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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 13
ऋषिः - प्रयोगो भार्गवः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - आग्नेयं काण्डम्
93
उ꣡प꣢ त्वा जा꣣म꣢यो꣣ गि꣢रो꣣ दे꣡दि꣢शतीर्हवि꣣ष्कृ꣡तः꣢ । वा꣣यो꣡रनी꣢꣯के अस्थिरन् ॥१३॥
स्वर सहित पद पाठउ꣡प꣢꣯ । त्वा꣣ । जाम꣡यः꣢ । गि꣡रः꣢꣯ । दे꣡दि꣢꣯शतीः । ह꣣विष्कृ꣡तः꣢ । ह꣣विः । कृ꣡तः꣢꣯ । वा꣣योः꣢ । अ꣡नी꣢꣯के । अ꣣स्थिरन् ॥१३॥
स्वर रहित मन्त्र
उप त्वा जामयो गिरो देदिशतीर्हविष्कृतः । वायोरनीके अस्थिरन् ॥१३॥
स्वर रहित पद पाठ
उप । त्वा । जामयः । गिरः । देदिशतीः । हविष्कृतः । हविः । कृतः । वायोः । अनीके । अस्थिरन् ॥१३॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 13
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 1; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 3
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 1; खण्ड » 2;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
मेरी वाणियाँ परमात्मा की महिमा का वर्णन कर रही हैं, यह कहते हैं।
पदार्थ
हे अग्ने ! हे ज्योतिर्मय परमात्मन् ! (हविष्कृतः) अपने आत्मा को हवि बनाकर आपको समर्पित करनेवाले मुझ यजमान की (जामयः) बहिनें अर्थात् बहिनों के समान प्रिय और हितकर (गिरः) स्तुति-वाणियाँ (त्वा) आपका (देदिशतीः) पुनः पुनः अधिकाधिक बोध कराती हुई (वायोः) प्राणप्रद आपके (अनीके) समीप (उप अस्थिरन्) उपस्थित हुई हैं ॥३॥ इस मन्त्र में वाणियों में जामित्व (भगिनीत्व) के आरोप से रूपकालङ्कार है ॥३॥
भावार्थ
हे परमात्मन् ! आन्तरिक यज्ञ का अनुष्ठान करने की इच्छावाला मैं श्रद्धालु होकर अपने आत्मा, मन, प्राण आदि को हवि-रूप से आपको समर्पित करता हुआ स्तुति-वाणियों से आपके गुणों का कीर्तन कर रहा हूँ। मेरे प्रेमोपहार को स्वीकार कीजिए ॥३॥
पदार्थ
(हविष्कृतः) जैसे हवियों—आहुतियों को देने वाले आहुतियाँ ‘लुप्तोपमानोपमावाचका-लङ्कारः’ (वायोः-अनीके) वायु के दल-वायुदल—बादल में (उप-अस्थिरन्) उपस्थित हो जाती हैं—पहुँच जाती हैं पुनः वृष्टिजल लाने को, वैसे ही (जामयः-देदिशतीः-गिरः) एक दूसरे के पीछे बढ़-बढ़ कर “जाम्यतिरेकनाम” [निरु॰ ४.२०] निरन्तर अग्र प्रगतिक्रम से एक दूसरे को प्रेरित करती हुई स्तुतियाँ (त्वा) ‘उप-अस्थिरन्’ तुझ परमात्मा के पास ठहर जाती हैं—पहुँच जाती हैं उपासक तक तेरे दर्शनामृत को ले आने के लिये—ले आती हैं।
भावार्थ
परमात्मन्! जैसे अहुतियाँ वायुदल—मेघस्थान में जाकर वृष्टिजल बरसाती हैं वैसे ही उपासक की हावभावभरी आन्तरिक सत्य स्तुतियाँ परस्पर सन्तति क्रम से एक दूसरे के पीछे बढ़-बढ़ कर अग्रगति करती हुईं एक दूसरे को प्रेरित करती हुईं तुझ तक पहुँच तेरे दर्शनामृत मुझ तक बरसाने में—ले आने में समर्थ हो जाती हैं, अतः मैं अध्यात्म प्रयोगकर्ता तेरे दर्शनामृत को प्राप्त करने पान करने में अवश्य समर्थ हो जाऊँगा॥३॥
