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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 64 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 64/ मन्त्र 7
    ऋषिः - कश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    पव॑मानस्य विश्ववि॒त्प्र ते॒ सर्गा॑ असृक्षत । सूर्य॑स्येव॒ न र॒श्मय॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    पव॑मानस्य । वि॒श्व॒ऽवि॒त् । प्र । ते॒ । सर्गाः॑ । अ॒सृ॒क्ष॒त॒ । सूर्य॑स्यऽइव । न । र॒श्मयः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    पवमानस्य विश्ववित्प्र ते सर्गा असृक्षत । सूर्यस्येव न रश्मय: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    पवमानस्य । विश्वऽवित् । प्र । ते । सर्गाः । असृक्षत । सूर्यस्यऽइव । न । रश्मयः ॥ ९.६४.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 64; मन्त्र » 7
    अष्टक » 7; अध्याय » 1; वर्ग » 37; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (विश्ववित्) हे संसारज्ञ परमात्मन् ! (पवमानस्य) सर्वपवित्रयितः (ते) तव (सर्गाः) सृष्टयः याः (प्र असृक्षत) रचिताः सन्ति ताः (सूर्यस्येव रश्मयः) रवेः किरणा इव (न) सम्प्रति शोभन्ते ॥७॥

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    हिन्दी (1)

    पदार्थ

    (विश्ववित्) हे सम्पूर्ण संसार के जाननेवाले परमात्मन् ! (पवमानस्य) सबको पवित्र करनेवाले (ते) तुम्हारी (सर्गाः) सृष्टियें (प्रासृक्षत) जो रची गई हैं, वे (सूर्यस्येव) सूर्य की (रश्मयः) किरणों के समान (न) इस काल में शोभा को प्राप्त हो रही हैं ॥७॥

    भावार्थ

    परमात्मा के कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड सूर्य की रश्मियों के समान देदीप्यमान हो रहे हैं। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार सूर्य अपनी ज्योति से अनन्त ब्रह्माण्डों को प्रकाशित करता है, उस प्रकार अन्य भी तेजोमय ब्रह्माण्ड लोक-लोकान्तरों को प्रकाश करनेवाले परमात्मा की रचना में अनन्त हैं। इसी अभिप्राय से वेद में अन्यत्र भी कहा है कि “को अद्धा वेद क इह प्रवोचत्” इत्यादि मन्त्रों में यह वर्णन किया है कि परमात्मा की रचनाओं के अन्त को कौन जान सकता है और कौन इसको पूर्णरूप से कथन कर सकता है ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Lord of the universe, pure, refulgent and purifying, as you manifest in the flux of existence your creations of peace and beauty flow and radiate like rays of the sun.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराचे कोटी कोटी ब्रह्मांड सूर्यरश्मी प्रमाणे देदीप्यमान होत आहेत. ज्या प्रकारे सूर्य आपल्या ज्योतीने अनंत ब्रह्मांडांना प्रकाशित करतो त्या प्रकारे इतरही तेजोमय ब्रह्मांड लोकलोकांतरांना प्रकाशित करणाऱ्या परमेश्वराच्या रचना अनंत आहेत. वेदात अन्यत्र ही ‘कोऽद्धवित्ति कमिह प्रवोचत’ इत्यादी मंत्रात हे वर्णन केलेले आहे की परमेश्वराच्या रचनेचा अंत कोण जाणू शकतो व कोण पूर्णरूपाने सांगू शकतो? ॥७॥

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