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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 533
    ऋषिः - प्रतर्दनो दैवोदासिः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    35

    प्र꣡ से꣢ना꣣नीः꣢꣫ शूरो꣣ अ꣢ग्रे꣣ र꣡था꣢नां ग꣣व्य꣡न्ने꣢ति꣣ ह꣡र्ष꣢ते अस्य꣣ से꣡ना꣢ । भ꣣द्रा꣢न्कृ꣣ण्व꣡न्नि꣢न्द्रह꣣वा꣡न्त्सखि꣢꣯भ्य꣣ आ꣢꣯ सोमो꣣ व꣡स्त्रा꣢ रभ꣣सा꣡नि꣢ दत्ते ॥५३३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र꣢ । से꣣नानीः꣢ । से꣣ना । नीः꣢ । शू꣡रः꣢꣯ । अ꣢ग्रे꣣ । र꣡था꣢꣯नाम् । ग꣣व्य꣢न् । ए꣣ति । ह꣡र्ष꣢꣯ते । अ꣣स्य । से꣡ना꣢꣯ । भ꣣द्रा꣢न् । कृ꣣ण्व꣢न् । इ꣣न्द्रहवा꣢न् । इ꣣न्द्र । हवा꣢न् । स꣡खि꣢꣯भ्यः । स । खि꣣भ्यः । आ꣢ । सो꣡मः꣢꣯ । व꣡स्त्रा꣢꣯ । र꣣भसा꣡नि꣢ । द꣣त्ते ॥५३३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र सेनानीः शूरो अग्रे रथानां गव्यन्नेति हर्षते अस्य सेना । भद्रान्कृण्वन्निन्द्रहवान्त्सखिभ्य आ सोमो वस्त्रा रभसानि दत्ते ॥५३३॥


    स्वर रहित पद पाठ

    प्र । सेनानीः । सेना । नीः । शूरः । अग्रे । रथानाम् । गव्यन् । एति । हर्षते । अस्य । सेना । भद्रान् । कृण्वन् । इन्द्रहवान् । इन्द्र । हवान् । सखिभ्यः । स । खिभ्यः । आ । सोमः । वस्त्रा । रभसानि । दत्ते ॥५३३॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 533
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 1; दशतिः » 5; मन्त्र » 1
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 7;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    प्रथम मन्त्र में परमात्मा का सेनानी रूप में वर्णन है।

    पदार्थ

    (सेनानीः) देवजनों का सेनापति (शूरः) शूरवीर सोम नामक परमेश्वर (गव्यन्) दिव्य प्रकाश-किरणों को प्राप्त कराना चाहता हुआ (रथानाम्) शरीररथारोही जीवात्मारूप योद्धाओं के (अग्रे) आगे-आगे (प्र एति) चलता है, इस कारण (अस्य) इसकी (सेना) देवसेना (हर्षते) प्रमुदित एवं उत्साहित होती है। (सखिभ्यः) अपने सखा उपासकों के लिए (इन्द्रहवान्) सेनापति के प्रति की गयी पुकारों को (भद्रान्) भद्र (कृण्वन्) करता हुआ, अर्थात् उपासकों की पुकारों को सफल करता हुआ (सोमः) वीररसपूर्ण परमेश्वर (रभसानि) बल, वेग आदियों को (वस्त्रा) वस्त्रों के समान (आदत्ते) ग्रहण करता है, अर्थात् जैसे कोई वस्त्रों को धारण करता है, वैसे ही वीर परमेश्वर अपने सेनापतित्व का निर्वाह करने के लिए बल, वेग आदि को धारण करता है ॥१॥ इस मन्त्र में वीररस है। सोम परमात्मा में सेनानीत्व का आरोप होने से रूपक अलङ्कार है ॥१॥