विशेष
ऋषिः—भार्गवः प्रयोगः (अध्यात्म अग्नि प्रज्वलन वेत्ताओं की परम्परा में प्रयोगकर्ता उपासक)॥<br>
विषय
वायु के समान बल की प्राप्ति
पदार्थ
(हविष्कृत:)= [त्वयि एव हूयते निधीयते न तु विषयेषु इति हवि:- शुद्धमन:, दानपूर्वकमदनशीलं मनः=हु दानादनयोः तत्करोति, तस्य] दानपूर्वक अदन-भक्षण को अपना स्वभाव बना लेनेवाले पुरुष की (त्वा उप)=तेरे समीप (जामयः)= गति करनेवाली अर्थात् तेरी समीपता से कभी इधर-उधर न भटकनेवाली, (देदिशती:)= निरन्तर तेरा निर्देश करती हुई (गिरः)= वाणियाँ भक्त को (वायोः अनीके)= वायु के बल में वायु के समान शक्ति में (अस्थिरन्)= स्थित करती हैं।
जब एक मनुष्य अपने जीवन को भोगप्रधान न बनाकर अपनी शक्तियों को जीर्ण न होने देगा तो उसे वायु के समान अत्यधिक शक्ति क्यों न प्राप्त होगी? परन्तु जीवन को भोगप्रधान न बनने देने का साधन क्या है? यह साधन ही इस मन्त्र में ("उप त्वा जामयो गिर:") इन शब्दों में वर्णित हुआ है 'निरन्तर तेरे समीप प्राप्त होनेवाली वाणियाँ।' जागते-सोते, खाते-पीते, उठते-बैठते सदा हमारी वाणी उस प्रभु का स्मरण करे, तभी ऐसा सम्भव है। 'देदिशती: ' हमारी वाणियाँ उस प्रभु का ही निर्देश करती हों। शरीर से कार्य चल रहे हों, परन्तु मन व वाणी प्रभु का ध्यान व जप कर रहे हों ।
यदि इस प्रकार सब क्रियाओं को करते हुए भी हमारा सम्पर्क उस प्रभु से बना रहेगा, तो इस प्रकृष्ट योग= सम्बन्ध के कारण हम इस मन्त्र के ऋषि 'प्रयोग' बनेंगे।
भावार्थ
‘हमारा प्रत्येक कार्य प्रभु-स्मरणपूर्वक चल रहा हो ।' यही मार्ग है भोगों के शिकार न होने का और शक्ति के लाभ का।
विषय
परमेश्वर की स्तुति
भावार्थ
भा० = हे अग्ने ! ( हविष्कृत: ) = स्तुति और हव्य सम्पादन करने वाले पुरुष की ( जामय गिरः ) = वाणियां, भगिनियों के समान, एक ही स्थान पर उत्पन्न होने वाली, अथवा सत्य फलको पैदा करने वाली, ( देदिशती: ) = तेरे गुणों को प्रकट करती हुई ( वायोः ) = सर्वव्यापक, सर्वज्ञ तेरे ही ( अनीके ) = समीप ( उप अस्थिरन् ) = पहुंचती हैं, तुझ में ही घटती हैं ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - प्रयोग:
छन्द: - गायत्री
संस्कृत (1)
विषयः
मम गिरः परमात्मनो महिमानं वर्णयन्तीत्याह।
पदार्थः
