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सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 445
ऋषिः - त्रसदस्युः
देवता - इन्द्रः
छन्दः - द्विपदा विराट् पङ्क्तिः
स्वरः - पञ्चमः
काण्ड नाम - ऐन्द्रं काण्डम्
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अ꣡र्च꣢न्त्य꣣र्कं꣢ म꣣रु꣡तः꣢ स्व꣣र्का꣡ आ स्तो꣢꣯भति श्रु꣣तो꣢꣫ युवा꣣ स꣡ इन्द्रः꣢꣯ ॥४४५॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡र्च꣢꣯न्ति । अ꣣र्कं꣢ । म꣣रु꣡तः꣢ । स्व꣣र्काः꣢ । सु꣣ । अर्काः꣢ । आ । स्तो꣣भति । श्रुतः꣢ । यु꣡वा꣢꣯ । सः । इ꣡न्द्रः꣢꣯ ॥४४५॥
स्वर रहित मन्त्र
अर्चन्त्यर्कं मरुतः स्वर्का आ स्तोभति श्रुतो युवा स इन्द्रः ॥४४५॥
स्वर रहित पद पाठ
अर्चन्ति । अर्कं । मरुतः । स्वर्काः । सु । अर्काः । आ । स्तोभति । श्रुतः । युवा । सः । इन्द्रः ॥४४५॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 445
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 10;
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(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 1; मन्त्र » 9
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 4; खण्ड » 10;
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भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में परमेश्वर की आराधना का फल वर्णित है।
पदार्थ
(स्वर्काः) उत्तम स्तुति करनेवाले, अथवा उत्तम विधि से वेदमन्त्रों का उच्चारण करनेवाले (मरुतः) ऋत्विज् लोग (अर्कम्) अर्चनीय परमेश्वर की (अर्चन्ति) पूजा करते हैं। (श्रुतः) वेदों में प्रसिद्ध अथवा सुना गया, (युवा) सदा युवा, युवा के समान असीम बलवाला (सः) वह (इन्द्रः) परमेश्वर, उन्हें (आ स्तोभति) सहारा देता है ॥९॥ इस मन्त्र में अनुप्रास अलङ्कार है, साथ ही परस्पर उपकार करने रूप वस्तु से परिवृत्ति अलङ्कार व्यङ्ग्यहै ॥९॥
भावार्थ
जो मनुष्य वेदमन्त्रों के गानपूर्वक परमात्मा की आराधना करते हैं, उन्हें वह अक्षय अवलम्ब देकर अनुगृहीत करता है ॥९॥
पदार्थ
(स्वर्काः-मरुतः) शोभन मन्त्र—मन वाले या स्तोम—स्तुति समूह वाले “अर्को मन्त्रो भवति” [निरु॰ ५.४] “अर्कैरर्चनीयैः स्तोमैः” [निरु॰ ६.२३] दिव्य विद्वान् मुमुक्षुजन या अध्यात्मयाजी जन “मरुतो देवविश” [श॰ २.५.१.१३] (अर्कम्-अर्चन्ति) अर्चनीय परमात्मदेव को अर्चित करते हैं “अर्को देवो भवति” [निरु॰ ५.४] (सः श्रुतः-युवाः-इन्द्रः) वह प्रसिद्ध सदायुवा—अजर परमात्मा (आस्तोभति) इनको स्तोभित करता है, अपने साथ संयुक्त करता है।
भावार्थ
शोभन मनन वाले, शोभन स्तुतिसमूह वाले या मुमुक्षुजन या आत्मयाजीजन परमात्मा की अर्चना करते हैं, वह प्रसिद्ध अजर परमात्मा भी उन्हें आलिङ्गित करता है॥९॥
विशेष
ऋषिः—सम्पातः (परमात्मा से मेल करने वाला उपासक)॥<br>
विषय
कष्टों का अन्त
पदार्थ
'अर्क' शब्द का अर्थ परमात्मा है [यद् एनम्-अर्चन्ति], इसका अर्थ मन्त्र है [ यदनेन अर्चन्ति] इसका अर्थ अन्न है [अर्चन्ति भूतानि ] । इस प्रकार (स्वर्का:) = सर्वोत्तम उपास्य देव का उत्तम मन्त्रों से अर्चना करनेवाले, अतएव उत्तम सात्त्विक अन्न का सेवन करनेवाले (मरुतः) = मनुष्य (अर्कम्) =उस उपास्य प्रभु की (अर्चन्ति) = अर्चना करते हैं। ('य एक इत् हव्यः चर्षणीनाम्') = इत्यादि मन्त्रों में मनुष्य के लिए एकमात्र उस प्रभु की ही उपासना का निर्देश है। जो मनुष्य सात्त्विक अन्नों का सेवन करते हैं और परिणामतः जिनका ज्ञान उत्तम होता है उनका जीवन इस उपासना से ओत-प्रोत हुआ करता है।
ऐसा होनेपर (सः) = वह (इन्द्रः) = परमैश्वर्यशाली प्रभु जो कि (युवा श्रुतः) = अशुभ को दूर करनेवाला [ यु=अमिश्रण] और शुभ को प्राप्त करनेवाला [यु= मिश्रण] प्रसिद्ध है, (आस्तोमति) = इनके सब कष्टों को रोकता है। प्रभु कृपा से न इन्हें आध्यात्मिक कष्ट पीड़ित करते हैं, न आधिभौतिक कष्टों के ये शिकार होते हैं और ना ही आधिदैविक कष्टों का प्रकोप इन्हें सहना पड़ता है।
भावार्थ
मैं प्रभु का सच्चा उपासक बनूँ। यही तो सत्य का मार्ग है।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = ( स्वर्का: ) = उत्तम कान्तिसम्पन्न ज्ञानी ( मरुतः ) = प्रजाएं वा प्राणगण ( अर्क ) = अपने शक्तिदाता सूर्यरूप आत्मा या परमात्मा को ( अर्चन्ति ) = स्तुति करते हैं । ( सः ) = वह ( युवा ) = बलवान् ( इन्द्रः ) = परमेश्वर ( श्रुतः ) = विख्यात कीर्त्ति वाला, ( आस्तोभति) = उनकी रक्षा करता है, उनके शत्रुजनों का सब दिशाओं में विनाश करता है ।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - नोपलभ्यते।
देवता - इन्द्रः।
छन्दः -पङ्क्तिः।
स्वरः - पञ्चमः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ परमेश्वराराधनस्य फलमाह।
पदार्थः
(स्वर्काः) सुस्तुतयः सूच्चारितमन्त्राः वा। ऋच स्तुतौ, अर्च पूजायाम्। ‘अर्को मन्त्रो भवति यदनेनार्चन्ति’। निरु० ५।४। मरुतः ऋत्विजः। मरुतः इति ऋत्विङ्नाम। निघं० ३।१८। (अर्कम्) अर्चनीयम् इन्द्रं परमेश्वरम्। अर्को देवो भवति यदेनमर्चन्ति। निरु० ५।४। (अर्चन्ति) पूजयन्ति। (श्रुतः) वेदेषु प्रसिद्धः, आकर्णितो वा, (युवा) नित्यतरुणः, तरुण इव असीमबलः (सः) असौ (इन्द्रः) परमेश्वरः, तान् (आ स्तोभति) अवलम्बं प्रयच्छति। स्तुभ स्तम्भे भ्वादिः ॥९॥ अत्रानुप्रासालङ्कारः। किञ्च, परस्परोपकाररूपेण वस्तुना परिवृत्ति२रलङ्कारो व्यज्यते ॥९॥
भावार्थः
ये मनुष्या वेदमन्त्रगानपुरस्सरं परमात्मानमाराध्नुवन्ति तान् सोऽक्षयावलम्बप्रदानेनानुगृह्णाति ॥९॥
टिप्पणीः
१. साम० १११४। २. परिवृत्तिर्विनिमयः समन्यूनाधिकैर्भवेत्। सा० द० १०।८० इति तल्लक्षणात्। प्रकृते समेन विनिमयः।
इंग्लिश (2)
Meaning
The brilliant learned persons, chant their praise for God who Earned and Mighty protects them.
