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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 87 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 87/ मन्त्र 2
    ऋषिः - उशनाः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    स्वा॒यु॒धः प॑वते दे॒व इन्दु॑रशस्ति॒हा वृ॒जनं॒ रक्ष॑माणः । पि॒ता दे॒वानां॑ जनि॒ता सु॒दक्षो॑ विष्ट॒म्भो दि॒वो ध॒रुण॑: पृथि॒व्याः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु॒ऽआ॒यु॒धः । प॒व॒ते॒ । दे॒वः । इन्दुः॑ । अ॒श॒स्ति॒ऽहा । वृ॒जन॑म् । रक्ष॑माणः । पि॒ता । दे॒वाना॑म् । ज॒नि॒ता । सु॒ऽदक्षः॑ । वि॒ष्ट॒म्भः । दि॒वः । ध॒रुणः॑ । पृ॒थि॒व्याः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वायुधः पवते देव इन्दुरशस्तिहा वृजनं रक्षमाणः । पिता देवानां जनिता सुदक्षो विष्टम्भो दिवो धरुण: पृथिव्याः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सुऽआयुधः । पवते । देवः । इन्दुः । अशस्तिऽहा । वृजनम् । रक्षमाणः । पिता । देवानाम् । जनिता । सुऽदक्षः । विष्टम्भः । दिवः । धरुणः । पृथिव्याः ॥ ९.८७.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 87; मन्त्र » 2
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    हे परमात्मन् ! त्वं (दिवः) द्युलोकस्य (विष्टम्भः) आधारस्तथा (पृथिव्याः) धरण्याः (धरुणः) धारकः (सुदक्षः) चतुरस्तथा (देवानां, जनिता) सूर्य्यादिदिव्यज्योतिषामुत्पादकः। (वृजनं) व्यसनेभ्यः (रक्षमाणः) रक्षां   कुर्वाणः (पिता) पितृतुल्यः (अशस्तिहा) रक्षसां हननकर्ता। (इन्दुः) सर्वप्रकाशकः (देवः) दिव्यरूपश्चासि। (स्वायुधः) सर्वशक्तिसम्पन्नः परमात्मा (पवते) मां पवित्रयतु ॥२॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    हे परमात्मन् ! आप (दिवः) द्युलोक के (विष्टम्भः) आधार हैं तथा (पृथिव्याः) पृथिवी के (धरुणः) धारण करनेवाले हैं। (सुदक्षः) चतुर तथा (देवानां जनिता) सूर्य्यादि दिव्य ज्योतियों के उत्पादक हैं। (वृजनं) व्यसनों से (रक्षमाणः) रक्षा करते हुए (पिता) पिता के समान (अशस्तिहा) राक्षसों को हनन करनेवाले हैं और (इन्दुः) सर्वप्रकाशक हैं, (देवः) दिव्यरूप हैं, (स्वायुधः) सर्वशक्तिसम्पन्न हैं। उक्त गुणोंवाले आप (पवते) हमको पवित्र करें ॥२॥

    भावार्थ

    यहाँ सुदक्षादि नामों से उक्त परमात्मा प्रकारान्तर से वर्णन किया है ॥२॥

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    विषय

    सर्वाश्रय प्रभु। राजा के समान परमेश्वर की महान् शक्ति।

    भावार्थ

    (देवः इन्दुः) प्रकाशमय, ज्ञानी वह दयालु प्रभु, तेजस्वी, (अशस्ति-हा) निन्दा वा अप्रशंसनीय पाप आदि का नाश करने वाला (वृजनं) यात्री या मार्ग या बल की सदा (रक्षमाणः) रक्षा करता हुआ (सु-आयुधः) उत्तम आयुध आदि उपकरणों से सम्पन्न राजा के तुल्य (पवते) प्रकट होता है। वह (देवानां पिता) विद्वानों का, एवं प्राणगण और सूर्यादि लोकों का पालक, पिता के तुल्य पूजनीय, (जनिता) जगत् का उत्पन्न करनेवाला, (सु-दक्षः) उत्तम बलशाली, (वि-स्तम्भः) विशेष रूप से जगत् के समस्त पदार्थों को थामने वाला और (दिवः पृथिव्याः धरुणः) आकाश, सूर्य, भूमि, स्त्री पुरुष, राजा प्रजा आदि सबका आश्रय है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    उशना ऋषिः। पवमानः सोमो देवता ॥ छन्दः- १, २ निचृत्त्रिष्टुप्। ३ पादनिचृत्त्रिष्टुप्। ४,८ विराट् त्रिष्टुप्। ५–७,९ त्रिष्टुप्। नवर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    विष्टम्भो दिवः, धरुणः पृथिव्याः

    पदार्थ

    (स्वायुधः) = उत्तम 'इन्द्रियों-मन व बुद्धि' रूप आयुधोंवाला (देवः) = जीवन को दिव्य बनानेवाला (इन्दुः) = सोम (पवते) = हमें प्राप्त होता है। यह सोम (अशस्तिहा) = सब बुराइयों को नष्ट करनेवाला है । (वृजनम्) = [energy] शक्ति का यह (रक्षमाणः) = रक्षण करनेवाला है। यह सोम (पिता) = रक्षक है, (देवानां जनिता) = दिव्यगुणों को जन्म देनेवाला है, (सुरक्षः) = उत्तम विकास [growth] का कारण बनता है । (दिवः) = मस्तिष्करूप द्युलोक का यह थामनेवाला है और (पृथिव्याः धरुण:) = इस शरीररूप पृथिवी का धारण करनेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम सब बुराइयों को नष्ट करता है और अच्छाइयों व शक्ति का रक्षण करता है। यह शरीर व मस्तिष्क दोनों का धारण करता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Divine Indu, light of life, equipped with noble arms, destroyer of scandal and malignity, protector of yajna vedi against crookedness and intrigue, flows pure and purifying. It is the generator and sustainer of the divine powers of nature and humanity, perfect and expert original agent of action, pillar of heaven and foundation support of the earth.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    द्युलोक, पृथ्वी लोकाचा धारक, सूर्यप्रकाशक, राक्षसाचे हनन करणारा, सुदक्ष इत्यादी नावाने वरील परमात्म्याचे वर्णन केलेले आहे. ॥२॥

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