ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 65/ मन्त्र 27
ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
तं त्वा॑ सु॒तेष्वा॒भुवो॑ हिन्वि॒रे दे॒वता॑तये । स प॑वस्वा॒नया॑ रु॒चा ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । त्वा॒ । सु॒तेषु॑ । आ॒ऽभुवः॑ । हि॒न्वि॒रे । दे॒वऽता॑तये । सः । प॒व॒स्व॒ । अ॒नया॑ । रु॒चा ॥
स्वर रहित मन्त्र
तं त्वा सुतेष्वाभुवो हिन्विरे देवतातये । स पवस्वानया रुचा ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । त्वा । सुतेषु । आऽभुवः । हिन्विरे । देवऽतातये । सः । पवस्व । अनया । रुचा ॥ ९.६५.२७
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 65; मन्त्र » 27
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 6; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! (तं) पूर्वोक्तगुणसम्पन्नं (त्वा) भवन्तं (सुतेषु) सुयज्ञेषु (आभुवः) ऋत्विजः (देवतातये) विघ्नविनाशनाय (हिन्विरे) भवदुपासनां कुर्वते। (सः) स भवान् (अनया रुचा) प्रागुक्तज्ञानशक्त्या (पवस्व) अस्मान् पवित्रयतु ॥१७॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (तं) उक्तगुणसम्पन्न (त्वा) आपको (सुतेषु) सुन्दर करनेवाले यज्ञों में (आभुवः) ऋत्विक् लोग (देवतातये) विघ्नों के विनाश के लिये (हिन्विरे) आपकी उपासना करते हैं। (सः) वह उक्तगुण सम्पन्न आप (अनया रुचा) पूर्वोक्त ज्ञान की शक्ति से (पवस्व) हमको पवित्र करें ॥१७॥
भावार्थ
जो परमात्मा अपने ज्ञानप्रदीप से भक्तों के हृदय को पवित्र करते हैं, वे हमारे अन्तःकरण को पवित्र करें ॥१७॥
विषय
कर्मठ ही सोम का रक्षण करते हैं
पदार्थ
[१] हे सोम ! (तं त्वा) = उस तुझ को (सुतेषु) = यज्ञों में (आभुवः) = समन्तात् होनेवाले, अर्थात् सदा यज्ञों में लगे रहनेवाले, श्रेष्ठतम कर्मों में प्रवृत्त लोग, (हिन्वरे) = अपने शरीरों में प्रेरित करते हैं। ऐसा होने पर (देवतातये) = तू दिव्यगुणों के विस्तार के लिये होता है । [२] (सः) = वह तू (अनया रुचा) = इस ज्ञानदीप्ति के साथ (पवस्व) = हमें प्राप्त हो ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण का उपाय 'यज्ञों में लगे रहना' है। रक्षित सोम हमें ज्ञानदीप्ति देता है।
विषय
उसकी स्तुति वा प्रस्ताव और उस का वरण।
भावार्थ
हे (सोम) मुख्य शासक ! (तं त्वा) उस तुझ को (आभुवः) चारों ओर विराजने वाले जन (देव-तातये) सब मनुष्यों के कल्याण के लिये (सुतेषु) ऐश्वर्यों को प्राप्त करने तथा उत्पन्न प्राणियों के हितार्थ, वा अभिषिक्त जनों के बीच में (हिन्विरे) तेरी प्रतिष्ठा करते हैं। (सः) वह तू (अनया रुचा) इस अनुरूप शोभा से (पवस्व) युक्त हो और सर्वोत्तम पद पर प्रतिष्ठित हो।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्द:– १, ९, १०, १२, १३, १६, १८, २१, २२, २४–२६ गायत्री। २, ११, १४, १५, २९, ३० विराड् गायत्री। ३, ६–८, १९, २०, २७, २८ निचृद् गायत्री। ४, ५ पादनिचृद् गायत्री। १७, २३ ककुम्मती गायत्री॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
That lord of soma power and peace, the celebrants adore, exalt and glorify in their yajnic actions in the service of humanity and divinity. O lord, be pleased to accept this charming song of adoration, come, purify and sanctify us.
मराठी (1)
भावार्थ
जो परमात्मा आपल्या ज्ञानप्रदीपाने भक्तांच्या हृदयांना पवित्र करतो, त्याने आमच्या अंत:करणाला पवित्र करावे. ॥२७॥
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