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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 395
    ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - आदित्याः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    27

    तु꣣चे꣡ तुना꣢꣯य꣣ त꣢꣫त्सु नो꣣ द्रा꣡घी꣢य꣣ आ꣡यु꣢र्जी꣣व꣡से꣢ । आ꣡दि꣢त्यासः समहसः कृ꣣णो꣡त꣢न ॥३९५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तु꣣चे꣢ । तु꣡ना꣢꣯य । तत् । सु । नः꣣ । द्रा꣡घी꣢꣯यः । आ꣡युः꣢꣯ । जी꣣व꣡से꣢ । आ꣡दि꣢꣯त्यासः । आ । दि꣣त्यासः । समहसः । स । महसः कृणो꣡त꣢न । कृ꣣णो꣡त꣢ । न꣣ ॥३९५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तुचे तुनाय तत्सु नो द्राघीय आयुर्जीवसे । आदित्यासः समहसः कृणोतन ॥३९५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    तुचे । तुनाय । तत् । सु । नः । द्राघीयः । आयुः । जीवसे । आदित्यासः । आ । दित्यासः । समहसः । स । महसः कृणोतन । कृणोत । न ॥३९५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 395
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 5
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 5;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र के आदित्य देवता हैं। इसमें दीर्घतर आयु की प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे (समहसः) तेजस्वी (आदित्यासः) आदित्य के समान ज्ञानप्रकाश से भासमान ब्रह्मवित् ब्राह्मणो ! अथवा हे मेरे प्राणो ! तुम (तुचे) सन्तान के लिए, (तुनाय) धन के लिए और (जीवसे) उत्कृष्ट जीवन के लिए (तत्) उस, अन्य प्राणियों से विलक्षण (नः आयुः) हमारी आयु को (द्राघीयः) अधिक लम्बी (सु कृणोतन) सुचारू रूप से कर दो ॥ सन्तान दो प्रकार की होती है, भौतिक और मानस। पुत्र, पुत्री आदि भौतिक तथा नवीन ज्ञान-विज्ञानादि मानस सन्तान कहलाती है। धन भी द्विविध होता है, भौतिक और आध्यात्मिक। चाँदी, सोना, कपड़ा, धान्य, मुद्रा आदि भौतिक धन तथा अहिंसा, सत्य, न्याय, योगसिद्धि आदि आध्यात्मिक धन कहाता है। उत्कृष्ट जीवन भी दो प्रकार का होता है, बाह्य और आध्यात्मिक। भौतिक सुख-सम्पदा आदि से पूर्ण जीवन बाह्य और अध्यात्म-पथ का पथिक जीवन आध्यात्मिक कहाता है। यह सब हमारे लिए सुलभ हो, एतदर्थ लम्बी आयु की प्रार्थना की गयी है ॥५॥ इस मन्त्र में ‘तुना, तन’ में छेकानुप्रास अलङ्कार है। त्, स् और न् की पृथक्-पृथक् अनेक बार आवृत्ति में वृत्त्यनुप्रास है ॥५॥

    भावार्थ

    प्राणायाम से और विद्वान् ब्राह्मणों द्वारा उपदेश किये गये मार्ग का अनुसरण करने से हमारी आयु अधिक लम्बी हो सकती है। अधिक लम्बी आयु प्राप्त कर अपनी रुचि के अनुसार प्रेय-मार्ग या श्रेय-मार्ग में हमें पग रखना चाहिए ॥५॥

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    पदार्थ

    (सुमहसः-आदित्यासः) हे सुमहान् परमात्मशक्तिप्रवाहो! (नः) हमें (तुचे) अपत्य—पुत्र के लिये “तुक्-अपत्यनाम” [निघं॰ २.२] (तुनाय) पौत्र के लिये (तत् सु) वह अच्छे (द्राघीयः-आयुः) अतिदीर्घ आयु को (जीवसे) जीवन के लिये (कृणोतन) सम्पादित करो।

    भावार्थ

    परमात्मा के ऐश्वर्यप्रवाह से सुमहान् हुए उपासक के जीने के लिये अतिदीर्घ आयु पुत्र और पौत्र देते हैं॥५॥

    विशेष

    ऋषिः—इरिम्बिठः (हृदयाकाश में परमात्मा को बिठाने वाला)॥ देवता—आदित्यः “इन्द्रसम्बद्ध आदित्यः” ऐश्वर्यवान् परमात्मा से सम्बद्ध आदित्य)॥<br>

