Loading...

सामवेद के मन्त्र

  • सामवेद का मुख्य पृष्ठ
  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 431
    ऋषिः - ऋण0त्रसदस्यू देवता - पवमानः सोमः छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    20

    इ꣡न्दुः꣢ पविष्ट꣣ चा꣢रु꣣र्म꣡दा꣢या꣣पा꣢मु꣣प꣡स्थे꣢ क꣣वि꣡र्भ꣢꣯गाय ॥४३१॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ꣡न्दुः꣢ । प꣣विष्ट । चा꣡रुः꣢꣯ । म꣡दा꣢꣯य । अ꣣पा꣢म् । उ꣣प꣡स्थे꣢ । उ꣣प꣢ । स्थे꣣ । कविः꣢ । भ꣡गा꣢꣯य ॥४३१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्दुः पविष्ट चारुर्मदायापामुपस्थे कविर्भगाय ॥४३१॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इन्दुः । पविष्ट । चारुः । मदाय । अपाम् । उपस्थे । उप । स्थे । कविः । भगाय ॥४३१॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 431
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 5
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 9;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में पुनः परमेश्वर और राजा का विषय है।

    पदार्थ

    (चारुः) रमणीय, (कविः) दूरदर्शी, मेधावी, (इन्दुः) चन्द्रमा के समान आह्लादक और सोम ओषधि के समान रसागार, शान्ति के सौम्य प्रकाश से प्रदीप्त करनेवाला परमेश्वर और राजा (मदाय) आनन्द उत्पन्न करने के लिए, और (भगाय) ऐश्वर्य उत्पन्न करने के लिए (अपाम्) प्राणों के (वा) जल के समान शान्त प्रजाओं के (उपस्थे) मध्य में स्थित होकर (पविष्ट) पवित्रता देवे ॥५॥ इस मन्त्र में अर्थश्लेष अलङ्कार है ॥५॥

    भावार्थ

    परमेश्वर के समान राजा भी चारुदर्शन, विवेकी, क्रान्तदर्शी, चन्द्रमा के समान मधुर, प्रेमरस तथा वीररस से परिप्लुत, परमानन्द और धन का दाता, पवित्र एवं पवित्रतादायक होवे ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    पदार्थ

    (इन्दुः) आर्द्र—स्नेहपूर्ण उपासनारस (अपाम्-उपस्थे) जलों के उपस्थान—तट पर (चारुः) सुन्दर प्रिय (कविः) क्रान्त—चलता हुआ (मदाय) हर्ष के लिए (भगाय) परमात्मा के भगस्वरूप के लिये (पविष्ट) चलता रहे।

    भावार्थ

    जलप्रवाहों के तट पर उपासनारस सुन्दर एवं चलता हुआ हर्ष—प्राप्ति तथा परमात्मा के ऐश्वर्य प्राप्ति के लिये सिद्ध होता है॥५॥

    विशेष

    ऋषिः—ऋणत्रसदस्यू ऋषी (ऋणत्रास को क्षीण करने वाले जप और स्वाध्यायकर्ता)॥ देवता—पवमानः सोमः (आनन्दप्रद उपासनारस)॥ छन्दः—द्विपदा पंक्तिः॥<br>

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उत्कर्ष की परिनिष्ठा

    पदार्थ

    सोम का नाम ‘इन्दु' भी है। यह बिन्दु का ही रूपान्तर है। बिन्दु सोमकणों का नाम है—‘मरणं बिन्दुपातेन, जीवनं बिन्दुधारणात् ' । [ इन्दति to be powerful] इसका नाम इन्दु इसलिए पड़ा कि यह सम्पूर्ण शक्ति का स्रोत है। यह (पविष्ट)= मेरे जीवन को पवित्र बनाता है। सोम से उत्पन्न ‘शक्ति, पवित्रता व ज्ञान' ये सब तत्त्व मिलकर (चारु:) = मेरे जीवन के सौन्दर्य का हेतु होते हैं। (मदाय) = यह जीवन मेरे उल्लास के लिए होता है। सौन्दर्य के साथ उल्लास का स्वाभाविक सम्बन्ध है। सौन्दर्य व उल्लास से युक्त होकर यह (अपाम्) = कर्मों के (उपस्थे) = मध्य में बिराजता है। यह कर्मों से घबरा कर पर्वत कन्दराओं का आश्रय नहीं करता। यह कवि बनकर कर्म करता है जिससे उनमें उलझ न जाए। (कविः) = क्रान्तदर्शी, तत्त्वद्रष्टा होने से उन कर्मों को यह असक्तभाव से करता चलता है। कर्म उसके लिए स्वाभाविक हो जाते हैं। यह (भगाय) = ऐश्वर्यादि छह भगों की प्राप्ति के समर्थ होता है। उन्हें प्राप्त करके भगवान्-सा बन जाता है। विद्वान् लोग इन्हें वीर मानकर आदर देने लगते हैं। यह मनुष्य के उत्कर्ष की परिनिष्ठा होती है उसका उत्कर्ष यहाँ चरम विकास पर होता है। 

    भावार्थ

    मैं सोमपान से सुन्दर, उल्लासमय, कर्मठ, क्रान्तदर्शी व अनासक्त [वैराग्य युक्त] जीवनवाला बनूँ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( अपाम् उपस्थे ) = जलों के समीप या प्रजाओं के समीप या कर्म और ज्ञानों के बीच में ( मदाय चारुः ) = हर्ष उत्पन्न करने में श्रेष्ठ, ( कविः ) = क्रान्तदर्शी विद्वान् ( भगाय ) = सौभाग्य, ऐश्वर्य या उचित कर्म फल के आनन्दभोग के निमित्त ( इन्दुः ) = ऐश्वर्यशील सोम ( पविष्ट ) = गति करता है या प्रकट होता है । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - ऐश्वरा धिष्ण्या अग्नयः। 

