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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1043
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    30

    गि꣡र꣢स्त इन्द꣣ ओ꣡ज꣢सा मर्मृ꣣ज्य꣡न्ते꣢ अप꣣स्यु꣡वः꣢ । या꣢भि꣣र्म꣡दा꣢य꣣ शु꣡म्भ꣢से ॥१०४३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    गि꣡रः꣢꣯ । ते꣣ । इन्दो । ओ꣡ज꣢꣯सा । म꣣र्मृज्य꣡न्ते꣢ । अ꣣पस्यु꣡वः꣢ । या꣡भिः꣢꣯ । म꣡दा꣢꣯य । शु꣡म्भ꣢꣯से ॥१०४३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    गिरस्त इन्द ओजसा मर्मृज्यन्ते अपस्युवः । याभिर्मदाय शुम्भसे ॥१०४३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    गिरः । ते । इन्दो । ओजसा । मर्मृज्यन्ते । अपस्युवः । याभिः । मदाय । शुम्भसे ॥१०४३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1043
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 7; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 7
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में उपासक को सम्बोधन किया गया है।

    पदार्थ

    हे (इन्दो) परमेश्वर के उपासक मानव ! (ते) तेरी (अपस्युवः) कर्म की कामनावाली (गिरः) वाणियाँ तुझे (ओजसा) तेज से (मर्मृज्यन्ते) अधिकाधिक बार-बार अलङ्कृत करती हैं, (याभिः) जिनसे तू (मदाय) आनन्द-प्राप्ति के लिए (शुम्भसे) शोभित होता है ॥४॥

    भावार्थ

    वाणी कर्म के साथ ही मनुष्य का भूषण होती है, कर्म के बिना नहीं ॥७॥

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    पदार्थ

    (इन्दो) हे आनन्दरसपूर्ण परमात्मन्! (अपस्युवः-गिरः) कर्म—वैदिक कर्म को चाहती हुई विधान के अनुसार चलती हुई वाणियाँ—स्तुतिवाणियाँ (ते) तेरे लिए (ओजसा) आत्मीय बल से हमारे द्वारा (मर्मृज्यन्ते) प्रेरित की जाती हैं*18 (याभिः) जिन से प्रेरित हुआ या जिनके द्वारा (मदाय शुम्भसे) हमारे हर्ष आनन्द देने के लिए तू शोभित हो रहा है—सत्कृत हो रहा है॥७॥

    टिप्पणी

    [*18. “मार्ष्टि गतिकर्मा” [निघं॰ २.१४]।]

    विशेष

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    विषय

    चतुर्विध परिणाम

    पदार्थ

    हे (इन्दो) = ज्ञानरूप परमैश्वर्यशाली प्रभो ! ते (गिरः) = आपकी वाणियाँ (अपस्युवः) = कर्मों को चाहनेवाली (ओजसा) = शक्ति के द्वारा (मर्मृज्यन्ते) = खूब ही शुद्ध कर डालती हैं, अर्थात् प्रभु की दी हुई ये वेदवाणियाँ ऐसी हैं कि ये मनुष्य की शक्ति को बढ़ाती हैं तथा उसके जीवन को शुद्ध कर देती है। वेदवाणियों का जीवन पर दो प्रकार का परिणाम है १. शक्ति और २. शुद्धि, परन्तु ये दोनों ही परिणाम दीखते तभी हैं जब हम उन वेदवाणियों के अनुसार कर्म में प्रवृत्त हों।

    हे इन्दो ! ये वेदवाणियाँ वे हैं (याभि:) = जिनसे (मदाय) = उल्लास के लिए (शुम्भसे) = तू भक्तों के जीवन को सुभोभित करता है । इन वेदवाणियों का तीसरा परिणाम यह होता है कि हम अपने को सद्गुणों से अलंकृत कर पाते हैं । एवं, तीसरा और चौथा परिणाम, ३. उल्लास और ४. अलंकरण हैं।

    भावार्थ

    वेदवाणियाँ क्रिया में परिणत की जाने पर चतुर्विध परिणाम को पैदा करती हैं – १. शक्ति, २. शुद्धि, ३. उल्लास और ४. अलंकरण ।
     

