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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 60 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 60/ मन्त्र 4
    ऋषि: - अवत्सारः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    इन्द्र॑स्य सोम॒ राध॑से॒ शं प॑वस्व विचर्षणे । प्र॒जाव॒द्रेत॒ आ भ॑र ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑स्य । सो॒म॒ । राध॑से । शम् । प॒व॒स्व॒ । वि॒ऽच॒र्ष॒णे॒ । प्र॒जाऽव॑त् । रेतः॑ । आ । भ॒र॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रस्य सोम राधसे शं पवस्व विचर्षणे । प्रजावद्रेत आ भर ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रस्य । सोम । राधसे । शम् । पवस्व । विऽचर्षणे । प्रजाऽवत् । रेतः । आ । भर ॥ ९.६०.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 60; मन्त्र » 4
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 17; मन्त्र » 4
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे जगदीश्वर ! (इन्द्रस्य राधसे) कर्मयोगिनामैश्वर्य्याय भवान् (शम् पवस्व) आमोदस्य क्षरणं करोतु। अथ च (प्रजावत् रेतम् आभर) प्रजादिभिर्युतमैश्वर्यं परिपूर्णं करोतु ॥४॥ इति षष्टितमं सूक्तं सप्तदशो वर्गश्च समाप्तः ॥

    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! (इन्द्रस्य राधसे) कर्मयोगी के ऐश्वर्य के लिये आप (शं पवस्व) आनन्द का क्षरण कीजिये और (प्रजावत् रेतम् आभर) प्रजादिकों से सम्पन्न ऐश्वर्य को परिपूर्ण करिये ॥४॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में परमात्मा से अभ्युदय की प्रार्थना की गई है कि हे परमात्मन् ! आप हमको कर्मयोगी बनाकर अभ्युदयशील बनाएँ ॥४॥ यह ६० वाँ सूक्त और १७ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥

    English (1)

    Meaning

    O Soma, Spirit of peace, power and bliss, all watching, all moving, bring us showers of peace and purity for the soul’s fulfilment, and vest us with creative vitality and virility for continuance of life through generations and generations.

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात परमेश्वराला अभ्युदयाची प्रार्थना केलेली आहे. हे परमात्मा! तू आम्हाला कर्मयोगी बनवून अभ्युदयशील बनव. ॥४॥

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