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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 397
    ऋषिः - इरिम्बिठिः काण्वः देवता - आदित्याः छन्दः - उष्णिक् स्वरः - ऋषभः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    33

    अ꣡पामी꣢꣯वा꣣म꣢प꣣ स्रि꣢ध꣣म꣡प꣢ सेधत दुर्म꣣ति꣢म् । आ꣡दि꣢त्यासो यु꣣यो꣡त꣢ना नो꣣ अ꣡ꣳह꣢सः ॥३९७॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣡प꣢꣯ । अ꣡मी꣢꣯वाम् । अ꣡प꣢ । स्रि꣡ध꣢꣯म् । अ꣡प꣢꣯ । से꣣धत । दुर्मति꣢म् । दुः꣣ । मति꣢म् । आ꣡दि꣢꣯त्यासः । आ । दि꣣त्यासः । युयो꣡त꣢न । यु꣣यो꣡त꣢ । न꣣ । नः । अँ꣡ह꣢꣯सः ॥३९७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपामीवामप स्रिधमप सेधत दुर्मतिम् । आदित्यासो युयोतना नो अꣳहसः ॥३९७॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अप । अमीवाम् । अप । स्रिधम् । अप । सेधत । दुर्मतिम् । दुः । मतिम् । आदित्यासः । आ । दित्यासः । युयोतन । युयोत । न । नः । अँहसः ॥३९७॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 397
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 1; मन्त्र » 7
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 5;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र के आदित्य देवता हैं। उनसे कष्ट आदि के निवारण की प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे (आदित्यासः) शरीरस्थ प्राणो, राष्ट्रस्थ क्षत्रिय राजपुरुषो अथवा आदित्य ब्रह्मचारियो ! तुम शरीर, समाज और राष्ट्र से (अमीवाम्) रोग को (अप) दूर करो, (स्रिधम्) हिंसावृत्ति, शत्रुकृत हिंसा और हिंसक को (अप) दूर करो, तथा (दुर्मतिम्) कुमति को (अप सेधत) दूर करो। साथ ही (नः) हमें (अंहसः) पाप से (युयोतन) पृथक् करो ॥७॥

    भावार्थ

    प्राणायाम से, क्षत्रिय राजपुरुषों के कर्तव्यपालन से और आदित्य ब्रह्मचारियों के प्रयत्न से राष्ट्र से यथायोग्य रोग, हिंसावृत्तियाँ, शत्रुकृत हिंसा-उपद्रव आदि तथा पाप दूर किये जा सकते हैं ॥७॥

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    पदार्थ

    (आदित्यासः) हे परमात्मतेज तरङ्गो! तुम (अमीवाम्-अपसेधत) मुझ उपासक के अन्दर से रोग को दूर कर दो (स्रिधम्-अप) शोषण करने वाले शोक को “स्रिव गतिशोषणयोः” [दिवा॰] ‘ततो धक् प्रत्यय औणादिकः’ (दुर्मतिम्-अप) दुर्मन्तव्य अन्यथा विचार को दूर करो (नः-अहंस-युयोतन) हमें पाप से पृथक् कर दो।

    भावार्थ

    उपासक के अन्दर परमात्मा के तेज तरङ्ग उसके अन्दर से रोग को शोक को दुर्विचार को दूर भगा देते हैं तथा उपासकों के पापकृत्यों को पृथक् कर देते हैं॥७॥

    विशेष

    ऋषिः—इरिम्बिठः (हृदयाकाश में परमात्मा को प्राप्त करने वाला)॥ देवता—आदित्याः “इन्द्रसम्बद्धाः” (परमात्मा से सम्बन्ध रखने वाले अध्यात्म तेज प्रवाह)॥<br>

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    विषय

    रोग, कुत्सा व दुर्मति का यावन

    पदार्थ

    हे (आदित्यासः) = आदित्यो! निरन्तर क्रियाशीलता का उपदेश देनेवाले सूर्यो! (न:) = हमें अपनी प्रेरणा से क्रियाशील बनाकर (अहंस:) = कुटिलता से (युयोतन) = पृथक करो । तमोगुणी आलसी पुरुष अत्याधिक बदले की भावना से चलता है। वह कुटिलता की दिशा में ही सोचता है। हम आदित्यों की प्रेरणा से क्रियाशील बनकर कुटिलता से दूर हों। जिस प्रकार सूर्य सतत् क्रियाशील है इसी प्रकार हम भी क्रियाशील बनें। क्रियाशीलता ही हमें कुटिलता से बचा सकती है।

