ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 19
ग्राव्णा॑ तु॒न्नो अ॒भिष्टु॑तः प॒वित्रं॑ सोम गच्छसि । दध॑त्स्तो॒त्रे सु॒वीर्य॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठग्राव्णा॑ । तु॒न्नः । अ॒भिऽस्तु॑तः । प॒वित्र॑म् । सो॒म॒ । ग॒च्छ॒सि॒ । दध॑त् । स्तो॒त्रे । सु॒ऽवीर्य॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
ग्राव्णा तुन्नो अभिष्टुतः पवित्रं सोम गच्छसि । दधत्स्तोत्रे सुवीर्यम् ॥
स्वर रहित पद पाठग्राव्णा । तुन्नः । अभिऽस्तुतः । पवित्रम् । सोम । गच्छसि । दधत् । स्तोत्रे । सुऽवीर्यम् ॥ ९.६७.१९
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 19
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 4
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 16; मन्त्र » 4
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(ग्राव्णा) जिज्ञासुभिः (तुन्नः) आविर्भूतस्तथा (अभिष्टुतः) सर्वथा स्तुतः (सोम) हे जगदीश ! भवान् (पवित्रम्) पूर्वोक्तानां कर्मयोगिनामन्तःकरणानि (गच्छसि) प्राप्नोति। अथ च (स्तोत्रे) उक्तस्तोतृभ्यस्त्वं (सुवीर्यम्) सुबलम् (दधत्) उत्पादयसि ॥१९॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(ग्राव्णा) जिज्ञासुओं से (तुन्नः) आविर्भाव को प्राप्त हुए तथा (अभिष्टुतः) सब प्रकार से स्तुति किये हुए (सोम) हे परमात्मन् ! आप (पवित्रम्) उनके पवित्र अन्तःकरण को (गच्छसि) प्राप्त होते हैं और (स्तोत्रे) उक्त स्तोता लोगों के लिए आप (सुवीर्यम्) सुन्दर बल को (दधत्) उत्पन्न करते हैं ॥१९॥
भावार्थ
उपासक लोगों से उपासना किया हुआ परमात्मा उनके लिए सुन्दर बल का प्रदान करता है ॥१९॥
विषय
तुन्नः अभिष्टुतः
पदार्थ
[१] हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! (ग्राव्णा) = स्तोता से (तुन्नः) [guided = प्रेरित] = प्रेरित किया गया, शरीर के अन्दर ही व्याप्त किया गया तथा (अभिष्टुतः) = प्रातः - सायं स्तुति किया गया तू (पवित्रम्) = इस पवित्र हृदयवाले पुरुष को, इस स्तोता को गच्छसि प्राप्त होता है । [२] इस स्तोता को प्राप्त होने पर (स्तोत्रे) = इस स्तोता के लिये (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति को (दधत्) = तू धारण करता है । सोम का स्तवन करने से सोम के गुणों का सतत स्मरण होता है इस स्तवन से सोमरक्षण में नीति उत्पन्न होती है । हमारी सब क्रियायें सोमरक्षण के उद्देश्य से होती हैं। सुरक्षित सोम हमारी शक्ति का वर्धन करता है।
भावार्थ
भावार्थ- सोम का स्तवन करनेवाला व्यक्ति सोम को शरीर में प्रेरित करता हुआ शक्ति- सम्पन्न बनता है ।
विषय
उत्तम शिक्षा पाकर शासन पद के योग्य होना।
भावार्थ
(स्तोत्रे) स्तुति करने वाले विद्वान् प्रजा जन के उपकार के लिये (सुवीर्यं दधत्) उत्तम बल को धारण करता हुआ, हे (सोम) उत्तम शासनयोग्य विद्वन् ! तू (ग्राव्णा तुन्नः) विद्वान् उपदेष्टा द्वारा प्रेरित और अभिताड़ित होकर और (अभि-स्तुतः) खूब प्रशंसित और उपदिष्ट होकर (पवित्रं गच्छसि) शत्रु-कण्टकादि को दूर करने के शासन पद को प्राप्त होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Invoked and adored by the celebrant, O Soma, you move and arise in the pure heart of the devotee bearing creative vision for the celebrant and vesting vigour and power in the song.
मराठी (1)
भावार्थ
उपासक उपासना केल्यावर परमात्मा त्यांना सुंदर बल प्रदान करतो. ॥१९॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal