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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 277
ऋषिः - देवातिथिः काण्वः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - बृहती
स्वरः - मध्यमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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अ꣣श्वी꣢ र꣣थी꣡ सु꣢रू꣣प꣢꣫ इद्गोमा꣣ꣳ य꣡दि꣢न्द्र ते꣣ स꣡खा꣢ । श्वा꣣त्रभा꣢जा꣣ व꣡य꣢सा सचते꣣ स꣡दा꣢ च꣣न्द्रै꣡र्या꣣ति स꣣भा꣡मु꣢꣯प ॥२७७॥
स्वर सहित पद पाठअ꣣श्वी꣢ । र꣣थी꣢ । सु꣣रूपः꣢ । सु꣣ । रूपः꣢ । इत् । गो꣡मा꣢꣯न् । यत् । इ꣣न्द्र । ते । स꣡खा꣢꣯ । स । खा꣣ । श्वात्रभा꣡जा꣢ । श्वा꣣त्र । भा꣡जा꣢꣯ । व꣡य꣢꣯सा । स꣣चते । स꣡दा꣢꣯ । च꣣न्द्रैः꣢ । या꣣ति । सभा꣢म् । स꣣ । भा꣢म् । उ꣡प꣢꣯ ॥२७७॥
स्वर रहित मन्त्र
अश्वी रथी सुरूप इद्गोमाꣳ यदिन्द्र ते सखा । श्वात्रभाजा वयसा सचते सदा चन्द्रैर्याति सभामुप ॥२७७॥
स्वर रहित पद पाठ
अश्वी । रथी । सुरूपः । सु । रूपः । इत् । गोमान् । यत् । इन्द्र । ते । सखा । स । खा । श्वात्रभाजा । श्वात्र । भाजा । वयसा । सचते । सदा । चन्द्रैः । याति । सभाम् । स । भाम् । उप ॥२७७॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 277
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 3; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 5
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 3; खण्ड » 5;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में परमात्मा, राजा और आचार्य की मैत्री का फल कहा गया है।
पदार्थ
हे (इन्द्र) दुःखविदारक, सुखदाता परमैश्वर्यशाली जगदीश्वर राजन् वा आचार्य ! (यत्) जब कोई (ते) आपका (सखा) मित्र हो जाता है, तब वह (अश्वी) प्रशस्त घोड़ों का स्वामी और प्रशस्त मन, प्राण एवं इन्द्रियों का स्वामी, (रथी) प्रशस्त स्थलयानों, जलयानों एवं विमानों का स्वामी और प्रशस्त मानव-देह रूप रथ का स्वामी, (सुरूपः) प्रशस्त रूप एवं प्रशस्त गुणों का स्वामी, और (गोमान्) प्रशस्त गौओं, भूमियों तथा वाणियों आदि का स्वामी (इत्) अवश्य हो जाता है। (सः) वह (सदा) हमेशा (श्वात्रभाजा) धनवाली, विज्ञानवाली और शीघ्र किये जानेवाले कर्मोंवाली (वयसा) आयु से (सचते) संयुक्त होता है, और (चन्द्रैः) चन्द्रमा के समान आह्लादक गुणों से युक्त होकर (सभाम्) प्रजा की सभा, विद्वानों की सभा और राजसभा में (उपयाति) जाता है ॥५॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥५॥
भावार्थ
जो मनुष्य परमात्मा, राजा एवं आचार्य से मैत्री जोड़ लेता है वह पुरुषार्थी, बलवान्, वाग्मी, जितेन्द्रिय, मेधावी, रथवान्, अश्ववान्, गोमान्, प्राणवान्, धनवान्, विज्ञानवान्, कर्मवान्, गुणवान्, आयुष्मान् होकर जनता का नेतृत्व करता हुआ जनसभाओं, विद्वत्सभाओं और राजसभाओं में प्रतिष्ठा पाता है ॥५॥
पदार्थ
(इन्द्र) हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! (यत्) ‘यतः’ क्योंकि (ते सखा) तेरा मित्र तुझ से सङ्ग कर लिया जिसने ऐसा समागमशील उपासक (अश्वी) प्रशस्त इन्द्रिय घोड़ों वाला संयमी (रथी) प्रशस्त शरीररथ वाला स्वस्थ (सुरूपः) प्रशस्त स्वरूप वाला शान्तात्मा (गोमान्) प्रशस्त वाणी वाला यथार्थ वक्ता (इत्) अवश्य उक्त गुण वाला हो जाता है (श्वात्रभाजा वयसा सचते) शीघ्रभाक् शीघ्र प्राप्त करने वाले जीवन से ‘श्वात्रमिति क्षिप्रनाम’ [निरु॰ ५.३] समवेत होता है (सदाचन्द्रैः-सभामुपयाति) सदा आह्लादक गुणों से सभा को उपगत होता है।
भावार्थ
