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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1348
    ऋषिः - मेधातिथिः काण्वः देवता - तनूनपात् छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    68

    म꣡धु꣢मन्तं तनूनपाद्य꣣ज्ञं꣢ दे꣣वे꣡षु꣢ नः कवे । अ꣣द्या꣡ कृ꣢णुह्यू꣣त꣡ये꣢ ॥१३४८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म꣡धु꣢꣯मन्तम् । त꣣नूनपात् । तनू । नपात् । यज्ञ꣢म् । दे꣣वे꣡षु꣢ । नः꣣ । कवे । अ꣡द्य꣢ । अ꣣ । द्य꣢ । कृ꣣णुहि । ऊत꣡ये꣢ ॥१३४८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    मधुमन्तं तनूनपाद्यज्ञं देवेषु नः कवे । अद्या कृणुह्यूतये ॥१३४८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    मधुमन्तम् । तनूनपात् । तनू । नपात् । यज्ञम् । देवेषु । नः । कवे । अद्य । अ । द्य । कृणुहि । ऊतये ॥१३४८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1348
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 11; खण्ड » 1; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    आगे तनूनपात् परमेश्वर से प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे (तनूनपात्) देहधारियों को उठानेवाले, (कवे) दूरदर्शी प्रज्ञावाले परमात्मन् ! आप (अद्य) आज (ऊतये) रक्षा के लिए (नः) हमारे (देवेषु) विद्वानों में (यज्ञम्) त्याग-भावना को (कृणुहि) उत्पन्न करो ॥२॥

    भावार्थ

    राष्ट्रवासियों का जीवन यदि यज्ञमय वा त्यागपूर्ण हो तो राष्ट्र उन्नति की सबसे ऊँची पैढ़ी पर पहुँच सकता है ॥२॥

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    पदार्थ

    (तनूनपात् कवे) हे अपनी देहरूप आत्मा४ को न गिराने वाले—अमर बनाने वाले क्रान्तदर्शी परमात्मन्! तू (नः) मुझ आत्मयाजी के (मधुमन्तं यज्ञम्) आत्मा वाले५ स्वात्मसमर्पण वाले यज्ञ को (अद्य) आज—इसी जीवन में (ऊतये) आत्मरक्षा के लिये—अमरता के लिये (देवेषु कृणुहि) अमर-मुक्त आत्माओं में कर—मुक्त आत्मा बनने में सफल कर॥२॥

    विशेष

    ऋषिः—मेधातिथिः (मेधा से परमात्मा में अतन गमन प्रवेश करने वाला उपासक)॥ देवता—तनूनपात् (आत्मा को पतित न करने वाला किन्तु अमर बनाने वाला)॥ छन्दः—गायत्री॥<br>

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    विषय

    मधुमान् यज्ञ

    पदार्थ

    हे (कवे) = क्रान्तदर्शिन् ! वेदज्ञान द्वारा सब विद्याओं का उपदेश देनेवाले प्रभो ! (तनूनपात्) = शरीर को नष्ट न होने देनेवाले प्रभो ! [प्रभु-स्मरण से आचार-विचार की पवित्रता के द्वारा दीर्घायुष्य प्राप्त होता है।] आप (अद्य) = आज ही, अर्थात् (अविलम्ब) = बिना किसी देर के (नः ऊतये) = हमारी रक्षा के लिए, अशुभ विचारों और व्यवहारों से बचाने के लिए हमें (देवेषु) = विद्वानों के सम्पर्क में (मधुमन्तं यज्ञम्) = मधुवाले ज्ञानयज्ञ को (कृणुहि) = सिद्ध कीजिए ।

    'विज्ञान का अध्ययन करते हुए प्रभु की महिमा का स्मरण कर ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति होती है, और यह ब्रह्मज्ञान व ब्रह्म का ध्यान हमारे जीवनों को पवित्र व मधुर बना देता है 'ये ही यज्ञ 'मधुमान् यज्ञ' कहलाते हैं । प्रभुकृपा से देवों के सम्पर्क में ये यज्ञ हमारे जीवनों में सदा चलते रहें जिससे हम आसुर वृत्तियों के आक्रमण से बचे रहें ।

    भावार्थ

    प्रभु हमें विद्वानों का सम्पर्क प्राप्त कराएँ — उनके सम्पर्क में हम सदा ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील हों ।

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    (कवे) मेधाविन् ! हे (तनूनपात्) शरीर के छोटे से छोट भागों की रक्षा करने हारे ! या देह को न गिरने देने वाले प्राणस्वरूप (नः) हमारे (यज्ञं) जीवनमय राष्ट्रमय और दान आदि सत्कर्मरूप यज्ञ को (अद्य) आज के समान सदा, (नः) हमारी (ऊतये) रक्षा के निमित्त (देवेषु) विद्वान् पुरुषों इन्द्रियगण और दश प्राणों में (कृणुहि) सम्पादित करें।

    टिप्पणी

    ‘कृणुहि वीतये’ इति ऋ०।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१, ६ मेधातिथिः काण्वः। १० वसिष्ठः। ३ प्रगाथः काण्वः। ४ पराशरः। ५ प्रगाथो घौरः काण्वो वा। ७ त्र्यरुणत्रसदस्यू। ८ अग्नयो धिष्ण्या ऐश्वरा। ९ हिरण्यस्तूपः। ११ सार्पराज्ञी। देवता—१ इध्मः समिद्धो वाग्निः तनूनपात् नराशंसः इन्द्रश्चः क्रमेण। २ आदित्याः। ३, ५, ६ इन्द्रः। ४,७-९ पवमानः सोमः। १० अग्निः। ११ सार्पराज्ञी ॥ छन्दः-३-४, ११ गायत्री। ४ त्रिष्टुप। ५ बृहती। ६ प्रागाथं। ७ अनुष्टुप्। ४ द्विपदा पंक्तिः। ९ जगती। १० विराड् जगती॥ स्वरः—१,३, ११ षड्जः। ४ धैवतः। ५, ९ मध्यमः। ६ गान्धारः। ८ पञ्चमः। ९, १० निषादः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ तनूनपात् परमेश्वरः प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    हे (तनूनपात्) देहधारिणामुन्नायक। [तनूः देहान् देहधारिणो न पातयतीति तनूनपात्।] (कवे) क्रान्तप्रज्ञ परमात्मन् ! त्वम् (अद्य) अस्मिन् दिने (ऊतये) रक्षायै (नः) अस्माकम् (देवेषु) विद्वत्सु (यज्ञम्) त्यागभावनाम् (कृणुहि) उत्पादय ॥२॥२

    भावार्थः

    राष्ट्रवासिनां जीवनं यदि यज्ञमयं त्यागपूर्णं वा भवेत् तर्हि राष्ट्रमुन्नतेश्चरमसोपानमारोहेत् ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O sage, the saviour of the body from decay, accomplish the sweetest Yajna of our life, for our protection, through the learned persons!

    Translator Comment

    $ Acharya Shakpuni interprets तनूनपात् as fire.

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    Meaning

    Agni, self-refulgent omniscience, lord self- existent and preserver of the body, poetic power of creation and illumination, let the yajna rise to the heights of joy among the divinities of nature and bring the honey-sweets of bliss to the dedicated people of brilliance among us. (Rg. 1-13-2)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (तनूनपात् कवे) હે તારા દેહરૂપ આત્માનું પતન ન કરાવનાર-અમર બનાવનાર ક્રાન્તદર્શી પરમાત્મન્ ! તું (नः) મને આત્મયાજી-યજ્ઞ કરનારના (मधुमन्तं यज्ञम्) આત્માવાળા સ્વાત્મ સમર્પણવાળા યજ્ઞને (अद्य) આજ-આ જીવનમાં જ (ऊतये) આત્મ રક્ષાને માટે-અમરતાને માટે (देवेषु कृणुहि) અમર-મુક્ત આત્માઓમાં કર-મુક્ત આત્મા થવામાં સફળ બનાવ. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राष्ट्रवासी लोकांचे जीवन जर यज्ञमय किंवा त्यागपूर्ण असेल तर राष्ट्र उन्नतीच्या सर्वात उंच सोपानावर पोचू शकते. ॥२॥

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