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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 11
ऋषिः - आयुङ्क्ष्वाहिः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
171
न꣡म꣢स्ते अग्न꣣ ओ꣡ज꣢से गृ꣣ण꣡न्ति꣢ देव कृ꣣ष्ट꣡यः꣢ । अ꣡मै꣢र꣣मि꣡त्र꣢मर्दय ॥११॥
स्वर सहित पद पाठन꣡मः꣢꣯ । ते꣣ । अग्ने । ओ꣡ज꣢꣯से । गृ꣣ण꣡न्ति꣢ । दे꣣व । कृष्ट꣡यः꣢ । अ꣡मैः꣢꣯ । अ꣣मि꣡त्र꣢म् । अ꣣ । मि꣡त्र꣢꣯म् । अ꣣र्दय ॥११॥
स्वर रहित मन्त्र
नमस्ते अग्न ओजसे गृणन्ति देव कृष्टयः । अमैरमित्रमर्दय ॥११॥
स्वर रहित पद पाठ
नमः । ते । अग्ने । ओजसे । गृणन्ति । देव । कृष्टयः । अमैः । अमित्रम् । अ । मित्रम् । अर्दय ॥११॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 11
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 1
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2;
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भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
प्रथम मन्त्र में परमात्मा और राजा की स्तुति करते हुए उनसे प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ
हे (देव) ज्योतिर्मय तथा विद्या आदि ज्योति के देनेवाले (अग्ने) लोकनायक जगदीश्वर अथवा राजन् ! (कृष्टयः) मनुष्य (ते) आपके (ओजसे) बल के लिए (नमः) नमस्कार के वचन (गृणन्ति) उच्चारण करते हैं, अर्थात् बार-बार आपके बल की प्रशंसा करते हैं। आप (अमैः) अपने बलों से (अमित्रम्) शत्रु को (अर्दय) नष्ट कर दीजिए ॥१॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेषालङ्कार है ॥१॥
भावार्थ
हे जगदीश्वर तथा हे राजन् ! कैसा आप में महान् बल है, जिससे आप निःसहायों की रक्षा करते हो और जिस बल के कारण आपके आगे बड़े-बड़े दर्पवालों के भी दर्प चूर हो जाते हैं। आप हमारे अध्यात्ममार्ग में विघ्न उत्पन्न करनेवाले काम, क्रोध आदि षड्रिपुओं को और संसार-मार्ग में बाधाएँ उपस्थित करनेवाले मानव शत्रु-दल को अपने उन बलों से समूल उच्छिन्न कर दीजिए, जिससे शत्रु-रहित होकर हम निष्कण्टक आत्मिक तथा बाह्य स्वराज्य का भोग करें ॥१॥
पदार्थ
(अग्ने देव) हे ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्म देव! (कृष्टयः) तुझे अपनी ओर कर्षणशील—खींचने वाले या तेरे प्रति आकृष्ट हुए उपासकजन “कृष्टयः—मनुष्याः” [निघं॰ २.३] (ओजसे) ओज—आत्मबल ज्ञानबल प्राप्त करने के लिये (ते नमः-गृणन्ति) तेरे लिये नम्र स्तवन—स्तुति उच्चारण करते हैं*7 (अमित्रम्-अमैः अर्दय) अध्यात्म यज्ञ के घातक काम क्रोध आदि शत्रु को बलों से “अमो बलम्” [निरु॰ १०.२१] नष्ट कर “अर्द हिंसायाम्” [चुरादि॰]।
भावार्थ
