ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 66/ मन्त्र 21
अग्ने॒ पव॑स्व॒ स्वपा॑ अ॒स्मे वर्च॑: सु॒वीर्य॑म् । दध॑द्र॒यिं मयि॒ पोष॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठअग्ने॑ । पव॑स्व । सु॒ऽअपाः॑ । अ॒स्मे इति॑ । वर्चः॑ । सु॒ऽवीर्य॑म् । दध॑त् । र॒यिम् । मयि॑ । पोष॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
अग्ने पवस्व स्वपा अस्मे वर्च: सुवीर्यम् । दधद्रयिं मयि पोषम् ॥
स्वर रहित पद पाठअग्ने । पवस्व । सुऽअपाः । अस्मे इति । वर्चः । सुऽवीर्यम् । दधत् । रयिम् । मयि । पोषम् ॥ ९.६६.२१
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 66; मन्त्र » 21
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 11; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अग्ने) ज्ञानस्वरूप जगत्पालक परमात्मन् ! मां (पवस्व) पवित्रयतु। भवान् (स्वपाः) सुकर्मास्ति। (अस्मे) अस्मासु (वर्चः) ब्रह्मतेजो ददातु। अथ च (मयि) मयि (रयिम्) ऐश्वर्यं (सुवीर्यम्) सुन्दरं बलं (पोषम्) पुष्टिं च (दधत्) धारयतु ॥२१॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अग्ने) हे ज्ञानस्वरूप परमात्मन् ! (पवस्व) आप हमको पवित्र करें। आप (स्वपाः) शोभन कर्मोंवाले हैं (अस्मे) हममें आप (वर्चः) ब्रह्मतेज दें और (मयि) मुझमें (रयिम्) ऐश्वर्य (सुवीर्यम्) और सुन्दर बल (पोषम्) तथा पुष्टि को (दधत्) धारण कराएँ ॥२१॥
भावार्थ
जो पुरुष परमात्मपरायण होते हैं, परमात्मा उनमें सब प्रकार के ऐश्वर्यों को धारण कराता है ॥२१॥
विषय
वर्चस्- सुवीर्य - रयि
पदार्थ
[१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (स्वपा:) = उत्तम कर्मोंवाले आप (अस्मे) = हमारे लिये (वर्चः) = तेज व (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति को (पवस्व) = प्राप्त कराइये । [२] आप (मयि) = मेरे में (पोषं रयिम्) = पालक धन को (दधत्) = धारण करिये। पालन-पोषण के पर्याप्त धन की मुझे कभी कमी न हो।
भावार्थ
भावार्थ - हमें प्रभु कृपा से 'वर्चस् सुवीर्य व पोषण के लिये पर्याप्त धन की प्राप्ति हो ।
विषय
ज्ञानवान् तेजस्वी बल की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (अग्ने) ज्ञानवन् ! तेजस्विन् ! तू (सु-अपाः) उत्तम कर्म करने हारा ! (स्व-पाः) स्वयं अपनों का वा ऐश्वर्यों का पालक होकर (अस्मे वर्चः) हमें तेज और (सुवीर्यं) उत्तम वीर्य प्रदान कर और तू (मयि रयिम् पोषम् दधत्) मेरे में धन, पुत्रादि एवं पशु-समृद्धि और शरीर की पुष्टि को धारण करा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
शतं वैखानसा ऋषयः॥ १–१८, २२–३० पवमानः सोमः। १९—२१ अग्निर्देवता ॥ छन्दः- १ पादनिचृद् गायत्री। २, ३, ५—८, १०, ११, १३, १५—१७, १९, २०, २३, २४, २५, २६, ३० गायत्री। ४, १४, २२, २७ विराड् गायत्री। ९, १२,२१,२८, २९ निचृद् गायत्री। १८ पाद-निचृदनुष्टुप् ॥ त्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Agni, pray radiate and purify us. Lord of holy action, bless us with holy lustre, noble courage and virility. Bear and bring us wealth, honour and excellence with promotive health and nourishment.
मराठी (1)
भावार्थ
जे पुरुष परमात्मपरायण असतात, परामात्मा त्यांच्यात सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य धारण करवितो. ॥२१॥
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