हे ऐश्वर्यवन् परमात्मन्! तेरा समागम करने वाला उपासक प्रशस्त इन्द्रियों वाला संयमी, प्रशस्त शरीर वाला, स्वस्थ, प्रशस्त सुरूप वाला शान्तात्मा, प्रशस्त वाणी वाला यथार्थ वक्ता हो जाता है तथा शीघ्र फलभागी जीवन से समस्त कार्य में प्रवेश करता है सदा आह्लादकारी गुणों से सभा में उपगत होता ऊँचा स्थान पाता है॥५॥
विशेष
ऋषिः—देवातिथिः (परमात्म देव की ओर निरन्तर गमन-प्रवेश करने वाला उपासक)॥<br>
विषय
प्रभु का मित्र
पदार्थ
हे (इन्द्र)=परमैर्श्यशाली प्रभो ! (यत्) = जो (ते सखा) = तेरा मित्र होता है, वह १. (अश्वी) = उत्तम कर्मेन्द्रियरूप अश्वोंवाला होता है [अश्नुते कर्मणि- अश्व-कर्मेन्द्रिय] । प्रकृति में न फँसा होने के कारण उसके कर्म पवित्र होते हैं । २. (रथी) = वह शरीररूप उत्तम रथवाला होता है। न व्यसन, न रोग- शरीर तो उत्तम होना ही हुआ । ३. (सुरूप इत्) = यह निश्चय से उत्तम रूपवाला होता है। स्वास्थ्य इसके उत्तम रूप का कारण बनता है। ४. (गोमान्) = इसकी ज्ञानेन्द्रियाँ प्रशस्त होती हैं [गमयन्ति अर्थान् गाव:= ज्ञानेन्द्रियाणि] । वस्तुतः प्रभु का स्मरण करने व उसका सखा बनने पर शरीर, मन व बुद्धि सभी खूब स्वस्थ होते हैं। यह व्यक्ति ठीक दिशा में ही चिन्तन करता है। ५. यह व्यक्ति ऐसे (वयसा) = जीवन से (सचते) = समवेत होता है जो कि (श्वात्रभाजा) = [श्वि=गति, वृद्धि] सदा क्रियाशील होता है और वृद्धिशील होता है। इसके जीवन में प्रत्येक क्रिया इसे उत्थान की ओर ले जा रही होती है। ६. यह व्यक्ति (सदा)=हमेशा (चन्द्रैः)=आह्लादक भावों के साथ (सभाम्)=सभा को (उपयाति) = प्राप्त होता है। जब सभा में आता है तो यह अपने विचारों से सभी को आह्लादित व उत्साहित करता है, यह कभी निराशा व निरुत्साह फैलानेवाला नहीं होता।
एवं, प्रभु का मित्र उल्लिखित छह गुणों से विभूषित जीवनवाला होता है। अपने जीवन को ऐसा बनाना ही बुद्धिमत्ता है। ऐसे व्यक्ति को ‘देवातिथि'=दिव्य मार्ग पर चलनेवाला कहा गया है।
भावार्थ
प्रभु के मित्र बन हम भी उल्लिखित छह गुणों से अपने जीवनों को अलंकृत करें।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = हे ( इन्द्र ) = परमेश्वर ! ( यदा ) = जब ( ते सखा ) = तेरा मित्र ( अश्वी ) = बलवान् प्राण, इन्द्रिय सम्पन्न ( रथी ) = उत्तम देहरूप रथ से युक्त ( सुरूपः ) = उत्तम रुचि या कान्तिमान रूप से युक्त और ( गोमान् इद् ) = उत्तम ज्ञान इन्द्रियों और उत्तम वाणी से युक्त हो जाता है तब वह( सदा ) = नित्य ही ( श्वात्रभाजा ) = धन धान्य से युक्त ( वयसा ) = अपनी आयु से और ( चन्द्रैः ) = आह्नादकारी या चिरकाल तक आनन्दकारी सज्जनों के साथ ( सभाम् ) = तेरे समान कान्ति या सत्संग को ( उपयाति ) = प्राप्त होता है ।
जितेन्दिय ज्ञानी, उत्तम प्रवृत्ति से युक्त पुरुष ही सत्संग से मुक्त हो जाता है। राजा और ईश्वर पक्ष में स्पष्ट है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - देवातिथिः ।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः - बृहती।
स्वरः - मध्यमः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमात्मनृपत्याचार्याणां सख्यस्य फलमाह।
पदार्थः
