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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 508
    ऋषिः - जमदग्निर्भार्गवः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    25

    अ꣣यं꣡ विच꣢꣯र्षणिर्हि꣣तः꣡ पव꣢꣯मानः꣣ स꣡ चे꣢तति । हि꣣न्वान꣡ आप्यं꣢꣯ बृ꣣ह꣢त् ॥५०८॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ꣣य꣢म् । वि꣡च꣢꣯र्षणिः । वि । च꣣र्षणिः । हितः꣢ । प꣡व꣢꣯मानः । सः । चे꣣तति । हिन्वानः꣢ । आ꣡प्य꣢꣯म् । बृ꣣ह꣢त् ॥५०८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अयं विचर्षणिर्हितः पवमानः स चेतति । हिन्वान आप्यं बृहत् ॥५०८॥


    स्वर रहित पद पाठ

    अयम् । विचर्षणिः । वि । चर्षणिः । हितः । पवमानः । सः । चेतति । हिन्वानः । आप्यम् । बृहत् ॥५०८॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 508
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 2; मन्त्र » 12
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 4;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    कैसा परमात्मा क्या करता है, यह अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    (सः) वह पूर्ववर्णित (विचर्षणिः) विशेष द्रष्टा, (हितः) सबका हितकर्ता (अयम्) यह रसनिधि परमेश्वर (पवमानः) अन्तः करण को शुद्ध करता हुआ (बृहत्) महान् (आप्यम्) बन्धुत्व को (हिन्वानः) निर्वाह करता हुआ (चेतति) बोध दे रहा है ॥१२॥

    भावार्थ

    उपासना किया हुआ परमेश्वर अन्तःकरण को शुद्ध करके, जीवों को जागरूक करके बन्धुत्व का निर्वाह करता है ॥१२॥

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    पदार्थ

    (अयं विचर्षणिः पवमानः) यह द्रष्टा—सर्वद्रष्टा आनन्दधारा में प्राप्त होने वाला सोमरूप शान्त परमात्मा (हितः) अन्तर्हित हुआ (आप्यं बृहत्) प्राप्त करने योग्य अध्यात्मबल को “ओजो वै वीर्यं बृहत्” [काठक॰ ३७.८] (हिन्वानः) प्रेरित करता हुआ (सः) वह (चेतति) ‘चेतयति-अन्तर्गतणिजर्थः’ चेताता है।

    भावार्थ

    यह सर्वद्रष्टा आनन्दधारा में प्राप्त होने वाला शान्तस्वरूप परमात्मा सबके अन्दर वर्तमान हुआ प्राप्त करने योग्य अध्यात्मबल से प्रेरित करता हुआ चेताता है—सावधान करता है॥१२॥

    विशेष

    ऋषिः—जमदग्निः (प्रज्वलित प्रसिद्ध ज्ञानाग्नि वाला)॥<br>

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    विषय

    सदा - चेतन

    पदार्थ

    (अयम्) = यह सोम (विचर्षणिः) = मुझे विशेषरूप से द्रष्टा बनाता है। मैं क्रान्तदर्शी बनकर प्रत्येक वस्तु को उसके वास्तविक रूप में देखता हूँ। इसी का परिणाम है कि उस-उस वस्तु की आपत-रमणीयता मुझे उलझा नहीं पाती। इस प्रकार यह सोम (हितः) = मेरे लिए हितकर होता है। (पवमानः) = यह मुझे पवित्र करनेवाला है और (सः) = वह (चेतति) = चेतनामय है। इस सोम के संयम से मैं मोहमयी प्रमाद - मदिरा पीकर बेसुध नहीं हो जाता, अपितु मेरी चेतना स्थिर रहती है।

    इस प्रकार यह सोम मुझे सदा (बृहत आप्यम्) = सर्वमहान्, प्राप्त करने योग्य प्रभु की ओर (हिन्वान:) = प्रेरित करता है। प्राप्त करने योग्य वस्तु 'आप्यम्' है, सर्वोत्तम आप्य प्रभु हैं। उस सर्वोत्तम ‘आप्य' की प्राप्ति के लिए मुझे यह स्मृति सदा बनी ही रहनी चाहिए कि कोऽहं, (किमिहागत:) = मैं कौन हूँ, यहाँ क्यों आया हूँ! सोम इस चेतना को स्थायी रखता है और मुझे प्रभु-दर्शन कराता है। प्रभु - दर्शन के लिए दो बातें आवश्यक हैं- १. शक्ति २. चेतना। गत मन्त्र में सोम के लिए कहा था कि (वृषायसे) = यह मुझे शक्तिशाली बनाता है और प्रस्तुत मन्त्र में कहा है कि स (चेतति) = यह मेरी चेतना को स्थिर रखता है। शक्ति का तत्त्व 'जमदग्नि' बनने में है, मरी जाठराग्नि सदा तीव्र बनी रहे- 'जमत् + अग्नि' बना रहूँ। जाठराग्नि ठीक रहने से ही सब धातुओं का ठीक उत्पादन होकर मेरी शक्ति स्थिर रहती है। चेतना के लिए भार्गव'–तपस्वी बनना आवश्यक है। 

