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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 160
    ऋषिः - मधुच्छन्दा वैश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    32

    सु꣣रूपकृत्नु꣢मू꣣त꣡ये꣢ सु꣣दु꣡घा꣢मिव गो꣣दु꣡हे꣢ । जु꣣हूम꣢सि꣣ द्य꣡वि꣢द्यवि ॥१६०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सु꣣रूपकृत्नुम् । सु꣣रूप । कृत्नु꣢म् । ऊ꣣त꣡ये꣢ । सु꣣दु꣡घा꣢म् । सु꣣ । दु꣡घा꣢꣯म् । इ꣣व गोदु꣡हे꣢ । गो꣣ । दु꣡हे꣢꣯ । जु꣣हूम꣡सि꣣ । द्य꣡वि꣢꣯द्यवि । द्य꣡वि꣢꣯ । द्य꣣वि ॥१६०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सुरूपकृत्नुमूतये सुदुघामिव गोदुहे । जुहूमसि द्यविद्यवि ॥१६०॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सुरूपकृत्नुम् । सुरूप । कृत्नुम् । ऊतये । सुदुघाम् । सु । दुघाम् । इव गोदुहे । गो । दुहे । जुहूमसि । द्यविद्यवि । द्यवि । द्यवि ॥१६०॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 160
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 2; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 2; मन्त्र » 6
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 2; खण्ड » 5;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में इन्द्र नाम से परमात्मा, राजा और आचार्य को बुलाया जा रहा है।

    पदार्थ

    हम उपासक लोग, प्रजाजन अथवा शिष्यगण (सुरूपकृत्नुम्) सृष्ट्युत्पत्ति-स्थिति आदि सुरूप कर्मों के कर्ता परमात्मा को, प्रजापालन-राष्ट्रनिर्माण आदि सुरूप कर्मों के कर्ता राजा को और विद्याप्रदान-सदाचारनिर्माण आदि सुरूप कर्मों के कर्ता आचार्य को (ऊतये) क्रमशः उपासना के फल की प्राप्ति के लिए, राष्ट्ररक्षा के लिए और विद्याप्राप्ति के लिए (द्यविद्यवि) प्रतिदिन (जुहूमसि) पुकारते हैं, (गोदुहे) गाय दुहनेवाले गोदुग्ध के इच्छुक मनुष्य के लिए (सुदुघाम् इव) जैसे दुधारू गाय को बुलाया जाता है ॥६॥ इस मन्त्र में श्लेष तथा उपमालङ्कार है ॥६॥

    भावार्थ

    जैसे दूध के इच्छुक लोग दूध प्राप्त करने के लिए दुधारू गाय को बुलाते हैं, वैसे ही उपासक लोग उपासनाजन्य आनन्द की प्राप्ति के लिए परमात्मा को, प्रजाजन राष्ट्र की रक्षा के लिए राजा को और शिष्यजन विद्याग्रहण के लिए आचार्य को प्रतिदिन सत्कारपूर्वक बुलाया करें ॥६॥

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    पदार्थ

    (गोदुहे सुदुघाम्-इव) गौ का दूध दूहने के लिये सुगमता से दूहने योग्य गौ को दूहता है ऐसे (ऊतये) जीवनरक्षा—आत्मस्वरूप प्राप्ति के लिये (सुरूपकृत्नुम्) शोभन रूप करने वाले—आत्मा को संस्कृत करने वाले परमात्मा को “परं ज्योतिरुपसम्पद्य स्वेन रूपेणाभिनिष्पद्यते” [छान्दो॰ ८.३.४] (द्यवि द्यवि) प्रतिदिन (जुहूमसि) हम अपने अन्दर आदान करें—धारण करें।

    भावार्थ

    सुगमता से दूहने योग्य को दूध प्राप्ति के लिये जैसे गौ को दूहा करते हैं ऐसे ही आत्मस्वरूप को शोभन बनाने वाले परमात्मा को अपनी आत्मरूपता प्राप्ति के लिये प्रतिदिन अपने अन्दर धारण करना चाहिए॥६॥

    विशेष

    ऋषिः—मधुच्छन्दाः (मीठी इच्छा वाला मधुपरायण जन)॥<br>

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    विषय

    मैं उस ग्वाले की उत्तम गौ बनूँ

    पदार्थ

    पवित्र मधुर इच्छाओंवाला ('मधुच्छन्दा:) = सभी के प्रति अत्यन्त स्नेह की भावनावाला (‘वैश्वामित्रः') = इस मन्त्र का ऋषि है। यह कहता है कि हे प्रभो! (ऊतये) = अपनी रक्षा के लिए (द्यविद्यवि) = प्रतिदिन (जुहूमसि) = हम आपको पुकारते हैं। आप (सुरूपकृत्लुम्) = उत्तम रूपों के निर्माता हैं। आपके स्मरण व आराधना से शरीर नीरोग, मन विशाल और बुद्धि तीव्र होती है । शरीर, मन व बुद्धि तीनों ही सुरूप हो जाते हैं। इन सुरूप अङ्ग-प्रत्यङ्गों को प्राप्त करके हम (गोदुहे) = ग्वाले के रूपवाले आपके लिए (सुदुघाम् इव) = उत्तम दूही जानेवाली गौ के समान हो जाते हैं।

