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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1124
    ऋषिः - असितः काश्यपो देवलो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    28

    अ꣢प꣣ द्वा꣡रा꣢ मती꣣नां꣢ प्र꣣त्ना꣡ ऋ꣢ण्वन्ति का꣣र꣡वः꣢ । वृ꣢ष्णो꣣ ह꣡र꣢स आ꣣य꣡वः꣢ ॥११२४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣡प꣢꣯ । द्वा꣡रा꣢꣯ । म꣣तीना꣢म् । प्र꣣त्नाः꣢ । ऋ꣣ण्वन्ति । कार꣡वः꣢ । वृ꣡ष्णः꣢꣯ । ह꣡र꣢꣯से । आ꣣य꣡वः꣢ ॥११२४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अप द्वारा मतीनां प्रत्ना ऋण्वन्ति कारवः । वृष्णो हरस आयवः ॥११२४॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अप । द्वारा । मतीनाम् । प्रत्नाः । ऋण्वन्ति । कारवः । वृष्णः । हरसे । आयवः ॥११२४॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1124
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 9
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 9
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे फिर वही विषय कहा गया है।

    पदार्थ

    (प्रत्नाः) पुरातन अर्थात् ज्ञान एवं आयु में वृद्ध, (कारवः) मौखिक एवं व्यावहारिक विद्याओं के शिल्पकार, (आयवः) कर्मयोगी गुरुलोग (वृष्णः) सुखवर्षी ज्ञान को (हरसे) शिष्यों के अन्तरात्मा में लाने के लिए (मतीनाम्) शिष्यों की बुद्धियों के (द्वारा) द्वारों को (अप ऋण्वन्ति) खोल देते हैं ॥९॥

    भावार्थ

    गुरुओं को चाहिए कि वे शिष्यों की बुद्धियों के बन्द द्वारों को खोलकर उन्हें गम्भीर ज्ञान के ग्रहण करने योग्य करके पण्डित बना दें ॥९॥

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    पदार्थ

    (प्रत्नाः कारवः) मुमुक्षु*25 स्तुति करनेवाले*26 (वृष्णः-हरसः-आयवः) सुखवर्षक सोम—शान्तस्वरूप परमात्मा के अपने अन्दर ग्रहण करनेवाले जन*27 (मतीनां द्वारा-अप-ऋण्वन्ति) अपनी मतियों बुद्धियों के द्वारों को हटा देते हैं खोल देते हैं*28॥९॥

    टिप्पणी

    [*25. “देवा वै प्रत्नम्” [मै॰ १.५.५]।] [*26. “कारुः स्तोतृनाम” [निघं॰ ३.१६]।] [*27. “आयवः-मनुष्यनाम” [निघं॰ २.३]।] [*28. “ऋणु गतौ” [तनादि॰]।]

    विशेष

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    विषय

    बुद्धि के द्वारों का उद्घाटन

    पदार्थ

    (प्रत्नाः) = प्रथमाश्रम में विद्या का अध्ययन करनेवाले [ऋ० ६.२.४ – द०] अथवा प्रत्न=पतन=अपनी शक्तियों का खूब विस्तार करनेवाले (कारवः) = [कारु: शिल्पिनि कारके] प्रत्येक कार्य को बड़े कलापूर्ण ढंग से करनेवाले (आयवः) = [एति] गतिशील मनुष्य (वृष्णः) = शक्तिशाली, सब सुखों की वर्षा करनेवाले प्रभु को हरसे प्राप्त करने के लिए (मतीनाम्) = बुद्धियों के द्वारा द्वारों को (अप ऋण्वन्ति) = खोल देते हैं । वस्तुतः बुद्धि के विकास से ही प्रभु का दर्शन होता है । सूक्ष्म बुद्धि से ही आत्मा का ग्रहण होता है । =

    बुद्धि के विकास के लिए आवश्यक है कि १. हम प्रथमाश्रम में विद्या का खूब अध्ययन करें और शक्तियों का विकास करें, २. साथ ही प्रत्येक कार्य को सौन्दर्य से करने का अभ्यास करें, ३. क्रियाशील जीवनवाले होकर बुद्धि का विकास करेंगे तो अवश्य प्रभु का दर्शन करेंगे ।