    भावार्थ

    ‘जमदग्नि भार्गव' बनकर तथा 'शक्ति व चेतना' का सम्पादन करके मैं प्रभु-प्राप्ति का अधिकारी बनूँ।
     

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

     

    भा० = ( अयं ) = यह आत्मा ( विचर्षणिः ) = सबको विशेष रूप से देखने वाला, ( पवमानः ) = सबको शुद्ध, पवित्र करता हुआ, सर्वव्यापक  ( सः ) = वह ( बृहत् ) = बहुत अधिक ( आप्यं ) = प्रजाओं के हितकारी वस्तु अन्न और ज्ञान को ( हिन्वानः ) = प्रेरित करता हुआ ( चेतति ) = जाना जाता, या स्वयं ज्ञानवान् होता, या ज्ञान ग्रहण करता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः - जमदग्नि:।

    देवता - पवमानः।

    छन्दः - गायत्री।

    स्वरः - षड्जः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ कीदृशः परमात्मा किं करोतीत्याह।

    पदार्थः

    (सः) पूर्व-वर्णितः (विचर्षणिः) विशेषद्रष्टा (हितः) सर्वेषां हितकरः (अयम्) एष रसनिधिः परमेश्वरः (पवमानः) अन्तःकरणं शोधयन् (बृहत्) महत् (आप्यम्) आपित्वं बन्धुत्वम् (हिन्वानः) निर्वहन्। हि गतौ वृद्धौ च, भ्वादिः। (चेतति) चेतयति बोधयति। णिज्गर्भोऽयं प्रयोगः ॥१२॥

    भावार्थः

    उपासितः परमेश्वरोऽन्तःकरणं संशोध्य जीवान् जागरूकान् विधाय बन्धुत्वं निर्वहति ॥१२॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।६२।१०

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    God is Far-seeing, Benevolent and Purifier. He, offering lofty friendship develops the intellect.

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    Meaning

    This Soma, divine spirit of action, honour and joy, is all watching, all beneficent, all inspiring, moving and dynamic, ever wakeful, setting in motion the flow on for attainment of vast achievable success and fulfilment. (Rg. 9-62-10)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (अयं विचर्षणिः पवमानः) એ દૃષ્ટા-સર્વદૃષ્ટા આનંદધારામાં પ્રાપ્ત થનાર સોમરૂપ શાન્ત પરમાત્મા (हितः) અન્તર્હિત બનીને (आप्यं बृहत्) પ્રાપ્ત કરવા યોગ્ય અધ્યાત્મબળને (हिन्वानः) પ્રેરિત કરીને (सः) તે (चेतति) ચેતાવે છે. (૧૨)
     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : એ સર્વ દષ્ટા આનંદધારામાં પ્રાપ્ત થનાર શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા સર્વની અંદર વિદ્યમાન રહીને, પ્રાપ્ત કરવા યોગ્ય અધ્યાત્મબળથી પ્રેરિત કરીને ચેતવે છે-સાવધાન કરે છે. (૧૨)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    بھائی چارے کی طرف راغب کرتا ہے!

    Lafzi Maana

    یہ بھگتی رس بھگوان کے درشن کراتا ہے، سب کاہِت کرتا اور پوتّر کرتا ہے۔ سب کو نئی زندگی دے کر عالمی بھائی چارے کی رغبت دیتا ہے۔

    Tashree

    سب کا ہتکاری ہے سوم رس پربُھو درشن کر داتا ہے، نئی زندگی سب کو دے کر بھراتری بھاو بڑھاتا ہے۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    उपासित केलेला परमेश्वर अंत:करणाला शुद्ध करून, जीवांना जागरूक करून बंधुत्वाचा निर्वाह करतो ॥१२॥

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    विषय

    परमेश्वर कसा व तो काय करतो, याविषयी -

    शब्दार्थ

    (सः) तो (विचर्षणिः) विशेषत्वाने द्रष्टा असलेला (हितः) सर्वांचा हितकर्ता (अयम्) हा रसनिधी परमेश्वर (पवमानः) आमच्या अंतःकरणास पवित्र करीत (बृहत्) महान (आप्यम्) बंधुत्वाचा (सहाय्यकाचा) (हिन्वानः) निर्वाह करीत (आम्हाला सर्व प्रकारे मदत करीत) (चेतति) आम्हाला बोध वा प्रेरणा देत आहे.।। १२।।

    भावार्थ

    उपासना केल्यामुळे परमेश्वर भक्ताच्या अंतःकरणाला शुद्ध करीत, जीवांना सावध करीत बंधुत्वाचे (मददगाराप्रमाणे) आचरण करतो.।। १२।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    துரிதமானவனாய் (பவமானனான) சோமன் ஹிதஞ் செய்பவனாய் பெரிய சலத்திலுள்ளதை ஞான முதலியவற்றை தூண்டிக் கொண்டு எதையும் உணர்த்துகிறான்.

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