ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 94/ मन्त्र 2
द्वि॒ता व्यू॒र्ण्वन्न॒मृत॑स्य॒ धाम॑ स्व॒र्विदे॒ भुव॑नानि प्रथन्त । धिय॑: पिन्वा॒नाः स्वस॑रे॒ न गाव॑ ऋता॒यन्ती॑र॒भि वा॑वश्र॒ इन्दु॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठद्वि॒ता । वि॒ऽऊ॒र्ण्वन् । अ॒मृत॑स्य । धाम॑ । स्वः॒ऽविदे॑ । भुव॑नानि । प्र॒थ॒न्त॒ । धियः॑ । पि॒न्वा॒नाः । स्वस॑रे । न । गावः॑ । ऋ॒त॒ऽयन्तीः॑ । अ॒भि । व॒व॒श्रे॒ । इन्दु॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
द्विता व्यूर्ण्वन्नमृतस्य धाम स्वर्विदे भुवनानि प्रथन्त । धिय: पिन्वानाः स्वसरे न गाव ऋतायन्तीरभि वावश्र इन्दुम् ॥
स्वर रहित पद पाठद्विता । विऽऊर्ण्वन् । अमृतस्य । धाम । स्वःऽविदे । भुवनानि । प्रथन्त । धियः । पिन्वानाः । स्वसरे । न । गावः । ऋतऽयन्तीः । अभि । ववश्रे । इन्दुम् ॥ ९.९४.२
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 94; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 4; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
स परमात्मा (द्विता) जीवप्रकृतिरूपद्वैतं (व्यूर्ण्वन्) आच्छादयन् (अमृतस्य, धाम) अमृताधारोऽस्ति तस्मै (स्वर्विदे) सर्वज्ञाय (भुवनानि) सम्पूर्णलोकलोकारान्तराणि (प्रथन्त) विस्तीर्यन्ते। स परमात्मा (धियः, पिन्वानाः) विज्ञानेन परिपूर्णः (स्वसरे) स्वरूपे (न) यथा (गावः) इन्द्रियाणि (ऋतायन्तीः) यज्ञेच्छां कुर्वाणानि सर्वतः (अभि, वावश्रे) शब्दं कुर्वन्ति अथवा (इन्दुं) प्रकाशस्वरूपपरमात्मानं कामयन्ते। एवं हि जिज्ञासव उक्तपरमात्मानं कामयन्ताम् ॥२॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
वह परमात्मा (द्विता) जीव और प्रकृतिरूप द्वैत को (व्यूर्ण्वन्) आच्छादन करता हुआ (अमृतस्य धाम) अमृत का धाम है। उस (स्वर्विदे) सर्वज्ञ के लिये (भुवनानि) सम्पूर्ण लोक-लोकान्तर (प्रथन्त) विस्तीर्ण होते हैं। वह परमात्मा (धियः पिन्वानाः) विज्ञानों से भरा हुआ (स्वसरे) अपने स्वरूप में (न) जैसे कि (गावः) इन्द्रियें (ऋतायन्तीः) यज्ञ की इच्छा करती हुई सब ओर से (अभिवावश्रे) शब्द करती हैं अथवा (इन्दुं) प्रकाशरूप परमात्मा की कामना करती हैं, इसी प्रकार जिज्ञासु लोग उस परमात्मा की कामना करें ॥२॥
भावार्थ
इस मन्त्र में परमात्मा के द्वैतवाद का वर्णन किया है ॥२॥
विषय
आनन्दमय प्रभु का दो प्रकार का वर्णन। ज्ञान रूप से, और काम्य रूप से।
भावार्थ
(भुवनानि) ये समस्त उत्पन्न लोक और पदार्थ, (स्वः-विदे) सर्वज्ञ, वा प्राणस्वरूप आनन्दमय उस परम प्रभुको प्राप्त करनेवाले साधक के लिये (अमृतस्य धाम) अमृत के परम तेजको (द्विता) दो प्रकारों से (वि ऊर्ण्वन्) प्रकट करते हैं और (प्रथन्त) उसके लिये विस्तृत होते हैं। (गावः) वेदवाणियां जिस प्रकार (ऋतयन्तीः इन्दुम् अभिवावश्रे) सत्य ज्ञान का वर्णन करती हुई उसी ऐश्वर्यवान्, तेजमय प्रभुको लक्ष्य कर उस का वर्णन करती हैं उसी प्रकार (स्वसरे) अपने गमन मार्ग में (पिन्वानाः) प्रभुको प्रसन्न करने वाली (धियः) वाणियां और मनुष्यों की बुद्धियां एवं बुद्धिमान् जन भी उसी (इन्दुम् अभि वावश्रे) तेजोमय, दयाशील प्रभु को चाहती और उसी की स्तुति करती हैं।
टिप्पणी
‘धियः कृण्वानाः’ इति क्वचित् पाठः।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कण्व ऋषिः॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः– १ निचृत् त्रिष्टुप्। २, ३, ५ विराट् त्रिष्टुप्। ४ त्रिष्टुप्॥ पञ्चर्चं सूक्तम्॥
विषय
अमृत का धाम
पदार्थ
(द्विता) = शरीर व मस्तिष्क दोनों की शक्तियों का विस्तार करनेवाला यह सोम (व्यूर्वन्) = विशेष रूप से हमें आच्छादित करता है, हमें सुरक्षित करता है। यह (अमृतस्यधाम) = नीरोगता का घर है । (स्वर्विदे) = प्रकाश की प्राप्ति के लिये (भुवनानि) = सब लोक (प्रथन्त) = इस सोम का विस्तार करते हैं । सोम शक्ति के विस्तार के अनुपात ही में ज्ञान का विस्तार होता है । (धियः पिन्वानाः) = बुद्धियों का वर्धन करती हुई और (ऋतायन्ती) = ऋत व यज्ञ को प्राप्त करने की कामनावाली प्रजायें (इन्दुम् अभिवावश्रे) = सोम की कामना करती हैं। (न) = जैसे कि (स्वसरे) = गोष्ठ में [सुष्ठ, अस्यन्ते प्रेर्यन्ते गाव: अत्र सा०] (गावः) = गौवें (धियः पिन्वानाः) = हमारी बुद्धियों का वर्धन करती हैं, इसी प्रकार शरीर में ये सोम हमारी बुद्धि का वर्धन करते हैं। गोष्ठ में जैसे गौवे हैं, उसी प्रकार शरीर में सोम हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोम शरीर व मस्तिष्क दोनों का आच्छादक बनता है । यह अमृत का धाम है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
For the man of divine vision the worlds of existence extend revealing the twofold, physical and spiritual, grandeur of the treasure-hold of immortal Soma. Like cows lowing in their own stall, the songs of divine Veda, inspiring and expanding in their own abode of the mind and nature, resound and celebrate the refulgent Indu, Soma, divine spirit of beauty, peace, power and bliss.
मराठी (1)
भावार्थ
या मंत्रात परमेश्वराच्या जीव व प्रकृती या द्वैतवादाचे वर्णन आहे. ॥२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal