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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 387
    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः देवता - इन्द्रः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    30

    ए꣢तो꣣ न्वि꣢न्द्र꣣ꣳ स्त꣡वा꣢म꣣ स꣡खा꣢यः꣣ स्तो꣢म्यं꣣ न꣡र꣢म् । कृ꣣ष्टी꣡र्यो विश्वा꣢꣯ अ꣣भ्य꣢꣫स्त्येक꣣ इ꣢त् ॥३८७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ꣢ । इ꣣त । उ । नु꣢ । इ꣡न्द्र꣢꣯म् । स्त꣡वा꣢꣯म । स꣡खा꣢꣯यः । स । खा꣣यः । स्तो꣡म्य꣢꣯म् । न꣡र꣢꣯म् । कृ꣣ष्टीः꣢ । यः । वि꣡श्वाः꣢꣯ । अ꣣भ्य꣡स्ति꣢ । अ꣣भि । अ꣡स्ति꣢꣯ । ए꣡कः꣢꣯ । इत् ॥३८७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एतो न्विन्द्रꣳ स्तवाम सखायः स्तोम्यं नरम् । कृष्टीर्यो विश्वा अभ्यस्त्येक इत् ॥३८७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ । इत । उ । नु । इन्द्रम् । स्तवाम । सखायः । स । खायः । स्तोम्यम् । नरम् । कृष्टीः । यः । विश्वाः । अभ्यस्ति । अभि । अस्ति । एकः । इत् ॥३८७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 387
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 4; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 7
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 4;
    Acknowledgment

    हिन्दी (5)

    विषय

    अगले मन्त्र में सखाओं को इन्द्र परमेश्वर की स्तुति के लिए बुलाया जा रहा है।

    पदार्थ

    हे (सखायः) मित्रो ! तुम (नु) शीघ्र ही (एत उ) आओ। हम-तुम मिलकर (स्तोम्यम्) स्तुति के योग्य, (नरम्) नेता, (इन्द्रम्) राजाधिराज परमेश्वर की (स्तवाम) उपासना करें, (यः) जो (एकः-इत्) अकेला ही (विश्वाः कृष्टीः) सब मानवी प्रजाओं से (अध्यस्ति) महिमा में अधिक है ॥७॥

    भावार्थ

    जो अकेला होता हुआ भी करोड़ों-करोड़ों की संख्याओं में विद्यमान मनुष्यों से महिमा में अधिक है, उसी सकल ब्रह्माण्ड के अधीश्वर की सबको स्तुति और आराधना करनी चाहिए ॥७॥

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    पदार्थ

    (सखायः) हे उपासक मित्रो! (आ-इत-उ) आओ अवश्य आओ! (नु) शीघ्र (स्तोम्यं नरम्-इन्द्रम्) स्तुत करने योग्य नेता परमात्मा को (स्तवाम) स्तुत करें (यः) जो परमात्मा (एकः-इत्) एक ही—अकेला (विश्वाः कृष्टीः) सब कर्म—करने वाली प्रजाओं—मनुष्यों को “कृष्टय इति मनुष्यनाम कर्मवन्तो भवन्ति” [निरु॰ १०.२२] (अभ्यस्ति) कर्मफल प्रदान करने के लिए अभिभूत करता है—स्वाधीन करता है।

    भावार्थ

    स्तुति योग्य अपने नेता परमात्मा की स्तुति हम किया करें वह कर्म करने वाले कर्मयोनि मनुष्यों का अकेला स्वामी कर्मफल दाता है उससे भिन्न की स्तुति न करें, स्तुति करना भी शुभकर्म है इस शुभकर्म का फल शुभ देगा ही॥७॥

    विशेष

    ऋषिः—विश्वमना वैयश्वः (विशेष-संस्कृत इन्द्रिय घोड़े रखने में सम्पन्न—समर्थ और सबके प्रति समान मनोभाव वाला उपासक)॥<br>

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    विषय

    आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्—एक ओर सारा संसार—दूसरी ओर प्रभु

    पदार्थ

    सोम का शरीर सेचन आवश्यक है। उसके लिए 'जितेन्द्रिय होना' [इन्द्र ३८४] और अध्वर्यु=अहिंसक बने रहना [३८५] उत्तेजित न होना रूप उपायों का निर्देश हो चुका है। परन्तु सर्वमहान् साधन तो 'प्रभु स्तवन' है, उसी का प्रस्तुत मन्त्र में उल्लेख है—

    (एत उ)= निश्चय से आओ। (तु) = अब (इन्द्रम्) = उस प्रभु का (स्तदाम) = स्तवन करें। (सखायः) = हम सब समानरूप से प्रभु का ध्यान करनेवाले सखा हैं। सच्चा सखित्व तो यही है। वह प्रभु (स्तोभ्यम्) = स्तोमों के स्तूतिसमूहों के योग्य हैं। प्रभु की ही मनुष्य को स्तुति करनी चाहिए । प्रभु नरम्=हमें सदा आगे और आगे ही प्राप्त करानेवाले हैं। प्रभु की स्तुति हमारी लक्ष्य दृष्टि को ऊँचा बनाती है और हम उसी अनुपात में उन्नत होते चलते हैं।