प्रिय परमात्मन्! तुझे अपनी ओर आकर्षित करने वाले या तेरे प्रति आकृष्ट हुए उपासकजन तेरी ओर आने के लिये ओज—आत्मबल ज्ञान बल को प्राप्त करने के हेतु तेरी नम्र-रसीली स्तुतियाँ किया करते हैं, अतः मैं तेरी ओर आने के लिए तेरी नम्र-मीठी स्तुतियाँ करता हूँ। तेरी ओर आने में काम क्रोध आदि शत्रु बाधक हैं, इन्हें अपने बलों से नष्ट कर, जब मैं तेरी ओर आना चाहता हूँ तो ये बाधक बनकर आगे खड़े हो जाते हैं। तू ओजःस्वरूप है, मुझे ओज दे “ओजोऽस्योजो मयि धेहि” (यजुः॰ १९.९)॥१॥
टिप्पणी
[*6.‘आयुङ्क्ष्व’ इति—‘आह’-ब्रवीति-इति बाहुलकात् किः प्रत्यय औणदिकः।] [*7. ‘नमः’ शब्द का सम्बन्ध वैदिक पद्धति में वाणी के साथ है, यहाँ ‘नमः-गृणन्ति’ है तथा “नम उक्तिं विधेम” (यजु॰ ४०.१६) मस्तक झुकाना अर्थ नहीं “नमो महद्भ्य नमो अर्भकेभ्यः” (ऋ॰ १.२७.१३) यथायोग्य स्वागत वचन बड़ों के लिये छोटों के लिये भी बोलना ‘नमः’ है।]
विशेष
छन्दः—गायत्री। स्वरः—षड्जः॥ ऋषिः—आयुङ्क्ष्वाहिः (परमात्मा में अपने को समस्तरूप से युक्त कर ऐसा कहने वाला*6 उपासक)॥<br>
विषय
भक्ति से शक्ति की प्राप्ति
पदार्थ
(अग्ने ओजसे)=हे प्रभो ! बल-प्राप्ति के हेतु से हम (ते नम:)= तेरे लिए नमस्कार करते हैं। अनन्त शक्ति के स्रोत आप ही हैं, भक्ति के द्वारा आपसे सम्बद्ध हो हम भी उस शक्ति को अपने अन्दर प्रवाहित करते हैं। भक्ति से वह शक्ति प्राप्त होती है जो पर्वत तुल्य कष्टों में भी मनुष्य को विचलित न होने योग्य बनाती है।
२. परन्तु हे (देव) =सब आवश्यक पदार्थों के देनेवाले प्रभो! (कृष्टयः)= कृषि करनेवाले मनुष्य ही (गृणन्ति)= तेरी सच्ची आराधना करते हैं। वे अन्न-वस्त्रादि जुटाकर आपकी भाँति आवश्यक पदार्थों के देनेवाले हैं।
३. (अमैः)= शक्तियों से (अमित्रम्)= शत्रु को (अर्दय)= समाप्त कीजिए । हे प्रभो! शारीरिक शक्ति से, तेज व वीर्य से हम रोगकृमिरूप शत्रुओं को नष्ट करनेवाले हों। मानस ओज व स्नेह के बल से हम काम, क्रोधादि को नष्ट कर विश्वप्रेम को अपने जीवन में ला सकें। बौद्धिक ज्ञान के बल से अज्ञानरूप शत्रु को हम समाप्त कर दें।
इस सबके लिए हमारे जीवन का आदर्श वाक्य (आयुङ्क्ष्व) 'काम में लगे रहो " तथा 'अहि' [अ-हन] 'समय को नष्ट मत करो" यह बने तथा हम इस मन्त्र के ऋषि ‘आयुङ्क्ष्वाहि' बनें।
भावार्थ
[१] भक्ति से शक्ति मिलती है, [२] सच्ची भक्ति के लिए कृषक का जीवन आदर्श है, [३] शक्ति से शत्रुओं की समाप्ति हो जाती है।
पदार्थ
शब्दार्थ = हे अग्ने! ( ते नमः ) = आपको हमारा नमस्कार है। ( कृष्टयः ) = आपके प्यारे भक्त मनुष्य ( ओजसे गृणन्ति ) = बल प्राप्ति के लिए आपकी स्तुति करते हैं। ( देव ) = हे प्रकाश-स्वरूप और सबके प्रकाश करनेवाले सुखदाता प्रभो! ( अमैः ) = रोग भयादिकों से ( अमित्रम् ) = पापी शत्रु को ( अर्दय ) = पीड़ित कीजिये।
