Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 1664
ऋषिः - शुनःशेप आजीगर्तिः
देवता - अग्निः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम -
31
स꣡ नो꣢ म꣣हा꣡ꣳ अ꣢निमा꣣नो꣢ धू꣣म꣡के꣢तुः पुरुश्च꣣न्द्रः꣢ । धि꣣ये꣡ वाजा꣢꣯य हिन्वतु ॥१६६४॥
स्वर सहित पद पाठसः꣢ । नः꣣ । महा꣢न् । अ꣣निमानः꣢ । अ꣣ । निमानः꣢ । धू꣣म꣡के꣢तुः । धू꣣म꣢ । के꣣तुः । पु꣣रुश्चन्द्रः । पु꣣रु । चन्द्रः꣢ । धि꣣ये꣢ । वा꣡जा꣢꣯य । हि꣡न्वतु ॥१६६४॥
स्वर रहित मन्त्र
स नो महाꣳ अनिमानो धूमकेतुः पुरुश्चन्द्रः । धिये वाजाय हिन्वतु ॥१६६४॥
स्वर रहित पद पाठ
सः । नः । महान् । अनिमानः । अ । निमानः । धूमकेतुः । धूम । केतुः । पुरुश्चन्द्रः । पुरु । चन्द्रः । धिये । वाजाय । हिन्वतु ॥१६६४॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 1664
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment
(कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 8; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
(राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 18; खण्ड » 1; सूक्त » 3; मन्त्र » 2
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अब परमात्मा के गुणों का वर्णन करते हुए उससे प्रार्थना करते हैं।
पदार्थ
(सः) वह प्रसिद्ध, (महान्) गुणों में महान्, (अनिमानः) देश और काल से असीमित, (धूमकेतुः) फहराती हुई ओ३म् की ध्वजावाला, (पुरुश्चन्द्रः) बहुत आह्लाददायक अग्रनायक परमेश्वर (नः) हमें (धिये) ज्ञान और कर्म के लिए तथा (वाजाय) बल के लिए (हिन्वतु) प्रेरित करे ॥२॥
भावार्थ
सच्ची परमात्मा की स्तुति वही है, जिससे मनुष्य ज्ञान कमाने, बल सञ्चित करने तथा पुरुषार्थ करने के लिए प्रेरणा प्राप्त करता है ॥२॥
पदार्थ
(सः) वह परमात्मा (महान्-अनिमानः) महान् है और गुणों से न मापने योग्य—अनन्त गुणबल क्रिया वाला है (धूमकेतुः) पाप पापी को कम्पाने योग्य प्रज्ञान वाला (पुरश्चन्द्रः) बहुत आह्लादक (नः-धिये वाजाय हिन्वतु) हमें बुद्धि के लिये और बल के लिये प्राप्त हो॥२॥
विशेष
<br>
विषय
ज्ञान व शक्ति की प्रेरणा
पदार्थ
वे प्रभु १. (महान्) = महनीय – पूजनीय हैं । अथवा [महान् - strong] सर्वशक्तिमान् हैं, सदा वर्धमान हैं [to grow] । २. (अनि-मान:) = उनका कोई निश्चित माप नहीं है - वे अमेय व अनन्त हैं । ३. (धूमकेतुः) = [धूञ् कम्पने] उनका ज्ञान [केतु] सब बुराइयों को कम्पित करके दूर करनेवाला है। ४. (पुरुः चन्द्र) = वे पालक हैं, पूरक हैं और आह्लादमय होते हुए आह्लादित करनेवाले हैं। (सः) = वे उल्लिखित स्वरूपवाले प्रभु (नः) = हमें (धिये) = बुद्धि व ज्ञान के लिए तथा (वाजाय) = शक्ति के लिए (हिन्वतु) = प्रेरित करें ।
वस्तुतः जो भी व्यक्ति अपने जीवन को सुखी बनाना चाहता है—शुनःशेप बनना चाहता है, उसे प्रभु की शक्ति व ज्ञान का चिन्तन करना चाहिए और अपने अन्दर शक्ति व ज्ञान को बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए।
भावार्थ