    कुटिलता से बचने के साथ क्रियाशीलता के परिणामस्वरूप ये आदित्य (अभीवाम्) = ‘रोगकृमियों को हमसे (अपसेधत) = दूर करते हैं। अकर्मण्य व आलसी शरीर में ही बिमारियाँ आती हैं। व्यायामशील के समीप तो बिमारियाँ उसी प्रकार नहीं आती जैसे कि गरुड़ के समीप सर्प। हे आदित्यो! (स्त्रिधम्) = कुत्सा को, हिंसा को औरों के प्रति द्वेषादि की भावना को हमसे दूर करो। स्तुति - निन्दा में वे ही व्यक्ति चलते हैं जो अकर्मण्य होते हैं। इसी प्रकार (दुर्मतिम्) = अशुभ विचारों को हमसे दूर करो। क्रियाशील व्यक्ति का मस्तिष्क भी कभी दूषित विचारधाराओं को अपने मस्तिष्क में स्थान नहीं देता। इसीलिए हमें 'इरिम्बिठि' बनना ही चाहिए। हम थोड़ा-थोड़ा करके इस बात का अभ्यास करें कि हमारे हृदय कर्म-संकल्प वाले हों ।

    भावार्थ

    मैं आदित्यों से क्रिया की प्रेरणा को प्राप्त करके रोग-कुत्सा व दुर्गति से दूर हो जाऊँ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = हे  ( आदित्यास:) = आदित्य राश्मियो ! विद्वान् पुरुषो ! प्राणो ! ( नः ) = हमारे ( अमीवाम् ) = रोग को ( अप सेधत ) = दूर करो, ( सृधम् अप ) = हमारे बाधाजनक भीतरी शत्रु को दूर करो और ( दुर्मतिम् ) = दुष्ट मति वाले पुरुष, तथा दुःखदायी दुःसंकल्प को ( अप सेधत ) = दूर करो । ( नः ) = हमें ( अंहस: ) = पापों से ( युयोतन ) = पृथक् करो । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - इरिमिठि:। 

    देवता - आदित्याः।

    छन्दः - उष्णिक्।

    स्वरः - ऋषभः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथादित्या देवताः। ते कष्टादीनां निवारणाय प्रार्थ्यन्ते।

    पदार्थः

    हे (आदित्यासः) शरीरस्थाः प्राणाः, राष्ट्रस्थाः क्षत्रियाः राजपुरुषाः, आदित्यब्रह्मचारिणो वा ! त्यान् नु क्षत्रियाँ॒ अव॑ आदि॒त्यान् या॑चिषामहे। ऋ० ८।६७।१—इति श्रुतेः क्षत्रिया राजपुरुषा अपि आदित्या उच्यन्ते। यूयम् शरीरात् समाजाद् राष्ट्राच्च (अमीवाम्) रोगम्। अम रोगे चुरादिः। (अप) अपसेधत अपगमयत, (स्रिधम्२) हिंसावृत्तिं, शत्रुकृतां हिंसां, हिंसकं वा (अप) अपसेधत अपगमयत। (दुर्मतिम्) कुमतिं च (अपसेधत) अप गमयत। सेधतिः गतिकर्मा। निघं० २।१४। किञ्च (नः) अस्मान् (अंहसः) पापात् (युयोतन) पृथक्कुरुत। यु मिश्रणामिश्रणयोः अदादिः, लोटि मध्यमबहुवचने ‘बहुलं छन्दसि। अ० २।४।७६’ इति शपः श्लौ ‘युयुत’ इति प्राप्ते ‘तप्तनप्तनथनाश्च। अ० ७।१।४५’ इति तस्य तनबादेशः। संहितायां दीर्घश्छान्दसः ॥७॥

    भावार्थः

    प्राणायामेन, क्षत्रियाणां राजपुरुषाणां कर्तव्यपालनेन, आदित्यब्रह्मचारिणां प्रयत्नेन च राष्ट्राद् यथायोग्यं रोगा हिंसावृत्तयः शत्रुकृता हिंसोपद्रवादयः पापानि च दूरीकर्तुं शक्यन्ते ॥७॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ८।१८।१०। २. सृधम् शोषयितारम् उद्वेगकरं सत्त्वादि—इति वि०। स्रिधं हिंसां शत्रुभिः क्रियमाणाम्। क्षयो वा स्रिक्—इति भ०। स्रिधं बाधकं शत्रुम्—इति सा०।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O learned persons, drive Ye disease and strife away, drive Ye away malignity. Keep us far removed from sin!

