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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 265
    ऋषिः - वत्सः देवता - इन्द्रः छन्दः - बृहती स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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    अ꣣भि꣡ वो꣢ वी꣣र꣡मन्ध꣢꣯सो꣣ म꣡दे꣢षु गाय गि꣣रा꣢ म꣣हा꣡ विचे꣢꣯तसम् । इ꣢न्द्रं꣣ ना꣢म꣣ श्रु꣡त्य꣢ꣳ शा꣣कि꣢नं꣣ व꣢चो꣣ य꣡था꣢ ॥२६५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣भि꣢ । वः꣣ । वीर꣢म् । अ꣡न्ध꣢꣯सः । म꣡दे꣢꣯षु । गा꣣य । गिरा꣢ । म꣣हा꣢ । विचे꣢꣯तसम् । वि । चे꣣तसम् । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । ना꣡म꣢꣯ । श्रु꣡त्य꣢꣯म् । शा꣣कि꣡न꣢म् । व꣡चः꣢꣯ । य꣡था꣢꣯ ॥२६५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभि वो वीरमन्धसो मदेषु गाय गिरा महा विचेतसम् । इन्द्रं नाम श्रुत्यꣳ शाकिनं वचो यथा ॥२६५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अभि । वः । वीरम् । अन्धसः । मदेषु । गाय । गिरा । महा । विचेतसम् । वि । चेतसम् । इन्द्रम् । नाम । श्रुत्यम् । शाकिनम् । वचः । यथा ॥२६५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 265
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 3; मन्त्र » 3
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 4;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में परमेश्वर के स्तुतिगान की प्रेरणा की गयी है।

    पदार्थ

    हे उद्गाताओ ! (वः) तुम (अन्धसः) श्रद्धारस की (मदेषु) तृप्तियों में (महा) महती (गिरा) वेदवाणी से (वीरम्) विक्रमशाली अथवा शत्रुओं को प्रकम्पित करनेवाले, (विचेतसम्) विशिष्ट ज्ञान से पूर्ण, (श्रुत्यम्) श्रुतियों में प्रसिद्ध, (शाकिनम्) शक्तिमान् (इन्द्रं नाम) इन्द्र नामक परमेश्वर को (अभि) अभिलक्ष्य करके (वचः यथा) जैसा विधिवचन हो, उसके अनुसार (गाय) गाओ, सामगान करो ॥३॥

    भावार्थ

    काम, क्रोध आदि आन्तरिक शत्रुओं को तथा मानव-समाज में भ्रष्टाचारियों को अपनी वीरता से पराजित करनेवाले, सर्वज्ञ, वेदों में प्रसिद्ध, सब कार्य करने में समर्थ परमेश्वर की सबको सामगानपूर्वक अर्चना करनी चाहिए ॥३॥

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    पदार्थ

    (वः) हे उपासको! तुम “विभक्तिव्यत्ययः” (अन्धसः-मदेषु) आध्यानीय—समन्तरूप से ध्यान करने योग्य परमात्मा के “अन्धः-आध्यानीयं भवति” [निरु॰ ५.१] अर्चन स्तवन—उपासन प्रसङ्गों में “मदति-अर्चतिकर्मा” [निरु॰ ३.१४] (वीरे विचेतसम्) पराक्रमी विशेष ज्ञानी—सर्वज्ञ—(श्रुत्यं शाकिनम्) श्रवणीय शक्तिमान् (इन्द्रं नाम) प्रसिद्ध परमात्मा का (महागिरा) महत्त्व वाली स्तुति से (वचः-यथा) ‘यथा वचः’ वाणी शक्ति के अनुसार (अभिगाय) ‘गायत वचनव्यत्ययः’ निरन्तर गान—गुणगान करो।

    भावार्थ

    हे उपासको! तुम समन्तरूप से ध्यान करने योग्य परमात्मा से स्तुतिप्रसङ्गों में पराक्रमी सर्वज्ञ श्रोतव्य सर्वशक्तिमान्—प्रसिद्ध परमात्मा का खुलकर गुणगान करो जब तक वाणीशक्ति गा सके॥२॥

