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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 505
    ऋषिः - कश्यपो मारीचः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    21

    इ꣣षे꣡ प꣢वस्व꣣ धा꣡र꣢या मृ꣣ज्य꣡मा꣢नो मनी꣣षि꣡भिः꣢ । इ꣡न्दो꣢ रु꣣चा꣡भि गा इ꣢꣯हि ॥५०५॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ꣣षे꣢ । प꣣वस्व । धा꣡र꣢꣯या । मृ꣣ज्य꣡मा꣢नः । म꣣नीषि꣡भिः꣢ । इ꣡न्दो꣢꣯ । रु꣣चा꣢ । अ꣣भि꣢ । गाः । इ꣣हि ॥५०५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इषे पवस्व धारया मृज्यमानो मनीषिभिः । इन्दो रुचाभि गा इहि ॥५०५॥


    स्वर रहित पद पाठ

    इषे । पवस्व । धारया । मृज्यमानः । मनीषिभिः । इन्दो । रुचा । अभि । गाः । इहि ॥५०५॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 505
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 9
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में सोम परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।

    पदार्थ

    हे (इन्दो) रस के भण्डार, चन्द्रमा के समान आह्लाददायक परब्रह्म परमेश्वर ! (मनीषिभिः) चिन्तनशील हम उपासकों द्वारा (मृज्यमानः) स्तुतियों से अलङ्कृत किये जाते हुए आप (इषे) इच्छासिद्धि के लिए (धारया) आनन्द की धारा के साथ (पवस्व) हमारे अन्तः करण में प्रवाहित होवो। आप (रुचा) तेज के साथ (गाः अभि) हम स्तोताओं के प्रति (इहि) आओ ॥९॥

    भावार्थ

    स्तोताओं से उपासना किया गया रसनिधि परमेश्वर आनन्दरस से उन्हें तृप्त करता है ॥९॥

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    पदार्थ

    (इन्दो) हे आर्द्र भाव वाले रसीले सोम शान्तस्वरूप परमात्मन्! (मनीषिभिः) स्तुति उपासना करने वाले मेधावीजनों द्वारा “मनीषा मनस ईषया स्तुत्या प्रज्ञया वा” [निरु॰ ९.१०] “मनीषी मेधावी”—[निघं॰ ३.१५] (मृज्यमानः) प्राप्त होने में योग्य होता हुआ “मार्ष्टि गतिकर्मा” [निघं॰ २.१४] (इषे धारया पवस्व) इष्ट—परमसुख प्राप्ति के लिये ध्यानधारा द्वारा प्राप्त हो (रुचा) अमृत से (गाः-अभि) स्तुतियों वाणियों को लक्ष्य कर उनके साथ (इहि) प्राप्त हो।

    भावार्थ

    हे आर्द्र रसीले शान्तस्वरूप परमात्मन्! तू स्तुति करने वाले उपासकों द्वारा प्राप्त होने योग्य हमें इष्ट सुख प्राप्ति के लिये ध्यानधारणा से प्राप्त हो तथा अमृत धर्म से स्तुतियों के अनुरूप प्राप्त हों॥९॥

    विशेष

    ऋषिः—कश्यपः (द्रष्टा—परमात्मज्ञानी उपासक)॥<br>

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    विषय

    प्रभु-प्रेरणा-श्रवण

    पदार्थ

    यह सोम मेरे जीवन में (इषे) = प्रभु की प्रेरणा के लिए (पवस्व) = पवित्रता करे। सोम के धारण से वासनाओं का नाश होकर मेरा जीवन इस प्रकार पवित्र हो कि मुझे हृदयस्थ प्रभु की प्रेरणा सुनाई पड़े। यह सोम (मनीषिभिः) = मन को बुद्धि के द्वारा नियन्त्रित करनेवाले समझदार लोगों से (धारया) = धारण के उद्देश्य से (मृज्यमानः) = शुद्ध किया जाता है। मनीषी बनना–मन को बुद्धिपूर्ण रखना- सोम संयम का सर्वोत्तम साधन है। धारित होकर यह हमारा धारण करता है। (धारया) = धारण के हेतु से ही तो विद्वानों ने इसका संयम किया।

    (इन्दो) = मुझे शक्तिशाली बनानेवाले सोम! तू (रुचा) = दीप्त के हेतु से (गा अभि इहि) = वेदवाणी की ओर चल। वेदवाणी 'ब्रह्म' है- इसकी ओर चलना 'ब्रह्मचर्य' है। वेदवाणी का अध्ययन मुझे सोम के संयम में भी सहायक होता है। इसी संयम से मैं प्रभु - प्रेरण को भी सुननेवाला बनता हूँ।

