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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1171
    ऋषिः - नृमेध आङ्गिरसः देवता - इन्द्रः छन्दः - पुर उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम -
    37

    त्वा꣡ꣳ शु꣢ष्मिन्पुरुहूत वाज꣣य꣢न्त꣣मु꣡प꣢ ब्रुवे सहस्कृत । स꣡ नो꣢ रास्व सु꣣वी꣡र्य꣢म् ॥११७१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वा꣢म् । शु꣣ष्मिन् । पुरुहूत । पुरु । हूत । वाजय꣡न्त꣢म् । उ꣡प꣢꣯ । ब्रु꣣वे । सहस्कृत । सहः । कृत । सः꣢ । नः꣣ । रास्व । सुवी꣡र्य꣢म् । सु꣣ । वी꣡र्य꣢꣯म् ॥११७१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वाꣳ शुष्मिन्पुरुहूत वाजयन्तमुप ब्रुवे सहस्कृत । स नो रास्व सुवीर्यम् ॥११७१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    त्वाम् । शुष्मिन् । पुरुहूत । पुरु । हूत । वाजयन्तम् । उप । ब्रुवे । सहस्कृत । सहः । कृत । सः । नः । रास्व । सुवीर्यम् । सु । वीर्यम् ॥११७१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1171
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 13; मन्त्र » 3
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 8; खण्ड » 6; सूक्त » 2; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    अगले मन्त्र में पुनः परमात्मा से प्रार्थना है।

    पदार्थ

    हे (शुष्मिन्) बलवान् (पुरुहूत) बहुतों से पुकारे गये, (सहस्कृत) बलप्रदाता जगदीश्वर ! (वाजयन्तं त्वाम्) दूसरों को बल देना चाहनेवाले आपसे, मैं (उपब्रुवे) प्रार्थना करताहूँ। (सः) वह आप (नः) हमें (सुवीर्यम्) उत्कृष्ट वीरता से युक्त सन्तान (रास्व) दीजिए ॥३॥

    भावार्थ

    हम और हमारी सन्तानें बलवान् होकर, शत्रुओं को हराकर, अपना चक्रवर्ती राज्य संस्थापित करके धर्म से प्रजाओं का पालन करें ॥३॥

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    पदार्थ

    (शुष्मिन् पुरुहूत सहस्कृत) हे बलवन् बहुत प्रकार आमन्त्रण करने योग्य ओज—आत्मतेज से साक्षात्करणीय*110 (वाजयन्तं त्वाम्-उपब्रुवे) तुझ हमारे लिये अमृत अन्नभोग*111 चाहनेवाले की उपस्तुति—उपासना करता हूँ (सः-नः सुवीर्यं रास्व) वह तू हमारे लिये उत्तमबल—अध्यात्मबल को प्रदान कर॥३॥

    टिप्पणी

    [*110. “ओजः-सहः-ओजः” [का॰ ३.५३]।] [*111. “अमृतोऽन्नं वै वाजः” [जै॰ १.१९३]।]

    विशेष

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    विषय

    सहस्, सम्पन्नता व प्रभु-दर्शन

    पदार्थ

    हे (शुष्मिन्) = शत्रुओं का शोषण करनेवाले बल से सम्पन्न प्रभो ! (पुरुहूत) = हे सबसे पुकारे जानेवाले प्रभो ! जिन आपका आह्वान हमारा पालन व पूरण करनेवाला है, (सहस्कृत) = सहस् के द्वारा उत्पादित, अर्थात् ध्यान किये गये प्रभो ! वस्तुतः प्रभु का दर्शन तो उसे ही होता है जो सहनशक्ति के बल से सम्पन्न होता है। यही सहस् शक्ति की चरम सीमा है– [सहोऽसि सहो मयि धेहि] (वाजयन्तम्) = शक्ति व धन प्राप्त कराते हुए (त्वाम्) = आपकी (उपब्रुवे) = विनयभरी प्रार्थना करता हूँ । (सः) = वे आप (नः) = हमें (सुवीर्यम्) = उत्तम शक्ति (रास्व) = प्रदान कीजिए। आप मुझे उत्तम शक्ति दीजिए, मैं ईर्ष्या-द्वेष आदि शत्रुओं का शोषण करता हुआ जहाँ सबके साथ मिलकर चलनेवाला

