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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 1829
    ऋषिः - मृगः देवता - अग्निः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम -
    30

    यु꣣ञ्जे꣡ वाच꣢꣯ꣳ श꣣त꣡प꣢दीं꣣ गा꣡ये꣢ स꣣ह꣡स्र꣢वर्तनि । गा꣣यत्रं꣡ त्रैष्टु꣢꣯भं꣣ ज꣡ग꣢त् ॥१८२९

    स्वर सहित पद पाठ

    यु꣣ञ्जे꣢ । वा꣡च꣢꣯म् । श꣣त꣡प꣢दीम् । श꣣त꣢ । प꣣दीम् । गा꣡ये꣢꣯ । स꣣ह꣡स्र꣢वर्तनि । स꣣ह꣡स्र꣢ । व꣣र्तनि । गायत्र꣡म् । त्रै꣡ष्टु꣢꣯भम् । त्रै । स्तु꣣भम् । ज꣡ग꣢꣯त् ॥१८२९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    युञ्जे वाचꣳ शतपदीं गाये सहस्रवर्तनि । गायत्रं त्रैष्टुभं जगत् ॥१८२९


    स्वर रहित पद पाठ

    युञ्जे । वाचम् । शतपदीम् । शत । पदीम् । गाये । सहस्रवर्तनि । सहस्र । वर्तनि । गायत्रम् । त्रैष्टुभम् । त्रै । स्तुभम् । जगत् ॥१८२९॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 1829
    (कौथुम) उत्तरार्चिकः » प्रपाठक » 9; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » ; सूक्त » 7; मन्त्र » 2
    (राणानीय) उत्तरार्चिकः » अध्याय » 20; खण्ड » 6; सूक्त » 6; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में साम का गान करनेवाला कह रहा है।

    पदार्थ

    मैं (शतपदीम्) अनेक पादोंवाली (वाचम्) वेदवाणी को (युञ्जे) प्रयोग में लाता हूँ। साथ ही, (गायत्रम्) गायत्री छन्दवाले साम को, (त्रैष्टुभम्) त्रिष्टुप् छन्दवाले साम को और (जगत्) जगती छन्दवाले साम को और (सहस्रवर्तनि) सहस्र मार्गों से (गाये) गाता हूँ ॥२॥

    भावार्थ

    ऋचाओं पर आश्रित सामों के गान से हृदय और सामाजिक वातावरण पवित्र होता है ॥२॥

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    पदार्थ

    (शतपदी वाचं युञ्जे) बहुत प्राप्तव्य फल वाली स्तुतिवाणी को मैं प्रयुक्त करता हूँ (सहस्रवर्तनि गायत्रं त्रैष्टुभं जगत्-गाये) बहुत ज्ञानमार्ग वाले गायत्री सम्बन्धी त्रिष्टुभ् सम्बन्धी जगती सम्बन्धी स्तोत्र या साम को परमात्मा के लिये मैं गाता हूँ॥२॥

    विशेष

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    विषय

    सहस्रवर्तनि वाणी का गायन

    पदार्थ

    गत मन्त्र का ‘मृग’ निश्चय करता है कि मैं शतपदीं वाचं युञ्जे- शतपदी वाणी का प्रयोग करता हूँ, अर्थात् अपने सारे क्रियाकलाप को इस कर्मवेद [यजुर्वेद] के अनुसार बनाता हूँ । मेरा सारा जीवन इसके निर्देशों का प्रयोग ही बन जाएगा। इसके शतपथ ही मेरे जीवन के शतवर्षों के पथ होंगे और साथ ही 'इन कर्मों को करते हुए, इनमें सफलता का लाभ करते हुए मुझे कहीं मिथ्याभिमान न हो जाए' मैं (सहस्रवर्तनि) = सहस्रों मार्गोंवाली – हज़ारों प्रकार से गायन की जानेवाली इस प्रभु की उपासनामयी सामवाणी का (गाये) = गायन करता हूँ | यह गायन मुझे सदा प्रभु का स्मरण कराता है और कर्मों में सिद्धि के मिथ्याभिमान से बचाता है ।

    (सामवेद) - उपासना वेद है । इसमें प्रभु का सतत गायन है। यह प्रभु-स्मरण ‘मृग'=आत्मान्वेषक को कर्तृत्व के अहंकार से बचानेवाला होता है ।

    यह प्रभु का गायन करता है और साथ ही (गायत्रं त्रैष्टुभं जगत्) = गायत्री, त्रिष्टुप् और जगती छन्द के मन्त्रों से भरे हुए ऋग्वेद - विज्ञानवेद का भी अध्ययन करता है। कर्मों की उत्तमता के लिए ‘विज्ञान' आवश्यक ही है । ज्ञानपूर्वक होनेवाला कर्म कुशल कर्म होता है—अन्यथा वह अनाड़ीपन से किया जाकर हमें असफल व अपवित्र करता है ।

