Sidebar
सामवेद के मन्त्र
सामवेद - मन्त्रसंख्या 482
ऋषिः - कश्यपो मारीचः
देवता - पवमानः सोमः
छन्दः - गायत्री
स्वरः - षड्जः
काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
22
अ꣡सृ꣢क्षत꣣ प्र꣢ वा꣣जि꣡नो꣢ ग꣣व्या꣡ सोमा꣢꣯सो अश्व꣣या꣢ । शु꣣क्रा꣡सो꣢ वीर꣣या꣡शवः꣢꣯ ॥४८२॥
स्वर सहित पद पाठअ꣡सृ꣢꣯क्षत । प्र । वा꣣जि꣡नः꣢ । ग꣣व्या꣢ । सो꣡मा꣢꣯सः । अ꣣श्वया꣢ । शु꣣क्रा꣡सः꣢ । वी꣣रया꣢ । आ꣣श꣡वः꣢ ॥४८२॥
स्वर रहित मन्त्र
असृक्षत प्र वाजिनो गव्या सोमासो अश्वया । शुक्रासो वीरयाशवः ॥४८२॥
स्वर रहित पद पाठ
असृक्षत । प्र । वाजिनः । गव्या । सोमासः । अश्वया । शुक्रासः । वीरया । आशवः ॥४८२॥
सामवेद - मन्त्र संख्या : 482
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
Acknowledgment
(कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 5; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 5; मन्त्र » 6
(राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 2;
Acknowledgment
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
अगले मन्त्र में भक्तिरस को अभिषुत करने का प्रयोजन वर्णित है।
पदार्थ
(वाजिनः) सबल, (शुक्रासः) पवित्र, (आशवः) वेगवान् (सोमासः) प्रभु-भक्ति के रस (गव्या) अन्तःप्रकाश-प्राप्ति की इच्छा से, (अश्वया) प्राणों की ऊर्ध्वप्रेरणा की इच्छा से, और (वीरया) वीरता-प्राप्ति की इच्छा से (प्र असृक्षत) मेरे द्वारा प्रवाहित किये गये हैं ॥६॥
भावार्थ
अन्तःकरण में भगवद्भक्ति के रस को प्रवाहित करने से अन्तः-प्रकाश की स्फूर्ति, प्राणों का ऊर्ध्वारोहण और दिव्यकर्मों में उत्साह पैदा होता है ॥६॥
पदार्थ
(वाजिनः) बलवान्—(शुक्रासः) शुभ्र—(आशवः) व्यापक—व्यापने वाले—(सोमासः) आनन्दधारा में प्राप्त होने वाले परमात्मन्! ‘सर्वत्र बहुवचनमादरार्थम्’ (गव्या) हमारी इन्द्रियों सम्बन्धी इच्छा से “अश्वो वै बृहद् वयः” [श॰ ३.२.६.१५] (वीरया) प्राणों की इच्छा से “प्राणा वै दशवीराः” [श॰ १२.८.१.२२] (प्रासृक्षत) हमें प्राप्त हो “सृक्ष गतौ” [भ्वादि॰]।
भावार्थ
हे बलवान् शुभ्र विभु आनन्दधारा में प्राप्त होने वाले शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू हमारी इन्द्रियों की साधने की इच्छा, से हमारी बड़ी अवस्था को सम्पन्न करने की इच्छा से, हमारे प्राणों के साधने की इच्छा से, मुझ उपासक को प्राप्त हो॥६॥
विशेष
ऋषिः—कश्यपः (द्रष्टा—सावधान उपासक)॥<br>
विषय
घोड़ों का [ज्ञान-कर्म-वीरता ] रथ में जोतना
पदार्थ