    ‘नृमेध' [नृ=मनुष्य मेध-संगम] बनूँ, वहाँ अङ्ग-प्रत्यङ्ग में शक्ति-सम्पन्न होकर 'आङ्गिरस' होऊँ । अपने अन्दर अद्भुत ‘सहस्’=बल उत्पन्न करके आपका दर्शन कर पाऊँ । मुझे यह शक्ति आपको ही प्राप्त करानी है। मेरे ‘वाजयन्' आप ही हैं । हे पुरुहूत ! आपकी पुकार ही मेरा पालन करनेवाली है, आपको छोड़ और किसके द्वार पर जाऊँ ?

    भावार्थ

    हे प्रभो ! आपकी कृपा से मैं सुवीर्य प्राप्त करूँ, ‘सहस्'=-बल-सम्पन्न होकर आपके दर्शन करूँ ।
     

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( शुष्मिन् ) = हे बलवान् प्रभो!  ( पुरुहूत ) = बहुतों से पुकारे गये  ( सहस्कृत ) = बल देनेवाले  ( वाजयन्तं त्वाम् ) = बल देते हुए आपकी  ( उपब्रुवे ) = मैं स्तुति करता हूँ  ( स नः ) = वह आप हमारे लिए  ( सुवीर्यम् रास्व ) = उत्तम बल का दान करो। 

    भावार्थ

    भावार्थ = हे महाबलिन् बलप्रदात: ! हम आपके भक्त आपकी ही उपासना करते हैं, आप कृपा कर हमें आत्मिक बल दो, जिससे हम लोग, काम क्रोध आदि दुःखदायक शत्रुओं को जीत कर, आपकी शरण में आवें । आपकी शरण में आकर ही हम सुखी हो सकते हैं, आपकी शरण में आये बिना तो, न कभी कोई सुखी हुआ है और न होगा ।

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    विषय

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    भावार्थ

    हे (शुष्मिन्) सर्वशक्तिमन् ! हे (पुरुहूत) बहुतों से स्तुति योग्य हे (सहस्कृत) सब बलों और बलशाली शक्तिमान पदार्थो के उत्पादक ! (वाजयन्तम्) ज्ञान और बल को दान करने हारे आपसे मैं (उपब्रुवे) प्रार्थना करता हूं कि (नः) हमें (सुवीर्यम्) उत्तम बल, वीर्य और पुत्र, तेज और यश का (रास्व) प्रदान करें।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ वृषगणो वासिष्ठः। २ असितः काश्यपो देवलो वा। ११ भृगुर्वारुणिर्जमदग्निः। ८ भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। ४ यजत आत्रेयः। ५ मधुच्छन्दो वैश्वामित्रः। ७ सिकता निवावरी। ८ पुरुहन्मा। ९ पर्वतानारदौ शिखण्डिन्यौ काश्यप्यावप्सरसौ। १० अग्नयो धिष्ण्याः। २२ वत्सः काण्वः। नृमेधः। १४ अत्रिः॥ देवता—१, २, ७, ९, १० पवमानः सोमः। ४ मित्रावरुणौ। ५, ८, १३, १४ इन्द्रः। ६ इन्द्राग्नी। १२ अग्निः॥ छन्द:—१, ३ त्रिष्टुप्। २, ४, ५, ६, ११, १२ गायत्री। ७ जगती। ८ प्रागाथः। ९ उष्णिक्। १० द्विपदा विराट्। १३ ककुप्, पुर उष्णिक्। १४ अनुष्टुप्। स्वरः—१-३ धैवतः। २, ४, ५, ६, १२ षड्ज:। ७ निषादः। १० मध्यमः। ११ ऋषभः। १४ गान्धारः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनः परमात्मा प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    हे (शुष्मिन्) बलवन्, (पुरुहूत) बहुभिः आहूत, (सहस्कृत) बलप्रद जगदीश्वर ! (वाजयन्तं त्वाम्) बलं परेषां कामयमानम् त्वाम्, अहम् (उपब्रुवे) प्रार्थये। (सः) असौ त्वम् (नः) अस्मभ्यम् (सुवीर्यम्) सुबलोपेतं सन्तानम् (रास्व) प्रयच्छ ॥३॥