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    हे (इन्द्रो) आत्मन ! (ते) तेरे (ओजसा) बल से (अपस्युवः) कर्म और इच्छा को प्रकाश करने हारी (गिरः) वाणियां (ममृज्यन्ते) परिष्कृत स्वच्छ शुद्ध हो जाती हैं (याभिः) जिनसे (मदाय) आनन्द की प्राप्ति के लिये तू (शुम्भसे) प्रकाशित होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ (१) आकृष्टामाषाः (२, ३) सिकतानिवावरी च। २, ११ कश्यपः। ३ मेधातिथिः। ४ हिरण्यस्तूपः। ५ अवत्सारः। ६ जमदग्निः। ७ कुत्सआंगिरसः। ८ वसिष्ठः। ९ त्रिशोकः काण्वः। १० श्यावाश्वः। १२ सप्तर्षयः। १३ अमहीयुः। १४ शुनःशेप आजीगर्तिः। १६ मान्धाता यौवनाश्वः। १५ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः। १७ असितः काश्यपो देवलो वा। १८ ऋणचयः शाक्तयः। १९ पर्वतनारदौ। २० मनुः सांवरणः। २१ कुत्सः। २२ बन्धुः सुबन्धुः श्रुतवन्धुविंप्रबन्धुश्च गौपायना लौपायना वा। २३ भुवन आप्त्यः साधनो वा भौवनः। २४ ऋषि रज्ञातः, प्रतीकत्रयं वा॥ देवता—१—६, ११–१३, १७–२१ पवमानः सोमः। ७, २२ अग्निः। १० इन्द्राग्नी। ९, १४, १६, इन्द्रः। १५ सोमः। ८ आदित्यः। २३ विश्वेदेवाः॥ छन्दः—१, ८ जगती। २-६, ८-११, १३, १४,१७ गायत्री। १२, १५, बृहती। १६ महापङ्क्तिः। १८ गायत्री सतोबृहती च। १९ उष्णिक्। २० अनुष्टुप्, २१, २३ त्रिष्टुप्। २२ भुरिग्बृहती। स्वरः—१, ७ निषादः। २-६, ८-११, १३, १४, १७ षड्जः। १-१५, २२ मध्यमः १६ पञ्चमः। १८ षड्जः मध्यमश्च। १९ ऋषभः। २० गान्धारः। २१, २३ धैवतः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथोपासकः सम्बोध्यते।

    पदार्थः

    हे (इन्दो) परमेश्वरोपासक मानव ! (ते) तव (अपस्युवः) कर्मकामाः। [अपः कर्माणि आत्मनः कामयन्ते इति अपस्युवः। क्यचि उः प्रत्ययः।] (गिरः) वाचः, त्वाम् (ओजसा) तेजसा (मर्मृज्यन्ते) भृशं पुनः पुनः अलङ्कुर्वन्ति, (याभिः) गीर्भिः, त्वम् (मदाय) आनन्दाय (शुम्भसे) शोभसे ॥७॥

    भावार्थः

    वाक् कर्मणैव साकं मनुष्यस्य भूषणं भवति, न निष्क्रिया ॥७॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।२।७।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O soul, through thy might, songs preaching knowledge and action, are beautified. With them we extol thee for rapturous joy !

    Translator Comment

    Them refers to songs.

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    Meaning

    Lord giver of peace and grandeur, your voices of the Veda, exponent of karma, by virtue of your divine lustre purify and sanctify the people. By the same voices you shine in divine glory for the joy of humanity. (Rg. 9-2-7)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (इन्दो) હે આનંદરસ પૂર્ણ પરમાત્મન્ ! (अपस्युवः गिरः)  કર્મ-વૈદિક કર્મને ચાહનારી વિધાન અનુસાર ચાલનારી વાણીઓ-સ્તુતિ વાણીઓ (ते) તારા માટે (ओजसा) આત્મીય બળથી અમારા દ્વારા (मर्मृज्यन्ते) પ્રેરિત કરવામાં આવે છે (याभिः) જેનાથી પ્રેરિત થઈને અથવા જેના દ્વારા (मदाय शुम्भसे) અમારા હર્ષ-આનંદ આપવા માટે તું શોભિત થઈ રહ્યો છે-સત્કૃત થઈ રહ્યો છે. (૭)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    वाणी कर्मासहित असेल तर ते माणसाचे भूषण ठरते, पण कर्माशिवाय नाही. ॥७॥

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