हे (इन्द्र) दुःखविदारक, सुखप्रद, परमैश्वर्यवन् जगदीश्वर नृपते आचार्य वा ! (यत्) यदा कश्चित् (ते) तव (सखा) मित्रम् जायते तदा सः (अश्वी) प्रशस्ताश्वः, प्रशस्तमनःप्राणेन्द्रियो वा, (रथी) प्रशस्तभूजलान्तरिक्षयानः, प्रशस्तमानवदेहरूपरथो वा, (सुरूपः) प्रशस्तकान्तिः, प्रशस्तगुणो वा, (गोमान्) प्रशस्तधेनुः, प्रशस्तभूमिः, प्रशस्तवागादिर्वा (इत्) निश्चयेन, भवतीति शेषः। सः (सदा) सर्वदा (श्वात्रभाजा२) श्वात्रं धनं विज्ञानं त्वरितं कर्म वा भजते इति श्वात्रभाक् तेन। श्वात्रम् इति धननाम। निघं० २।१०। श्वात्रतिः गतिकर्मा। निघं० २।१४। गत्यर्थाद् विज्ञानं गृह्यते। गतेस्त्रयोऽर्था ज्ञानं गमनं प्राप्तिश्चेत्यतः। श्वात्रमिति क्षिप्रनाम, आशु अतनं भवति। निरु० ५।३। तेन क्षिप्रं कर्म गृह्यते। (वयसा) आयुषा (सचते) समवैति, संयुज्यते। षच समवाये, भ्वादिः। किञ्च (चन्द्रैः३) चन्द्रवदाह्लादकैर्गुणैः सह। चदि आह्लादे धातोः ‘स्फायितञ्चि०। उ० २।१३’ इति रक् प्रत्ययः। (सभाम्) प्रजासभां, विद्वत्सभां, राजसभां च (उप याति) उपगच्छति ॥५॥ अत्र श्लेषालङ्कारः ॥५॥
भावार्थः
यो जनः परमात्मना नृपतिनाऽऽचार्येण च सान्निध्यं प्राप्नोति स पुरुषार्थी, बलवान्, वाग्मी, जितेन्द्रियो, मेधावी, रथवान्, अश्ववान्, गोमान्, प्राणवान्, धनवान्, विज्ञानवान्, कर्मवान्, गुणवान्, आयुष्मान् भूत्वा जनानां नेतृत्वमुद्वहन् जनसभासु विद्वत्सभासु राजसभासु च प्रतिष्ठां लभते ॥५॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ८।४।९ ‘गोमाँ इदिन्द्र’ ‘चन्द्रो याति’ इति पाठः। २. श्वात्रमिति क्षिप्रनाम। क्षिप्रं यत् सम्भजते तत् श्वात्रभाक्, तेन श्वात्रभाजा, क्षिप्रं संभजता इत्यर्थः, वयसा अन्नेन—इति वि०। श्वात्रं सुखं तद्भाजा वयसा अन्नेन—इति भ०। ३. चन्द्रैः श्वेतैः अश्वैः—इति वि०। हिरण्यैः युक्तः सन्—इति भ०। सर्वेषामाह्लादकैः स्तोत्रैः युक्तः सन्—इति सा०।
इंग्लिश (2)
Meaning
O God, when Thy friend becomes strong in action master of organs and senses, beautiful in appearance, and full of knowledge; he with his illustrious life and excellent qualities becomes fit to enter the Assembly of the learned!
Meaning
Indra, lord of light and ruling power, your devoted friend ever blest with the powers of lifes progress onwards like a chariot hero of war, enjoying grace of person and culture, wealth of knowledge and riches of the Earth, has his full share of good health, full age and gifts of existence, and he goes forward to the assembly of people with the graces of full moon among stars. (Rg. 8-4-9)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (इन्द्र) હે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! (यत्) કારણ કે (ते सखा) તારો મિત્ર જેને તારો સંગ કરી લીધો એવો સમાગમશીલ ઉપાસક (अश्वी) પ્રશસ્ત ઇન્દ્રિયરૂપ ઘોડાવાળો સંયમી (रथी) પ્રશસ્ત શરીરવાળો સ્વસ્થ (सुरूपः) પ્રશસ્ત સ્વરૂપવાળો શાંત આત્મા (गोमान्) પ્રશસ્ત વાણીવાળો યથાર્થ વક્તા (इत्) અવશ્ય ઉક્ત ગુણવાન બની જાય છે (श्वात्रभाजा वयसा सचते) શીઘ્રભાક્ શીઘ્ર પ્રાપ્ત કરનાર જીવનથી સમવેત બને છે . (सदाचन्द्रैः सभामुपयाति) સદા આહ્લાદક ગુણોથી સભામાં ઉપગત - પ્રાપ્ત થાય છે . ( ૫ )
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે ઐશ્વર્યવાન પરમાત્મન્ ! તારો સમાગમ કરનાર ઉપાસક પ્રશસ્ત ઇન્દ્રિયોવાળો સંયમી , પ્રશસ્ત શરીરવાળો સ્વસ્થ , પ્રશસ્ત સુંદર રૂપવાળો શાંતાત્મા , પ્રશસ્ત વાણીવાળો યથાર્થ વક્તા બની જાય છે તથા શીઘ્ર ફળગામી જીવનથી સમસ્ત કાર્યમાં પ્રવેશ કરે છે , સદા આહ્લાદક ગુણોથી સભામાં પ્રાપ્ત થાય છે અને શ્રેષ્ઠ સ્થાન પામે છે . ( ૫ )
उर्दू (1)
Mazmoon
اِیشور کا بھگت چاند تاروں سی روشنی کو پا لیتا ہے!
