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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 90 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 90/ मन्त्र 5
    ऋषिः - वसिष्ठः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - भुरिक्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    मत्सि॑ सोम॒ वरु॑णं॒ मत्सि॑ मि॒त्रं मत्सीन्द्र॑मिन्दो पवमान॒ विष्णु॑म् । मत्सि॒ शर्धो॒ मारु॑तं॒ मत्सि॑ दे॒वान्मत्सि॑ म॒हामिन्द्र॑मिन्दो॒ मदा॑य ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    मत्सि॑ । सो॒म॒ । वरु॑णम् । मत्सि॑ । मि॒त्रम् । मत्सि॑ । इन्द्र॑म् । इ॒न्दो॒ इति॑ । प॒व॒मा॒न॒ । विष्णु॑म् । मत्सि॑ । शर्धः॑ । मारु॑तम् । मत्सि॑ । दे॒वान् । मत्सि॑ । म॒हाम् । इन्द्र॑म् । इ॒न्दो॒ इति॑ । मदा॑य ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मत्सि सोम वरुणं मत्सि मित्रं मत्सीन्द्रमिन्दो पवमान विष्णुम् । मत्सि शर्धो मारुतं मत्सि देवान्मत्सि महामिन्द्रमिन्दो मदाय ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    मत्सि । सोम । वरुणम् । मत्सि । मित्रम् । मत्सि । इन्द्रम् । इन्दो इति । पवमान । विष्णुम् । मत्सि । शर्धः । मारुतम् । मत्सि । देवान् । मत्सि । महाम् । इन्द्रम् । इन्दो इति । मदाय ॥ ९.९०.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 90; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सोम) हे परमात्मन् ! (वरुणं) सर्वाच्छादनशक्तिधारिणं विद्वांसं त्वं (मत्सि) तर्पय अपि च (मित्रं) स्नेहशक्तिमन्तं विद्वांसं (मत्सि) तर्पय, (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूपपरमात्मन् ! (विष्णुं) सर्वासु विद्यासु व्याप्तिशीलं विद्वांसम्, किञ्च (इन्द्रं) कर्मयोगिनम्, पवित्रय, (पवमान) हे सर्वपावनपरमात्मन् ! (मरुतं) पूर्वोक्तानां विदुषां समुदायम्, (मत्सि) तर्पय (शर्धः) रुद्ररूपो यो विदुषां गणस्तम्, (मत्सि) तर्पय, (देवान्) शान्त्यादिदिव्यगुणवतो विदुषः (मत्सि) तर्पय, (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूपपरमेश्वर ! (इन्द्रं) कर्मयोगिनम्, (महां) नित्यार्चनीयस्त्वं (मदाय) आनन्दाय (मत्सि) तर्पय ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सोम) हे परमात्मन् ! (वरुणं) सबको आच्छादन करने की शक्ति रखनेवाले विद्वान् को आप (मत्सि) तृप्त करें (मित्रं) और स्नेह की शक्ति रखनेवाले विद्वान् को (मत्सि) तृप्त करें। (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् (पवमान) सबको पवित्र करनेवाले ! परमात्मन् ! (विष्णुं) सब विद्याओं में व्याप्तिशील विद्वान् को और (इन्द्रं) कर्मयोगी को (मत्सि) तुम तृप्त करो (शर्धः) रुद्ररूप जो विद्वानों का गण है, उसे (मत्सि) तृप्त करें, (देवान्) शान्त्यादि दिव्यगुणयुक्त विद्वानों को (मत्सि) तृप्त करें। (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमेश्वर ! (महां) सर्वपूज्य आप (मदाय) आनन्द के लिये (इन्द्रं) कर्मयोगी को (मत्सि) तृप्त करें ॥५॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में कर्मयोगी के क्रिया कौशल्य की पूर्ति के लिये परमात्मा से प्रार्थना की गई है कि हे परमात्मन् ! आप कर्मयोगी को सब प्रकार से निपुण करिये ॥५॥

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    विषय

    प्रभु के प्रसादन का उपदेश।

    भावार्थ

    हे (सोम) ऐश्वर्यवन्! हे विद्वन् ! तू (वरुणं मत्सि) सर्वश्रेष्ठ पुरुष को प्रसन्न कर, (मित्रं मत्सि) स्रेही, अपने को विपत्ति से बचानेवाले उपकारी जनको प्रसन्न कर, हे (इन्दो) दीप्तिमन्, तू (इन्द्रम् मत्सि) उस प्रभुको प्रसन्न कर जो समस्त एश्वर्यों को देनेवाला है। हे (पवमान) पवित्र होनेवाले ! तू (विष्णुम्) व्यापक प्रभु को प्रसन्न कर। तू (मारुतं शर्धः मत्सि) वायुवद बलवान् पुरुष-वर्ग को प्रसन्न कर। तू (देवान् मत्सि) नाना कामनायुक्त मनुष्यों को प्रसन्न कर। हे (इन्दो) तेजस्विन् ! दयालो ! तू (महाम् इन्द्रम्) गुणों में महान् ऐश्वर्यवान् प्रभु परमेश्वर को प्रसन्न किया कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    वसिष्ठ ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४ त्रिष्टुप्। २, ६ निचृत्त्रिष्टुप्। ५ भुरिक् त्रिष्टुप्। षडृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    सर्वदेवमय जीवन

    पदार्थ

    हे (सोम) = वीर्यशक्ते ! तू (वरुणम्) = द्वेष निवारण करनेवाले को (मत्सि) = आनन्दित कर । सोमरक्षण से ही मनुष्य द्वेष की वृत्ति से ऊपर उठता है और आनन्दित होता है । (मित्रं मत्सि) = तू सब के साथ स्नेह करनेवाले को आनन्दित करता है। हे (पवमान) = पवित्र करनेवाले (इन्दो) = सोम ! तू (इन्द्रम्) = जितेन्द्रिय शक्तिशाली को व (विष्णुम्) = व्यापक उदार- मनोवृत्तिवाले को (मत्सि) = आनन्दित करता है। तू (मारुतं शर्धः) = प्राणों के बल को मत्सि आनन्दित करता है । (देवान्) = सब देवों को (मत्सि) = आनन्दित करता है। सुरक्षित सोम प्राणों के बल व दिव्यगुणों की वृद्धि का कारण बनता है । हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम (महां इन्द्रम्) = इस पूजा की वृत्तिवाले जितेन्द्रिय पुरुष को तू (मदाय) = आनन्दित करने के लिये होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोमरक्षण से जीवन सर्वदेवमय बनता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    O Soma, universal spirit of life’s joy, Indu, spirit of brilliancy, pure and purifying divinity, you inspire and exhilarate Varuna, freedom of choice, law and justice, advance and inspire Mitra, spirit of love, friendship and cooperation, inspire and exhilarate Indra, ruling powers of governance and defence, honour, exhort and advance Vishnu, all prevailing powers of intelligence and enlightenment, exhort and intensify the force and powers of Maruts, stormy pioneers and fighters, honour and advance brilliant scholars and creative artists and technologists. O divine and brilliant spirit of divinity, Indra, inspire and exhilarate the great ruler Indra for the sake of high honour and excellence of humanity.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात कर्मयोग्याच्या क्रिया कौशल्यपूर्तीसाठी परमात्म्याची प्रार्थना केलेली आहे की हे परमात्मा! तू कर्मयोग्याला सर्व प्रकारे निपुण कर. ॥५॥

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