हे अग्ने ज्योतिर्मय परमात्मन् ! (हविष्कृतः) हविष्प्रदातुः—स्वात्मानं हविः कृत्वा तुभ्यं प्रयच्छतो यजमानस्य मम (जामयः) भगिन्यः, भगिनीवत् प्रियाः हितकारिण्यश्चेति भावः। जामिः अन्येऽस्यां जनयन्ति जाम् अपत्यम्, जमतेर्वा स्याद् गतिकर्मणो निर्गमनप्राया भवति। निरु० ३।६। (गिरः) स्तुतिवाचः (त्वा) त्वाम् (देदिशतीः) अतिशयेन भूयो भूयो बोधयन्त्यः। दिश अतिसर्जने धातोर्यङ्लुकि शतरि स्त्रियां रूपम्। देदिशत्यः इति प्राप्ते वा छन्दसि। अ० ६।१।१०६ इति नियमेन वैकल्पिकः पूर्वसवर्णदीर्घः। (वायोः) प्राणाधायकस्य तव (अनीके) समीपे (उप अस्थिरन्) उपस्थिताः सन्ति ॥३॥ अत्र गीर्षु जामित्वारोपाद् रूपकालङ्कारः ॥३॥
भावार्थः
हे परमात्मन् ! अन्तर्यज्ञमनुष्ठातुकामोऽहं श्रद्धाप्रवणो भूत्वा स्वात्ममनः प्राणादिकं हव्यरूपेण तुभ्यं समर्पयन् स्तुतिवाग्भिस्तव गुणान् कीर्तयामि। मदीयं प्रेमोपहारं त्वं स्वीकुरु ॥३॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।१०२।१३, साम० १५७०।
इंग्लिश (4)
Meaning
O God, the hymns of a devotee, unfolding Thy traits, find a repose in Thee, and realise Thee, the Omnipresent Lord.
Meaning
Moving and vibrant adorations of the enlightened celebrant reach you and stay by you in the movements of air in the middle regions. (Rg. 8-102-13)
Translation
(0 Lord : All the words of Thy devotees glorifying Thee
i and creating wonderful effect, come to Thee who art Omniscient and Almighty.
Comments
जामयः--अदूभुतप्रभावोत्पादिकाः जनी-प्रादुभावे ।
बायोः-चा-गतिगन्धनयोरितिधातोः गतिः-ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्च तस्मात् सर्वज्ञस्य सर्वशक्तिमतः परमेश्वरस्य |
Translation
The sister hymns, full of divine wisdom rise to you proclaiming your glories, they stand kindling you in the presence of cosmic vitality. (Cf. S. 1570; Rv VIII. 102.13)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ: (हविष्कृतः) જેમ હવિ = આહુતિઓને આપનારની આહુતિઓ (वायोः अनीके) વાયુના દળ = વાદળાઓમાં (उप अस्थिरन्) ઉપસ્થિત થાય છે. અર્થાત્ ફરી વર્ષાનું જળ લાવવા માટે પહોંચી જાય છે; તેમ (जामयः देदिशतीः गिरः) એક પછી બીજી ગતિ કરતી , નિરંતર આગળ પ્રગતિ ક્રમથી એક બીજીને પ્રેરિત કરતી સ્તુતિઓ (त्वा) તારા પરમાત્મામાં સ્થિત થાય છે - પહોંચી જાય છે અને ઉપાસક સુધી તારા દર્શનામૃતને લાવવા માટે પુનઃ લઈ આવે છે . (૩)
भावार्थ
ભાવાર્થ : પરમાત્મન્ જેમ આહુતિઓ વાયુદળ - વાદળાઓમાં જઈને વૃષ્ટિ જળને વરસાવે છે , તેમ જ ઉપાસકની હાવ ભાવપૂર્ણ આંતરિક સત્ય સ્તુતિઓ પરસ્પર નિરંતર ક્રમથી એક પછી બીજી બધી ને અગ્રગતિ કરતી એક બીજી ને પ્રેરિત કરીને , તારા સુધી પહોંચીને , તારા દર્શનામૃતને મારા સુધી વરસાવવામાં લઈ આવવામાં સમર્થ બને છે . તેથી હું આધ્યાત્મ પ્રયોગ કરતા તારા દર્શના મૃત ને પ્રાપ્ત કરવા - પાન કરવામાં અવશ્ય સમર્થ બની શકું છું . (૩)
उर्दू (1)
Mazmoon
سبھی دُعائیہ کلمات تیرا اِشارہ دے رہے ہیں!