Lafzi Maana
ہے اِندر (یدتے سُکھا) جب تیرا بھگت سکھا ہو جاتا ہے، تب وہ (اشوی رتھی سُورُوپا) من پر قابُو رکھتے ہوئے شریر رُوپی گاڑی کا مالک اور پاکیزہ شکل ہو جاتا ہے، (گومان ویسا شواتر بھاجا سچئے) وید بانی کا گیاتا اور حواسِ خمسہ (اِندریوں) کو بس میں کر لیتا ہے، اپنے اِسی جنم میں ہی تیزی سے ترقی کرتا ہوا آپ اِیشور کے نزدیک ہو جاتا ہے اور ہمیشہ چاند ستاروں کی سی روشنی کو حاصل کر (سبھام اُپ یاتی) ہر ایک مجلس میں عزت پاتا ہے۔
Tashree
بھگوان آپ کا بھگت سَکھا جب اپنے کو وش کرتا ہے، بڑھتا ہُوا تیری طرف کو وہ پھر چندر سمان چمکتا ہے۔
मराठी (2)
भावार्थ
जो माणूस परमात्मा, राजा व आचार्याबरोबर मैत्री करतो तो पुरुषार्थी, बलवान, वाग्मी (पंडित), जितेन्द्रिय, मेधावी, रथवान, अश्ववान, गोमान, प्राणवान, धनवान, विज्ञानवान, कर्मवान, गुणवान, आयुष्मान बनून जनतेचे नेतृत्व करत जनसभा, विद्वत्सभा व राजसभेत प्रतिष्ठा प्राप्त करतो ॥५॥
विषय
परमेश्वर, राजा व आचार्यांच्या मैत्रीचे फळ
शब्दार्थ
हे (इंद्र) दुःखविदारक, सुखदाता, परमेैश्वर्यवान परमेश्वर / राजा / आचार्य (यत्) जेव्हा कोणी (ते) तुमचा (सखा) मित्र होतो. (तुमच्याशी सख्य निर्माण करतो) तेव्हा तो (अश्वी) पुष्कळ अश्वांचा मालक, प्रशस्त मनाचा, प्राण आणि इंद्रियांचा स्वामी बनतो. तो (रथी) प्रशस्त स्थलमाना, जलयान, वायु यानांचा अधिपती / मानव देहरूप रथाचा स्वामी होतो. (सुरूपः) प्रशस्त रूप व गुणांचा स्वामी आणि (गोमान्) गौ, भूमी आणि वाणीचा स्वामी (इत्) अश्वमेष होतो. (सः) तो (सदा) सदा (श्वात्रभाजा) धन, विज्ञान व त्वरित कार्य सिद्धी प्राप्त करतो) तसेच (चन्द्रैः) चंद्राप्रमाणे आल्हादक होऊन तो मनुष्य (सभाम्) प्रजा- सभा, विद्वत्सभा आणि राजसभा या सभांमध्ये (निवडून जातो वा नेमला) जातो. ।। ५।।
भावार्थ
जो माणूस परमेश्वराशी, राजासी वा आचार्याशी मैत्री जोडतो, तो पुरुषार्थी, बलवान, वाण्मी जितेंद्रिय, मेधावी, रथवान, अश्ववान, गोमान, प्राणवान, धनवान, विद्वानवान, कर्मज्ञान, गुणवान आणि आयुष्यात होऊन जनतेचे नेतृत्व करीत जनसभा, विद्वत्सभा आणि राजसभा या सभांमध्ये प्रतिष्ठित होतो, प्रतिष्ठा प्राप्त करतो.।। ५।।
विशेष
या मंत्रात श्लेष अलंकार आहे. ।। ५।।
तमिल (1)
Word Meaning
உன் நண்பன் சுபமான வடிவமுள்ளவனாய் ரதங்கள் குதிரைகள் பசுக்களில் ஐசுவரியமுள்ளவனாய் பலத்தை அளிக்கும் சக்தியோடு ஒருமையுடனாகிறான். (இன்னம்)
சந்தோஷ துதிகளோடு சந்திரர்களோடு சபையைசேர்கிறான்.
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