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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1261
    ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः स देवरातः कृत्रिमो वैश्वामित्रः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
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    ए꣣ष꣢ दे꣣वो꣢ वि꣣पा꣢ कृ꣣तो꣢ऽति꣣ ह्व꣡रा꣢ꣳसि धावति । प꣡व꣢मानो꣣ अ꣡दा꣢भ्यः ॥१२६१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    एषः꣢ । दे꣣वः꣢ । वि꣣पा꣢ । कृ꣣तः꣢ । अ꣡ति꣢꣯ । ह्व꣡रा꣢꣯ꣳसि । धा꣣वति । प꣡व꣢꣯मानः । अ꣡दा꣢꣯भ्यः । अ । दा꣣भ्यः ॥१२६१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष देवो विपा कृतोऽति ह्वराꣳसि धावति । पवमानो अदाभ्यः ॥१२६१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । देवः । विपा । कृतः । अति । ह्वराꣳसि । धावति । पवमानः । अदाभ्यः । अ । दाभ्यः ॥१२६१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1261
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 2; मन्त्र » 6
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 10; खण्ड » 1; सूक्त » 2; मन्त्र » 6
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे फिर उसी जीवात्मा का विषय है।

    पदार्थ

    (एषः) यह (विपा) मेधावी विद्वान् के द्वारा (कृतः) संस्कृत किया हुआ (पवमानः) पुरुषार्थी, अतएव (अदाभ्यः) किसी से पराजित न किया जा सकनेवाला (देवः) तेजस्वी जीवात्मा (ह्वरांसि) कुटिल कर्मों को वा कुटिल शत्रुओं को (अति) दूर करके (धावति) आगे बढ़ता है ॥६॥

    भावार्थ

    विद्वान् आचार्य के द्वारा जब मनुष्य का आत्मा संस्कृत किया जाता है, तब मनुष्य बलवान् होकर, सभी बाधाओं को पराजित करके समाज में अग्रगण्य हो जाता है ॥६॥

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    पदार्थ

    (एषः-पवमानः-अदाभ्यः-देवः) यह आनन्दधारा में प्राप्त होनेवाला अबाध्य सोम-शान्तरूप परमात्मदेव (विपा कृतः) स्तुतिवाणी द्वारा८ साक्षात् या प्रसन्न किया हुआ (ह्वरांसि-अतिधावति) क्रोधों९ या कुटिल भावों—सङ्कल्पों को१ हटाकर प्राप्त होता है॥६॥

    विशेष

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    विषय

    स्तुत प्रभु क्या करते हैं ?

    पदार्थ

    (एष: देव) = दिव्यता के पुञ्ज ये प्रभु (विपा) = स्तोता - मेधावी पुरुष से (कृतः) = अपने हृदय-स्थली में निवास कराये जाने पर (ह्वरांसि अतिधावति) = सब कुटिलताओं को खूब अच्छी प्रकार [अति पूजार्थे] धो डालते हैं [धाव्-शुद्धि] । वे प्रभु तो हैं ही (पवमानः) = पवित्र करनेवाले और वे हैं भी तो (अदाभ्यः) = किसी से न दबनेवाले । प्रभु को उसके कार्य से कोई रोक थोड़े ही सकता है ? प्रभु चाहते हैं तो अपने भक्त को पूर्ण शुद्ध कर देते हैं । प्रभु की आराधना के उपाय 'ज्ञानी बनना तथा उसके गुणों के स्तवन के द्वारा अपनी लक्ष्य-दृष्टि को न भूलना' ही है। 

