ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 99/ मन्त्र 3
ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - अनुष्टुप्
स्वरः - गान्धारः
तम॑स्य मर्जयामसि॒ मदो॒ य इ॑न्द्र॒पात॑मः । यं गाव॑ आ॒सभि॑र्द॒धुः पु॒रा नू॒नं च॑ सू॒रय॑: ॥
स्वर सहित पद पाठतम् । अ॒स्य॒ । म॒र्ज॒या॒म॒सि॒ । मदः॑ । यः । इ॒न्द्र॒ऽपात॑मः । यम् । गावः॑ । आ॒सऽभिः॑ । द॒धुः । पु॒रा । नू॒नम् । च॒ । सू॒रयः॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तमस्य मर्जयामसि मदो य इन्द्रपातमः । यं गाव आसभिर्दधुः पुरा नूनं च सूरय: ॥
स्वर रहित पद पाठतम् । अस्य । मर्जयामसि । मदः । यः । इन्द्रऽपातमः । यम् । गावः । आसऽभिः । दधुः । पुरा । नूनम् । च । सूरयः ॥ ९.९९.३
ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 99; मन्त्र » 3
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
Acknowledgment
अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 3
Acknowledgment
भाष्य भाग
संस्कृत (1)
पदार्थः
(अस्य) अस्य परमात्मनः (तं) तं पूर्वोक्तमानन्दं (मर्जयामसि) शुद्धस्वभावेन वयं धारयामः (यः, मदः) य आनन्दः (इन्द्रपातमः) कर्मयोगितर्पकः (यं) यमानन्दं (गावः) इन्द्रियाणि (आसभिः) स्ववृत्तिभिः (दधुः) दधति (च, नूनं) तथा च निश्चयं (सूरयः) विद्वज्जनाः (पुरा) प्राचीनकालादेवोपासते ॥३॥
हिन्दी (3)
पदार्थ
(अस्य) उक्त परमात्मा के (तम्) उक्त आनन्द को (मर्जयामसि) हम लोग शुद्धभाव से धारण करते हैं, (यः) जो (मदः) आनन्द (इन्द्रपातमः) कर्मयोगी की तृप्ति करनेवाला है, (यम्) जिस आनन्द को (गावः) इन्द्रियें (आसभिः) अपनी वृत्तियों द्वारा (दधुः) धारण करती हैं (च) और (नूनम्) निश्चयपूर्वक (सूरयः) विद्वान् लोग (पुरा) पूर्वकाल से उपासना करते हैं ॥३॥
भावार्थ
कर्म्मयोगी लोग अपने अन्तःकरण को शुद्ध करके परमात्मानन्द का अनुभव करते हैं ॥३॥
विषय
उसका स्तुत्य पद।
भावार्थ
(यः मदः) जो हर्ष, उत्साह (अस्य) इसका (इन्द्रपातमः) ऐश्वर्ययुक्त राजपद वा राष्ट्र को सबसे उत्तम रीति से पालन करने में समर्थ है (यम् गावः आसभिः दधुः) जिसको वाणियें मुखों द्वारा उच्चारित होकर धारण कराता हैं और (पुरा) पहले जिसको (सूरयः) विद्वान् जन धारण करते हैं। (तम्) उसको हम (मर्जयामसि) और अधिक परिष्कृत करते हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
रेभसून् काश्यपावृषी॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १ विराड् बृहती। २, ३, ५, ६ अनुष्टुप्। ४, ७, ८ निचृदनुष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्।
विषय
सूरयः आसभिः दधुः [सोम]
पदार्थ
हम (तम्) = उस सोम को (मर्जयामसि) = शुद्ध करते हैं। प्रणवजप आदि के द्वारा वासनाओं से इसे मलिन नहीं होने देते । (अस्य) = इस सोम का (यः मदः) = जो उल्लास है वह (इन्द्रपातमः) = जितेन्द्रिय पुरुष से ही अतिशयेन पातव्य होता है। (यं) = जिस सोम को (गावः) = तत्त्वज्ञान के प्रति निरन्तर गति वाले, अर्थों का औरों के लिये प्रकाश करनेवाले [ गमयन्ति अर्थान् ] (सूरयः) = ज्ञानी लोग (पुरा नूनं च) = पहले और अब भी अर्थात् सदा (आसभिः) = [असनं आसः] वासनाओं को परे फेंकने के द्वारा (दधुः) = धारण करते हैं।
भावार्थ
भावार्थ- सोम धारण के लिये वासना विनाश आवश्यक है। शुद्ध हुआ हुआ सोम जितेन्द्रिय पुरुष के लिये उल्लास के देनेवाला होता है ।
इंग्लिश (1)
Meaning
That power and ecstasy of this Soma, worthiest of the soul’s delight, we adore and exalt, which the sense and mind with their perceptions and reflection receive and which, for sure, veteran sages too have experienced for times immemorial.
मराठी (1)
भावार्थ
कर्मयोगी लोक आपल्या अंत:करणाला शुद्ध करून परमात्म्याचा अनुभव घेतात. ॥३॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
N/A
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
N/A
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
Shri Virendra Agarwal
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal