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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1504
    ऋषिः - अग्निस्तापसः देवता - विश्वे देवाः छन्दः - अनुष्टुप् स्वरः - गान्धारः काण्ड नाम -
    37

    प्र꣡ स विश्वे꣢꣯भिर꣣ग्नि꣡भि꣢र꣣ग्निः꣡ स यस्य꣢꣯ वा꣣जि꣡नः꣢ । त꣡न꣢ये तो꣣के꣢ अ꣣स्म꣢꣫दा स꣣म्य꣢꣫ङ्वाजैः꣢ प꣡री꣢वृतः ॥१५०४

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । सः । वि꣡श्वे꣢꣯भिः । अ꣣ग्नि꣡भिः꣢ । अ꣣ग्निः꣢ । सः । य꣡स्य꣢꣯ । वा꣣जि꣡नः꣢ । त꣡नये꣢꣯ । तो꣣के꣢ । अ꣣स्म꣢त् । आ । स꣣म्य꣢ङ् । वा꣡जैः꣢꣯ । प꣡री꣢꣯वृतः । प꣡रि꣢꣯ । वृ꣣तः ॥१५०४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र स विश्वेभिरग्निभिरग्निः स यस्य वाजिनः । तनये तोके अस्मदा सम्यङ्वाजैः परीवृतः ॥१५०४


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सः । विश्वेभिः । अग्निभिः । अग्निः । सः । यस्य । वाजिनः । तनये । तोके । अस्मत् । आ । सम्यङ् । वाजैः । परीवृतः । परि । वृतः ॥१५०४॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1504
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 7; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » ; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 14; खण्ड » 2; सूक्त » 1; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में पुनः वही विषय है।

    पदार्थ

    (अग्निः) अग्नि नाम से प्रसिद्ध जगदीश्वर (सः) वह है, (यस्य) जिसके रचे हुए (वाजिनः) बलवान् मन, बुद्धि, प्राण, आदि और सूर्य, चन्द्र आदि हैं। (सः) वह (विश्वेभिः अग्निभिः) अपनी रची हुई आग, बिजली, सूर्य आदि सब अग्नियों के कारण (प्र) प्रशंसनीय बना हुआ है। (वाजैः) बलों से (परीवृतः) घिरा हुआ वह (अस्मत्) हममें और (तोके तनये) हमारे पुत्र, पौत्र आदियों में (सम्यङ्) भली-भाँति (आ) आये ॥२॥

    भावार्थ

    न केवल हम, प्रत्युत हमारी भावी सन्ततियाँ भी अध्यात्ममार्ग की पथिक होवें ॥२॥

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    पदार्थ

    (सः-अग्निः) वह ज्ञानप्रकाशस्वरूप परमात्मा (यस्य-वाजिनः) जिस के अमृत अन्नभोगभागी उपासक हैं (विश्वेभिः अग्निभिः) उन सब उपासक ऋषियों के समान (अस्मत् ‘अस्माभिः’ तनये ‘तनयेभिः’ तोके ‘तोकेभिः’) हम६ पुत्रों पौत्रों द्वारा (प्र) प्रार्थित हुआ७ (वाजैः सम्यक् परीवृतः) अमृत अन्नभोग से भरपूर हुआ प्रदाता बना रहे॥२॥

    विशेष

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    विषय

    कौन अग्नि बना ?

    पदार्थ

    ‘गत मन्त्र में दिये गये प्रभु के आदेश का पालन करके कौन ठीक अग्नि बना' इसका वर्णन प्रस्तुत मन्त्र में है। प्रभु कहते हैं कि - (सः) = वह (विश्वेभिः अग्निभिः) = सब अग्नियों के द्वारा - माता, पिता, आचार्य व अतिथियों के द्वारा (प्र अग्निः) = सचमुच प्रकृष्ट अग्नि बना है, (सः) = वह ही (यस्य वाजिन:) = जिस शक्तिशाली के [वाज-strength] - सहस्कृत के – (तनये तोके) = पुत्रों व पौत्रों में भी — सभी (आ) = सर्वथा (अस्मत्) = हमारी ओर (सम्यङ्) = सम्यक्तया आनेवाले होते हैं । = वस्तुत: अग्नि तो वही बना – उन्नत तो वही हुआ— जो वेद - ज्ञान को प्राप्त करके उसके अनुष्ठान से वाजी व 'सहस्कृत' = बलवान् बना । वह स्वयं ही नहीं अपितु उसके पुत्र व पौत्र भी, अर्थात् वंशज भी यदि वेदवाणी का अध्ययन करते हुए प्रभु की ओर चलनेवाले बने हैं तभी यह कहना ठीक होगा कि यह व्यक्ति सचमुच अग्नि बना है।

    यही व्यक्ति (वाजैः) = वाजों से (परीवृतः) = सब ओर से आवृत - लिपटा हुआ— होता है । वाज= त्याग, शक्ति व धन से यह संयुक्त होता है । इसके जीवन में 'त्याग' ब्राह्मणत्व को, ‘शक्ति’ क्षत्रियत्व को तथा ‘ धन’ वैश्यत्व को सूचित करता है। तीनों ही दिशाओं में अपने को उन्नत करता हुआ यह सचमुच प्रकृष्ट अग्नि है - इसने अपने जीवन में समविकास किया है |

    भावार्थ

    अपने जीवन को हम सभी वाजों से - त्याग, शक्ति व धन से - संयुक्त करके उत्तम अग्नि बनें ।

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    विषय

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    भावार्थ

    (यस्य) जिस (वाजिनः) ज्ञान और बल से सम्पन्न परमेश्वर की (विश्वेभिः) समस्त (अग्निभिः) अग्नि के समान तेजस्वी सूर्य आदि लोकों तथा विद्वानों से (प्र) प्रतिष्ठा होती है। (सः अग्निः) वह ही ज्ञानवान् होने से परम अग्नि है। और वही (सम्यङ्) उत्तम रीति से सर्वत्र पूजनीय होकर (वाजैः) ज्ञान और कर्म सामर्थ्यों और ऐश्वर्यों से (परिवृतः) युक्त हुआ (अस्मत्) हमारे (तनये) पुत्र और (तोक) पौत्रों में भी (आ) पूजा को प्राप्त हो।

    टिप्पणी

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    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१,९ प्रियमेधः। २ नृमेधपुरुमेधौ। ३, ७ त्र्यरुणत्रसदस्यू। ४ शुनःशेप आजीगर्तिः। ५ वत्सः काण्वः। ६ अग्निस्तापसः। ८ विश्वमना वैयश्वः। १० वसिष्ठः। सोभरिः काण्वः। १२ शतं वैखानसाः। १३ वसूयव आत्रेयाः। १४ गोतमो राहूगणः। १५ केतुराग्नेयः। १६ विरूप आंगिरसः॥ देवता—१, २, ५, ८ इन्द्रः। ३, ७ पवमानः सोमः। ४, १०—१६ अग्निः। ६ विश्वेदेवाः। ९ समेति॥ छन्दः—१, ४, ५, १२—१६ गायत्री। २, १० प्रागाथं। ३, ७, ११ बृहती। ६ अनुष्टुप् ८ उष्णिक् ९ निचिदुष्णिक्॥ स्वरः—१, ४, ५, १२—१६ षड्जः। २, ३, ७, १०, ११ मध्यमः। ६ गान्धारः। ८, ९ ऋषभः॥

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनः स एव विषय उच्यते।

    पदार्थः

    (अग्निः) अग्निनाम्ना ख्यातो जगदीश्वरः (सः) असौ वर्तते (यस्य) यद्रचिताः (वाजिनः) बलवन्तो मनोबुद्धिप्राणादयः सूर्यचन्द्रादयश्च विद्यन्ते। (सः) असौ (विश्वेभिः अग्निभिः) स्वरचितैः समस्तैः वह्निविद्युत्सूर्यादिभिः अग्निभिः कारणैः (प्र) प्रशंसनीयोऽस्ति। (वाजैः) बलैः (परीवृतः) पर्यावृतः सः (अस्मत्) अस्मासु। [‘सुपां सुलुक्०’ अ० ७।१।३९ इति विभक्तेर्लुक्।] (तोके तनये) अस्माकं पुत्रपौत्रादिषु च (सम्यङ्) समीचीनं यथा स्यात् तथा (आ) आगच्छेत् ॥२॥

    भावार्थः

    न केवलं वयं प्रत्युतास्माकं भाविसन्ततयोऽप्यध्यात्मपथपथिका भवेयुः ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    God, the Embodiment of knowledge and. action. Who is valued by all the sages, is the Supreme Light. May He, nicely honoured universally, the Lord of the forces of knowledge and action, be worshipped by our sons and grandsons.

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    Meaning

    May that Agni, along with all other universal forms of heat, whose living versions are passion, creativity and heroic expression, come fully girt about with power, passion and spirit of advancement and bless us and our kith and kin.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (सः अग्निः) તે જ્ઞાન પ્રકાશ સ્વરૂપ પરમાત્મા (यस्य वाजिनः) જેના અમૃત અન્નભોગભાગી ઉપાસક છે. (विश्वेभिः अग्निभिः) તે સમસ્ત ઉપાસકો ઋષિઓની સમાન (अस्मत् "अस्माभिः" तनये "तनयेभिः" तोके "तोकेभिः") અમે તનયે-પુત્રો, તોકે-પૌત્રો દ્વારા (प्र) પ્રાર્થિત થયેલા (वाजैः सम्यक् परिवृतः) અમૃતભોગથી ભરપૂર થઈને પ્રદાતા બની રહે. (૨)

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    केवळ आम्हीच नव्हे तर आमची भावी संतती ही अध्यात्म मार्गाची पथिक बनावी. ॥२॥

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