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    Meaning

    May the Adityas, powers of light and life in nature and humanity, drive away all disease of body and mind and keep off negativities of thought and intelligence from us. May the children of imperishable divinity keep us safe, far away from the onslaughts of sin and adversity. (Rg. 8-18-10)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ


    પદાર્થ : (आदित्यासः) હે પરમાત્મતેજ તરંગો ! તમે (अमीवान् अपसेधत) મારા-ઉપાસકના અંદરથી રોગને દૂર કરી દો (स्रिधम् अप) શોષણ કરનારા શોકને (दुर्मतिम् अप) દુર્મતિ-દુષ્ટ વિચારોને દૂર કરો (नः अहंस युयोतन) અમને પાપથી પૃથક કરો. (૭)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : ઉપાસકની અંદર પરમાત્માના તેજ તરંગો તેની અંદરના રોગને, શોકને, દુર્વિચારને દૂર ભગાડી દે છે તથા ઉપાસકનાં પાપકૃત્યોને દૂર કરી નાખે છે. (૭)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    دُور کرو دُور کرو دُور کرو

    Lafzi Maana

    سُورج کی طرح چمکتے ہوئے تیجسوی وِدوانو! ہمارے روگوں کو دُور کرو، ہمارا لہو پی جانے والی چنتاؤں، کمزوریوں اور شتروؤں کو دُور کرو، دُشٹ بُدھی کو دور کرو، اور پاپوں سے دُور کیجئے۔

    Tashree

    ہے دیوو وِدوانو! بچاؤ پاپ کے سنتاپ سے، روگ، دُشٹ وِچار، دُشٹ آچار، چنتا تاپ سے۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    प्राणायामाने क्षत्रिय राजपुरुषांच्या कर्तव्यपालनाने व आदित्य ब्रह्मचाऱ्यांच्या प्रयत्नाने राष्ट्रातून रोग, हिंसावृत्ती, शत्रुकृत हिंसा उपद्रव इत्यादी व पाप दूर केले जाऊ शकतात ॥७॥

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    विषय

    मंत्राची देवता - आदित्य / त्याला कष्ट निवारणासाठी प्रार्थना केली आहे -

    शब्दार्थ

    हे (आदित्यासः) शरीरातील प्राणांनो राष्ट्रातील क्षत्रिय राजपुरुषहो अथवा हे आदित्य ब्रह्मचारी गणहो, तुम्ही शरीरातून, राष्ट्रातून आणि समाजातून (अमीवाम्) रोग, (अन्याय व अज्ञान) (अप) दूर घालवा. (स्रिधम्) हिंसा वृत्ती, शत्रूकृत हिंसा आणि हिंसक यांना (अप) दूर करा तसेच (दुर्मतिम्) दुर्बुद्दी (अप सेधत) दूर फेकून द्या. त्यासोबतच (नः) आम्हाला (अंहसः) पापापासून (युयोतन) वेगळे ठेवा.।। ७।।

    भावार्थ

    प्राणायामाद्वारे रोगादी दोष, क्षत्रिय राजपुरुषांद्वारे कर्तव्य पालन करून हिंसा वृत्ती वा शत्रू उपद्रव, आणि आदित्य ब्रह्मचारी जनांद्वारे प्रयत्न करून पाप वृत्ती आदी नष्ट करता येतात.।।७।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    (ஆதித்தியர்களே)! (ஒளிகளுடனான ஈசனே) ரோகத்தை நீக்கவும். வேதனை செய்யும் சத்துருவைத் துரத்தவும். துஷ்ட புத்தி உள்ளவனையும் ஒழிக்கவும். எங்களை பாபங்களினின்று பிரிக்கவும்.

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