ये (सोमासः) = सोम (वाजिनः) = ज्ञान को दीप्त करनेवाले हैं, और वाजी होते हुए ये इस शरीररूप रथ को (गव्या) = ज्ञानेन्द्रियों से (प्र असृक्षात्) = अच्छी प्रकार संयुक्त करते हैं। ये सोम ही (शुक्रासः) = शीघ्रता से कार्य करनेवाले होते हुए (अश्वया) = कर्मेन्द्रियों से इस रथ को संसृष्ट करते हैं और अन्त में (आशवः) = सारे शरीर में व्याप्त होनेवाले [अश् व्याप्तौ] ये सोम इसे (वीरया) = वीरता की भावना से युक्त करते हैं। ज्ञानेन्द्रियों के योग से ज्ञान में वृद्धि होती है, कर्मेन्द्रियों के योग से शक्ति की और वीरता की भावना से हृदय में सद्गुणों की । इस प्रकार ये सोम ‘ज्ञान, शक्ति व सगुणों' से हमें आप्यायित करनेवाले होते हैं। मस्तिष्क में ज्ञान, शरीर में शक्ति और हृदय में वीरता व अपतजनम ही तो त्रिविध विकास है। इस विकास का करनेवाला यह ‘कश्यप मारीच' है- तत्त्वज्ञानी भी है, विघ्नों को मारकर आगे बढ़नेवाला भी।
भावार्थ
मैं अपने इस शरीरभूत रथ में इन्द्रियभूत घोड़ों को ठीक से जोड़कर आगे बढ़ता चलूँ।
विषय
"Missing"
भावार्थ
भा० = ( वाजिनः ) = बलवान् ( आशवः ) = शिघ्रकारी आलस्यरहित ( शुक्रासः ) = कान्तिमान् ( सोमासः ) = योगिजन, ( गव्या ) = गौ या वाणी की कामना से ( अश्वया ) = अश्व अर्थात् इन्द्रियों को वश करने की इच्छा से और ( वीरया ) = वीर्य, सामर्थ्य लाभ करने की इच्छा से ( प्र असृक्षत ) = प्रयत्न करते हैं।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः - कश्यप:।
देवता - पवमानः।
छन्दः - गायत्री।
स्वरः - षड्जः।
संस्कृत (1)
विषयः
अथ भक्तिरसाभिषवस्य प्रयोजनमाह।
पदार्थः
(वाजिनः) सबलाः, (शुक्रासः) पवित्राः, (आशवः) वेगवन्तः (सोमासः) परमात्मभक्तिरसाः (गव्या) अन्तःप्रकाशप्राप्तीच्छया, (अश्वया) प्राणानामूर्ध्वप्रेरणेच्छया, (वीरया) वीरत्वप्राप्तीच्छया च (प्र असृक्षत) मया प्रकर्षेण सृज्यन्ते अभिषूयन्ते। सृज विसर्गे धातोः कर्मणि छान्दसं रूपम्। गव्या, अश्वया, वीरया इत्यत्र गो-अश्व-वीर- शब्देभ्यः आत्मन इच्छायां क्यच्, ‘अ प्रत्ययात्’ ३।३।१०२, इति अ प्रत्ययः, स्त्रियां टाबन्तस्य अश्वयया, गव्ययया, वीरयया इति प्राप्ते ‘सुपां सुलुगिति’ तृतीयाया लुक् ॥६॥
भावार्थः
अन्तःकरणे भगवद्भक्तिरसप्रवाहेणान्तःप्रकाशस्फुरणं प्राणानामूर्ध्वारोहो दिव्यकर्मसु चोत्साहः प्रवर्तते ॥६॥
टिप्पणीः
१. ऋ० ९।६४।४, साम० १०३४।
इंग्लिश (2)
Meaning
Potent, swift, brilliant Yogis exert, with a desire to have mastery over speech, control over senses, and acquire virility.