    हम अपने मानव जीवन की रक्षा इसी प्रकार कर सकते हैं कि शरीर, मन व बुद्धि को सुन्दर बनाएँ, परन्तु इन्हें सुन्दर बनाना प्रभु - कृपा से ही सम्भव है। इन्हें सुन्दर बनाकर मनुष्य सुदुघा गौ के समान बन जाता है, जिस गौ का ग्वाला प्रभु ही होता है । वेद में ‘गौ’ मानव जीवन के साथ जोड़ - सी दी गई है। वह हमारी माता बन गई है। हमारी शारीरिक नीरोगता, मानस विशालता व बुद्धि- सूक्ष्मता का निर्माण करनेवाली यह गौ ही है। इस गौ के दुग्ध से प्रभु ने हमारे शरीर, मन व बुद्धि को सुन्दर बनाने की व्यवस्था की है। ‘करनेवाले प्रभु ही हैं, मैं कौन ?' इस भावना को जाग्रत् करनेवाला ही सुदुघा गौ के समान बना रहता है।

    भावार्थ

    प्रभु गोपाल हैं, हम उनकी उत्तम गौएँ बनें ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( गोदुहे ) = दूध के दोहने के लिये जिस प्रकार ( सुदुघाम् ) = उत्तम रूप से दूध देने वाली गाय को प्राप्त किया जाता है उसी प्रकार ( सुरूपकृत्नुम् ) = उत्तम ज्ञान और कर्म सम्पादन करने वाले इन्द को ( ऊतये ) = अपने को पापाचरण से बचाने के लिये ( द्यवि-द्यवि १ ) = प्रतिदिन ( जुहूमसि ) = हम स्मरण करते और उसकी स्तुति करते हैं।

    टिप्पणी

    १६० - द्यवि द्यवि इति अहर्नाम ।  नि० १।२।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - मधुच्छन्दा:।

    देवता - इन्द्रः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथेन्द्रनाम्ना परमात्मा नृपतिराचार्यश्चाहूयते।

    पदार्थः

    वयम् उपासकाः प्रजाजनाः शिष्याः वा (सुरूपकृत्नुम्२) सुरूपाणां जगद्धारणादिकर्मणां कर्त्तारम् इन्द्रं परमात्मानम्, सुरूपाणां प्रजापालनराष्ट्रनिर्माणादिकर्मणां कर्त्तारम् इन्द्रं राजानम्, सुरूपाणां विद्याप्रदानाचारनिर्माणादिकर्मणां कर्त्तारम् इन्द्रम् आचार्यं वा। कृत्नु इत्यत्र कृ धातोः कृहनिभ्यां क्त्नुः। उ० ३।३० इति क्त्नुः प्रत्ययः. (ऊतये) उपासनाफलावाप्तये, राष्ट्ररक्षणाय, विद्याप्राप्तये वा। अव धातोरर्थेषु अवाप्तिः रक्षणम् अवगमश्चापि पठिताः। (द्यविद्यवि) दिनेदिने। नित्यवीप्सयोः अ० ८।१।४ अनेन द्वित्त्वम्। द्यविद्यवि इत्यहर्नाम। निघं० २।३। (जुहूमसि) आह्वयामः। ह्वेञ् स्पर्धायां शब्दे च इति धातोः ‘बहुलं छन्दसि’ अ० २।४।७६ अनेन शपः स्थाने श्लुः। ‘अभ्यस्तस्य च’ अ० ६।१।३३ अनेन सम्प्रसारणम्। सम्प्रसारणाच्च अ० ६।१।१०८ अनेन पूर्वरूपम् हलः अ० ६।४।२ इति दीर्घः। इदन्तो मसि अ० ७।१।४६ इति मसेरिकारागमः। (गोदुहे) गोर्दोग्ध्रे दुग्धादिकमिच्छवे मनुष्याय (सुदुघाम् इव) यथा दोग्ध्रीं गाम् आह्वयन्ति तद्वत् ॥६॥३ अत्र श्लेष उपमालङ्कारश्च ॥६॥

    भावार्थः

    यथा दुग्धेच्छुभिर्दुग्धप्राप्तये पयस्विनी गौराहूयते तथैव उपासका उपासनाजन्यानन्दप्राप्तये परमात्मानं, प्रजाजना राष्ट्ररक्षणाय राजानं, शिष्यजनाश्च विद्याग्रहणायाचार्यं प्रतिदिनं सत्कारपूर्वकमाह्वयन्तु ॥६॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० १।४।१, अथ० २०।५७।१, ६८।१, साम० १०८७। २. सुरूपकृत्नुम्। शोभनस्य वृत्रवधादेः कर्मणः कर्त्तारमिन्द्रम्—इति वि०। सुरूपाणां कर्मणां कर्तारम् इन्द्रम्—इति भ०। ३. ऋग्भाष्ये दयानन्दर्षिर्मन्त्रमिमं परमेश्वरपक्षे व्याख्यातवान्।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Just as a good cow calls him who milks, so we for safety from sin invoke day by day God, the Rewarder of our actions.