    भावार्थ

     यह सोम मुझे पवित्र कर प्रभु - प्रेरणा को सुनने के योग्य बनाता है। 

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = हे ( सोम ) = आत्मन् ! तू ( मनीषिभिः ) = मनन करने वाले या मन को तेरे प्रति प्रेरणा करने वाले विद्वान् साधकों द्वारा ( मृज्यमानः ) = विवेचना किया गया, परिशोधित किया हुआ होकर ( धारया ) = निरन्तर आनन्द के प्रवाह रूप में ( इषे ) = अन्न और ब्रह्म सम्पादन के निमित्त ( पवस्व ) = प्रकट हो और ( रुचा ) = अपनी कान्ति द्वारा ही हे  ( इन्दो ) = ऐश्वर्यसम्पन्न ! प्राणशील ! तू ( गाः ) = वाणियों या इन्द्रियों के प्रति भी । ( अभि इहि ) = प्राप्त हो । 

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - कश्यपो मारीचः।

    देवता - पवमानः ।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सोमं परमात्मानं प्रार्थयते।

    पदार्थः

    हे (इन्दो) रसागार चन्द्रवदाह्लादक परब्रह्म परमेश्वर ! (मनीषिभिः) चिन्तनशीलैरुपासकैः अस्माभिः (मृज्यमानः) स्तुतिभिः अलङ्क्रियमाणः त्वम्। मृजू शौचालङ्कारयोः। (इषे) इच्छासिद्धये (धारया) आनन्दप्रवाहसन्तत्या (पवस्व) अस्माकमन्तःकरणे परिस्रव, त्वम् (रुचा) तेजसा सह (गाः अभि) स्तोतॄन् अस्मान् प्रति। गौः इति स्तोतृनाम। निघं० ३।१६। (इहि) प्रयाहि ॥९॥

    भावार्थः

    स्तोतृभिरुपासितो रसनिधिः परमेश्वरस्तानन्दरसेन तर्पयति ॥९॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६४।१३, साम० ८४१।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O God, sought after by the worshippers, mayest Thou be realised through steady abstraction of the mind, for the delight of contemplation! Approach all round the eulogiser, with the lustre of knowledge.

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    Meaning

    Shower in streams of purity and power and bless us with food, energy and fulfilment, adored and exalted as you are by sages, scholars and thoughtful devotees. O lord of bliss and beauty, come and, with the light and joy of your presence, sanctify our senses and mind, vision and intelligence. (Rg. 9-64-13)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (इन्दो) હે આર્દ્ર ભાવવાળા રસવાન સોમ-શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! (मनीषिभिः) સ્તુતિ કરનારા મેધાવીજનો દ્વારા (मृज्यमानः) પ્રાપ્ત થવામાં યોગ્ય બનીને (इषे धारया पवस्व) ઇષ્ટ-પરમસુખ પ્રાપ્તિને માટે ધ્યાન દ્વારા પ્રાપ્ત થા (रुचा) અમૃતથી (गाः अभिः) સ્તુતિઓ વાણીઓને લક્ષ્ય કરીને તેની સાથે (इहि) પ્રાપ્ત થા. (૯)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : હે આર્દ્ર રસયુક્ત શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મન્ ! તું સ્તુતિ કરનારા ઉપાસકો દ્વારા પ્રાપ્ત થવા યોગ્ય અમને ઇષ્ટ સુખની પ્રાપ્તિ માટે ધ્યાન-ધારણાથી પ્રાપ્ત થા; અને અમૃત ધર્મથી સ્તુતિઓને અનુરૂપ પ્રાપ્ત થા. (૯)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    منن شیل وِدوان آپکی کھوج کرتے ہیں!

    Lafzi Maana

    چندر کی طرح شانتی سروپ پرمیشور! منن شیل وچاروان دھارنا اور دھیان سے آپ کی کھوج کرتے ہیں، آپ اُن کو آتم گیان کا روپ بخشیں۔ ہے پربُھو! اپنے تیج سے ہماری بانی اور سبھی اِندریوں میں شکتی کی پریرنا دیں۔

    Tashree

    چاند کا آنند دینا جیسے روز کا کام ہے، اِس طرح ہے شانتی داتا اِیش آنند دھام ہے۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    स्तोत्याकडून उपासना केलेला रसनिधी परमेश्वर आनंदरसाने त्यांना तृप्त करतो ॥९॥

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    विषय

    सोम परमेश्वराला प्रार्थना

    शब्दार्थ

    हे (इन्दो) रस- भंडार, चंद्राप्रमाणे आल्हाददायक परब्रह्म परमेश्वर, (मनीषिभिः) आम्ही तुमचे चिंतनशील उपासक (मृज्यमानः) स्तुतिवाणीद्वारे तुम्हाला अलंकृत करीत आहोत. आपण (इषे) आमच्या इच्छा सिद्धीकरिता (धारया) आपल्या आनंद रूप रसधारेने (पवस्व) आमच्या अंतःकरणात प्रवाहित व्हा. आपण (रूचा) आपल्या तेजासह (गाः अभि) आम्हा स्तोताजनांकडे (इहि) या.।। ९।।

    भावार्थ

    स्तोता, उपासकांद्वारे उपासित परमेश्वर आनंद रसाने उपासकांना तृप्त करतो.।। ९।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    சோமனே! மனிதர்களால் (மனங்களால்) சுத்தஞ் செய்யப்பட்ட நீ எங்களின் ஐசுவரியத்திற்குத் (தாரையால்) பெருகவும்; புனித சோதியால் பசுக்களை அணுகவும்.

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