भावार्थ
भावार्थ = हे ज्ञानस्वरूप सर्व सुखदायक देव! आपकी स्तुति, प्रार्थना, उपासना हम सदा करें, जिससे हमें आत्मिक बल मिले और ज्ञान का प्रकाश हो । जो लोग आपसे विमुख होकर आपकी भक्ति और वेदों की आज्ञा से विरुद्ध चलते, नास्तिक बन संसार की हानि करते हैं, उन पतितों तथा संसार के शत्रुओं को ही बाह्य शत्रु और आभ्यन्तर शत्रु काम, क्रोध, रोग, शोक, भयादि सदा पीड़ित करते रहते हैं ।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = हे अग्ने । हे ( देव ) = देव ! (कृष्टय:१ ) = मनुष्य ( ते ) = तुझे ( ओजसे २ ) = बल के लिये ( नमः गृणन्ति ) = नमस्कार कहते हैं। तू ( अमै :३ ) = बलों से ( अमित्रम् ) = शत्रु को ( अर्दय ) = पीड़ित कर । भक्त भगवान् से त्राण मांगते और वन्दना करते हैं कि खल दंडित हों ।
टिप्पणी
१ कृष्टिरिति मनुष्यनाम | नि० २। ३॥
२ ओज इति बलनाम। नि०२।९।
३.रोगैर्बलैर्भवैर्या । मा० वि० ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - आयुङ्क्ष्वाहिः
छन्द: - गायत्री
संस्कृत (1)
विषयः
तत्रादौ परमात्मानं राजानं वा स्तुवन् प्रार्थयते।
पदार्थः
हे (देव) ज्योतिर्मय विद्यादिज्योतिष्प्रदायक वा (अग्ने) लोकनायक जगदीश्वर राजन् वा ! (कृष्टयः२) मनुष्याः। कृष्टय इति मनुष्यनामसु पठितम्। निघं० २।३। (ते) तव (ओजसे) बलाय। ओज इति बलनाम। निघं० २।९ (नमः) नमोवचांसि (गृणन्ति) उच्चारयन्ति। गृ शब्दे, क्र्यादिः। भूयो भूयस्त्वद्बलं प्रशंसन्तीत्यर्थः। त्वम् (अमैः३) तादृशैः स्वकीयैः बलैः। अम गतिशब्दसंभक्तिषु भ्वादिः। अमं भयं बलं वा इति निरुक्तम्। १०।२१ (अमित्रम्) शत्रुम् अर्दय पीडय विनाशय। अर्द हिंसायाम् चुरादिः ॥१॥ अत्र अर्थश्लेषालङ्कारः ॥१॥
भावार्थः
हे जगदीश्वर राजन् वा ! कीदृशं त्वदीयं महद् बलं येन त्वं निःसहायान् रक्षसि, यत्कारणाच्च त्वत्पुरतो दर्पवतामपि दर्पाः संचूर्यन्ते। त्वमस्माकमध्यात्ममार्गे विघ्नान् जनयन्तं कामक्रोधादिषड्रिपुवर्गं लोकमार्गे च बाधा उपस्थापयन्तं मानवं शत्रुदलं तादृशैः स्वकीयैर्बलैः समूलमुच्छिन्धि, येन निःसपत्नाः सन्तो वयमकण्टकमात्मिकं बाह्यं च स्वराज्यं भुञ्जीमहि ॥१॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।७५।१० विरूप ऋषिः। साम० १६४८। २. ‘कृषन्ति विलिखन्ति स्वानि कर्माणि ये ते मनुष्याः इति ऋ० १।५२।११ भाष्ये द०। ३. अमैः अनिष्टैः रोगैर्भयैर्वा इति वि०। बलैः रोगैर्वा। अम रोगे इति भ०। बलैः इति सा०।
इंग्लिश (4)
Meaning
O God, we bow unto Thee; energetic people sing reverent praise to Thee for strength. With Thy might eclipse Thou the foe.
