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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 81 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 81/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसुर्भारद्वाजः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उ॒भे द्यावा॑पृथि॒वी वि॑श्वमि॒न्वे अ॑र्य॒मा दे॒वो अदि॑तिर्विधा॒ता । भगो॒ नृशंस॑ उ॒र्व१॒॑न्तरि॑क्षं॒ विश्वे॑ दे॒वाः पव॑मानं जुषन्त ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒भे इति॑ । द्यावा॑पृथि॒वी इति॑ । वि॒श्व॒म्ऽइ॒न्वे । अ॒र्य॒मा । दे॒वः । अदि॑तिः । वि॒ऽधा॒ता । भगः॑ । नृऽशंसः॑ । उ॒रु । अ॒न्तरि॑क्षम् । विश्वे॑ । दे॒वाः । पव॑मानम् । जु॒ष॒न्त॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उभे द्यावापृथिवी विश्वमिन्वे अर्यमा देवो अदितिर्विधाता । भगो नृशंस उर्व१न्तरिक्षं विश्वे देवाः पवमानं जुषन्त ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उभे इति । द्यावापृथिवी इति । विश्वम्ऽइन्वे । अर्यमा । देवः । अदितिः । विऽधाता । भगः । नृऽशंसः । उरु । अन्तरिक्षम् । विश्वे । देवाः । पवमानम् । जुषन्त ॥ ९.८१.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 81; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 6; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (पवमानम्) सर्वपावकं परमात्मानं (उभे द्यावापृथिवी) द्वावपि द्युलोक-पृथ्वीलोकौ (विश्वमिन्वे) यौ विस्ताररूपेण व्याप्तौ वर्तेते। (अर्यमा देवः) तथा न्यायकारिणो राजानः (अदितिः) तथा अज्ञानखण्डनकर्त्तारो विद्वांसः (विधाता) अखिलनियमनिर्मातारः (भगः) ऐश्वर्यवन्तः (नृशंसः) पदार्थगुणवर्णकाः (उर्वन्तरिक्षम्) अन्तरिक्षविद्यावेत्तारः (विश्वे देवाः) इमे सर्वे देवाः (जुषन्त) सेवन्ते ॥५॥ इत्येकाशीतितमं सूक्तं षष्ठो वर्गश्च समाप्तः ॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (पवमानं) सबको पवित्र करनेवाले परमात्मा को (उभे द्यावापृथिवी) पृथिवीलोक और द्युलोक (विश्वमिन्वे) जो विस्तृतरूप से व्याप्त हैं (अर्यमा देवः) और न्याय करनेवाला राजा (अदितिः) अज्ञान का खण्डन करनेवाला विद्वान् (विधाता) सब नियमों का विधान करनेवाला (भगः) ऐश्वर्य्यसम्पन्न (नृशंसः) पदार्थों के गुणों का वर्णन करनेवाला (उर्वन्तरिक्षं) अन्तरिक्ष की विशाल विद्या को जाननेवाला (विश्वे देवाः) ये सब देव (जुषन्त) सेवन करते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा की विभूति द्युलोक, पृथिवीलोक, अन्तरिक्षलोक ये सब लोक-लोकान्तर हैं और इन सब लोक-लोकान्तरों के ज्ञाता विद्वान् भी परमात्मा की विभूति हैं ॥५॥ यह ८१ वाँ सूक्त और छठा वर्ग समाप्त हुआ ॥

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    विषय

    उससे उत्तम संगी तथा उत्तम जनों के प्राप्ति की याचना।

    भावार्थ

    (उभे) दोनों (द्यावा-पृथिवी) सूर्य भूमिवत् माता पिता, (विश्वमिन्वे) समस्त संसार को पालन पोषण करने वाले, और (अर्यमा देवः) न्यायकारा विद्वान्, सर्वसुखदाता, (अदितिः) अखण्ड शासनकर्त्ता, (विधाता) विविध प्रकार से धारक पोषक, (भगः) ऐश्वर्यवान् सर्वसेव्य, (नृ-शंसाः) सब मनुष्यों से स्तुत्य, और (विश्वे देवाः) समस्त विद्वान जन, अर्थात् फलादि चाहने वाले जीवगण (पवमानं) उस सर्व व्यापक, प्रेरक परम पावन सर्वसंचालक (उरु अन्तरिक्षं) विशाल अन्तरिक्ष के तुल्य, महान् सब के भीतर व्यापक को (जुषन्त) सेवन करते हैं। इति षष्ठो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसुर्भारद्वाज ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः–१—३ निचृज्जगती। ४ जगती। ५ निचृत्त्रिष्टुप्॥

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    विषय

    विश्वमिन्वे द्यावापृथिवी

    पदार्थ

    [१] (उभे) = दोनों (विश्वमिन्वे) = [मिन्व्] सब से आदरणीय (द्यावापृथिवी) = मस्तिष्क और शरीर (पवमानम्) = हमारे जीवन को पवित्र करनेवाले सोम का जुषन्त सेवन करते हैं। अर्थात् सोमरक्षण के होने पर उत्कृष्ट मस्तिष्क व शरीर प्राप्त होते हैं । (अर्यमा) = [ अरीन् यच्छति ] काम, क्रोध आदि को वशीभूत करना, (देवः) = अकारणमयता, (अदितिः) = स्वस्थ्य, विधाता, निर्माण की दिव्यभावना, ये सब सोम के रक्षित होने पर हमारे प्रति प्रीतिवाले होते हैं । [२] (भगः) = ऐश्वर्य, (नृशंसः) = मनुष्यों के द्वारा शंसन [यशोगान ], उस (अन्तरिक्षम्) = विशाल हृदय तथा (विश्वेदेवाः) = सब देव इस सोम को सेवित करते हैं, सोमरक्षण के होने पर ये सब शरीर में उपस्थित होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम के हमारे जीवन को पवित्र करने पर सब देव हमारे प्रति प्रीतिवाले होते हैं । हमारा जीवन यशस्वी बनता है। 'वसु भारद्वाज' ही अगले सूक्त में कहते हैं-

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    May both heaven and earth, home of the world, Aryama, just and refulgent ruler and leader, Aditi, mother Infinity, Vidhata, lord sustainer and law giver, Bhaga, powers of prosperity and excellence and all divinities of nature and humanity, love, honour and serve Soma, vast as space, adored and worshipped by humanity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वराच्या विभूती द्युलोक-पृथ्वीलोक-अन्तरिक्षलोक हे सर्व लोकलोकांतर आहेत. या सर्व लोकलोकांतराचे दाते विद्वान ही परमेश्वराच्या विभूती आहेत. ॥५॥

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