    भावार्थः

    वयमस्माकं सन्तानाश्च बलवन्तो भूत्वा शत्रून् पराजित्य स्वकीयं चक्रवर्तिराज्यं संस्थाप्य धर्मेण प्रजाः पालयेमहि ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।९८।१२, अथ० २०।१०८।३, उभयत्र ‘सहस्कृत’ इत्यत्र ‘शतक्रतो’।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    To Thee, Strong, Much-invoked, the Origin of all powerful objects, the Giver of knowledge and strength, do I pray. Grant Thou us heroic power I

    Translator Comment

    God grants His knowledge of the Vedas to the learned, to be imparted alike to all without distinction of caste, colour or creed. God's knowledge is meant for mankind, and not for the chosen few.

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    Meaning

    O lord of cosmic energy universally invoked, hero of infinite acts of kindness and creation, giver of sustenance and victory, we pray in silent sincerity of conscience, bring us and bless us with noble strength and vitality of body and mind and creativity of vision and imagination. (Rg. 8-98-12)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (शुष्मिन् पुरुहूत सहस्कृत) હે બળવાન અનેક રીતે આમંત્રણ કરવા યોગ્ય ઓજ-આત્મતેજ દ્વારા સાક્ષાત્કરણીય (वाजयन्तं त्वाम् उपब्रूते) તું અમારે માટે અમૃત અન્નભોગ ચાહનારની ઉપસ્તુતિઉપાસના કરું છું. (सः नः सुवीर्यं रास्व) તે તું અમારે માટે ઉત્તમ બળ-અધ્યાત્મ બળને પ્રદાન કર. (૩)

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    ত্বাং শুষ্মিন্ পুরুহূত বাজয়ন্তমুপ ব্রুবে সহস্কৃত।

    স নো রাস্ব সুবীর্যম্।।৪৭।।

    (সাম ১১৭১)

    পদার্থঃ (শুষ্মিন্) হে বলবান ঈশ্বর! (পুরুহূত) অনেকের দ্বারা স্তুতিপ্রাপ্ত (সহস্কৃত) বলদাতা তোমাকে (বাজয়ন্তং ত্বাম্) বল প্রদানের জন্য (উপ ব্রুবে) আমি স্ততি করি। (স নঃ) তুমি আমাদের জন্য (সুবীর্যম্ রাস্ব) উত্তম বল দান করো।

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে মহাবলবান, বলপ্রদাতা! আমরা তোমার উপাসক, তোমারই উপাসনা করি। তুমি কৃপা করে আমাদের আত্মিক বল প্রদান করো যাতে আমরা কাম, ক্রোধসহ সকল দুঃখদায়ক শত্রুকে জয় করতে পারি। তোমার শরণে যেন আসতে পারি। তোমার শরণে এসেই আমরা সুখী হতে পারব। তোমার শরণে না এসে আমরা না কখনো সুখী হয়েছি,  আর না হতে পারব ।।৪৭।।

     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आम्ही व आमच्या संतानांनी बलवान बनावे व शत्रूंना हरवावे. आपले चक्रवर्ती राज्य संस्थापित करावे व धर्माने प्रजेचे पालन करावे. ॥३॥

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