    भावार्थ

    हम मेधावी स्तोता बनकर कुटिलताओं का सफ़ाया कर डालें ।

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    विषय

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    भावार्थ

    (एषः देवः) वह सुखों का दाता सर्वप्रकाशक आत्मा (पवमानः) पवित्र किया हुआ (विपा) विशेष पालना करने हारी शक्ति से (कृतः) सम्पन्न होकर (अदाभ्यः) बिना किसी रुकावट के अदम्य या अविनाशी, अमृत होकर (ह्वरांसि) समस्त कुटिल विचारों, या पापसंकल्पों, या बंधनों को (अति धावति) पार कर जाता है।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ पराशरः। २ शुनःशेपः। ३ असितः काश्यपो देवलो वा। ४, ७ राहूगणः। ५, ६ नृमेधः प्रियमेधश्च। ८ पवित्रो वसिष्ठौ वोभौ वा। ९ वसिष्ठः। १० वत्सः काण्वः। ११ शतं वैखानसाः। १२ सप्तर्षयः। १३ वसुर्भारद्वाजः। १४ नृमेधः। १५ भर्गः प्रागाथः। १६ भरद्वाजः। १७ मनुराप्सवः। १८ अम्बरीष ऋजिष्वा च। १९ अग्नयो धिष्ण्याः ऐश्वराः। २० अमहीयुः। २१ त्रिशोकः काण्वः। २२ गोतमो राहूगणः। २३ मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः॥ देवता—१—७, ११-१३, १६-२० पवमानः सोमः। ८ पावमान्यध्येतृस्तृतिः। ९ अग्निः। १०, १४, १५, २१-२३ इन्द्रः॥ छन्दः—१, ९ त्रिष्टुप्। २–७, १०, ११, १६, २०, २१ गायत्री। ८, १८, २३ अनुष्टुप्। १३ जगती। १४ निचृद् बृहती। १५ प्रागाथः। १७, २२ उष्णिक्। १२, १९ द्विपदा पंक्तिः॥ स्वरः—१, ९ धैवतः। २—७, १०, ११, १६, २०, २१ षड्जः। ८, १८, २३ गान्धारः। १३ निषादः। १४, १५ मध्यमः। १२, १९ पञ्चमः। १७, २२ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि तमेव जीवात्मविषयमाह।

    पदार्थः

    (एषः) अयम् (विपा) मेधाविना विदुषा। [विप इति मेधाविनाम। निघं० ३।१५।] (कृतः) संस्कृतः (पवमानः) पुरुषार्थी। [पवते गतिकर्मा। निघं० २।१४।] अत एव (अदाभ्यः) केनापि पराजेतुमशक्यः (देवः) तेजस्वी जीवात्मा (ह्वरांसि) कुटिलानि कर्माणि, कुटिलान् शत्रून् वा। [ह्वृ कौटिल्ये, औणादिकः असुन् प्रत्ययः।] (अति) अतीत्य (धावति) अग्रे सरति ॥६॥

    भावार्थः

    विदुषाऽऽचार्येण यदा मनुष्यस्यात्मा संस्क्रियते तदा मनुष्यः सबलो भूत्वा सर्वा अपि बाधाः पराजित्य समाजेऽग्रगण्यो जायते ॥६॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।३।२।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    This pure soul, the bestower of joy, mastered through knowledge, immortal in nature, overcomes all sinful desires.

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    Meaning

    This refulgent spirit is celebrated by sages and, being undaunted, overtakes all crookedness, purifying and sanctifying everything and every mind. (Rg. 9-3-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (एषः पवमानः अदाभ्यः देवः) એ આનંદધારારૂપમાં પ્રાપ્ત થનાર અબાધ્ય સોમ-શાન્તરૂપ પરમાત્મદેવ (विपा कृतः) સ્તુતિ વાણી દ્વારા સાક્ષાત્ કરીને અથવા પ્રસન્ન કરીને (ह्वरांसि अतिधावति) ક્રોધો-કુટિલ ભાવો-સંકલ્પો દૂર કરીને પ્રાપ્ત થાય છે. (૬)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    विद्वान आचार्याद्वारे जेव्हा माणसाचा आत्मा संस्कृत केला जातो, तेव्हा मनुष्य बलवान बनतो व सर्व अडचणींवर मात करून समाजात अग्रगण्य होतो. ॥६॥

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