ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 90/ मन्त्र 2
अ॒भि त्रि॑पृ॒ष्ठं वृष॑णं वयो॒धामा॑ङ्गू॒षाणा॑मवावशन्त॒ वाणी॑: । वना॒ वसा॑नो॒ वरु॑णो॒ न सिन्धू॒न्वि र॑त्न॒धा द॑यते॒ वार्या॑णि ॥
स्वर सहित पद पाठअ॒भि । त्रि॒ऽपृ॒ष्ठम् । वृष॑णम् । व॒यः॒ऽधाम् । आ॒ङ्गू॒षाणा॑म् । अ॒वा॒व॒श॒न्त॒ । वाणीः॑ । वना॑ । वसा॑नः । वरु॑णः । न । सिन्धू॑न् । वि । र॒त्न॒ऽधाः । द॒य॒ते॒ । वार्या॑णि ॥
स्वर रहित मन्त्र
अभि त्रिपृष्ठं वृषणं वयोधामाङ्गूषाणामवावशन्त वाणी: । वना वसानो वरुणो न सिन्धून्वि रत्नधा दयते वार्याणि ॥
स्वर रहित पद पाठअभि । त्रिऽपृष्ठम् । वृषणम् । वयःऽधाम् । आङ्गूषाणाम् । अवावशन्त । वाणीः । वना । वसानः । वरुणः । न । सिन्धून् । वि । रत्नऽधाः । दयते । वार्याणि ॥ ९.९०.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 90; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(त्रिपृष्ठं) त्रियज्ञवद् ब्रह्मचर्य्यं सम्पादयन् (वृषणं) बलशीलकर्म्मयोगिन उपदेशाय त्वं (वयोधां) बलधारकः (आङ्गूषाणां) बलप्रदवाण्याः प्रयोजकश्चास्ति। एवं स्तोतृवाण्यां (अवावशन्त) निवसन् त्वं (वना, वसानः) सर्वप्रकाराः सूक्ष्मशक्तीर्धारयन् (वरुणः) सर्वान् स्वशक्त्याऽऽच्छादयन् (सिन्धून्, न) समुद्रतुल्यः (वि, रत्नधाः) अनेकविधरत्नानि धारयन् त्वं (वार्य्याणि) उत्तमधनानि (दयते) कर्म्मयोगिभ्यो ददासि ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(त्रिपृष्ठं) तीनो सवनोंवाले ब्रह्मचर्य को करते हुए (वृषणं) बलशील कर्मयोगी के उपदेश के लिये आप (वयोधां) बल को धारण करानेवाले (आङ्गूषाणां) बलदायक वाणी के प्रयोग करनेवाले हैं, ऐसे स्तोता लोगों की वाणी में (अवावशन्त) निवास करते हुए (वना वसानः) सब प्रकार की सूक्ष्म शक्तियों को धारण करते हुए (वरुणः) सबको स्वशक्ति से आच्छादन करते हुए और (सिन्धून् न) समुद्र के समान (वि रत्नधाः) नाना प्रकार के रत्नों को धारण करते हुए आप (वार्याणि) उत्तम धनों को (दयते) कर्मयोगियों के लिये देते हैं ॥२॥
भावार्थ
यहाँ तीनों प्रकार के ब्रह्मचर्य का वर्णन अर्थात् ब्रह्मचर्य प्रथम २४ वें वर्ष तक दूसरा ३६ और तीसरा ४० इनको प्रथम, मध्यम, उत्तम कहते हैं। जो पुरुष उक्त प्रकार के ब्रह्मचर्यों को धारण करते हैं, उनको परमात्मा सब प्रकार के ऐश्वर्य्य प्रदान करता है ॥२॥
विषय
सर्व-शक्तिमान् प्रभु, सर्वरक्षक का वर्णन।
भावार्थ
(त्रि-पृष्ठं) तीनों लोकों के पोषक, (वृषणं) बलवान्, सुखों के वर्षक, (वयः-धाम्) समस्त बलों को धारण करनेवाले की ही आंगूषाणां वाणीः) स्तोता लोगों की वाणियां (अवावशन्त) स्तुति किया करती हैं। (वना वसानः) समस्त ऐश्वर्यों को, किरणों को सूर्यवत् (वरुणः सिन्धून् न) और नदियों को समुद्र के समान धारण करता हुआ, (रत्न-धाः) सूर्यादि समस्त रमणीय सुखों और पदार्थों को धारण करता हुआ (वार्याणि वि दयते) शत्रुओं, और दुखों के वारक और सब जनों से वरण करने योग्य साधनों और ऐश्वर्यों की राजा के तुल्य रक्षा करता और अन्यों को प्रदान करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४ त्रिष्टुप्। २, ६ निचृत्त्रिष्टुप्। ५ भुरिक् त्रिष्टुप्। षडृचं सूक्तम्॥
विषय
'त्रिपृष्ठ - वृषा- वयोधा' सोम
पदार्थ
(आंगूषाणाम्) = [आधोजतां सा०] स्तोताओं को (वाणी:) = वाणियाँ त्(रिपृष्ठम्) = 'शरीर, मन व बुद्धि' तीनों के आधारभूत, (वृषणम्) = शक्तिशाली, (वयोधाम्) = उकृष्ट आयुष्य को धारण करनेवाले सोम का अभिलक्ष्य करके (अवावशन्त) [ शब्दायन्ते सा०] = स्तवन करती हैं। शरीर में सब महिमा वस्तुतः इस सोम की ही है। (वना वसानः) = ज्ञान की रश्मियों का आच्छादित करता हुआ, ज्ञानरश्मियों के वस्त्रों का ओढ़ाता हुआ (वरुणः न) = सब द्वेषों के निवारण करनेवाले के समान यह सोम (सिन्धून्) [वसानः] = ज्ञान समुद्रों को धारण कराता हुआ (रत्नधाः) = सब रमणीय वस्तुओं का धारण करनेवाला है। यह सोम (वार्याणि विदयते) = सब वरणीय वस्तुओं को हमारे लिये देता है ।
भावार्थ
भावार्थ - शरीर, मन व बुद्धि का धारक यह सोम हमें शक्तिशाली व उत्कृष्ट जीवनवाला बनाता है । यह ज्ञानरश्मियों को धारण कराता हुआ सब रमणीय वस्तुओं को देता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
The celebrants’ songs of adoration in honour of the generous, virile and life bearing Soma, sustainer of three worlds arise in homage of love and faith. Holding precious treasures and powers of the world like Varuna, all covering space and the ocean holding the deep seas, the wielder of world jewels bestows gifts of choice on mankind.
मराठी (1)
भावार्थ
येथे तीन प्रकारच्या ब्रह्मचर्याचे वर्णन आहे. अर्थात प्रथम ब्रह्मचर्य २४ व्या वर्षांपर्यंत, दुसरे ३६ वर्षांपर्यंत व तिसरे ४० वर्षांपर्यंत, त्यांना प्रथम, मध्यम व उत्तम म्हणतात. जे पुरुष वरील प्रकारचे ब्रह्मचर्य धारण करतात. त्यांना परमात्मा सर्व प्रकारचे ऐश्वर्य प्रदान करतो. ॥२॥
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