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    विषय

    प्रकाशमय जीवन

    पदार्थ

    प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि ‘इरिम्बिठि काण्व' है- जिसका हृदयान्तरिक्ष गति के संकल्प से पूर्ण है [बिठ= अन्तरिक्ष, इर् = गतौ ] । यह निरन्तर गति करता हुआ थोड़ा-थोड़ा करके प्रकाश को अपने अन्दर भरने का प्रयत्न करता है, अतः 'काण्व' है। यह प्रार्थना करता है कि हे (स-महसः) = तेजस्वितावाले (आदित्यास:) = आदित्यों! (नः तत् आयु:) = हमारे उस आयुष्य को (जीवसे) = उत्तम जीवन के लिए (द्राघीयः) = विदीर्ण अन्धकारवाला [दृ-विदारणे] (सुकृणोतन) = उत्तमता से करो। दीर्घ शब्द का अर्थ लम्बा है। हिन्दी में 'चल लम्बा हो' इस मुहावरे में लम्बे होने का अर्थ भाग जाना ही है। इस भावना को लेकर भी प्रार्थना का स्वरूप यही है कि हमारे जीवन को ऐसा बनाओ जिसमें से कि अन्धकार भाग गया है। आदित्यों का विशेषण 'समहस' देकर प्रकाश के साथ तेजस्विता की याचना का भी संकेत है। हमारा जीवन प्रकाशमय व तेजस्वी हो। जीवन तो है ही वह जोकि विज्ञान व विक्रम के यशों से सम्पन्न है। इनके बिना तो जीवन लोहार की भस्त्रा = धौंकनी के समान है, वह भी तो श्वास लेती ही है।

    हमारे पश्चात भी हमारा घर प्रकाश व तेज से रहित न हो, अतः मन्त्र में प्रार्थना करते हैं कि (तुचे) = हमारे पुत्रों के लिए भी प्रकाशमय जीवन दीजिए। पुत्र के पश्चात् तुनाय= पौत्र [तुन=वंश-विस्तार करनेवाला] के लिए भी प्रकाश प्राप्त कराईये । पौत्र के लिए ही क्या! अपत्यं पौत्र-प्रभृति गोत्रम' इस नियम से कि पौत्र से लेकर सब संतान गोत्र कहलाते हैं, हमारे गोत्र को आप प्रकाशमय और तजस्वी बनाएँ । 

    आदित्यों से प्रार्थना का अभिप्राय यह है कि सूर्य की बारह संक्रान्तियों से बारह आदित्य कहलाते हैं और जिनसे बारह मास बनते हैं हम उन मासों के नक्षत्रवादी नामों से यह बोध लें कि १. हम इस संसार - वृक्ष की 'विशाखा' = विशिष्ट - सर्वोत्तम शाखा बनेंगे, २. यह संकल्प ही हमें ‘ज्येष्ठा' ज्येष्ठ बनाएगा, ज्येष्ठ बनने का अभिप्राय 'अषाढ़ा' काम आदि शत्रुओं से पराजित न होना है, ४. इसके लिए आवश्यक है कि 'श्रवणा ' हम विद्वानों के उपदेश का श्रवण करें, ५. यही 'भद्रपदा' कल्याण का मार्ग है, ६. इसपर चलने के लिए ‘अश्विनी'=कल-कल की [ श्व: श्व:] उपासना नहीं करनी, ७. कृत्तिका - कामादि शत्रुओं का अभी से छेदन प्रारम्भ कर देना है, ८. इन्हें ढूंढ-ढूंढ कर इनका नाश करना है, अतः हम ‘मृग-शिरस्’=ढूंढनेवालों के मुखिया बनें, ९. इन्हें नष्ट करके 'पुष्य' अपना पोषण करें, १०. जिससे हमारे जीवनों मे [मा- अघ] पाप का लवलेश न हो और यह निर्मलता के उस एश्वर्य से सम्पन्न हो जिससे कि ११. संसार का ऐश्वर्य 'ल्गुनी' फोक-सा प्रतीत हो और १२. चित्रा हमारे जीवनों में यह 'आश्चर्य' कर सकनेवाले हम बनें। 

    भावार्थ

    आदित्यों से प्रेरणा प्राप्त कर के हम अपने जीवनों को प्रकाशमय बनाएँ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = हे ( सुमहसः ) = तेजस्वी ( आदित्यासः ) = आदित्यरश्मियों के समान तेजस्वी विद्वान् गुरुओ ! ( नः तुचे ) = हमारे पुत्र  ( तुनाय ) = और सन्तान चलाने हारे पौत्र और ( नः ) = हमारे ( जीवसे ) = जीवन के निमित्त ( तत् ) = वह ( द्राघीयः ) = दीर्घ ( आयुः ) = आयु ( सु कृणोतन ) = करो ।