    भावार्थ

    हम बुद्धि के द्वारों को खोलें और प्रभु का दर्शन करें।

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    (प्रत्नाः) पुरातन, उत्कृष्ट अभ्यासी (कारवः) योगक्रिया के करने हारे (वृष्णः) वर्षणशील, सुखवर्षक आत्मा के (हरसः) स्वरूप को प्राप्त होने वाले (आयवः) उस तक पहुंचे हुए जन (मतीनां) मनन शक्तियों के (द्वारा) द्वारों को (अप ऋण्वन्ति) खोल डालते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ वृषगणो वासिष्ठः। २ असितः काश्यपो देवलो वा। ११ भृगुर्वारुणिर्जमदग्निः। ८ भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। ४ यजत आत्रेयः। ५ मधुच्छन्दो वैश्वामित्रः। ७ सिकता निवावरी। ८ पुरुहन्मा। ९ पर्वतानारदौ शिखण्डिन्यौ काश्यप्यावप्सरसौ। १० अग्नयो धिष्ण्याः। २२ वत्सः काण्वः। नृमेधः। १४ अत्रिः॥ देवता—१, २, ७, ९, १० पवमानः सोमः। ४ मित्रावरुणौ। ५, ८, १३, १४ इन्द्रः। ६ इन्द्राग्नी। १२ अग्निः॥ छन्द:—१, ३ त्रिष्टुप्। २, ४, ५, ६, ११, १२ गायत्री। ७ जगती। ८ प्रागाथः। ९ उष्णिक्। १० द्विपदा विराट्। १३ ककुप्, पुर उष्णिक्। १४ अनुष्टुप्। स्वरः—१-३ धैवतः। २, ४, ५, ६, १२ षड्ज:। ७ निषादः। १० मध्यमः। ११ ऋषभः। १४ गान्धारः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनस्तमेव विषयमाह।

    पदार्थः

    (प्रत्नाः) पुरातनाः ज्ञानवयोवृद्धाः (कारवः) मौखिकीनां व्यावहारिकीणां च विद्यानां शिल्पिनः, (आयवः) कर्मयोगिनो गुरुजनाः। [यन्ति क्रियाशीला भवन्ति इति आयवः। ‘छन्दसीणः’ उ० १।२ इत्यनेन इण् गतौ धातोः उण् प्रत्ययः।] (वृष्णः) सुखवर्षकस्य ज्ञानस्य (हरसे) शिष्याणामन्तरात्मनि आहरणाय (मतीनाम्) शिष्यबुद्धीनाम् (द्वारा) द्वाराणि (अप ऋण्वन्ति) अपवृण्वन्ति ॥९॥

    भावार्थः

    गुरवः शिष्यबुद्धीनाम् अपावृतानि द्वाराणि समुद्घाट्य तान् गम्भीरज्ञानग्रहणक्षमान् विधाय पण्डितान् कुर्युः ॥९॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।१०।६।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The aged, disciplined performers of Yogic practice, who have realised the true nature of the gladdening soul, open the doors of meditation and cogitation.

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    Meaning

    Veteran scholars and artists, blest with the flames and showers of the light and generosity of the omnificent lord of soma, open wide the doors of divine knowledge and will for all humanity over the world. (Rg. 9-10-6)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (प्रत्नाः कारवः) મુમુક્ષુ સ્તુતિ કરનારા (वृष्णः हरसः आयवः) સુખવર્ષક સોમ-શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્માને પોતાની અંદર ગ્રહણ કરનારા જનો (मतीनां द्वारा अप ऋण्वन्ति) પોતાની મતિઓ-બુદ્ધિઓનાં દ્વાર હટાવી દે છે-બારણાં ખોલી નાખે છે. (૯)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    गुरूंनी शिष्यांच्या बुद्धीचे बंद दरवाजे उघडून त्यांना गंभीर ज्ञान ग्रहण करण्यायोग्य बनवावे व पंडित करावे. ॥९॥

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