    विशेष

    ऋषिः—वत्सः (परमात्मगुणों का वक्ता)॥<br>

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    विषय

    ज्ञान का प्रकाश, शक्ति का प्रवाह

    पदार्थ

    इस मन्त्र का ऋषि 'वत्स' है- जो प्रभु की स्तुति का उच्चारण करता है [ वदति], अतएव प्रभु का प्रिय है। यह अपने मित्रों से कहता है कि प्रभु (वः) = आपके शत्रुओं को (वीरम्) = विशेष रूप से कम्पित करके दूर करनेवाले हैं, महा (विचेतसम्) = महान् व विशिष्ट ज्ञानवाले हैं, उस प्रभु को लक्ष्य करके अभिगाय-खूब गायन करो। ऐसा तुम कर तभी सकोगे जबकि तुम्हारा निवास (अन्धसः) = आध्यातव्य सोम के (मदेषु) = मदों में होगा। सोम आध्यातव्य है। जो सोम अन्न के सप्तम स्थल में उत्पन्न होता है - वह सोम कितना ध्यान देने योग्य है? जब मनुष्य उसका ध्यान करता है तो उसका जीवन विशेष हर्ष व आनन्दवाला होता है। इस सोम की रक्षा करने पर शरीर नीरोग रहता है, मन निर्मल व बुद्धि तीव्र । इसीलिए इस सोम का पान करनेवाला व्यक्ति प्रभु का उपासक होता है, प्रभु के गुणों का गायन करता है।

    वत्स कहता है कि (वचो यथा) = वेदवाणी में जैसा उपदेश दिया गया है, उसी प्रकार उस प्रभु का गायन करो - जो (इन्द्रं नाम) = ज्ञानरूप परमैश्वर्यवाला है और बल के सब कार्यों को करनेवाला है। (श्रुत्यम्) = जो ज्ञान प्राप्त करानेवालों में सर्वोत्तम है। आचार्यों से भी ज्ञान प्राप्त होता है, परन्तु सर्वमहान् आचार्य तो वे प्रभु ही हैं। उस प्रभु के सम्पर्क में आने पर सारा अन्तरिक्ष ज्ञान के प्रकाश से जगमगा उठता है, क्योंकि प्रभु के ज्ञान का स्रोत अन्दर से उमड़ता है। (शाकिनम्) = वे प्रभु हमें शक्तिशाली बनानेवाले हैं। प्रभु की शक्ति का प्रवाह हमारे अन्दर भी बहने लगता है। अग्नि के सम्पर्क में आकर लोहे का गोला भी अग्नि की भाँति तमतमाने लगता है। इसी प्रकार जीव भी ब्रह्म के सम्पर्क में आकर 'ब्रह्म इव' हो जाता है । जीव भी ब्रह्म का छोटा-स - सा रूप बन जाता है।

    भावार्थ

    हम सोम की रक्षा करें। सोम के आनन्द में प्रभु का गायन करें। प्रभु वीर हैं, उनके गुणगान से हममें शक्ति का प्रवाह बहेगा। प्रभु महाविचेतस् हैं- हममें भी ज्ञान का प्रकाश होगा।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( वः ) = आप लोग ( अन्धसः मदेषु ) = अन्न या प्राण धारण कराने वाले चिदात्मा या अन्धकार को दूर करने वाले ज्ञान के द्वारा प्राप्त आनन्द के अवसरों पर ( महाविचेतसम् ) = अत्यन्त अधिक ज्ञान और चेतना युक्त ( वीरं ) = वीर्यवान्, ( श्रुत्यं ) = श्रुति, वेद में प्रसिद्ध ( शाकिनं ) = सर्व शक्कि मान्, ( नाम ) सबको नम्र करने हारे ( इन्द्रं ) ईश्वर को ( यथावचः ) = जिस प्रकार वेदवचन का आदेश है उसी प्रकार ( गिरा ) = वेद की ऋचा द्वारा ( गाय ) = स्तुति करो ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - वत्सः।

    देवता - इन्द्रः।

    छन्दः - बृहती।

    स्वरः - मध्यमः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ परमेश्वरस्य स्तुतिगानाय प्रेरयन्नाह।

    पदार्थः

    हे उद्गातारः ! (वः) यूयम् (अन्धसः) श्रद्धारसस्य (मदेषु) तृप्तियोगेषु सत्सु (महा) महत्या। मह पूजायाम् धातोः क्विपि तृतीयैकवचने रूपम्, यद्वा महद्वाचिनो महशब्दात् स्त्रियामाकारान्तात् तृतीयैकवचने ‘सुपां सुलुक्० अ० ७।१।३९’ इति पूर्वसवर्णदीर्घ एकादेशः। (गिरा) वेदवाचा। (वीरम्) विक्रमशालिनम् यद्वा विशेषेण ईरयति कम्पयति शत्रूनिति वीरस्तम्। वीर विक्रान्तौ, यद्वा, विपूर्वः ईर गतौ कम्पने च। ‘वीरो वीरयत्यमित्रान्, वेतेर्वा स्याद् गतिकर्मणो, वीरयतेर्वा’। निरु० १।७। (विचेतसम्) विशिष्टज्ञानवन्तम्, (श्रुत्यम्) श्रुतिषु प्रसिद्धम्, (शाकिनम्२) शक्तिमन्तम् (इन्द्रं नाम) इन्द्रनामानं परमेश्वरम् (अभि) अभिलक्ष्य (वचः यथा३) यथा विधिवचनमस्ति तथा (गाय) गायत सामगानं कुरुत। अत्र वचनव्यत्ययः। यद्वा ‘लोपस्त आत्मनेपदेषु’ इत्यात्मनेपदे विहितस्तकारलोपो बाहुलकात् परस्मैपदेऽपि भवति ॥३॥ इयं त्रिपदा पिपीलिकामध्या विराड् बृहती, आद्यन्तौ पादौ त्रयोदशाक्षरौ, मध्यमः पादोऽष्टाक्षरः ॥३॥

    भावार्थः

    कामक्रोधाद्यन्तःशत्रूणां मानवसमाजे भ्रष्टाचारिणां च स्ववीरतया पराजेता, सर्वज्ञः, श्रुतिषु ख्यातः, सर्वकर्मक्षमश्च परमेश्वरः सर्वैः सामगानपूर्वकमभ्यर्चनीयः ॥३॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।४६।१४, ऋषिः वशोऽश्व्यः। २. शाकिनम्। शाकनं शाकः, शक्तिरित्यर्थः। सा यस्यास्ति स शाकी। तं शाकिनम्, शक्तिमन्तमित्यर्थः—इति वि०। ३. श्रुत्यं वचो यथा। श्रुतौ भवं श्रुत्यम्। वचः वचनम्। यथा कश्चित् श्रुतौ भवं वचनं सत्यार्थत्वेन स्तौति तद्वत् स्तुहीत्यर्थः—इति वि०। वचः त्वदीयं यथा प्रवर्तते तथाभिगाय, न पुनरिन्द्रस्य गुणानुगुण्येन, तथा स्तोतुमशक्तेः—इति भ०। वाग् युष्मदीया यथा येन प्रकारेण प्रवर्तते गायत्र्या वा त्रिष्टुभा वा तथा गाय गायत स्तुतिं कुरुत—इति सा०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ye men, on occasions of spiritual and physical joy, praise with Vedic verse, as ordained in die Vedas, God, the Valiant, the Most wise, the Subduer, sung in the Vedas, the Omnipotent!

