ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 90/ मन्त्र 6
ए॒वा राजे॑व॒ क्रतु॑माँ॒ अमे॑न॒ विश्वा॒ घनि॑घ्नद्दुरि॒ता प॑वस्व । इन्दो॑ सू॒क्ताय॒ वच॑से॒ वयो॑ धा यू॒यं पा॑त स्व॒स्तिभि॒: सदा॑ नः ॥
स्वर सहित पद पाठए॒व । राजा॑ऽइव । क्रतु॑ऽमान् । अमे॑न । विश्वा॑ । घनि॑घ्नत् । दुः॒ऽइ॒ता । प॒व॒स्व॒ । इन्दो॒ इति॑ । सु॒ऽउ॒क्ताय॑ । वच॑से । वयः॑ । धाः॒ । यू॒यम् । पा॒त॒ । स्व॒स्तिऽभिः॑ । सदा॑ । नः॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
एवा राजेव क्रतुमाँ अमेन विश्वा घनिघ्नद्दुरिता पवस्व । इन्दो सूक्ताय वचसे वयो धा यूयं पात स्वस्तिभि: सदा नः ॥
स्वर रहित पद पाठएव । राजाऽइव । क्रतुऽमान् । अमेन । विश्वा । घनिघ्नत् । दुःऽइता । पवस्व । इन्दो इति । सुऽउक्ताय । वचसे । वयः । धाः । यूयम् । पात । स्वस्तिऽभिः । सदा । नः ॥ ९.९०.६
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 90; मन्त्र » 6
अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 6
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अष्टक » 7; अध्याय » 3; वर्ग » 26; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
हे परमात्मन् ! त्वं (राजेव) सर्वप्रकाशकः सर्वस्वामी चासि (क्रतुमान्) कर्मणामधिष्ठातासि (विश्वा, अमेन) सम्पूर्णेन बलेन (दुरिता, घनिघ्नत्) सर्वाण्यपि पापानि दूरीकुर्वन्, त्वं (पवस्व) अस्मान् पवित्रय (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूपपरमात्मन् ! (सूक्ताय, वचसे) शोभनानां वाणीनामभिधानाय (वयोधाः) ऐश्वर्यं धेहि (यूयम्) त्वम्, (स्वस्तिभिः) कल्याणकारिभिर्भावैः (सदा) सदैव (नः) अस्मान् (पात) रक्ष ॥६॥ इति नवतितमं सूक्तं षड्विंशो वर्गश्च समाप्तः ॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
हे परमात्मन् ! (राजेव) आप सबको प्रदीप्त करनेवाले और सर्वस्वामी हैं। (क्रतुमान्) कर्मों के अधिष्ठाता हैं (विश्वा, अमेन) सम्पूर्ण बल से (दुरिता, घनिघ्नत्) समस्त पापों को दूर करते हुए (पवस्व) हमको पवित्र करें। (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (सूक्ताय, वचसे) सुन्दर वाणियों के कथन करने को (वयोधाः) ऐश्वर्य देनेवाले (यूयं) आप (स्वस्तिभिः) कल्याणकारी भावों से (सदा) सदैव (नः) हमको (पात) पवित्र करें ॥६॥
भावार्थ
इसमें परमात्मा से कल्याण की प्रार्थना की गई है ॥६॥ यह ९० वाँ सूक्त और २६ वाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
विषय
आत्मपावन का उपदेश।
भावार्थ
हे (इन्दो) उत्तम पुरुष की उपासना करने वाले, आत्मन् ! तू (राजा इव क्रतुमान्) राजा के समान स्वतन्त्र, कर्म करने में समर्थ है। तू (अमेन) अपने सहायक प्रभु वा अपने ही बल से (विश्वा दुरिता) बुरे आचरणों और मन के दुर्विकारों को (घनिघ्नत्) निरन्तर नष्ट करता हुआ, (पवस्व) आगे बढ़ और अपने को पवित्र कर। तू (सु-उक्ताय) उत्तम वचन को धारण करने वाले (वचसे) ज्ञानमय वचन वेद के (वयः) ज्ञान को (धाः) धारण कर। हे विद्वान् लोगो ! (यूयम्) तुम सब लोग (नः सदा स्वस्तिभिः पात) कल्याणमय उपायों से हमारी रक्षा करो। इति षडविंशो वर्गः। इति तृतीयोऽध्यायः॥
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
वसिष्ठ ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:– १, ३, ४ त्रिष्टुप्। २, ६ निचृत्त्रिष्टुप्। ५ भुरिक् त्रिष्टुप्। षडृचं सूक्तम्॥
विषय
राजा इव
पदार्थ
हे सोम ! (एवा) = [इ गतौ] अपनी गतिशीलता से (राजा इव) = राजा की तरह (क्रतुमान्) = शक्ति व कर्मोंवाला तू (अमेन) = अपने बल से (विश्वा दुरिता) = सब दुरितों को, पापों को (घनिघ्नत्) = विनष्ट करता हुआ (पवस्व) = प्राप्त हो । सोम शरीर के अंग-प्रत्यंग में गतिवाला होकर उन सब अंगों को दुरित शून्य करके हमारे जीवन को सुन्दर बनाता है। हे (इन्दो) = हमें शक्तिशाली बनानेवाले सोम ! तू हमें (सूक्ताय वचसे) = मधुर भाषण के लिये (वयः धाः) = उत्कृष्ट जीवन को धारण करानेवाला हो । सोमरक्षण से मनुष्य सदा शुभ शब्दों को बोलने की वृत्तिवाला बनता है, यह आपे को खोकर नहीं बोलने लगता । हे सोमकणो ! (यूयम्) = तुम (स्वस्तिभिः) = उत्तम स्थितियों के द्वारा सदा हमेशा (न पात) = हमारा रक्षण करो ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमारे जीवन को इस प्रकार परिशुद्ध बनाता है, जैसे कि एक राजा राष्ट्र को । यह परिशुद्ध जीवनवाला व्यक्ति तत्त्वद्रष्टा ज्ञानी बनता है। यह 'कश्यप' नामवाला होता है- पश्यक = द्रष्टा । यही अगले सूक्त का ऋषि है-
इंग्लिश (1)
Meaning
Thus like a brilliant ruler, presiding power of universal action and human endeavour, pray flow on and purify us with your divine powers destroying all evils and undesirables of the world. O lord of refulgence and life’s joy, bless us with good health and long age for the sake of holy speech and grateful songs of adoration. O divinities of heaven and earth, pray bless us with all time peace, progress and all round happiness and well being.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमेश्वराला कल्याणासाठी प्रार्थना केलेली आहे. ॥६॥
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