Meaning
Salutations to you, Agni, refulgent lord of generosity. The people too adore and exalt you. Pray ward off and throw out the enemies and unfriendly forces by your laws and powers. (Rg. 8-75-10)
Translation
O God, glorified by every one for Thy might,
Subdue our enemies by Thy Power bright
Comments
अमः--बलेरिति भरत स्वामी अम-गतोइतिधातो: ।
'अमित्रम--बाह्यान्तरिकशत्रजातम्
Translation
O divine adorable Lord, men sing reverent praises to you for the attainment of strength, may you destroy the enemy by strength. (Cf. S. 1648; Rv VIII.75.10)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (अग्ने देव) હે જ્ઞાન-પ્રકાશસ્વરૂપ પરમાત્મ દેવ ! (कृष्टयः) તને પોતાની તરફ કર્ષણશીલખેંચનાર અથવા તારા પ્રત્યે આકૃષ્ટ થયેલ ઉપાસક મનુષ્ય (ओजसे) ઓજ = આત્મબળ, જ્ઞાનબળ પ્રાપ્ત કરવા માટે (ते नमः गृणन्ति) તારા માટે નમ્ર સ્તવન-સ્તુતિનું ઉચ્ચારણ કરે છે. (अमित्रम् अमैः अर्दय) અધ્યાત્મ યજ્ઞના નાશક કામ, ક્રોધ આદિ શત્રુને બળ દ્વારા અર્દય = નષ્ટ કર - સમાપ્ત કર. (૧)
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે પ્રિય પરમાત્મન્ ! તને પોતાની તરફ આકર્ષિત કરનાર અથવા તારા પ્રત્યે આકૃષ્ટ થયેલ ઉપાસકજન તારા તરફ આવવા માટે ઓજ = આત્મબળ, જ્ઞાનબળને પ્રાપ્ત કરવા માટે તારી નમ્ર - રસયુક્ત સ્તુતિઓ કર્યા કરે છે, તેથી હું તારા તરફ આવવા માટે તારી નમ્ર-મધુર સ્તુતિઓ કરું છું. તારા તરફ આવવા માટે કામ, ક્રોધ આદિ શત્રુ બાધક-વિઘ્નરૂપ છે, તેને તારા બળથી નષ્ટ કર, જ્યારે હું તારી તરફ આવવા ઇચ્છું છું, તો એ વિઘ્નરૂપ બનીને આગળ ઊભા થઈ જાય છે. તું ઓજ સ્વરૂપ છો, મને ઓજ આપ - "ओजोऽस्योजो मयि धेहि " - યજુ ૧૯.૯ (૧)
उर्दू (1)
Mazmoon
نمسکار ہو
Lafzi Maana
لفظی معنیٰ: (اگنے) نورِ مُجسمّ (نمہ تے) نمسکار ہو۔ (دیو) داتاؤں کے پرم داتا پرکاش سورُوپ (کِرشٹیہ) تمام انسانوں کی زندگیوں میں اوصافِ حمیدہ کے بیج بونے والے (او جسے) گیان شکتی اوربل کے لئے (گِرننتی) آپ کی سُتتی گاتے ہیں، حمد و ثنا یا بھگتی کے مدُھر گیت یا کیرتن (امئی) آپ اپنے قدرتی گیان بل اور بے پناہ طاقتوں کے ذریعے (امتِرم) ہمارے ساتھ مِترتا اور پیار نہ کر کے خواہ مخواہ کا ویر ورودھ کرنے والے شرارتی عناصر اور کام کرودھ وغیرہ اندرونی دشمنوں کو نشٹ کر دیجیئے۔
Tashree
ُشٹوں کو دنڈ: پیارے پرماتمن! میں آپ کی اور آنا چاہتا ہوں۔ آپ کو اپنی طرف کھینچنے کے لئے اور اپنا آتم بل بڑھانے کے لئے بارہا آپ کے بھگتی۔ رس گیت گاتا ہوں۔ یکسوئی سے آپ کی عبادت میں بھی بیٹھنے کی کوشش کرتا ہوں۔ لیکن ایک دم اندر کے شترُو کام کرودھ اور باہر کے دُشٹ سوبھاؤ منشیوں کا دھیان آپ کی مِلن کی راہ میں وِگہن پیدا کر دیتے ہیں۔ جس سے من اشانت ہو کر تمہاری ہماری منزل دُور ہو جاتی ہے، لہٰذا اپنی عالمی طاقتوں کے ساتھ دُشٹوں کو دنڈ دے کر ان کا سُدھار کیجئے۔ انتظارِ وصل ختم ہو اور پیار کا راستہ صاف ہو۔
बंगाली (1)
পদার্থ