मैं प्रभु के ज्ञान व बल का चिन्तन करता हुआ इनकी वृद्धि के लिए प्रेरणा प्राप्त करूँ।
विषय
missing
भावार्थ
वह अग्निरूप सब का मार्गदर्शक सर्वज्ञ, परमेश्वर (महान्) महान् (अनिमानः) अनन्त, अपरिमेय (धूमकेतुः) समस्त संसार को स्पन्दन या गति देने हारे सामर्थ्य से जानने योग्य (पुरुश्चन्द्रः) सबसे अधिक प्रकाशमान, सब प्रकाशमान पदार्थों का प्रकाशक परमात्मा (नः) हमें (धिये) विचारशक्ति, बुद्धि और (वाजस्य) बल और सामर्थ्य प्राप्त करने के लिये प्रेरित करे।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः—मेधातिथिः काण्वः प्रियमेधश्चांगिरसः। २ श्रुतकक्षः सुकक्षो वा। ३ शुनःशेप आजीगर्तः। ४ शंयुर्बार्हस्पत्यः। ५, १५ मेधातिथिः काण्वः। ६, ९ वसिष्ठः। ७ आयुः काण्वः। ८ अम्बरीष ऋजिश्वा च। १० विश्वमना वैयश्वः। ११ सोभरिः काण्वः। १२ सप्तर्षयः। १३ कलिः प्रागाथः। १५, १७ विश्वामित्रः। १६ निध्रुविः काश्यपः। १८ भरद्वाजो बार्हस्पत्यः। १९ एतत्साम॥ देवता—१, २, ४, ६, ७, ९, १०, १३, १५ इन्द्रः। ३, ११, १८ अग्निः। ५ विष्णुः ८, १२, १६ पवमानः सोमः । १४, १७ इन्द्राग्नी। १९ एतत्साम॥ छन्दः–१-५, १४, १६-१८ गायत्री। ६, ७, ९, १३ प्रागथम्। ८ अनुष्टुप्। १० उष्णिक् । ११ प्रागाथं काकुभम्। १२, १५ बृहती। १९ इति साम॥ स्वरः—१-५, १४, १६, १८ षड्जः। ६, ८, ९, ११-१३, १५ मध्यमः। ८ गान्धारः। १० ऋषभः॥
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मगुणान् वर्णयन् तं प्रार्थयते।
पदार्थः
(सः) असौ प्रसिद्धः, (महान्) महागुणः (अनिमानः) देशेन कालेन च अपरिच्छिन्नः, (धूमकेतुः) दोधूयमान ओंकारध्वजः(पुरुश्चन्द्रः) बह्वाह्लादकः। [अत्र ‘ह्रस्वाच्चन्द्रोत्तरपदे मन्त्रे’। अ० ६।१।१५१ अनेन सुडागमः।] (अग्निः) अग्रणीः परमेश्वरः(नः) अस्मान् (धिये) ज्ञानसम्पादनाय कर्मकरणाय च(वाजाय) बलसंचयाय च (हिन्वतु) प्रेरयतु ॥२॥२
भावार्थः
सत्या परमात्मस्तुतिः सैव यया मनुष्यो ज्ञानार्जनाय बलसंचयाय पुरुषार्थाय च प्रेरणां प्राप्नोति ॥२॥
इंग्लिश (2)
Meaning
May this our God, Great, Limitless, Ail-knowing, excellently Bright, urge us to holy thought and strength!
Meaning
May the yajnic science of fire, great, immeasurable, universal delight with banners of smoke and flame, call up and inspire us for the achievement of intelligential technology and creative power and progress. (Rg. 1-27-11)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (सः) તે પરમાત્મા (महान् अनिमानः) મહાન છે અને ગુણોથી પામી ન શકાય એવા અનંત ગુણ બળ ક્રિયાવાન છે. (धूमकेतुः) પાપ-પાપીને કંપાવનાર પ્રજ્ઞાનવાન (पुरश्चन्द्रः) બહુજ આહ્લાદક (नः धिये वाजाय हिन्वतु) અમને બુદ્ધિ તથા બળને માટે પ્રાપ્ત થાય. (૨)
मराठी (1)
भावार्थ
ज्यामुळे माणूस ज्ञान प्राप्त करण्याची, बल संचित करण्याची व पुरुषार्थ करण्याची प्रेरणा प्राप्त करतो. तीच खरी परमात्याची स्तुती असते. ॥२॥
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal