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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 443
    ऋषिः - संवर्त आङ्गिरसः देवता - उषाः छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
    25

    आ꣡ या꣢हि꣣ व꣡न꣢सा स꣣ह꣡ गाव꣢꣯ सचन्त वर्त꣣निं꣡ यदूध꣢꣯भिः ॥४४३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ꣢ । या꣣हि । व꣡न꣢꣯सा । स꣣ह꣢ । गा꣡वः꣢꣯ । स꣣चन्त । वर्त्तनि꣢म् । यत् । ऊ꣡ध꣢꣯भिः ॥४४३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आ याहि वनसा सह गाव सचन्त वर्तनिं यदूधभिः ॥४४३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    आ । याहि । वनसा । सह । गावः । सचन्त । वर्त्तनिम् । यत् । ऊधभिः ॥४४३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 443
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 7
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 10;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र का देवता उषा है। उषा के नाम से जगन्माता का आह्वान किया गया है।

    पदार्थ

    हे उषा के समान तेजोमयी जगन्माता ! तू (वनसा सह) अपने संभजनीय तेज के साथ (आ याहि) आ, मेरे हृदय में प्रादुर्भूत हो, (यत्) जब (गावः) वेदरूपिणी गौएँ (ऊधभिः) ज्ञानरस से भरे मन्त्ररूप ऊधसों के साथ (वर्तनिम्) मेरे आत्मारूप दोहनगृह में (सचन्त) पहुँचें ॥७॥ इस मन्त्र में उपमानों द्वारा उपमेयों के निगरण होने से अतिशयोक्ति अलङ्कार है ॥७॥

    भावार्थ

    उषा का प्रादुर्भाव होने पर जैसे घड़े के समान विशाल ऊधसवाली गौएँ दूध देने के लिए दोहनगृह को प्राप्त होती हैं, वैसे ही जगन्माता के प्रादुर्भूत होने पर ज्ञानरस से पूर्ण वेदरूपिणी गौएँ अपना ज्ञानरूप दूध देने के लिए स्तोता के आत्मा में पहुँचती हैं ॥७॥

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    पदार्थ

    (वनसा सह) कान्ततेज के साथ (आयाहि) हे परमात्म-ज्योति आ—प्राप्त हो (गावः-वर्तनिं सचन्ते) हमारी स्तुतियाँ अब अध्यात्म मार्ग के लक्ष्य को समवेत करती हैं (यत्) जबकि (ऊधभिः) अनेक दिन रात्रियों के साथ “ऊधः-रात्रिनाम” [निघं॰ १.७] या रात्रि समान स्नेह भावनाओं के साथ।

    भावार्थ

    परमात्म-ज्योति कमनीय तेज के साथ उपासक के हृदय में आती है। अनेक दिन यात्रियों के सेवन द्वारा या जब हम उपासकों की स्तुतियाँ अध्यात्म मार्ग के लक्ष्य को प्राप्त होती हैं, रात्रि समान स्नेह भावनाओं से संयुक्त होती हैं॥७॥

    विशेष

    ऋषिः—सम्पातः (परमात्मा से मेल करने वाला उपासक)॥ देवता—उषाः (परमात्मज्योतिः)॥<br>

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    विषय

    उपासना के लाभ

    पदार्थ

    वन् धातु का अर्थ है–‘सम्भक्ति'। सम्भजन का अभिप्राय है 'एकाग्रचित्त से प्रभु का ध्यान'। मनुष्य प्रभु के ध्यान में तल्लीन हो, उसे किसी सांसारिक वस्तु का ध्यान न हो वह योगनिद्रा गत हो—ऐसे ध्यान को ‘वनस्' कहते हैं। जब मनुष्य इस ध्यान की स्थिति में होता है तो (वनसा सह) = इस उपासना के साथ हे प्रभो! (आयाहि) = आप मुझे प्राप्त होओ। वस्तुतः तन्मयता मे बिना प्रभु प्राप्ति सम्भव नहीं । =

    इस उपासना का परिणाम यह होता है कि (गावः) = इन्द्रियाँ (वर्तनिं सचन्त) = मार्ग का सेवन करती हैं। उपासक की इन्द्रियाँ, प्रभु का राज्य हो जाने पर, अपने मार्ग से विचलित नहीं होती। दिन में तो क्या? (यत् उदभिः) = जब रातों में भी इन्द्रियाँ मार्ग से विचलित नहीं होतीं, तब समझना चाहिए कि उपासना ठीक हुई। मेरी वाणी दिन में ही असत्य नहीं बोलती यह नहीं, रात स्वप्न में भी मैं असत्य नहीं बोलता - यही तो उपासना की महिमा है। इससे जीवन का मार्ग ही पलट गया। असत् से सत् की ओर अन्धकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमृत की ओर चल पड़ने से यह ऋषि ‘संवर्त' नामवाला हुआ है। 'संवर्तते इति संवर्त:'-जो उत्तम मार्ग पर चल रहा है।

    भावार्थ

    मैं अनन्यभाव से प्रभु का भजन करूँ। परिणामतः प्रभु का दर्शन करनेवाला बनूँ और दिन में तो क्या रात्रि में भी इन्द्रियाँ मार्ग से विचलित न हों।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = हे उषः ! तू ( वनसा ) = तेज के साथ ( आयाहि ) = आ, प्रकट हो । ( गावः ) = जिस प्रकार गौवें दूध भरे थनों से सबको पुष्ट करती है उसी प्रकार ( गावः ) = तेरी रश्मियां ( ऊधभिः ) = वहनशील शक्तियों द्वारा सबको पालन पोषण करके ( वर्त्तनिं ) = तेरे मार्ग को ( सचन्त ) = प्राप्त करती हैं, तेरा अनुगमन करती हैं ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - सम्पात:।

    देवता - उषाः।

    छन्दः - पङ्क्तिः।

    स्वरः - पञ्चमः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ उषा देवता। उषोनाम्ना जगन्मातरमाह्वयति।

    पदार्थः

    हे उषः उषर्वत् तेजोमयि जगन्मातः ! त्वम् (वनसा सह) संभजनीयेन तेजसा साकम्। वनम् इति रश्मिनामसु पठितम्। निघं० १।५। वन षण सम्भक्तौ, असुन्, नित्त्वादाद्युदात्तत्वम्। (आ याहि) आगच्छ, मदीये हृदये आविर्भव, (यत्) यदा (गावः) वेदरूपाः धेनवः (ऊधभिः) ज्ञानरसपूर्णैः मन्त्रात्मकैः आपीनैः सहिताः (वर्तनिम्) मम आत्मरूपं दोहनगृहम् (सचन्त) सेवन्ताम्। सिषक्तु सचते इति सेवमानस्य इति यास्कः। निरु० ३।२१ ॥७॥ अत्र उपमानैरुपमेयानां निगरणादतिशयोक्तिरलङ्कारः ॥७॥

    भावार्थः

    उषसः प्रादुर्भावे यथा घटोध्न्यो धेनवो पयःप्रदानाय दोहनगृहमुपतिष्ठन्ति, तथैव जगन्मातुः प्रादुर्भावे ज्ञानरसपूर्णा वेदवाग्रूपा गावो ज्ञानरसप्रदानाय स्तोतुरात्मानमुपतिष्ठन्ति ॥७॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० १०।१७२।१।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Dawn, with all thy beauty come! Our Vedic verses, full of sweetness, like cows with udders full of milk, follow on thy path.

    Translator Comment

    At dawn. Just as kine with udders full, yield milk, so should devotees sing the praise of God with Vedic verses fall of sweetness.

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    Meaning

    Come, O Dawn, with holy light, with rays of blissful radiance on the chariot. The cows are on the move with the wealth of milk. (Rg. 10-172-1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

     

    પદાર્થ : (वनसा सह) કાન્ત તેજની સાથે (आयाहि) હે પરમાત્મ-જ્યોતિ આવ-પ્રાપ્ત થા (गावः वर्तनिं सचन्ते)  અમારી સ્તુતિઓ હવે અધ્યાત્મ માર્ગનાં લક્ષ્યને સમવેત કરે છે (यत्) જેમ (ऊधभिः) અનેક દિવસ અને રાત્રિઓની સાથે અથવા રાત્રિ સમાન સ્નેહ ભાવનાઓની સાથે. (૭)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : પરમાત્મજ્યોતિ કાન્ત તેજની સાથે ઉપાસકના હૃદયમાં આવે છે. અનેક દિવસ અને રાત્રિઓનાં સેવન દ્વારા અથવા જ્યારે અમારી ઉપાસકોની સ્તુતિઓ અધ્યાત્મમાર્ગને લક્ષ્ય કરીને પ્રાપ્ત કરે છે, રાત્રિ સમાન સ્નેહ ભાવનાઓથી સંયુક્ત થાય છે. (૭)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    سچّی بھگتی سے بھگوان کی طرف آؤ!

    Lafzi Maana

    ہے بھگت آتمن! تُو بھگوان کی طرف سچّی بھگتی سے آ اور بیٹھ اُس کی عبادت میں جیسے گئوئیں دودھ بھرے تحفوں کے ساتھ راستوں پر چلتے ہوئے اپنے گھروں میں پہنچ جاتی ہیں!

    Tashree

    دُودھ سے جیسے بھری گئوئیں پہنچتی اپنے گھر، بھگتی سے بھر کے ہردیہ آ بھگت تُو بھگوان گھر۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    उषेचा प्रादुर्भाव झाल्यावर जशा विशाल स्तनयुक्त गाई दूध देण्यासाठी दोहनगृहात उपस्थित असतात, तसेच जगन्मातेचा प्रादुर्भाव झाल्यावर ज्ञानरसाने पूर्ण वेदरूपी गाई आपले ज्ञानरूपी दूध देण्यासाठी प्रशंसकाच्या आत्म्यात पोचतात ॥७॥

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    विषय

    उषा देवता। उषा नावाने जगन्मातेचे आवाहन

    शब्दार्थ

    उषेप्रमाणे तेजोमयी हे जगन्माते (परमेश्वरा), तू (वनसा सह) आपल्या अधिकतम तेजासह (आ याहि) ये, माझ्या हृदयात प्रादुर्भूत हो. (यत्) जेव्हा (गावः) वेदरूपिणी गायी (ऊघभिः) ज्ञानरसाने परिपूर्ण मंत्र रूप ऊधसांद्वारे (गाईचे स्तन) (वर्तनिम्) माझ्या आत्मरूप दोहमगृहात (सचन्त) याव्यात. (सकाळी गायी चरण्यासाठी वनात जातात. सकाळी- सायंकाळी दूध देतात. तद्वत उपासकाच्या हृदयी सकाळी - संध्याकाळी ईश्वराचे ध्यान यावे, अशी कल्पना आहे.)।। ७।।

    भावार्थ

    जसे उषेच्या आगमना होताना घागरीप्रमाणे मोठे स्तन असलेल्या गायी दूध देण्यासाठी दोहनगृहात येतात, तसे हृदयात जगन्मातेचा प्रादुर्भाव झाल्यानंत ज्ञानरसाने पूर्ण वेदरूपिणी गायी आपले ज्ञानरूप दूध देण्यासाठी स्तोताजनांच्या आत्म्यात जागृत होतात.।। ७।।

    विशेष

    या मंत्रात उपमानापेक्षा उपमेय अधिक प्रभावी आहे. त्यामुळे येथे अतिशयोक्ती अलंकार आहे.।। ७।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    உஷையே !உன் தேஜசுகளோடு கூட வரவும். ஸ்தனங்களோடான(சக்திகளோடான) பசுக்கள் உன் மார்க்கத்தை அனுசரிக்கின்றன.

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