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    Meaning

    Just as the generous mother cow is milked for the person in need of nourishment, so everyday for the sake of light and knowledge we invoke and worship Indra, lord omnipotent of light and life, maker of beautiful forms of existence and giver of protection and progress. (Rg. 1-4-1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ


    પદાર્થ : (गोदुहे सुदुघाम् इव) જેમ ગાયના દૂધને દોહવા માટે સરળતાથી દોહવા યોગ્ય ગાયને દોહે છે , તેમ (ऊतये) જીવનરક્ષા - આત્મસ્વરૂપ પ્રાપ્તિને માટે (सुरूपकृत्नुम्) ઉત્તમ રૂપના કર્તા - આત્માને સંસ્કૃત કરનાર પરમાત્માને (द्यवि द्यवि) પ્રતિદિન (जुहूमसि) અમે પોતાની અંદર આદાન કરીએ -  ધારણ કરીએ. (૬)

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : જેમ સરળતાથી દોહવા યોગ્ય ગાયને દૂધ પ્રાપ્તિને માટે દોહે છે , તેમજ આત્મસ્વરૂપને શ્રેષ્ઠ બનાવનાર પરમાત્માને પોતાના આત્મરૂપથી પ્રાપ્તિ માટે પ્રતિદિન પોતાની અંદર ધારણ કરવો જોઈએ. (૬)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    رکھشا کیلئے بھگوان کی شرن

    Lafzi Maana

    لفظی معنیٰ: (اِوگودُ ہے) جیسے دودھ کا خواہش مند گئو دوہنے کے لئے (سُودُدھام) سُولبھ دوہنے والی سُرلی گئو کو دوہ کر اپنی رکھشا کر لیتا ہے اور اچھا پُورن، ویسے ہم لوگ بھی (دئیوی دئیوی) روزانہ دِن دِن (اُوتیئے) اپنی رکھشا اور ضروریات کی پُورتیک ے لئے (جُوہُومسی) پرمیشور کی شرن کو شردھا کے ساتھ پراپت کریں، جو پرمیشور کہ (سرُوپ کِرت نُم) مختلف خوبصورت شکلوں کو بناتا رہتا ہے اور اپنے اُپاسک کی بھی رکھشا میں تت پر رہتا ہے۔

    Tashree

    سُرلی گئو کو دوہ جیسے دُودھ پی ہوتا بھرن، بھگت کی رکھشا میں اِیشور رہتے تت پر رات دن۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जसे, दुधाची इच्छा बाळगणारे लोक, दूध प्राप्त करण्यासाठी दुधारू गाईजवळ जातात, तसेच उपासक लोकांनी उपासनाजन्य आनंदाच्या प्राप्तीसाठी परमात्म्याला, प्रजेने राष्ट्र रक्षणासाठी राजाला व शिष्यगणांनी विद्याग्रहणासाठी आचार्याला प्रत्येक दिनी सत्कारपूर्वक बोलवावे ॥६॥

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    विषय

    आता इन्द्र नावाने परमेश्वर, नृपती आणि आचार्य यांचे आवाहन केले जात आहे.

    शब्दार्थ

    आम्ही उपासक गण, आम्ही प्रजानन वा आम्ही शिष्यगण (सुरूप कृलुम्) सृष्टि उत्पत्ती स्थिती आदी सुरूप कर्मांचा कर्ता परमेश्वराला / प्रजापालन, राष्ट्रनिर्माण आदी सुरूप कर्मांचा कर्त्य राजाला / आणि विद्याप्रदान, सदाचार निर्माण आदी सुरूप कर्मांचा कर्ता आचार्याला (ऊतये) उपासनेच्या फळाच्या प्राप्तीसाठी / राष्ट्र रक्षणासाठी / आणि विद्याप्राप्तीसाठ ी(घविघवि) प्रतिदिनी (जुहूमसि) बोलावत आहोत. जे (गोदुहे) गायींच्या दुग्ध दोहनासाठी इच्छुक मनुष्य (सुदुधाम् इव) दुधाळ गायीला हाक मारून बोलावतो (तद्वत आम्ही परमेश्वर, राजा व आचार्य यांना बोलावत आहोत. ।। ६।।

    भावार्थ

    ज्याप्रमाणे दुधाची कामना करणारे लोक दुभत्या गाईला जवळ बोलावतात, तद्वत उपासक गण उपासनाजन्मय आनंद प्राप्तीसाठी परमेश्वराला प्रजानन यानी राष्ट्ररक्षणासाटी राजाला आणि शिष्यजन यांनी विद्या ग्रहणासाठी आचार्याला दरदिवसी सत्कारपूर्वक बोलावले पाहिजे. ।। ६।।

    विशेष

    या मंत्रात श्लेष व उपमा अलंकार आहे. ।। ६।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    கறப்பவனிடஞ் செல்லும் நல்ல (பசுவைப்போல்) தினந்தோறும் எங்கள் ரட்சிப்பிற்கு சுபசெயல்கள் செய்பவனை அழைக்கிறோம்.

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