    (यः) =जो प्रभु एक हैं परन्तु (एकः इत्) = वे अकेले ही (विश्वाः कृष्टीः) = सब उद्योगों में लगे मनुष्यों को (अभ्यस्ति) = दबा लेते हैं। सारा संसार मेरे विरोध में हो, पर प्रभु मेरे साथ हैं तो मेरा विजय निश्चित है। और इसके विपरीत सारा संसार साथ है और मैं प्रभु से दूर होऊँ तो मेरा पराभव भी उतना ही निश्चित है। इसीलिए आत्मा के लिए सारी पृथिवी के त्याग का उपदेश है। जो ऐसा कर सके वे महापुरुष हो गये। इसलिए चाहिए यही कि हम स्वर्ग के राज्य के लिए इस पृथिवी के राज्य को छोड़ने के लिए तैयार हो जाएँ। जिस दिन हम यह कर सके, उस दिन सोम के विनष्ट न होने से हम सचमुच आगे बढ़ेंगे। 

    भावार्थ

    जितेन्द्रियता, अनुत्तेजना व प्रभु-स्तवन इन तीन सोमपान के साधनों को क्रिया में लाकर हम आगे बढ़नेवाले नर हों ।

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    पदार्थ

    शब्दार्थ = ( सखायः ) = हे मित्रो ! ( एत उ ) = आओ आओ  ( य एक इत् ) = जो परमेश्वर एक ही  ( विश्वाः कृष्टीः ) = सब मनुष्यों को  ( अभ्यस्ति ) = तिरस्कृत शासित करने में समर्थ है  ( स्तोम्यम् नरम् ) = स्तुति योग्य सबके नायक  ( इन्द्रम् नु स्तवाम ) = परमेश्वर की शीघ्र हम स्तुति करें।

    भावार्थ

    भावार्थ = हे प्यारे मित्रो ! आओ, आओ हम सब मिलकर उस सर्वशक्तिमान् सबके नियन्ता एक प्रभु की शीघ्र स्तुति करें, हमारा शरीर क्षणभंगुर है, ऐसा न हो कि हमारे मन-की-मन में रह जाये, इसलिए प्राकृत पदार्थों में अत्यन्तासक्ति न करते हुए, उस स्तुति योग्य सबके स्वामी जगदीश्वर की स्तुति प्रार्थना उपासना में अपने मन को लगा कर शान्ति को प्राप्त होवें ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = हे ( सखायः ) = हे मित्रो ! ( एत उ नु ) = आओ । और  (स्तोम्यं ) = स्तुति के योग्य, ( नरं ) = नेता, ( इन्द्र ) = ऐश्वर्यवान् परमेश्वर की ( स्तवाम ) = स्तुति करें। ( यः ) = जो ( विश्वाः कृष्टी: ) = समस्त मनुष्यों पर ( एक इत् ) = अकेला ही ( अभि-अस्ति ) = व्यापक शासक है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - विश्वमना वैयश्वः।

    देवता - इन्द्रः।

    छन्दः - उष्णिक्।

    स्वरः - ऋषभः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सखाय इन्द्रं परमेश्वरं स्तोतुमाहूयन्ते।

    पदार्थः

    हे (सखायः) सुहृदः ! यूयम् (नु) क्षिप्रम् (एत उ) आगच्छत खलु, यूयं वयं च संभूय (स्तोम्यम्) स्तोमार्हम्, (नरम्) नेतारम् (इन्द्रम्) राजाधिराजं परमेश्वरम् (स्तवाम) उपासीमहि। स्तौतेर्लेटि रूपम्। (यः एकः इत्) यः एकलोऽपि (विश्वाः कृष्टीः) समस्ताः मानवीः प्रजाः (अभ्यस्ति) अभिभवति, महिम्ना अतिशेते ॥७॥

    भावार्थः

    य एकोऽपि सन् कोटिकोटिसंख्यासु विद्यमानान् मानवान् स्वमहिम्नाऽतिशेते स एव सकलब्रह्माण्डाधीश्वरः सर्वैरपि स्तोतव्य आराधनीयश्च ॥७॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।२४।१९। अथ० २०।६५।१ ‘सखायः स्तोम्यं’ इत्यत्र ‘सखाय स्तोम्यं’ इति पाठः।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O friends, come, let us sing praise to God, the Leader Who deserves the laud. He with none to aid overcomes all men!

