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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 91 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 91/ मन्त्र 3
    ऋषिः - कश्यपः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    वृषा॒ वृष्णे॒ रोरु॑वदं॒शुर॑स्मै॒ पव॑मानो॒ रुश॑दीर्ते॒ पयो॒ गोः । स॒हस्र॒मृक्वा॑ प॒थिभि॑र्वचो॒विद॑ध्व॒स्मभि॒: सूरो॒ अण्वं॒ वि या॑ति ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृषा॑ । वृष्णे॑ । रोरु॑वत् । अं॒शुः । अ॒स्मै॒ । पव॑मानः । रुश॑त् । ई॒र्ते॒ । पयः॑ । गोः । स॒हस्र॑म् । ऋक्वा॑ । प॒थिऽभिः॑ । व॒चः॒ऽवित् । अ॒ध्व॒स्मऽभिः॑ । सूरः॑ । अण्व॑म् । वि । या॒ति॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषा वृष्णे रोरुवदंशुरस्मै पवमानो रुशदीर्ते पयो गोः । सहस्रमृक्वा पथिभिर्वचोविदध्वस्मभि: सूरो अण्वं वि याति ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    वृषा । वृष्णे । रोरुवत् । अंशुः । अस्मै । पवमानः । रुशत् । ईर्ते । पयः । गोः । सहस्रम् । ऋक्वा । पथिऽभिः । वचःऽवित् । अध्वस्मऽभिः । सूरः । अण्वम् । वि । याति ॥ ९.९१.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 91; मन्त्र » 3
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 1; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (वृषा) कामनां वर्षुकः परमात्मा (वृष्णे) कर्मयोगिने (रोरुवत्) अतितरां शब्दायमानः (अस्मै) अस्मै कर्मयोगिने (अंशुः) सर्वव्यापकः अपि च (पवमानः) सर्वपावकः परमात्मा (रुशत्) दीप्तिं ददत् (गोः) इन्द्रियाणां (पयः) सारभूतज्ञानं (ईर्ते) प्राप्नोति येन (सहस्रं, ऋक्वा) बहुविधानां वाणीनां वक्ता (वचोवित्) वाणीनाञ्ज्ञाता   (पथिभिः) वाणीनां मार्गैः, ये खलु (अध्वस्मभिः) हिंसारहितास्तैः (सूरः) विज्ञानी (अण्वं) सूक्ष्मपदार्थानां तत्त्वं (वि, याति) प्राप्नोति ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (वृषा) कामनाओं की वृष्टि करनेवाला परमात्मा (वृष्णे) कर्म्मयोगी के लिये (रोरुवद्) अत्यन्त शब्द करता हुआ (अस्मै) इस कर्म्मयोगी के लिये (अंशुः) सर्वव्यापक और (पवमानः) सबको पवित्र करने के लिये परमात्मा (रुशत्) दीप्ति देता हुआ (गोः) इन्द्रियों के (पयः) सारभूत ज्ञान को (ईर्ते) प्राप्त होता है। जिससे (सहस्रं ऋक्वा) अनन्त प्रकार की वाणियों का वक्ता (वचोवित्) वाणियों का ज्ञाता (पथिभिः) वाणियों की रास्ते से जो (अध्वस्मभिः) हिंसारहित है, उनसे (सूरः) विज्ञानी (अण्वं) सूक्ष्म पदार्थों के तत्त्व को (वियाति) प्राप्त होता है ॥३॥

    भावार्थ

    जो लोग वेदवाणियों का अभ्यास करते हैं, वे सूक्ष्म से सूक्ष्म पदार्थों को प्राप्त होते हैं ॥३॥

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    विषय

    सर्वज्ञानोपदेष्टा प्रभु। उत्तम उपदेष्टा वेदज्ञ का वर्णन।

    भावार्थ

    (वृषा) समस्त सुखों का वर्षण करने वाला, (अंशुः) व्यापक प्रभु (अस्मै वृष्णे) इस बलवान् जीव गण के हितार्थ (रोरुवत्) ज्ञान का उपदेश करता है। और स्वयं (पवमानः) शुद्ध पवित्र होकर (गोः) अति उज्ज्वल वाणी के (रुशत् पयः) उज्ज्वल, अर्थ, ज्ञान रस को प्रकट करता है। वह (वचः-वित्) वेद वचन का भली प्रकार जानने वाला (ऋक्वा) ऋग्वेदज्ञ पुरुष (अध्वस्मभिः) अविनश्वर, नित्य (पथिभिः) मार्गों से, रश्मियों से (सूरः) सूर्य के तुल्य, (सहस्रं) सहस्रों वा दृढ़, सत्य (अण्वं वि याति) सूक्ष्म विज्ञान को भी प्राप्त करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कश्यप ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १, २, ६ पादनिचृत्त्रिष्टुप्। ३ त्रिष्टुप्। ४, ५ निचृत्त्रिष्टुप्॥ षडृचं सूक्तम्॥

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    विषय

    'ऋक्का, वचोवित्, सूर: ' सोमः

    पदार्थ

    (वृषा) = शक्तिशाली (अंशुः) = प्रकाश की किरणों को प्राप्त करानेवाला सोम (वृष्णे) = अपने अन्दर सोम का सेचन करनेवाले के लिये (रोरुवत्) = खूब ही प्रभु का स्तवन करता है, अर्थात् अपने रक्षक को यह प्रभुस्तवन की वृत्तिवाला बनाता है । (अस्मै) = इस पुरुष के लिये (पवमानः) = यह पवित्र करनेवाला सोम (गोः) = वेदवाणीरूप गौ के (रुशत्) = देदीप्यमान (पयः) = ज्ञानदुग्ध को (ईर्ते) = प्राप्त कराता है । एवं सुरक्षित सोम हृदय में प्रभु स्तवन की वृत्ति को तथा मस्तिष्क में ज्ञानदीप्ति को प्राप्त कराता है। यह (ऋक्वा) = स्तुति करनेवाला सोम (वचोवित्) = ज्ञान वाणियों को जाननेवाला होता है, (सूरः) = यह हमें कर्मों में प्रेरित करता है और (अध्वस्मभिः) = ध्वंस व हिंसन से रहित (सहस्त्रं पथिभिः) = हजारों मार्गों से (अण्यं वियाति) = उस 'अणोरणीयान्' सूक्ष्मातिसूक्ष्म प्रभु की ओर विशेषरूप से जानेवाला होता है। हिंसनरहित कार्यों में हमें प्रेरित करता हुआ सोम प्रभु की ओर ले जानेवाला होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सुरक्षित सोम हमें स्तवन की वृत्तिवाला बनाता है। हमें ज्ञानदीप्त करता है और उत्तम मार्गों से ले चलता हुआ शुभ दर्शन कराता है।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Virile and generous Soma, leading power of the yajnic order, pure and purifying, creative and brilliant, goes forward for the abundant social order, roaring and illuminating, and elevating the fertility and abundance of the earth. Speaking and chanting a thousand holy words, visionary of thought and communication, the hero goes on by paths of love and non-violence, reaches and opens the subtlest secrets and even breaks through the atom.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक वेदवाणीचा अभ्यास करतात त्यांना सूक्ष्माहून सूक्ष्म पदार्थांचे ज्ञान होते. ॥३॥

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