নমস্তে অগ্ন ওজসে গৃণন্তি দেব কৃষ্টয়ঃ ।
অমৈরমিত্রমর্দয়।।৫।।
(সাম ১১)
পদার্থঃ (অগ্ন) হে জ্ঞানস্বরূপ পরমাত্মা! (তে নমঃ) তোমাকে নমস্কার। (কৃষ্টয়ঃ) তোমার প্রিয় ভক্ত মনুষ্য (ওজসে গৃণন্তি) বল প্রাপ্তির জন্য তোমার স্তুতি করে থাকে। (দেব) হে প্রকাশ-স্বরূপ এবং সকল কিছু প্রকাশকারী, সুখ দানকারী! তুমি (অমৈঃ) রোগ ভয়াদি দ্বারা (অমিত্রম্) পাপী শত্রুদের (অর্দয়) পীড়িত করো।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে জ্ঞানস্বরূপ, সর্বসুখদায়ক দেব! তোমার স্তুতি, প্রার্থনা, উপাসনা আমরা সর্বদা করব যাতে আমাদের আত্মিক বল প্রাপ্ত হয় এবং জ্ঞানের প্রকাশ ঘটে। অপর দিকে, যেসব ব্যক্তি তোমার থেকে বিমুখ হয়ে তোমার প্রতি ভক্তি প্রদর্শন করে না এবং বেদের আজ্ঞার বিরুদ্ধে চলে সংসারের ক্ষতি করে; সেইসব পতিত ব্যক্তিগণ সর্বদা তাদের বাহ্য শত্রু এবং আভ্যন্তরীণ শত্রু; কাম, ক্রোধ, রোগ, শোক ভয়াদি দ্বারা দুঃখ লাভ করে।।৫।।
मराठी (2)
भावार्थ
हे जगदीश्वर व राजा! तुमच्यामध्ये अत्यंत महान बल आहे. ज्याद्वारे तुम्ही असाह्य लोकांचे रक्षण करता व ज्या बलामुळे तुमच्यासमोर मोठमोठ्या दर्पयुक्त लोकांचा दर्प चूर चूर होतो. तुम्ही आमच्या अध्यात्ममार्गात विघ्न उत्पन्न करणाऱ्या काम, क्रोध इत्यादी षड्रिपूंना व संसारमार्गात बाधा उत्पन्न करणाऱ्या मानव शत्रुदलाला आपल्या बलाने समूळ नष्ट करा, ज्यामुळे आम्ही शत्रुरहित बनून निष्कंटक व्हावे व आत्मिक आणि बाह्य स्वराज्याचा भोग करावा. ॥१॥
विषय
प्रथम मंत्रात परमात्म्याची व राजाची स्तुती करीत त्यांना प्रार्थना करीत आहेत -
शब्दार्थ
हे (देव) ज्योतिर्मय, विधादी ज्योतिप्रदायक (अग्ने) लोकनायक जगदीश्वर अथवा हे राजन (कृष्टयः) मनुष्य तुमचे उपासक / तुमचे प्रजाजन) (ते) तुमच्याकडून (ओजसे) शक्ती प्राप्त करण्यासाठी (नम:) नमस्कारयुक्त वचन (गृणन्ति) उच्चारत आहेत म्हणजे तुमच्या शकतीची वारंवार प्रशंसा करीत आहेत. तुम्ही (अमै:) त्या आपल्या शक्तीने (अमित्रम्) शत्रूला (अर्दय) नष्ट करा. ।।१।।
भावार्थ
हे जगदीश्वर तथा हे राजन्, आपले बळ अतिमहान आहे. त्या बळानेच आपण निःसहायजनांची रक्षा करता. आपल्या त्या शक्तीपुढे मोठमोठ्या गविष्ठ लोकांचा दर्प खंड खंड होतो. आपण आमच्या अध्यात्ममार्गात विघ्न, बाधा उपस्थित करणाऱ्या काम, क्रोध आदी षड्रिपूंना तसेच आमच्या सांसारिक जीवनात अडचणी निर्माण करणाऱ्या मानव शत्रूंना आपल्या त्या महान शक्तीने समूळ उच्छिन्न करून टाका, ज्यामुळे आम्ही शत्रुरहित होऊन आत्मिक राज्य आणि बाह्य स्वराज्याचा निश्चिंत होऊन उपभोग घेऊ शकू. कोणत्या गुणांनीयुक्त परमात्म्याची मी स्तुती करतो, हे पुढील मंत्रात सांगतात. - -
विशेष
या मंत्रात अर्थश्लेषालंकार आहे. ॥१॥
तमिल (1)
Word Meaning
(அக்னியே)! தேவரே, திடத்திற்காக ஜனங்கள் நமஸ்காரத்துடன் உன்னை [1] துதிக்கிறார்கள். பலத்தால் பிரியமற்றவர்களை நீ நாசம் செய்யவும்.
FootNotes
[1] துதிக்கிறார்கள் - நாடுகிறார்கள்.
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