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    Meaning

    Come friends all together and let us adore Indra, lord and leader worthy of joint worship and exaltation, who, by himself alone, rules over all peoples of the world. (Rg. 8-24-19)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ


    પદાર્થ : (सखायः) હે ઉપાસક મિત્રો ! (आ इत उ) આવો, અવશ્ય આવો ! (नु) શીઘ્ર (स्तोम्यं नरम् इन्द्रम्) સ્તુતિ કરવા યોગ્ય નેતા પરમાત્માને (स्तवाम) સ્તુતિ કરીએ (यः) જે પરમાત્મા (एकः इत्) એકલો જ (विश्वाः कृष्टीः) સર્વ કર્મ-કરનારી પ્રજાઓ-મનુષ્યોને (अभ्यस्ति) કર્મફળ પ્રદાન કરવા માટે અભિભૂત કરે છે-સ્વાધીન કરે છે. (૭)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : સ્તુતિ યોગ્ય આપણા નેતા પરમાત્માની અમે સ્તુતિ કર્યા કરીએ, તે કર્મ કરનાર કર્મયોનિ મનુષ્યોનો એકલો જ સ્વામી કર્મફળ દાતા છે, તેનાથી ભિન્નની સ્તુતિ ન કરીએ, સ્તુતિ કરવી એ પણ શુભકર્મ છે અને તેનું શુભ ફળ પણ આપશે જ. (૭)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    عالم ارواح کا اکیلا راجہ

    Lafzi Maana

    پیارے دوستو! آؤ اور اُس اپنے پیارے محبوب معبود والی دُنیا پرمیشور کے گُن گان کرو، جو سبھی عالم ارواح پر اکیلا ہی راج کر رہا ہے۔

    Tashree

    آؤ سکھے! بیٹھو یہاں اُش اِندر کی پوجا کریں، راج ہے سب پہ جو کرتا اُس میں اپنا من دھریں۔

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    बंगाली (1)

    পদার্থ

    এতোন্বিন্দ্রং স্তবাম সখায়ঃ স্তোম্যং নরম্ ।

    কৃষ্টীর্যো বিশ্বা অভ্যস্ত্যেক ইৎ।।৩০।।

    (সাম ৩৮৭)

     পদার্থঃ (সখায়ঃ) হে মিত্রগণ! (আ ইত উ) এসো এসো। (যঃ এক ইৎ) যে পরমেশ্বর একাই (বিশ্বাঃ কৃষ্টীঃ) সকল মানুষকে (অভ্যস্তি) শাসন করতে সমর্থ, (স্তোম্যম্ নরম্) স্তুতি যোগ্য। সবার নায়ক (ইন্দ্রম্ নু স্তবাম) সেই পরমেশ্বরকে শীঘ্রই আমরা স্তুতি করব। 

     

    ভাবার্থ

    ভাবার্থঃ হে প্রিয় মিত্রগণ! এখানে এসো। এসো আমরা সকলে মিলে সেই সর্বশক্তিমান, সকলের নিয়ন্তা এক ঈশ্বরের স্তুতি করি।  আমাদের শরীর ক্ষণস্থায়ী। তাই আমরা জীবিত থাকতেই আমাদের মনকে পার্থিব বিষয় বস্তুর আসক্তি থেকে সরিয়ে নিয়ে এসে সেই স্তুতিযোগ্য জগদীশ্বরের স্তুতি, প্রার্থনা, উপাসনাতে নিবিষ্ট করে পরম শান্তি প্রাপ্ত হই।।৩০।।

     

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जो एकटा असून करोडो करोडोच्या संख्येत असणाऱ्या माणसांपेक्षा महान आहे. त्याच संपूर्ण ब्रह्मांडाच्या अधीश्वराची स्तुती व आराधना केली पाहिजे ॥७॥

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    विषय

    सखा इंद्राची - परमेश्वराची स्तुती करण्याविषयी प्रेरणा

    शब्दार्थ

    हे (सखायः) मित्रहो, तुम्ही (तु) लवकर (एत) या. आम्ही - तुमही मिळून (स्तोभ्यम्) स्तवनीय असा जो (नरम्) नेता म्हणजे (इन्द्रम्) राजाधिराज परमेश्वराची (स्तवाम) उपासना करू या. (यः) जो (एक इत्) एकटाच (विश्वाः कृष्टी) सर्व मानवी प्रजेपेक्षा (अध्यस्ति) मोठेपणात सर्वाधिक आहे.।। ७।।

    भावार्थ

    परमेश्वर एकटा असूनही कोटी कोटी लोकांपेक्षा महिमेत सर्वाधिक आहे. सर्व जनांनी त्या सकल ब्रह्मांड - अधीश्वर परमेश्वराची स्तुती व आराधना केली पाहिजे.।। ७।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    நண்பர்களே ! துரிதமாகவும்; துதிக்கருகனான சர்வத்தின் தலைவனான இந்திரனைத் துதிப்போம், அவன் ஒருவனாகவே சர்வமான சத்துரு சைன்னியங்களை ஜயிக்கிறான்.

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