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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 74 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 74/ मन्त्र 6
    ऋषिः - कक्षीवान् देवता - पवमानः सोमः छन्दः - विराड्जगती स्वरः - निषादः

    स॒हस्र॑धा॒रेऽव॒ ता अ॑स॒श्चत॑स्तृ॒तीये॑ सन्तु॒ रज॑सि प्र॒जाव॑तीः । चत॑स्रो॒ नाभो॒ निहि॑ता अ॒वो दि॒वो ह॒विर्भ॑रन्त्य॒मृतं॑ घृत॒श्चुत॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स॒हस्र॑ऽधारे । अव॑ । ताः । अ॒स॒श्चतः॑ । तृ॒तीये॑ । स॒न्तु॒ । रज॑सि । प्र॒जाऽव॑तीः । चत॑स्रः । नाभः॑ । निऽहि॑ताः । अ॒वः । दि॒वः । ह॒विः । भ॒र॒न्ति॒ । अ॒मृत॑म् । घृ॒त॒ऽश्चुतः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सहस्रधारेऽव ता असश्चतस्तृतीये सन्तु रजसि प्रजावतीः । चतस्रो नाभो निहिता अवो दिवो हविर्भरन्त्यमृतं घृतश्चुत: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सहस्रऽधारे । अव । ताः । असश्चतः । तृतीये । सन्तु । रजसि । प्रजाऽवतीः । चतस्रः । नाभः । निऽहिताः । अवः । दिवः । हविः । भरन्ति । अमृतम् । घृतऽश्चुतः ॥ ९.७४.६

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 74; मन्त्र » 6
    अष्टक » 7; अध्याय » 2; वर्ग » 32; मन्त्र » 1
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सहस्रधारे) नानविधैश्वर्यवति (तृतीये) तृतीयेऽन्तरिक्षलोके (रजसि) यो लोको रजोगुणविशिष्टोऽस्ति तस्मिन् (प्रजावतीः) नानाविधप्रजावन्त्यैश्वर्याणि (सन्तु) अस्मान् मिलन्तु। (असश्चतः) यान्यैश्वर्याणि जीवात्मनोऽशक्तकारीणि न भवन्ति (ताः) ताश्शक्तयः (घृतः चुतः) या नानाविधस्निग्धपदार्थदात्र्यः (हविः) हवीरूपं (अमृतं भरन्ति) अमृतं ददति। अथ च याः (दिवः अवः निहिताः) द्युलोकस्याधः स्थितास्तथा यासु (चतस्रः नाभः) चतुर्विधा दीप्तयः सन्ति, धर्मार्थकाममोक्षफलयुता इति यावत् ताश्शक्तीः परमात्मास्मभ्यं ददातु ॥६॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सहस्रधारे)  अनन्त प्रकार के ऐश्वर्यवाले (तृतीये) तीसरे अन्तरिक्षलोक में (रजसि) जो रजोगुणविशिष्ट है, उसमें (प्रजावतीः) नाना प्रकार की प्रजावाले ऐश्वर्य (सन्तु) हमको प्राप्त हों। (असश्चतः) जो ऐश्वर्य जीवन को अशक्त करनेवाले न हों, (ताः) वे शक्तियें (घृतः चुतः) जो नाना प्रकार के स्निग्ध पदार्थों की देनेवाली हैं (हविः) और हविरूप अमृत को देनेवाली हैं और जो (दिवः अवः निहिताः) द्युलोक के नीचे रक्खी हुई हैं, जिनमें (चतस्रः नाभः) चार प्रकार की दीप्ति है अर्थात् धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष चारों प्रकार के फल संयुक्त हैं, वे शक्तियें परमात्मा हमें प्रदान करे ॥६॥

    भावार्थ

    परमात्मा जिन पर प्रसन्न होता है, उनको चारों प्रकार के फलों का प्रदान करता है ॥६॥

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    विषय

    सूर्य की दिव्य शक्तियां

    भावार्थ

    (सहस्र-धारे) सहस्रों धारा अर्थात् धारण शक्तियों से युक्त मेघवत् सूर्य में (ताः) वे नाना शक्तियां (असश्चतः) परस्पर असक्त, पृथक् २ रहती हुई (तृतीये रजसि) तीसरे लोक,द्यौ में (सन्तु) रहें। वे (प्रजावतीः) समस्त प्रजा की रक्षा करने वाली (चतस्रः) चार (नाभः) आदित्य का विशेष दीप्तियां (दिवः अवः) तेजमय सूर्य से नीचे (निहिताः) प्रेरित होकर (घृत-श्चुतः) जल बरसाने वाला होती हैं और वेही (अमृत हविः भरन्तिः) अमृत अर्थात् जल और अन्न प्राप्त कराती हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कक्षीवानृषिः। पवमानः सोमो देवता। छन्दः- १, ३ पादनिचृज्जगती। २, ६ विराड् जगती। ४, ७ जगती। ५, ९ निचज्जगती। ८ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ नवर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    'दिवः हविः भरन्ति अमृतं घृतश्चतः'

    पदार्थ

    [१] (सहस्त्रधारे) = हजारों प्रकार से धारण करनेवाले उस प्रभु में (ताः) = उन रेतः कणों को (अव) = तू रक्षित कर । प्रभु की उपासना के द्वारा तू इनका रक्षण कर । (असश्चतः) = विषयों में आसक्त न होती हुई, अतएव (प्रजावती:) = प्रकृष्ट सन्तानोंवाली प्रजायें तृतीये रजसि सन्तु तृतीय लोक में रहनेवाली हों। यह तृतीय लोक 'स्थूल व सूक्ष्म' शरीरों के बाद 'कारण' शरीर है। यही आनन्दमयकोश है। सोमरक्षक पुरुष इस आनन्दमय लोक में ही निवास करते हैं । [२] इनके जीवन में (चतस्रः) = चारों (नाभः) = ज्ञान के बन्धन (निहिताः) = स्थापित होते हैं, 'ऋग्यजु साम अथर्व' रूप चारों ज्ञानदीप्तियाँ इन्हें प्राप्त होती हैं। (अवः) = [ अवति इति] ये ज्ञानदीप्तियाँ ही इनका रक्षण करनेवाली होती हैं [विच् प्रत्यय में यह रूप बना है]। ये (घृतश्चुत:) = ज्ञानदीप्ति का अपने में क्षरण करनेवाले लोग (दिवः हविः) = ज्ञान की हवि को भरन्ति धारण करते हैं। यह हवि ही (अमृतम्) = इनके लिये अमृत होती है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु स्मरण से सोम का रक्षण होता है । सोमरक्षण से ज्ञानवृद्धि होती है ये लोग सदा अनासक्त भाव से कार्य करते हुए सदा आनन्दमयकोश में निवास करते हैं ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Those creative vitalities in the sun of a thousand streams of light and life be there above in the third region of light in space and come down to earth. Four treasure casks of Dharma, artha, kama and moksha abide well guarded in the region of light and, overflowing with ghrta, living water and divine sanctity, bring down the spirit and message of full life on earth for the joy of human life, imperishable and immortal.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर ज्यांच्यावर प्रसन्न होतो त्यांना चार प्रकारचे फळ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) प्रदान करतो. ॥६॥

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