ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 63/ मन्त्र 7
ऋषिः - निध्रुविः काश्यपः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
अ॒या प॑वस्व॒ धार॑या॒ यया॒ सूर्य॒मरो॑चयः । हि॒न्वा॒नो मानु॑षीर॒पः ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒या । प॒व॒स्व॒ । धार॑या । यया॑ । सूर्य॑म् । अरो॑चयः । हि॒न्वा॒नः । मानु॑षीः । अ॒पः ॥
स्वर रहित मन्त्र
अया पवस्व धारया यया सूर्यमरोचयः । हिन्वानो मानुषीरपः ॥
स्वर रहित पद पाठअया । पवस्व । धारया । यया । सूर्यम् । अरोचयः । हिन्वानः । मानुषीः । अपः ॥ ९.६३.७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 63; मन्त्र » 7
अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे जगदीश ! भवान् (अया धारया) तेन प्रकाशेन प्रकाशयन् (यया) येन (सूर्यमरोचयः) सूर्यं प्रकाशयति मां प्रकाशयतु। अथ च (मानुषीः) मनुष्याणां (अपः) कर्माणि (हिन्वानः) यथायोग्यं प्रेरयन् (पवस्व) मां पवित्रयतु ॥७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! आप (अया) उस (धारया) प्रकाश से प्रकाशित करते हुए (यया) जिससे (सूर्यमरोचयः) सूर्य को आप प्रकाशित करते हैं, उससे मुझे भी प्रकाशित कीजिये और (मानुषीः) मनुष्यों के (अपः) कर्मों की (हिन्वानः) यथायोग्य प्रेरणा करते हुए (पवस्व) आप हमको पवित्र करें ॥७॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा से यथायोग्य न्याय की प्रार्थना है। यद्यपि परमात्मा स्वभावसिद्ध न्यायकारी है, तथापि परमात्मा ने इस मन्त्र में “हिन्वानः मानुषीरपः” इस वाक्य से यथायोग्य कर्मों का फलप्रदाता कथन करके यह सिद्ध किया कि तुम परमात्मा के न्याय तथा नियम के अनुकूल काम करो ॥७॥
विषय
सूर्य- रोचन
पदार्थ
[१] हे सोम ! तू (अया) = [अनया] इस (धारया) = धारणशक्ति के साथ (पवस्व) = हमें प्राप्त हो, (यया) = जिससे कि तू (सूर्यं अरोचय:) = हमारे जीवन - गगन में (सूर्यम्) = ज्ञानसूर्य को (अरोचय:) = दीप्त करता है। सुरक्षित सोम ज्ञानाग्नि को दीप्त करता है और उससे हमारा ज्ञान का प्रकाश चमक उठता है। [२] हे सोम ! इस ज्ञान के प्रकाश के द्वारा तू (मानुषीः अपः) = मनुष्योचित कर्मों को (हिन्वानः) = हमारे में प्रेरित करता है। ज्ञानी बनकर हम यज्ञादि लोकहितकारी कर्मों में ही प्रवृत्त होते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण से हम दीप्त ज्ञानाग्निवाले बनते हैं और सदा मानवोचित कर्मों को ही करते हैं।
विषय
राजा का राष्ट्र शोधन का कर्त्तव्य।
भावार्थ
(यया) जिस वाणी या प्रजापोषक नीति से तू (मानुषीः अपः) मननशील आप्त प्रजाओं को (हिन्वानः) बढ़ाता और सन्मार्ग में चलाता हुआ, (सूर्यम् अरोचयः) सूर्य के तुल्य तेजस्वी पद को प्रकाशित करता है तू (अया धारया) इसी धारा, वाणी या नीति से (पवस्व) राष्ट्र को स्वच्छ कर।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
निध्रुविः काश्यप ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:- १, २, ४, १२, १७, २०, २२, २३, २५, २७, २८, ३० निचृद् गायत्री। ३, ७-११, १६, १८, १९, २१, २४, २६ गायत्री। ५, १३, १५ विराड् गायत्री। ६, १४, २९ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Lord of the universe, by the energy with which you give light to the sun, by the same light and energy inspire the will and actions of humanity and purify us.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात यथायोग्य न्यायासाठी परमेश्वराची प्रार्थना केलेली आहे. जरी परमेश्वर स्वभावसिद्ध न्यायी आहे. तरीही त्याने ‘हिन्वान: मानुषीरप:’ या वाक्याने यथा योग्य कर्माचा फलप्रदाता असे कथन करून सिद्ध केलेले आहे की तुम्ही परमेश्वराच्या न्याय व नियमानुसार काम करा. ॥७॥
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