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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 480
    ऋषिः - भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्भार्गवो वा देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    12

    वृ꣢षा꣣ ह्य꣡सि꣢ भा꣣नु꣡ना꣢ द्यु꣣म꣡न्तं꣢ त्वा हवामहे । प꣡व꣢मान स्व꣣र्दृ꣡श꣢म् ॥४८०॥

    स्वर सहित पद पाठ

    वृ꣡षा꣢꣯ । हि । अ꣡सि꣢꣯ । भा꣣नुना꣢ । द्यु꣣म꣡न्त꣢म् । त्वा꣣ । हवामहे । प꣡व꣢꣯मान । स्व꣣र्दृ꣡श꣢म् । स्वः꣣ । दृ꣡श꣢꣯म् ॥४८०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    वृषा ह्यसि भानुना द्युमन्तं त्वा हवामहे । पवमान स्वर्दृशम् ॥४८०॥


    स्वर रहित पद पाठ

    वृषा । हि । असि । भानुना । द्युमन्तम् । त्वा । हवामहे । पवमान । स्वर्दृशम् । स्वः । दृशम् ॥४८०॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 480
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 4
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में सोम परमात्मा का आह्वान किया गया है।

    पदार्थ

    हे (पवमान) पवित्रता देनेवाले रसागार परमात्मन् ! आप (हि) क्योंकि (भानुना) अपने तेज से (वृषा) आनन्द-रस की वृष्टि करनेवाले (असि) हो, इसलिए (द्युमन्तम्) देदीप्यमान, (स्वर्दृशम्) मोक्षसुख को दर्शानेवाले (त्वा) आपको, हम (हवामहे) पुकारते हैं ॥४॥

    भावार्थ

    जैसे सूर्य अपने तेज से जल की वर्षा करता है, वैसे ही परमेश्वर आनन्द-रस का वर्षक होता है। उस रसनिधि, रसवर्षक, तेजस्वी, तेज-वर्द्धक, आनन्दमय, मोक्षानन्द का दर्शन करानेवाले परमेश्वर की सबको उपासना करनी चाहिए ॥४॥

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    पदार्थ

    (पवमान) हे आनन्दधारा में प्राप्त होने वाले परमात्मन्! तू (वृषा हि-असि) सुखवर्षक ही है (भानुना द्युमन्तम्) तेज से तेजस्वी—(त्वा स्वर्दृशम्) तुझ नितान्त सुखदर्शक को (हवामहे) बुलाते हैं।

    भावार्थ

    हे आनन्दधारा में प्राप्त होने वाले परमात्मन्! तू नितान्त सुखों की वर्षा करने वाला है। अपने तेज से तेजस्वी सुखदर्शक तुझ को हम आमन्त्रित करते हैं॥४॥

    विशेष

    ऋषिः—भृगुः (तेजस्वी उपासक)॥<br>

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    विषय

    द्रविण [शक्ति] - दीप्ति - दर्शन

    पदार्थ

    प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'भृगु' है - जो अपना परिपाक करता है । यह भृगु तपः:- परिपाक से अपने जीवन को पवित्र करता है। यह कहता है कि हे (पवमान) = मेरे जीवन को पवित्र करनेवाले सोम! तू (हि) = निश्चय से (भानुना) = दीप्ति के साथ (वृषा) = मुझे द्रविण- [पराक्रम] सम्पन्न करनेवाला (असि) = है। सोम के संयम से उत्पन्न शक्ति ज्ञान की दीप्ति से युक्त होती है। सोम शरीर को बलवान बनाता है तो साथ ही मस्तिष्क को भी ज्ञान की दीप्ति से युक्त करता है। शक्ति कार्य करती है तो दीप्ति कार्यों में गलती व मालिन्य नहीं आने देती। भृगु कहते हैं कि हे सोम! (द्युमन्तम्) = दीप्तिवाले (त्वाम्) = तुझे (हवामहे) = हे हम पुकारते हैं। सोम को हम इसलिए चाहते हैं कि यह हमारे जीवन को ('तमसो मा ज्योतिर्गमय') = अन्धकार से प्रकाश की ओर ले-चलता है। पवमान-यह पवित्र करनेवाला तो है ही; सोम तू मुझे असत् से सत् की ओर ले चल। संयमी पुरुष कोई असत्य कार्य नहीं करता। मुझे पवित्र बनाकर हे सोम! तू (स्वः) = उस समय देदीप्यमान् ज्योतिर्मय प्रभु को (दृशम्) = देखने के योग्य बनता है। एवं सोम से मेरे जीवन मे तीन परिणाम होते हैं - द्रविण, दीप्ति व दर्शन | शक्ति [द्रविण] का संचयन करने से हम निर्बलता की अयोग्यता को अपने से दूर करते हैं। यह दर्शन ही हमारे जीवन की अन्तिम साधना है। ('मृत्योर्मा अमृतं गमय') = हे सोम तू मुझे प्रभु का दर्शन कराके मृत्यु से बचाकर अमरता का लाभ कराता है। यह दर्शन मुझे इसलिए प्राप्त हुआ है कि पवमान सोम ने मेरे सब मालिन्य को दूर कर दिया।

