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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 90 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 90/ मन्त्र 3
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    शूर॑ग्राम॒: सर्व॑वीर॒: सहा॑वा॒ञ्जेता॑ पवस्व॒ सनि॑ता॒ धना॑नि । ति॒ग्मायु॑धः क्षि॒प्रध॑न्वा स॒मत्स्वषा॑ळ्हः सा॒ह्वान्पृत॑नासु॒ शत्रू॑न् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शूर॑ऽग्रामः । सर्व॑ऽवीरः । सहा॑वान् । जेता॑ । प॒व॒स्व॒ । सनि॑ता । धना॑नि । ति॒ग्मऽआ॑यु॑धः । क्षि॒प्रऽध॑न्वा । स॒मत्ऽसु॑ । अषा॑ळ्हः । स॒ह्वान् । पृत॑नासु । शत्रू॑न् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शूरग्राम: सर्ववीर: सहावाञ्जेता पवस्व सनिता धनानि । तिग्मायुधः क्षिप्रधन्वा समत्स्वषाळ्हः साह्वान्पृतनासु शत्रून् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शूरऽग्रामः । सर्वऽवीरः । सहावान् । जेता । पवस्व । सनिता । धनानि । तिग्मऽआयुधः । क्षिप्रऽधन्वा । समत्ऽसु । अषाळ्हः । सह्वान् । पृतनासु । शत्रून् ॥ ९.९०.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 90; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (शूरग्रामः) यः शूरवीराणां स्वामी (सर्ववीरः) स्वयमपि सर्वप्रकारेण वीरश्चास्ति अपि च (सहावान्) धैर्य्यवान् (जेता) तथा सर्वजेता अस्ति (धनानि सनिता) यश्चैश्वर्योपार्जने लग्नः तं (पवस्व) त्वं रक्ष। त्वं (तिग्मायुधः) तीक्ष्णशस्त्रवान् (क्षिप्रधन्वा) शीघ्रगतिश्चासि। अन्यच्च (समत्सु) सङ्ग्रामे (अषाळ्हः) परशक्त्यसहनशीलः, (पृतनासु) प्रधानसेनाया (सह्वान्) धुरन्धराणां (शत्रूणां) रिपूणाञ्जेता चासि ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (शूरग्रामः) जो शूरवीरों के समुदायवाले हैं (सर्ववीरः) और स्वयं भी सब प्रकार से वीर हैं और (सहावान्) धैर्यवान् हैं तथा (जेता) सबको जीतनेवाले हैं (धनानि सनिता) और जो ऐश्वर्य्योपार्जन में लगे हुए हैं, उनको आप (पवस्व) पवित्र करें। आप (तिग्मायुधः) तीक्ष्ण शस्त्रोंवाले हैं और (क्षिप्रधन्वा) शीघ्रगतिवाले हैं और (समत्सु) संग्राम में (अषाळ्हः) पर शक्ति को न सहनेवाले हैं और (पृतनासु) पर सेना में (साह्वान्) धुरन्धर (शत्रून्) शत्रुओं के (जेता) जीतनेवाले हैं ॥३॥

    भावार्थ

    यहाँ परमात्मा का रुद्रधर्म का निरूपण किया। रुद्रधर्म को धारण करनेवाला परमात्मा वीरों के अनन्त सङ्घों में शक्ति उत्पन्न करके संसार से पाप की निवृत्ति करता है। उस अनन्त शक्तियुक्त परमात्मा के अतितीक्ष्ण शस्त्र हैं, जिससे वह अन्यायकारियों की सेना को विदीर्ण करता है ॥३॥

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    विषय

    आत्म साधक के वीर के तुल्य कर्त्तव्य।

    भावार्थ

    हे उत्तम शासक ! आत्मन् ! तू स्वयं (शूर-ग्रामः) शूरवीर समूहों का स्वामी, सेनानायक तुल्य (सर्व-वीरः) समस्त वीर विद्वान्, एवं शरीर में गति करनेवाले प्राणों का स्वामी (सहावान्) सुख दुःख, शीत उष्णादि को भली प्रकार सहने वाला, (जेता) विजयशील और (धनानि सनिता) धनों का भोक्ता और दाता होकर (पवस्व) प्राप्त हो (समत्सु) संग्रामों में (तिग्म-आयुधः) तीक्ष्ण हथियारों से सज्जित, (क्षिप्र-धन्वा) वेग से धनुष चलाने वाला, (अषाढः) अपराजित, (पृतनासु) संग्राम में (शत्रूनू) शत्रुओं को (साह्वान्) विजय करनेवाला, शुरवीर के तुल्य हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४ त्रिष्टुप्। २, ६ निचृत्त्रिष्टुप्। ५ भुरिक् त्रिष्टुप्। षडृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    'अषाढः साह्वान्' सोमः

    पदार्थ

    (धनानि सनिता) = सब अन्नमय आदि कोशों के ऐश्वर्यों का दाता सोम ! तू (पवस्व) = हमें प्राप्त है। तू (शूरग्रामः) = शूर समूहोंवाला हो, 'पञ्चप्राण, पञ्च कर्मेन्द्रियाँ, पंच ज्ञानेन्द्रियाँ' आदि सब समूह इस सोम के द्वारा शूर बनते हैं । (सर्ववीरः) = सब को वीर बनानेवाला यह सोम है। (सहावान्) = बलवाला (जेता) = सदा विजयी है। (तिग्मायुधः) = ' इन्द्रियों, मन व बुद्धि' रूप आयुधों को तेज बनानेवाला है । (क्षिप्रधन्वा) = शत्रुओं को सुदूर प्रेरित करनेवाले 'प्रणव' रूप धनुषवाला है । सोमरक्षक पुरुष प्रभु को ही अपना धनुष बनाता है और काम-क्रोध आदि शत्रुओं को परे फेंकता है। (समत्सु) = संग्रामों में (अषाढः) = शत्रुओं से पराभूत नहीं होता, (प्रतनासु) = शत्रु सैन्यों में शत्रून् शत्रुओं को (साह्वान्) = पराभूत करनेवाला है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - सोम हमें वीर बनाता है। सब शत्रुओं का पराभव करता हुआ यह सदा अपराजित है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Commander of a multitude of heroes, himself brave in every way, patient and mighty, all time victor, generous giver of all wealth, honour and excellence, wielding weapons of instant light and fire power, unconquerable in contests of values and destroyer of the enemy in battles of arms, may we pray, flow and purify us.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    येथे परमेश्वराच्या रुद्र धर्माचे निरुपण केलेले आहे. रुद्र धर्माला धारण करणारा परमेश्वर वीरांच्या अनंत संघटनांमध्ये शक्ती उत्पन्न करून जगातील पाप नाहीसे करतो. त्या अनंत शक्तीयुक्त परमेश्वराची अति तीक्ष्ण शस्त्रे आहेत. ज्यामुळे तो अन्याय करणाऱ्यांची सेना विदीर्ण करतो. ॥३॥

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