ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 67/ मन्त्र 6
आ न॑ इन्दो शत॒ग्विनं॑ र॒यिं गोम॑न्तम॒श्विन॑म् । भरा॑ सोम सह॒स्रिण॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठआ । नः॒ । इ॒न्दो॒ इति॑ । श॒त॒ऽग्विन॑म् । र॒यिम् । गोऽम॑न्तम् । अ॒श्विन॑म् । भर॑ । सो॒म॒ । स॒ह॒स्रिण॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
आ न इन्दो शतग्विनं रयिं गोमन्तमश्विनम् । भरा सोम सहस्रिणम् ॥
स्वर रहित पद पाठआ । नः । इन्दो इति । शतऽग्विनम् । रयिम् । गोऽमन्तम् । अश्विनम् । भर । सोम । सहस्रिणम् ॥ ९.६७.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 67; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 14; मन्त्र » 1
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे सर्वप्रकाशक परमात्मन् ! भवान् (शतग्विनम्) शतविधशक्तिमत् तथा (गोमन्तम्) ऐश्वर्ययुक्तं (अश्विनम्) सर्वत्र व्यापकं (सहस्रिणम्) सहस्रविधं (रयिम्) धनम् (नः) अस्मभ्यम् (आभर) ददातु ॥६॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दो) हे सर्वप्रकाशक परमात्मन् ! आप (शतग्विनम्) सैकड़ों प्रकार की शक्तिवाले (गोमन्तं) तथा ऐश्वर्ययुक्त (अश्विनं) सर्वत्र व्यापक (सहस्रिणं) हजारों प्रकार के (रयिम्) धन को (नः) हमको (आभर) दीजिये ॥६॥
भावार्थ
परमात्मा सहस्रों प्रकार के ऐश्वर्यों का प्रदान करनेवाला है ॥६॥
विषय
उस रयि को
पदार्थ
[१] हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले (सोम) = वीर्यशक्ते ! (नः) = हमारे लिये (रयिम्) = उस ऐश्वर्य को (आभर) = सर्वथा प्राप्त करा । जो (शतग्विनम्) = [ शतं गच्छति] शतवर्षपर्यन्त ठीक प्रकार से चलता है । (गोमन्तम्) = जो प्रशस्त ज्ञानेन्द्रियोंवाला है तथा (अश्विनम्) = प्रशस्त कर्मेन्द्रियोंवाला है । हम सोम के द्वारा उस ऐश्वर्य को प्राप्त करें जो [क] हमारे शतवर्षगामी जीवन को प्राप्त कराये, [ख] ज्ञानेन्द्रियों को उत्तम बनाये [ग] तथा कर्मेन्द्रियों को सशक्त करे । [२] यह ऐश्वर्य (सहस्रिणम्) = हमें 'स+हस्' सदा आमोद-प्रमोद से युक्त रखे। इससे हमारा जीवन उल्लासमय बना रहे ।
भावार्थ
भावार्थ- सोमरक्षण 'दीर्घ जीवन, उत्तम इन्द्रियों व उल्लास' का कारण बने । सोमरक्षण से उत्तम इन्द्रियोंवाला यह 'गो-तम' बनता है। यह सोम-स्तवन करता हुआ कहता है-
विषय
उत्तम विद्वान् उपदेष्टा के कर्त्तव्य उनके अनेकानेक कर्त्तव्य।
भावार्थ
हे (इन्दो) ऐश्वर्यवन् ! तू (नः) हमें (शतग्विनं) सैकड़ों गौओं, भूमियों से युक्त, (गोमन्तं) ज्ञान-वाणियों से युक्त (अश्विनम्) अश्वों से सम्पन्न, (सहस्रिणं) संख्या में सहस्रों वा सहस्रों सुखों से युक्त (रयिम्) ऐश्वर्य को (आ भर) प्राप्त करा।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः-१—३ भरद्वाजः। ४—६ कश्यपः। ७—९ गोतमः। १०–१२ अत्रिः। १३—१५ विश्वामित्रः। १६—१८ जमदग्निः। १९—२१ वसिष्ठः। २२—३२ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा॥ देवताः—१–९, १३—२२, २८—३० पवमानः सोमः। १०—१२ पवमानः सोमः पूषा वा। २३, २४ अग्निः सविता वा। २६ अग्निरग्निर्वा सविता च। २७ अग्निर्विश्वेदेवा वा। ३१, ३२ पावमान्यध्येतृस्तुतिः॥ छन्द:- १, २, ४, ५, ११—१३, १५, १९, २३, २५ निचृद् गायत्री। ३,८ विराड् गायत्री । १० यवमध्या गायत्री। १६—१८ भुरिगार्ची विराड् गायत्री। ६, ७, ९, १४, २०—२२, २, २६, २८, २९ गायत्री। २७ अनुष्टुप्। ३१, ३२ निचृदनुष्टुप्। ३० पुरउष्णिक्॥ द्वात्रिंशदृचं सूक्तम्॥
इंग्लिश (1)
Meaning
Indu, Soma, lord of love, beauty, peace and glory, bear and bring us wealth, honour and excellence of a hundred and a thousand kinds, of lands and cows, horses, advancement and victory, above all settlement, peace and happiness.
मराठी (1)
भावार्थ
परमेश्वर हजारो प्रकारचे ऐश्वर्य प्रदान करणारा आहे. ॥६॥
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