    भावार्थ

    मैं प्राणसाधना करके 'द्रविण व दीप्तिसम्पन्न' बनकर प्रभु - दर्शन करनेवाला बनूँ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = हे विद्वन् ! आत्मन् ! हे ( पवमान ) = सबको पवित्र करनेहारे ! ( वृषा हि असि ) = तू सब सुखों के वर्षण करनेहारा है । ( भानुना ) = सूर्य,या कान्ति से ( द्यु॒मन्तं ) = दीप्तिमान् ( स्वर्दृशम् ) = सुख या सब के द्रष्टा ( त्वा ) = तेरी हम ( हवामहे ) = स्तुति करते हैं । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषि:- अमहीयु:। 

    देवता:- पवमान:। 

    छंद:- गायत्री । 

    स्वर:- षड्ज:।  

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सोमं परमात्मानमाह्वयति।

    पदार्थः

    हे (पवमान) चित्तशोधक पवित्रकर्तः रसागार परमात्मन् ! त्वम् (हि) यस्मात् (भानुना) स्वतेजसा (वृषा) आनन्दरसवर्षकः (असि) विद्यसे। तस्मात् (द्युमन्तम्) देदीप्यमानम्, (स्वर्दृशम्) स्वः मोक्षसुखं दर्शयतीति स्वर्दृक् तम् (त्वा) त्वाम्, वयम् (हवामहे) आह्वयामः ॥४॥

    भावार्थः

    यथा सूर्यः स्वतेजसा जलस्य वृष्टिं करोति तथा परमेश्वर आनन्दरसस्य वर्षको भवति। स रसनिधी रसवर्षकस्तेजोवर्धक आनन्दमयो मोक्षानन्ददर्शकः परमेश्वरः सर्वैरुपास्यः ॥४॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६५।४, ऋषिः भृगुर्वारुणिर्जमदग्निर्वा। ‘स्वर्दृशम्’ इत्यत्र ‘स्वाध्यः’ इति पाठः। साम० ७८४।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O Purifying God, Thou art competent in fulfilling our desires. We invoke Thee, as Thou art Resplendent with the lustre of knowledge, and the Bestower of happiness !

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    Meaning

    O lord of purity, purifier and sanctifier of heart and soul, you are supremely generous and refulgent by your own light and glory. We, celebrants by our holiest thoughts and words, invoke and adore you for the light and wisdom of your divine glory and generosity. (Rg. 9-65-4)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (पवमान) હે આનંદધારામાં પ્રાપ્ત થનાર પરમાત્મન્ ! તું (वृषा हि असि) સુખવર્ષક જ છે (भानुना द्युमन्तम्) તેજથી તેજસ્વી, (त्वा स्वर्दृशम्) તને નિતાન્ત સુખદર્શનને (हवामहे) બોલાવીએ છીએ. (૪) 

     

     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : હે આનંદધારામાં પ્રાપ્ત થનાર પરમાત્મન્ ! તું નિતાન્ત સુખોની વર્ષા કરનાર છે. પોતાના તેજથી તેજસ્વી સુખદર્શક તને અમે આમંત્રિત કરીએ છીએ. (૪)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    سوم کی مہما

    Lafzi Maana

    یہ سوم بھگتی رس، یہ سوم امرت وِیریہ بندوُ یقیناً سُکھوں کو برساتا ہے، بھگوان کی بھگتی کا رس یا تیج وِیریہ کی بُوندیں نُور سے چمک رہی ہیں اور جیون کو چمکا رہی ہیں۔ اِس لئے ہم سوم رس کو چاہتے ہیں، جو ہمیں پاکیزہ، شُدھ اور نرمل کر بھگوان کے راستے پر چلا جاتا ہے۔

    Tashree

    جیسے اَپرم پار پربُھو ہیں سوم رُوپ سب میں بستے، وَیسے سوم شکتی امرت ہے جس کی مہما کہی نہ کہے۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जसा सूर्य आपल्या तेजाने जलाची वृष्टी करतो तसाच परमेश्वर आनंद-रसाचा वर्षक असतो. त्या रसनिधी रसवर्षक, तेजस्वी, तेज-वर्धक, आनंदमय, मोक्षानंदाचे दर्शन करविणाऱ्या परमेश्वराची सर्वांनी उपासना करावी ॥४॥

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    विषय

    सोम परमेश्वराला आवाहन

    शब्दार्थ

    हे (पवमान) पावित्र्यदायक सागर परमेश्वर, (हि) ज्याअर्थी तुम्ही (भावनुना) आपल्या तेजाने (वृ,ा) आनंद रसाची वृष्टी करणारे (असि) आहात. त्यामुळे (द्युमन्तम्) देदीप्यमान (स्वर्हशम्) मोक्ष सुख देणाऱ्या (त्वा) तुम्हाला आम्ही उपासक पावित्र्य, आनंद व मोक्ष देण्याविषयी (हवामहे) हाक मारीत आहोत.।। ४।।

    भावार्थ

    जसे सूर्य आपल्या तेजाने जल - वृष्टी करीत असतो, तसेच रसागार परमेश्वरही योगी साधकाच्या हृदयावर आनंद जलाची वर्षा करतो. म्हणून त्या रसनिधी, रसवर्षक, तेजस्वी, तेज-वर्धक, आनंदमय, प्रोक्षानंद प्रदायक परमेश्वराची उपासना सर्वांनी केली पाहिजे.।। ४।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    சோமனே ! நீ விருப்பங்களை வர்ஷிப்பவனாயிருக்கிறாய், பவமானனே; அனைத்தையும் பார்ப்பவனாய் தேஜசினால் அதிக ஒளியுள்ள உன்னை அழைக்கிறோம்.

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