Meaning
Vibrant heroes blest with the soma spirit of peace, progress and brilliance, pure and potent, inspired with ambition for lands, cows and culture, horses, advancement and achievement, and advancement of the brave generations of humanity move forward with the spirit of generous creativity. (Rg. 9-64-4)
गुजराती (1)
पदार्थ
પદાર્થ : (वाजिनः) બળવાન, (शुक्रासः) શુભ્ર, (आशवः) વ્યાપક-વ્યાપનાર, (सोमासः) આનંદધારામાં પ્રાપ્ત થનાર પરમાત્મન્ ! (गव्या) અમારી ઇન્દ્રિયો સંબંધી ઇચ્છાથી (वीरया) પ્રાણોની ઇચ્છાથી (प्रासृक्षत्) અમને પ્રાપ્ત થા. (૬)
भावार्थ
ભાવાર્થ : હે બળવાન શુભ્ર વિભુ આનંદધારામાં પ્રાપ્ત થનાર શાંત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું અમારી ઇન્દ્રિયોની સાધવાની ઇચ્છાથી અમારી મોટી અવસ્થાને સમ્પન્ન કરવાની ઇચ્છાથી અમારા પ્રાણોને સાધવાની ઇચ્છાથી મને ઉપાસકને પ્રાપ્ત થા. (૬)
उर्दू (1)
Mazmoon
سب کُچھ اِسی سوم میں ہے!
Lafzi Maana
یہ سوم ہے تو سب کچھ ہے، سوم پربُھو کی طرف بھی رغبت ہے، زندگی میں طاقت ہے، تیزی ہے، ہمت ہے، ساہس ہے، اُتساہ اور پُرشارتھ ہے، بانی میں شکتی، من میں شو سنکلپ اور آتما میں دھرم کا بل، سب اِسی سوم (برہم چریہ، شکتی اور ایشور بھگتی) سے ہے۔
Tashree
دھرم کا بَل آتما میں اور شکتی جسم مین، گیان شکتی بُدھی میں سب کچھ ہے پیارے سوم میں۔
मराठी (2)
भावार्थ
अंत:करणात भगवद्भक्तीचा रस प्रवाहित करण्याने अंत:प्रकाशाची स्फूर्ती, प्राणांचे ऊर्ध्वारोहण व दिव्य कर्मात उत्साह उत्पन्न होतो ॥६॥
विषय
भक्तिरसाच्या उत्पत्तीचे प्रयोजन काय ?
शब्दार्थ
(वाजिनः) प्रबळ, (शुक्रासः) पवित्र आणि (आशवः) वेगवान (सोमासः) प्रभु- भक्तीचे अनेक रस (विविध व अलौकिक रस), (गव्या) अन्तः प्रकाशाच्या इच्छेने (अवश्या) प्राणांना ऊर्ध्व दिशेला नेण्याच्या इच्छिने आणि (वीरया) वीरत्व प्राप्तीच्या इच्छेने मी (प्र असृक्षत्) माझ्या हृदयात प्रवाहित केले आहेत. (आह, त्याचा केवढा आनंद मी सध्या अनुभवत आहे.)।। ६।।
भावार्थ
अंतःकरणात भगवद् भक्तीचा रस प्रवाहित केल्याने अंतःकरण प्रकाशित होते. त्यात अंतःस्फूर्ती, प्राणांचे ऊर्ध्वारोहण होते आणि दिव्य कर्मांविषयी उत्साह उत्पन्न होतो.।। ६।।
तमिल (1)
Word Meaning
பலம் வேகமுடனான வெண்மையுடனான சோமர்கள்
பசு குதிரை வீரர்களின் விருப்பத்தால் புலனாக்கப்படுகிறார்கள்.
Acknowledgment
Book Scanning By:
Sri Durga Prasad Agarwal
Typing By:
Misc Websites, Smt. Premlata Agarwal
Conversion to Unicode/OCR By:
Dr. Naresh Kumar Dhiman (Chair Professor, MDS University, Ajmer)
Donation for Typing/OCR By:
N/A
First Proofing By:
Acharya Chandra Dutta Sharma
Second Proofing By:
Pending
Third Proofing By:
Pending
Donation for Proofing By:
Sri Dharampal Arya
Databasing By:
Sri Jitendra Bansal
Websiting By:
Sri Raj Kumar Arya
Donation For Websiting By:
N/A
Co-ordination By:
Sri Virendra Agarwal