    टिप्पणी

    ३९५ - 'तुचेतनाय' 'सुमहसः' इति च पाठभेद:। 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - इरिमिठिः ।

    देवता - आदित्याः।

    छन्दः - उष्णिक्।

    स्वरः - ऋषभः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथादित्या देवताः। अत्र दीर्घतरमायुः प्रार्थ्यते।

    पदार्थः

    हे (समहसः) सतेजसः (आदित्यासः) आदित्यवज्ज्ञानप्रकाशेन भासमानाः ब्रह्मविदो ब्राह्मणाः, मदीयाः प्राणाः वा ! एते खलु वादित्या यद् ब्राह्मणाः। तै० ब्रा० १।१।९।८। प्राणा वा आदित्याः। जै० उ० ब्रा० ४।२।९। यूयम् (तुचे) अपत्याय, तुक् इत्यपत्यनाम। निघं० २।२। (तुनाय२) धनाय। तना इति धननामसु पठितम्। निघं० २।१०। अत्र अकारस्य उकारादेशश्छान्दसः। (जीवसे) उत्कृष्टजीवनाय च। जीव धातोः ‘तुमर्थे सेसेनसेअसेन्०। अ० ३।४।९’ इति तुमर्थे असे प्रत्ययः। (तत्) इतरप्राणिविशिष्टत्वेन प्रसिद्धम् (नः आयुः) अस्माकम् आयुष्यम् (द्राघीयः) दीर्घतरम् (सुकृणोतन) सुचारुरूपेण कुरुत। कृवि हिंसाकरणयोर्लोटि मध्यमबहुवचने ‘कृणुत’ इति प्राप्ते ‘तप्तनप्तनथनाश्च। अ० ७।१।४५’ इति तस्य तनबादेशः३, तस्य च पित्त्वान्ङित्त्वाभावे गुणः ॥ अपत्यं तु द्विविधं, भौतिकं मानसं च। भौतिकं पुत्रदुहित्रादिरूपं, मानसं च नूतनज्ञानविज्ञानादिरूपम्। धनमपि द्विविधं, भौतिकम् आध्यात्मिकं च। रजतसुवर्णवस्त्रधान्यमुद्रादिरूपं भौतिकम्, अहिंसासत्यन्याययोगसिद्ध्यादिरूपं चाध्यात्मिकम्। उत्कृष्टजीवनमपि द्विविधं, बाह्यम् अध्यात्मं च। भौतिकसुखसम्पदादिपूर्णं बाह्यम्, अध्यात्मपथपथिकत्वरूपं च अध्यात्मम्। तदेतत्सर्वं सुलभमस्माकं स्यादित्येतदर्थं दीर्घतरम् आयुः प्रार्थ्यते ॥५॥ अत्र ‘तुना, तन’ इति छेकानुप्रासोऽलङ्कारः। तकार-सकार-नकाराणां पृथक्-पृथग् असकृदावृत्तौ च वृत्त्यनुप्रासः ॥५॥

    भावार्थः

    प्राणायामेन, विपश्चिद्भिर्ब्राह्मणैरुपदिष्टस्य पथोऽनुसरणेन चास्माकमायुर्द्राघीयो भवितुमर्हति। दीर्घतरमायुष्यं प्राप्य यथारुचि प्रेयोमार्गे श्रेयोमार्गे वाऽस्माभिः पदं निधेयम् ॥५॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।१८।१८ ‘तुनाय’ इत्यत्र ‘तनाय’ इति पाठः। २. तुना इति तु धननाम, तस्मादियं तादर्थ्ये चतुर्थी। धनस्य चार्थायेत्यर्थः—इति वि०। तनोतेस्तुनः पौत्रः, तुनाय पौत्राय—इति भ०। तनोति कुलमिति तुनः पौत्रः। उकारोपजनश्छान्दसः। अत एव बह्वृचाः ‘तनाय’ इति पठन्ति—इति सा०। ३. इदं पाणिन्यभिप्रायेण प्रोक्तम्। यास्कमते तु नकार उपजनः, यथा स प्राह—‘कुरुतन’ इत्यनर्थका उपजना भवन्ति, कर्त्तन, हन्तन, यातन इति (निरु० ४।७)। पदकारस्यापि तदेवाभिप्रेतम्, यतोऽसौ ‘युयोत न’ इत्यवग्रहं प्रदर्शयति।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O very mighty, learned preceptors, grant to our sons and grandsons, this lengthened term of life that they may live long days!