    ऋग्वेद को यहाँ ‘गायत्रं त्रैष्टुभं जगत्' इसलिए कहा है कि ऋग्वेद के १०५२२ मन्त्रों में गायत्री छन्द के २४४९ मन्त्र हैं, त्रिष्टुप् के ४२५१ तथा जगती के १३४६ । इस प्रकार ८०४६ मन्त्र ‘गायत्री, त्रिष्टुप् व जगती छन्द के हैं और शेष १३ छन्दों के मिलकर कुल २४७६ मन्त्र हैं। इस प्रकार गायत्र्यादि की मुख्यता के कारण ऋग्वेद का स्मरण ‘गायत्रं त्रैष्टुभं जगत्' शब्दों से किया है। इसका गायन भी आवश्यक है, क्योंकि विज्ञान के बिना कर्म कभी ठीक हो ही नहीं सकता। 

    भावार्थ

    १. यजु के अनुसार कर्म करना, २. साम द्वारा प्रभु का गायन करना जिससे कर्मों का गर्व न हो और ३. ऋग्वेद का अध्ययन करना जिससे हमारे कर्मों में ज्ञानाभाव से अनाड़ीपन न आ जाए।

    टिप्पणी

    नोट – सामवेद माना भी 'सहस्रवर्त्मा' ही जाता है ।
     

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    विषय

    missing

    भावार्थ

    (शतपदी) सैकड़ों ज्ञानों से युक्त (वाचं) वाणी का (युञ्जे) योगसमाधि द्वारा मनन करता हूं और (सहस्त्रवर्त्तनि) सहस्रों मार्ग से युक्त सहस्रवर्त्मा सामवेद जिसमें (गायत्रं) गायत्र (त्रैष्टुभं) त्रैष्टुभ और (जगत्) जगत् साम विशेष है उसका (गाये) गान करता हूँ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः—१ अग्निः पावकः। २ सोभरिः काण्वः। ५, ६ अवत्सारः काश्यपः अन्ये च ऋषयो दृष्टलिङ्गाः*। ८ वत्सप्रीः। ९ गोषूक्तयश्वसूक्तिनौ काण्वायनौ। १० त्रिशिरास्त्वाष्ट्रः सिंधुद्वीपो वाम्बरीषः। ११ उलो वातायनः। १३ वेनः। ३, ४, ७, १२ इति साम ॥ देवता—१, २, ८ अग्निः। ५, ६ विश्वे देवाः। ९ इन्द्रः। १० अग्निः । ११ वायुः । १३ वेनः। ३, ४, ७, १२ इतिसाम॥ छन्दः—१ विष्टारपङ्क्ति, प्रथमस्य, सतोबृहती उत्तरेषां त्रयाणां, उपरिष्टाज्ज्योतिः अत उत्तरस्य, त्रिष्टुप् चरमस्य। २ प्रागाथम् काकुभम्। ५, ६, १३ त्रिष्टुङ। ८-११ गायत्री। ३, ४, ७, १२ इतिसाम॥ स्वरः—१ पञ्चमः प्रथमस्य, मध्यमः उत्तरेषां त्रयाणा, धैवतः चरमस्य। २ मध्यमः। ५, ६, १३ धैवतः। ८-११ षड्जः। ३, ४, ७, १२ इति साम॥ *केषां चिन्मतेनात्र विंशाध्यायस्य, पञ्चमखण्डस्य च विरामः। *दृष्टिलिंगा दया० भाष्ये पाठः।

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सामगाता प्राह।

    पदार्थः

    अहम् (शतपदीम्) बहुपादयुक्ताम् (वाचम्) वेदवाचम् (युञ्जे) प्रयुञ्जे, किञ्च (गायत्रम्) गायत्रीछन्दस्कं साम, (त्रैष्टुभम्) त्रिष्टुप्छन्दस्कं साम, (जगत्) जगतीछन्दस्कं साम च (सहस्रवर्तनि) सहस्रवर्त्म यथा स्यात् तथा (गाये) गायामि ॥२॥

    भावार्थः

    ऋच्यध्यूढानां साम्नां गानेन हृदयं सामाजिकं वातावरणं च पवित्रं जायते ॥२॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    I contemplate in Yoga Samadhi Vedic speech full of hundred sorts of knowledge. I sing in Gayatri, Trishtup, Jagati hymns, the Samaveda, that gives a thousand instructions.

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    Meaning

    I use language of hundred variations of phrase, sing a thousand versions and variations of Gayatri, Trishtup and Jagati metres of verse in song.

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (शतपदी वाचं युञ्जे) બહુજ પ્રાપ્તવ્ય ફળવાળી સ્તુતિવાણીને હું પ્રયુક્ત કરું છું. (सहस्रवर्तनि गायत्रं त्रैष्टुभं जगत् गाये) બહુજ જ્ઞાનમાર્ગવાળા ગાયત્રી સંબંધી, ત્રિષ્ટુભ સંબંધી અને જગતી સંબંધી સ્તોત્ર અથવા સામનું પરમાત્માને માટે ગાન કરું છું. (૨)
     

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    ऋचांवर आधारित सामगानामुळे हृदय व सामाजिक वातावरण पवित्र होते. ॥२॥

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