ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 74/ मन्त्र 2
दि॒वो यः स्क॒म्भो ध॒रुण॒: स्वा॑तत॒ आपू॑र्णो अं॒शुः प॒र्येति॑ वि॒श्वत॑: । सेमे म॒ही रोद॑सी यक्षदा॒वृता॑ समीची॒ने दा॑धार॒ समिष॑: क॒विः ॥
स्वर सहित पद पाठदि॒वः । यः । स्क॒म्भः । ध॒रुणः॑ । सुऽआ॑ततः । आऽपू॑र्णः । अं॒शुः । प॒रि॒ऽ एति॑ । वि॒श्वतः॑ । सः । इ॒मे इति॑ । म॒ही इति॑ । रोद॑सी॒ इति॑ । य॒क्ष॒त् । आ॒ऽवृता॑ । स॒मी॒ची॒ने इति॑ स॒म्ऽई॒ची॒ने । दा॒हा॒र॒ । सम् । इषः॑ । क॒विः ॥
स्वर रहित मन्त्र
दिवो यः स्कम्भो धरुण: स्वातत आपूर्णो अंशुः पर्येति विश्वत: । सेमे मही रोदसी यक्षदावृता समीचीने दाधार समिष: कविः ॥
स्वर रहित पद पाठदिवः । यः । स्कम्भः । धरुणः । सुऽआततः । आऽपूर्णः । अंशुः । परिऽ एति । विश्वतः । सः । इमे इति । मही इति । रोदसी इति । यक्षत् । आऽवृता । समीचीने इति सम्ऽईचीने । दाहार । सम् । इषः । कविः ॥ ९.७४.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 74; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 31; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(दिवः यः स्कम्भः) यो द्युलोकस्य सहायः अथ च (धरुणः) पृथिव्या धारकोऽस्ति तथा (स्वाततः) विततः (आपूर्णः) सर्वत्र परिपूर्णः (अंशुः) व्यापकः परमात्मा (विश्वतः) सर्वतः (पर्येति) प्राप्तोऽस्ति (सः) असौ परमात्मा (इमे मही रोदसी) इमं भूलोकं द्युलोकं च (आवृता) आश्चर्यकर्मणा (यक्षत्) सङ्गतं करोति। अथ च (समीचीने) सङ्गते द्यावाभूमी स परमात्मैव (दाधार) धारयति। सः (कविः) सर्वज्ञो जगदीश्वरः (इषः) ऐश्वर्यान् (सम्) सम्प्रयच्छति। उपसर्गश्रुतेर्योग्यक्रियाध्याहारः ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(दिवः यः स्कम्भः) जो द्युलोक का सहारा है और (धरुणः) पृथिवी का धारण करनेवाला है तथा (स्वाततः) विस्तृत (आपूर्णः) सर्वत्र परिपूर्ण (अंशुः) व्यापक परमात्मा (विश्वतः) सब ओर से (पर्येति) प्राप्त है, (सः) वह परमात्मा (इमे मही रोदसी) इस भूलोक और अन्तरिक्षलोक को (आवृता) अद्भुत कर्म से (यक्षत्) संगत करता है और (समीचीने) संगत द्युलोक और भूलोक को वही परमात्मा (दाधार) धारण करता है। वह (कविः) सर्वज्ञ परमेश्वर (इषः) ऐश्वर्यों को (सम्) देता है ॥२॥
भावार्थ
जिस परमात्मा ने द्युलोक और पृथिवीलोकादिकों को लीलामात्र से धारण किया है, वही सब ऐश्वर्यों का दाता है, अन्य नहीं ॥२॥
विषय
सर्वाश्रय पालक, सर्वव्यापक, सर्वपालक सर्वसुखदाता प्रभु।
भावार्थ
(यः) जो परमेश्वर सब जगत् का उत्पादक (धरुणः) सब संसार को धारण करने, और (स्कम्भः) संसार-भवन को स्तम्भवत् थामने वाला, सब का आश्रय है, वह (सु-आततः) सर्वत्र अच्छी प्रकार फैला हुआ है। वह (आपूर्णः) सब ओर से पूर्ण है, उसमें तिलमात्र भी न्यूनता नहीं है। वह (अंशुः) सर्वत्र व्यापक है। वह ही (इमे मही रोदसी परि एति) इन दोनों विशाल आकाश और भूमि को भी सब ओर से व्याप रहा है। वह इन दोनों को (आवृता) पुनः २ आवर्त्तन करने वाले चक्र से (यक्षत्) शक्ति, अन्न, जल जीवन का प्रदान करता है, मानों इनमें वह यज्ञ करता है वह (कविः) बड़ा क्रान्तदर्शी, मेधावी है, इन (समीचीने) परस्पर मिले, सुसम्बद्ध दोनों को (दाधार) धारण एवं पालन पोषण करता है, वह ही (इषः सम् दाधार, इषः संयक्षत्) समस्त प्रेरक शक्तियों को धारण करता है और वही समस्त वृष्टि और अन्न सब को प्रदान करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कक्षीवानृषिः। पवमानः सोमो देवता। छन्दः- १, ३ पादनिचृज्जगती। २, ६ विराड् जगती। ४, ७ जगती। ५, ९ निचज्जगती। ८ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम्॥
विषय
'दिवः स्कम्भः- धरुणः ' अंशुः
पदार्थ
[१] (दिवः) = ज्ञान-प्रकाश का (यः) = जो (स्कम्भः) = धारण करनेवाला, (धरुणः) = शरीर की सब शक्तियों का आधार (स्वाततः) = [सु आ ततः] सम्यक्तया शरीर में चारों ओर व्याप्त है। (आपूर्णः) = सब दृष्टिकोणों से पूर्ण अंशुः = यह सोम विश्वतः पर्येति-शरीर के अंग-प्रत्यंग में गतिवाला होता है । [२] (सः) = वह यह सोम (इमे) = इन मही (रोदसी) = महत्त्वपूर्ण द्यावापृथिवी को, मस्तिष्क व शरीर को (यक्षत्) = परस्पर संगत करता है, अर्थात् शरीर व मस्तिष्क दोनों को ही उन्नत करता है । (आवृता) = अपने-अपने कार्य में आवर्तनवाले समीचीने मिलकर चलनेवाले इन मस्तिष्क व शरीर को यह (दाधार) = धारण करता है। यह (कविः) = हमें क्रान्तप्रज्ञ, तत्त्वद्रष्टा बनानेवाला सोम हमारे जीवन में (इषः) = प्रेरणाओं को (सं) [दाधार] = धारण करता है । अर्थात् हमें पवित्र हृदयबनाकर प्रभु- प्रेरणाओं को सुनने के योग्य बनाता है ।
भावार्थ
भावार्थ- सुरक्षित सोम मस्तिष्क व शरीर को संगत करता हुआ उन्नत करता है, दोनों को ही उन्नत बनाता है। इन दोनों द्यावापृथिवी को ठीक करके यह हृदयान्तरिक्ष में प्रभु प्रेरणाओं को प्राप्त कराता है।
इंग्लिश (1)
Meaning
We pray to that centre-hold of heaven, foundation of existence, boundless holy presence all pervasive and perfect, covering all space all round who holds both these worlds of earth and heaven with the middle regions together and sustains them like a yajamana. He is the omniscient visionary, poetic creator and giver of food and energy for sustenance and knowledge for enlightenment.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या परमात्म्याने द्युलोक व पृथ्वीलोक इत्यादींना लीलया धारण केलेले आहे. तोच सर्व ऐश्वर्याचा दाता आहे, दुसरा कोणी नाही. ॥२॥
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