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    Meaning

    O Adityas, refulgent lords of light and mighty masters of life giving energies, for the joyous living and longevity of our children and their off-spring, create and bring the holy gift of good health and long life of peace and felicity. (Rg. 8-18-18)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ


    પદાર્થ : (सुमहसः आदित्यासः) હે સુમહાન પરમાત્મશક્તિ પ્રવાહો (नः) અમારા (तुचे) પુત્રોને માટે (तुनाय) પૌત્ર આદિને માટે (तत् सु सु) તે સારી (द्राघीयः आयुः) અતિ દીર્ઘ આયુને (जीवसे) જીવન માટે (कृणोतन) સંપાદિત કરો. (૫)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્માનાં ઐશ્વર્ય પ્રવાહથી સુમહાન બનેલ ઉપાસકને જીવવા માટે અતિદીર્ઘ આયુ, પુત્ર અને પૌત્ર આપે છે. (૫)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    عمر دراز ہو ہماری آل الاد کی!

    Lafzi Maana

    پُورن برہم چریہ کے پرتاپ سی یُکت مہان بل اور تیج وان وِدوانو! ہمارے پُتر پوتروں کے لئے اپنا اُتم اُپدیش دے کر اُن کی عمر دراز کیجئے!

    Tashree

    عمر لمبی دو ہمارے پُتر پوتوں کی بنا، ایسا دو اُپدیش وِدوانو! نوازش ہو سدا۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    प्राणायामाने व विद्वान ब्राह्मणांद्वारे उपदेश केलेल्या मार्गाचे अनुसरण करण्याने आमचे आयुष्य दीर्घ होऊ शकते. अधिक आयू प्राप्त करून आपल्या रुचीनुसार प्रेयमार्ग किंवा श्रेयमार्गात आम्हाला जाता येते ॥५॥

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    विषय

    आदित्य देवता। येथे दीर्घतर आमूची प्रार्थना

    शब्दार्थ

    हे (समहसः) तेजस्वी (आदित्यासः) आदित्याप्रमाणे ज्ञान- प३काशाने भासमान ब्रह्मवित् ब्राह्मणहो, अथवा हे माझ्या प्राणांनो, तुम्ही(तुचे) संतती प्राप्तीसाठी (तुनाम) धनासाठी आणि (जीवसे) उत्तम, दीर्घ आयुष्यासाठी (त्) त्या, इतर प्राण्यांपेक्षा वेगळी असलेल्या अशा (नः आयुः) आमच्या आयुष्याला (द्राघीयः) अधिक दीर्घ (सु कृणोतन) सुंदर सुरू करा.।। संतती दोन प्रकारची असते - भौतिक संतान आणि मानस संतान. पुत्र, पुत्री आदी भौतिक संताने आणि नवीन ज्ञान - विज्ञान आदींना मानसिक संतान म्हणतात. धनदेखील दोन प्रकारचे सते. भौतिक आणि आध्यात्मिक चांदी, सोने, कापड, धान्य, नाणी आदी भौतिक धन असून अहिंसा, सत्य, न्याय, योगसिद्धी आदींना आध्यात्मिक धन म्हटले जाते. उत्कृष्ट जीवनदेखील दोन प्रकारचे सते. बाह्य आणि आध्यात्मितक. भौतिक सुख- संपदेने परिपूर्ण जीवनाला बाह्य जीवन मानावे व अध्यात्म- मार्गाचा जो यात्री त्याच्या जीवनाला आध्यात्मिक जीवन समजावे. हे सर्व आम्हांकरिता सुलभ व्हावे, म्हणून दीर्घ जीवनासाठी प्रार्थना केली आहे.।। ५।।

    भावार्थ

    प्राणायामाने आणि विद्वान ब्राह्मणांनी केलेल्या उपदेशाचे पालन केल्यामुळे आमचे आयुष्य दीर्घ होऊ शकते. दीर्घायू प्राप्त करून आम्ही आपल्या आवडीप्रमाणे प्रेय मार्ग वा श्रेय मार्ग अनुसरावा.।। ५।।

    विशेष

    या मंत्रात ‘तु, तन’मध्ये छेकानुप्रास आहे. ‘त्, स्, न्’ या वर्णांची पुनरावृत्ती असल्यामुळे वृत्त्यनुप्रास अलंकार आहे.।। ५।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    தேஜசுள்ளவர்களே! [1](ஆதித்தியர்களே)! எங்கள் மக்கட்களுக்கு சந்ததிகளுக்கு நீடுழி காலம் சீவிக்க தீர்க்கமான வாழ்க்கையைச் செய்யவும்.

    FootNotes

    [1]ஆதித்தியர்களே - பன்னிரண்டு மாதங்கள்

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