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    Meaning

    In the ecstasy of your soma celebration, with the best of word and voice, sing in praise of Indra, mighty brave, highly knowledgeable and wise, renowned of name and versatile in power and competence. (Rg. 8-46-14)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (वः) હે ઉપાસકો ! તમે (अन्धसः मदेषु) આધ્યાનીય - સમગ્ર રૂપથી ધ્યાન કરવા યોગ્ય પરમાત્માના અર્ચન સ્તવન - ઉપાસના પ્રસંગોમાં (वीरे विचेतसम्) પરાક્રમી વિશેષ જ્ઞાની - સર્વત્ર , (श्रुत्यं शाकिनम्) શ્રવણીય શક્તિમાન (इन्द्रं नाम) પ્રસિદ્ધ પરમાત્માની (महागिरा) મહત્વવાળી સ્તુતિથી (वचः यथा) વાણીની શક્તિ અનુસાર (अभिगाय) નિરંતર ગાન - ગુણગાન કરો. (૩)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : હે ઉપાસકો તમે સમગ્ર રૂપથી ધ્યાન કરવા યોગ્ય પરમાત્માથી સ્તુતિ પ્રસંગોમાં પરાક્રમી , સર્વજ્ઞ , શ્રોતવ્ય સર્વ શક્તિમાન પ્રસિદ્ધ પરમાત્માના જ્યાં સુધી વાણીની શક્તિ ગાઈ શકે ત્યાં સુધી નિરંતર ગુણગાન કરો. (૩)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    وید منتروں سے اُسے یاد کرتے رہو

    Lafzi Maana

    (وہ) آپ لوگ (اندھسہ مدیشوُ) جہالت کو دُور کرنے والے، خوشیوں کے جلسوں میں (مہاوِچیتسم ویرم شاکی تم نام اِندرم لاانتہا عالم، بہادر جہاں عالمی طاقتوں کے منبع وید شاستر وغیرہ سبھی قدیم ترین کتب ہائے میں پرسّدھ اِندر ایشور کی (یتھاوجہ گِراگایہ) بحکم وید کے انہی وید شاستروں سے حمد و ثنا کریں، گایا کریں۔

    Tashree

    عابد و سچے بہادر اِندر کی پُوجا کرو، اور اُس کی یاد میں ویدوں کی بانی کو پڑھو۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    काम, क्रोध इत्यादी आंतरकि शत्रूंना व मानव समाजात भ्रष्टाचारी लोकांना आपल्या वीरतेने पराजित करणारा, सर्वज्ञ, वेदामध्ये मुख्य प्रसिद्ध, सर्व कार्य करण्यात समर्थ परमेश्वराची सर्वांनी सामगानपूर्वक अर्चना केली पाहिजे ॥३॥

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    विषय

    परमेश्वराचे स्तुतिगान करण्यासाठी प्रेरणा

    शब्दार्थ

    हे उद्गाताजनहो (स्तुतिगीत गाणाऱ्या गायकहो), (वः) तुम्ही (अन्धसः) श्रद्धारसाच्या (मदेषु) आनंदात व तृप्तीमध्ये मग्न होऊन त्या (महा) महती (गिरः) वेदवाणीद्वारे (वीरम्) विक्रमशाली अथवा शत्रूंना प्रकम्यित करणाऱ्या (विचेतसम्) विशिष्ट ज्ञानाने परिपूर्ण व (श्रृव्यम्) श्रुतीमध्ये इंद्र नावाच्या परमेश्वराला (अभि) उद्देशून (वचः यथा) विधीपूर्वक वा सांगितलेल्या वचनांप्रमाणे (गाय) त्याचे स्तुतिगान करा.।।३।।

    भावार्थ

    काम, क्रोद आदी आंतरिक शत्रूंना तसेच मानव समाजातील भ्रष्टाचारी लोकांना पराजित करणाऱ्या सर्वज्ञ, वेदप्रसिद्ध सर्व कार्य समर्थ परमेश्वराची सर्व लोकांनी सामगानाद्वारे अर्चना केली पाहिजे.।।३।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    சோமனுடைய மகிழ்ச்சியிலே ஹிதத்திற்கு சூரனாய் பெயருள்ளவனாய் ஞானியாயுள்ளவனுக்குத் துதிசெய்யவும். சக்தியுள்ள இந்திரனுக்கு மகத்தானவனுக்கு துதிகளால் கானத்தால் துதிக்கப்படும்வரை துதிசெய்யவும்.

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