरम्) हर्षयुक्त (इन्दुम्) अभिषेक योग्य, (हरिं) दुःखहारी (वाजिनं) बलवान्, (मदच्युतं) हर्षप्रद (तं) उस पुरुष को (नदीषु) समृद्ध प्रजाओं में नदियों पर स्थित महावृक्ष के समान (हिन्वन्ति) बढ़ावें। इति दशमो वर्गः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
अवत्सार ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, ३ निचृद् गायत्री। २, ४ गायत्री ॥ चतुर्ऋचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
That giver of showers of sweetness and joy, lord of peace and power, destroyer of suffering, energising and flowing in streams of the universal dynamics of existence, people admire and adore, he is the joy and ecstasy of the living soul.
मराठी (1)
भावार्थ
आनंदस्रोत असलेला परमात्माच सर्वांचा प्रकाशक आहे. त्याच्याच प्रकाशाने संपूर्ण विश्व प्रकाशित होते. ॥४॥
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