Lafzi Maana
میرے معبود اگنے پرمیشور! (ہوّش کرتا) عابد، اُپاسک کی دی ہوئی آہُوتی، سچّے دل سے دیا ہوا ساتوک دان جو آہوتی کی طرح سب کا کلیان کرنے والی ہے اور (گِرہ) سُتتی پرارتھنا کی بانیاں (جامیہ) ایک ساتھ پیدا ہونے والی بہنوں کے سمان پیاری (تو ادے دِشتی) آپ کے یتھارتھ (ہُوبہو) سورُوپ کو بتلاتی یا اشارہ کرتی ہوئیں (وایو) وایو کی طرح پران پریہ پرمیشور! آپ کے پاس (رِینکے) اُپستھت (حاضر) ہیں، سویکار ہو۔
Tashree
بھگتی رس میں ڈوبی ہوئی پرارتھنائیں، دُعائیں سبھی وایو منڈل کی لہروں کے ساتھ سروویاپک مُحیطِ کُل پرمیشور کو پہنچ جاتی ہیں۔
मराठी (2)
भावार्थ
हे परमात्मा! आंतरिक यज्ञाचे अनुष्ठान करण्याचा इच्छुक मी श्रद्धाळू बनून आपला आत्मा, मन, प्राण इत्यादींना हवि-रूपाने तुला समर्पित करून स्तुति-वाणीने तुझ्या गुणांचे कीर्तन करत आहे. माझा प्रेमोपहार स्वीकार कर ॥३॥
विषय
माझी वाणी परमेश्वराचा महिमा सांगत आहे, असे सांगतात.
शब्दार्थ
हे (अग्ने) ज्योतिर्मय परमात्मन् (हविष्कृतः) आपल्या आत्म्याचा हवी करून आपणांस समर्पित करणाऱ्या अशा माझ्या (जामदः) बहिणी म्हणजे बहिणीप्रमाणे मला प्रिय आणि माझे हित करणाऱ्या (गिरः) स्तुती वाणी (त्वा) आपला (देदिशती:) पुन्हा पुन्हा बोध वा अनुभव करविते. स्तुती करीत करीत माझी वाणी (वाया:) प्राणप्रद अशा आपल्या (अग्नीक) जनरू (उपअरिचरन्) उपस्थित झाली आहे. (ईश्वराची स्तुती व गुणांचे चिंतन करीत करीत उपासक ईश्वरमय झाला आहे. ।।३।।
भावार्थ
हे परमात्मन्, आंतरिक यज्ञाचे अनुष्ठान करण्याचा इच्छुक मी श्रद्धाश्रय होऊन माझ्या आत्मा, मन, प्राण आदींना हवी करून आपल्यासमोर समर्पित करीत आहे. तसेच स्तुतिपूरित वाणीद्वारे आपले गुणगान करीत आहे. कृपा करून माझ्या या प्रेमोपहाराचा स्वीकार करा ।।३।।
विशेष
वाणीवर भगिनीत्वाचा आरोप केल्यामुळे या मंत्रात रूपकालंकार आहे. ।।३।।
तमिल (1)
Word Meaning
யக்ஞம் செய்பவர்களின் [1] சகோதரிகளான துதிகள் உங்கள் குணங்களை நோக்கி [2] (வாயுவின்) முன் வருகிறார்கள்.
FootNotes
[1] சகோதரிகளான - அன்புடனான [2] வாயுவின் - வ்யாபகனான உன்
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