ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 93/ मन्त्र 4
स नो॑ दे॒वेभि॑: पवमान र॒देन्दो॑ र॒यिम॒श्विनं॑ वावशा॒नः । र॒थि॒रा॒यता॑मुश॒ती पुरं॑धिरस्म॒द्र्य१॒॑गा दा॒वने॒ वसू॑नाम् ॥
स्वर सहित पद पाठसः । नः॒ । दे॒वेभिः॑ । प॒व॒मा॒न॒ । र॒द॒ । इन्दो॒ इति॑ । र॒यिम् । अ॒श्विन॑म् । वा॒व॒शा॒नः । र॒थि॒रा॒यता॑म् । उ॒श॒ती । पुर॑म्ऽधिः । अ॒स्म॒द्र्य॑क् । आ । दा॒वने॑ । वसू॑नाम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
स नो देवेभि: पवमान रदेन्दो रयिमश्विनं वावशानः । रथिरायतामुशती पुरंधिरस्मद्र्य१गा दावने वसूनाम् ॥
स्वर रहित पद पाठसः । नः । देवेभिः । पवमान । रद । इन्दो इति । रयिम् । अश्विनम् । वावशानः । रथिरायताम् । उशती । पुरम्ऽधिः । अस्मद्र्यक् । आ । दावने । वसूनाम् ॥ ९.९३.४
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 93; मन्त्र » 4
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 3; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(इन्दो) हे प्रकाशस्वरूपपरमात्मन् ! (अश्विनं) कर्मयोगिने ज्ञानयोगिने च (रयिं) धनं (वावशानः) धारयन् भवान् (रद) तेभ्यः सम्प्रददातु (पवमान) हे सर्वपावक ! (देवेभिः) दिव्यशक्तिद्वारा (नः) अस्मभ्यं (वसूनां) धनानां (रथिरायतां, उशती) अत्यन्तबलयुक्तशक्तीः (पुरन्धिः) या उत्कृष्टपदार्थधारिकाः ताः (अस्मद्र्यक्) मदधीनाः कुरु ॥४॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! (रयिं) धन (अश्विनं) कर्मयोगियों और ज्ञानयोगियों के लिये (वावशानः) धारण किये हुए आप (रद) प्रदान करो (पवमान) हे सबको पवित्र करनेवाले परमात्मन् ! (देवेभिः) दिव्यशक्तियों के द्वारा (नः) हमको (वसूनां) धनों की (रथिरायतामुशती) अत्यन्त बलवती शक्ति (पुरन्धिः) जो बड़े-बड़े पदार्थों के धारण करनेवाली है, वह (अस्मद्र्यक्) हमारे लिये आप दें ॥४॥
भावार्थ
जिन पुरुषों पर परमात्मा अत्यन्त प्रसन्न होता है, उनको धनादि ऐश्वर्य्य की हेतु सर्व शक्तियों से परिपूर्ण करता है ॥४॥
विषय
आत्मा का इन्द्रियों पर प्रभुत्व।
भावार्थ
हे (पवमान) पवित्र करनेहारे ! हे अभिषेचनीय ! (सः) वह तू (देवेभिः) दानशील, विजयशील, एवं नाना कामनावान् जनों, प्राणों द्वारा, (अश्विनम् रयिम् वावशानः) स्वयं भी अश्व, आत्मा इन्द्रियों वा राष्ट्र राज्यादि के ऐश्वर्य सुख की कामना करता हुआ (नः) हमें भी (रद) वही सुख प्रदान कर। (रथिरायताम् उशती पुरंधिः) महारथियों, बहुतों को धारण पोषण करनेवाली, सबका हित चाहने वाली बुद्धि, शक्ति, नीति (वसूनां दावने) ऐश्वर्यों, प्राणों और लोकों के लिये (अस्मद्र्यक्) हमें भी (आ) प्राप्त हो। हम जीवगण भी अश्व आत्मा से वा इन्द्रिय से युक्त रथ रूप देह में विभूतियों को पावें और महारथियों की सी राष्ट्र-पालक शक्ति को हम भी देह के रथी प्राप्त करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
नोधा ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्द:- १, ३, ४ विराट् त्रिष्टुप्। २ त्रिष्टुप्। ५ पादनिचृत् त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
विषय
रथिर
पदार्थ
हे (पवमान) = हमारे जीवनों को पवित्र करनेवाले (इन्दो) = सोम (सः) = वह तू (नः) = हमारे लिये (वावशान:) = हित की कामना करता हुआ (देवेभिः) = दिव्य गुणों के साथ (अश्विनं) = प्रशस्त इन्द्रियोंवाले (रयि) = ऐश्वर्य को (रद) = [प्रपच्छ] दे । सोमरक्षण से हमें वह ऐश्वर्य प्राप्त हो, जो हमारी इन्द्रियों को दूषित करनेवाला न हो तथा दिव्यगुणों से युक्त हो । हे सोम ! (रथिरायताम्) = प्रशस्त रथवालों की तरह आचरण करते हुए पुरुषों की (उशती) = हित की कामना करती हुई (पुरन्धिः) = पालक बुद्धि (वसूनां) दावने उत्तम वसुओं के, धनों के, देने के निमित्त (अस्मद्र्यक्) = हमारे अभिमुख हो । हमें यह 'पुरन्धि' प्राप्त हो, इसके द्वारा हम वसुओं को प्राप्त होनेवाले हों। इन वसुओं के द्वारा हम अपने जीवन को प्रशस्त बना पायें हम रयीश हों 'प्रशस्त शरीर रथ वाले हों ।
भावार्थ
भावार्थ- सोम हमें वह ऐश्वर्य व बुद्धि प्राप्त कराये जिससे कि हम प्रशस्त जीवनवाले हों ।
इंग्लिश (1)
Meaning
Lord of light and love, refulgent and illuminative, pure, purifying and vibrating with the divinities of nature and humanity, loving and commanding dynamic wealth and virtues of existence, give us the wealth and virtues of the world and open the paths of fast, penetrative, brilliant and all sustaining intelligence and will so that we may achieve the gifts of wealth, honour and excellence without delay or procrastination.
मराठी (1)
भावार्थ
ज्या पुरुषांवर परमेश्वर अत्यंत प्रसन्न होतो, त्यांना धन इत्यादी ऐश्वर्यासाठी सर्व शक्तींनी परिपूर्ण करतो. ॥४॥
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