Meaning
Maruts, heroic devotees, chant devotional hymns and present the homage of worship and service to Indra who, youthful and renowned, sustains the world and responds to their devotion with joyous favour and spiritual elevation.
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (स्वर्काः मरुतः) સર્વોત્તમ મંત્ર-મનનવાળા અથવા સ્તોમ-સ્તુતિ સમૂહવાળા દિવ્ય વિદ્વાન મુમુક્ષુજન અથવા અધ્યાત્મયાજી જન (अर्कम् अर्चन्ति) અર્ચનીય પરમાત્મ દેવનું અર્ચન કરે છે (सः श्रुतः युवाः इन्द्रः) તે પ્રસિદ્ધ સદા યુવાન અજર પરમાત્મા (आस्तोभति) તેને પ્રેરણા આપે છે, પોતાની સાથે સંયુક્ત કરે છે. (૯)
भावार्थ
ભાવાર્થ : સર્વોત્તમ મનનવાળા, શ્રેષ્ઠ સ્તુતિસમૂહવાળા અથવા મુમુક્ષુજન વા આત્મયાજ્ઞિક જન પરમાત્માની અર્ચના કરે છે, તે પ્રસિદ્ધ અજર પરમાત્મા પણ તેને ભેટે છે. (૯)
उर्दू (1)
Mazmoon
بھگوان کے ہو جاؤ وُہ تمہارا ہو جائیگا
Lafzi Maana
پرانا یام کی مشق سے عبادت میں رہتے ہوئے عابد لوگ قابلِ تعظیم پرمیشور کی جب پُوجا بھگتی میں مصروف رہتی ہیں، تب وہ مشہور عالم اِندر پرمیشور جو سدا جوان اور موت سے مبّرا امر ہے، اُن کی بھرپور مدد کرتا ہے۔
Tashree
جب عبادت میں لگے عابد سدا مصروف ہیں، اِندر بھی اُن کی مدد پر ویسے ہی مصروف ہیں۔
मराठी (2)
भावार्थ
जी माणसे वेदमंत्राचे गान करत परमेश्वराची आराधना करतात, त्यांना तो क्षयरहित आश्रय देऊन अनुगृहीत करतो ॥९॥
विषय
परमेश्वराच्या आराधनेचे लाभ
शब्दार्थ
(स्वर्काः) उत्तम स्सुतिकारक जन अथवा उत्तम विधीने वेद मंत्रांचे उच्चारण करणारे (मरुतः) ऋत्विज् (अर्कम्) अर्चनीय परमेश्वराची (अर्चन्ति) पूजा (उपासना) करतात (श्रुतः) तो सर्वप्रसिद्ध अथवा सर्वज्ञात आणि (युवा) सदा युवा असणारा (कारण तो नित्य असून एक रस आहे) अथवा युवाप्रमाणेअसामान्य शक्तिशाली (सः) तो (इन्द्रः) परमेश्वर त्या उपासकांना (आ स्तोमति) आधार देतो. (आत्मिक व शारीरिक बळ देतो.)।। ९।।
भावार्थ
जे लोक वेद मंत्राचे गान करून त्याद्वारे परमेश्वराची आराधना करतात, त्यांना परमेश्वर अक्षय आधार देऊन अनुगृहीत करतो.।। ९।।
विशेष
या मंत्रात अनुप्रास अलंकार आहे. तसेच स्वयंप्रेरणेने स्वयमेव सर्वांवर उपकार करतो म्हणून येथे परिवृत्ति अलंकार आहे.।। ९।।
तमिल (1)
Word Meaning
சுபமான துதிகளுடனான மருத்துக்கள் அர்ச்சனீயமான இந்திரனை துதிசெய்கிறார்கள். நித்திய [1]யௌவன பெயர்போன இந்திரன் திட துதி செய்கிறான்.
FootNotes
[1]யௌவன - நிலையான,
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