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ऋग्वेद मण्डल - 9 के सूक्त 99 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 9/ सूक्त 99/ मन्त्र 5
    ऋषिः - रेभसूनू काश्यपौ देवता - पवमानः सोमः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः

    तमु॒क्षमा॑णम॒व्यये॒ वारे॑ पुनन्ति धर्ण॒सिम् । दू॒तं न पू॒र्वचि॑त्तय॒ आ शा॑सते मनी॒षिण॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । उ॒क्षमा॑णम् । अ॒व्यये॑ । वारे॑ । पु॒न॒न्ति॒ । ध॒र्ण॒सिम् । दू॒तम् । न । पू॒र्वऽचि॑त्तये । आ । शा॒स॒ते॒ । म॒नी॒षिणः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तमुक्षमाणमव्यये वारे पुनन्ति धर्णसिम् । दूतं न पूर्वचित्तय आ शासते मनीषिण: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । उक्षमाणम् । अव्यये । वारे । पुनन्ति । धर्णसिम् । दूतम् । न । पूर्वऽचित्तये । आ । शासते । मनीषिणः ॥ ९.९९.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 9; सूक्त » 99; मन्त्र » 5
    अष्टक » 7; अध्याय » 4; वर्ग » 25; मन्त्र » 5
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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (उक्षमाणं, तं) बलस्वरूपं तं परमात्मानं (मनीषिणः) मेधाविनः (अव्यये, वारे) रक्षायुक्तस्थाने (पुनन्ति) वर्णयन्ति (धर्णसिं) सर्वधारकं (दूतं, न) दुःखनिवारकं मन्यमानाः (पूर्वचित्तये) सर्वेभ्यः प्रथमं (आशासते) प्रार्थयन्ते ॥५॥

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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (उक्षमाणम्, तम्) उक्त बलस्वरूप परमात्मा को (मनीषिणः) मेधावी लोग (अव्यये, वारे) रक्षायुक्त विषयों में (पुनन्ति) वर्णन करते हैं, (धर्णसिम्) सर्वाधार को (दूतम्, न) दुःखनिवारकरूप से (पूर्वचित्तये) सबसे प्रथम (आशासते) प्रार्थना करते हैं ॥५॥

    भावार्थ

    परमात्मा सम्पूर्ण जगत् का आधार है, इससे उसी की उपासना प्रथम करनी चाहिये ॥५॥

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    विषय

    उसका प्रयाण उसका प्रजाओं द्वारा अभिषेक पक्षान्तर में-प्रभु की उपासना, वरण और स्तुति।

    भावार्थ

    (मनीषिणः) विद्वान, मेधावी, बुद्धिमान् पुरुष मन को सन्मार्ग में चलाने वाले, (उक्षमाणं) सब प्रकार के शान्ति-जलों से सेचन करने वाले मेघवत् शान्तिप्रद (धर्णसि) सब के धर्त्ता। (तं) उसके (अव्यये वारे) अविनाशी परम रूपीय हृदय में (पुनन्ति) स्वच्छ कर प्राप्त करते हैं और (पूर्णचित्तये) पूर्व के ज्ञान प्राप्त करने के लिये वा पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के (दूतं न आ शासते) दूत संदेश-हर के तुल्य जानते हैं। इति पञ्चविंशो वर्गः॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    रेभसून् काश्यपावृषी॥ पवमानः सोमो देवता॥ छन्दः- १ विराड् बृहती। २, ३, ५, ६ अनुष्टुप्। ४, ७, ८ निचृदनुष्टुप्। अष्टर्चं सूक्तम्।

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    विषय

    दूतं न पूर्वचित्तये

    पदार्थ

    (अव्यये) [अवि अय] = विविध विषयों में न भटकनेवाले (वारे) = वासनाओं का वारण करनेवाले पुरुष में (उक्षमाणं) = शक्ति का सेचन करते हुए (धर्णसिम्) = शरीर के धारक (तम्) = उस सोम को (पुनन्ति) = पवित्र करते हैं (मनीषिणः) = बुद्धिमान् पुरुष (दूतं न) = ज्ञान का संदेश देनेवाले के समान इस सोम को पूर्वचित्तये पालक व पूरक ज्ञान की प्राप्ति के लिये (आ शासते) = चाहते हैं । इस सोम ही तो ज्ञानाग्नि को दीप्त करके व हृदय को पवित्र करके हमें ज्ञान का सन्देश सुनाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ- सोम शक्ति का सेचन करता है, प्रभु के ज्ञान-सन्देश को सुनने के योग्य हमें बनाता है ।

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    That omnipotent virile generative Soma creator, the very pillar and foundation of the universe, thinkers and meditative sages sanctify and hold in the pure heart core of their soul and celebrate as the prime divine voice of revelation of the eternal Vedic knowledge for enlightenment of the human soul.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमेश्वर सर्व जगाचा आधार आहे, त्यामुळे त्याचीच प्रार्थना केली पाहिजे. ॥५॥

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