    देवता - पवमानः। 

    छन्दः - द्विपदा पङ्क्तिः।

    स्वरः - पञ्चमः। 

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ पुनरपि परमेश्वरनृपत्योर्विषयमाह।

    पदार्थः

    (चारुः) रमणीयः (कविः) क्रान्तद्रष्टा, मेधावी (इन्दुः) चन्द्रवदाह्लादकः सोमौषधिवद् रसागारः, शान्तेः सौम्यप्रकाशेन प्रदीपयिता परमेश्वरो नृपतिर्वा। (इन्दुः) इन्धेः उनत्तेर्वा। निरु० १०।४१। (मदाय) आनन्दं जनयितुम् (भगाय) ऐश्वर्यं च जनयितुम् (अपाम्) प्राणानाम्। प्राणा वा आपः। तै० ब्रा० ३।२।५।२। जलवत् शान्तानां प्रजानां२ वा (उपस्थे) मध्ये स्थित्वा (पविष्ट) पवित्रतां सम्पादयेत्। पूङ् पवने, लिङर्थे लुङ्, अडागमाभावश्छान्दसः ॥५॥ अत्र अर्थश्लेषालङ्कारः ॥५॥

    भावार्थः

    परमेश्वर इव नृपतिरपि चारुदर्शनो, विवेकी, क्रान्तद्रष्टा, चन्द्र इव मधुरः, प्रेमरसेन वीररसेन च परिप्लुतः, परमानन्दधनप्रदः, पवित्रः पावकश्च भवेत् ॥५॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।१०९।१३। २. (आपः) जलानीव प्रजाः इति ऋ० ५।३४।९ भाष्ये द०।

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    May the Benevolent, Prosperous, Wise God, purify us, in the lap of action, for acquiring happiness and riches.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Meaning

    Indu, Soma spirit of refulgent divinity, blissful and poetically creative is the omniscient highest purifying and saving spirit and power for the sake of honour and joy on the basis of ones own Karmic performance. (Rg. 9-109-13)

    इस भाष्य को एडिट करें

    गुजराती (1)

    पदार्थ


    પદાર્થ : (इन्द्र) આર્દ્ર-સ્નેહપૂર્ણ ઉપાસનારસ (अपाम् उपस्थे) ઉપસ્થાન-તટપર (चारुः) સુંદર પ્રિય (कविः) ક્રાન્ત-ગતિમાન (मदाय) આનંદને માટે (भगाय) પરમાત્માના ભગ = ઐશ્વર્ય સ્વરૂપને માટે (पविष्ट) ગતિ કરતો રહે. (૫)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : ઉપાસનારસ જલપ્રવાહોના તટ પર સુંદર અને ગતિમાન બનીને હર્ષ = આનંદ પ્રાપ્તિને માટે તથા પરમાત્માનાં ઐશ્વર્યની પ્રાપ્તિને માટે તૈયાર થાય છે. (૫)

    इस भाष्य को एडिट करें

    उर्दू (1)

    Mazmoon

    شانتی داتا بھگتی رس

    Lafzi Maana

    چندرماں کی طرح عابد میں شانتی دینے والا بھگتی رس ہمیں پِوتّر کرتا ہے، جو بہت ہی زیادہ خوبصورت اور دِل کش ہے، ہردیہ میں پیدا ہو کر سب خوشیوں کو دیتا اور آنند کی مستی میں شاعری بھی اُبھر پڑتی ہے، جس کے سہارے عارف ایشور کی طرف بڑھنے لگتا ہے!

    Tashree

    چندر سم ہے شانتی کی روشنی یہ بھگتی جام، جس سے ہو سرشار عارف جھُومتا ہے صبح و شام۔

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (2)

    भावार्थ

    परमेश्वराप्रमाणे राजाही चारुदर्शन (सुंदर) विवेकी, क्रांतदर्शी (सर्वद्रष्टा) चंद्राप्रमाणे मधुर, प्रेमरस व वीररसाने परिप्लुत परमानंद व धनाचा दाता, पवित्र व पवित्रदायक असावा ॥५॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    पुन्हा परमेश्वर आणि राजा यांविषयी -

    शब्दार्थ

    (चाकः) रमणीय (कविः) दूरदर्शी, मेधावी आणि (इन्दुः) चंद्रासम आल्हादक व सोम औषधीप्रमाणे रसमय, शान्तिदायक सौम्य प्रकाश (उत्साह व प्रेरणा) देणारा परमेश्वर आणि राजा (मदाय) आनंद - निर्मितीसाठी व (भगाय) ऐश्वर्य प्राप्तीसाठी (अपाम्) प्राणांसम वा जलराम शांत असलेल्या प्रजाजनांमध्ये (अस्ये) --होऊन वा जवळ जाऊन प्रजेला / उपाजकाला (पविष्ट) पवित्र्य देवो.।। २।। या मंत्रात अर्थश्लेष अलंकार आहे.।। ५।।

    भावार्थ

    परमेश्वराप्रमाणे राजादेखील चारुदर्शन (सुंदर) क्रान्तदर्शी (दूरचा विचार करणारा) विवेकी, चंद्राप्रमाणे प्रिय, प्रेमरस व वीररसाने परिप्लुत, परमानंद दाता, धनदाता, पवित्र आणि पावित्र्यकारी असावा।। ५।।

    इस भाष्य को एडिट करें

    तमिल (1)

    Word Meaning

    கல்யாண வடிவமான காந்தப்பிரக்ஞனான சோமன் சலத்தின் ஆகாசத்தில் இன்பத்திற்கு ஐசுவரியத்திற்குச் செல்லுகிறான்.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top