    भावार्थ

    जैसे कोई शूर सेनापति वीरोचित वस्त्रों को धारण कर रथारोही योद्धाओं के आगे-आगे चलता हुआ उन्हें प्रोत्साहित करता है और अपनी सेना को हर्षित करता है, वैसे ही परमेश्वर वीरोचित बल, वेग आदि को धारण करता हुआ मानसिक देवासुरसंग्राम में मानो सेनानी बनकर दुर्विचाररूप शत्रुओं का संहार करने के लिए और दिव्य विचारों को बढ़ाने के लिए देवजनों को समुत्साहित करता है ॥१॥

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    पदार्थ

    (शूरः) प्रगतिशील “शूरः शवतेर्गर्तिकर्मणः” [निरु॰ ४.१३] (सेनानीः) इन्द्रियगण—सेना का नेता प्रेरक मन (रथानाम्) शरीररथों के (गव्यन्) गौओं—इन्द्रियों को स्वानुकूल चाहता हुआ चलाता हुआ (अग्रे प्र-एति) आगे प्रबल होकर चलता है पुनः (अस्य सेना हर्षते) इसकी इन्द्रियगण सेना अलीक हो जाती है—विषय प्रवृत्ति को त्याग देती है “हृषु अलीके” [भ्वादि॰] तभी (सोमः) शान्तस्वरूप परमात्मा (इन्द्रहवान्) मन के आह्वानों—भावों को “यन्मनः स इन्द्रः” [गो॰ २.४.११] (भद्रान्) कल्याणरूप (कृण्वन्) करने—बनाने के हेतु (सखिभ्यः) मित्ररूप जीवन्मुक्त उपासकों के लिये मोक्ष में (रभसानि वस्त्रा) महान् विशाल “रभसः-महन्नाम” [निघं॰ ३.३] वस्त्रतुल्य आच्छादनों—रक्षणों को (आ) समन्तरूप से (दत्ते) देता है।

    भावार्थ

    जब शरीररथ के इन्द्रिय घोड़ों का नेता मन उन्हें स्ववश चलाता है तो वे अलीक हो जाती हैं, अपनी अपनी विषयव्यसन प्रवृत्ति को त्याग देती हैं। तब शान्तस्वरूप परमात्मा मन के भावों को कल्याणरूप में सफल करता हुआ मित्ररूप मुमुक्षु उपासकों या जीवन्मुक्तों के लिये मोक्ष में वस्त्रतुल्य विशाल आच्छादनों—रक्षणों को समन्तरूप से देता है॥१॥

    विशेष

    ऋषिः—प्रतर्दनः (काम आदि दोषों को नष्ट करने वाला उपासक)॥<br>

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    विषय

    प्रभु सेनानी हैं- मैं उनका सैनिक

    पदार्थ

    प्रतर्दन' प्रभु का अपने में अवतरण करता है और प्रभु अब उसके सेनापति बनते हैं। तब वह (सेनानी:) = सेनापति (शुरः) = सब शत्रुओं का संहार करनेवाले हैं। जीव भी प्रभु से प्रेरित होकर ही शत्रुओं का हनन किया करता है। (रथानां अग्रे) = रथों को अग्रभाग में वह सेनानी स्थित है। शरीर ही रथ है, इसका उत्तमाङ्ग सिर है। मस्तिष्क में स्थित हुए- हुए ये प्रभु (गव्यन्) = वेदवाणियों का उच्चारण करते हुए (प्रएती) = गति कर रहे हैं। प्रभु ज्ञान देते हैं - जीव उस आज्ञा अनुसार क्रियाशील होता है ।

    उस प्रभु के आह्वान के अनुसार चलती हुई (अस्य सेना) = प्रभु की यह सेना (हर्षते) = हर्ष का अनुभव करती है। प्रभु के सैनिक आनन्द में न होंगे तो कौन आनन्द में होगा। प्रेय मार्ग प्रारम्भ में चमकता हुआ उत्तरोत्तर क्षीणकान्ति होता जाता है। श्रेय मार्ग में उत्तरोत्तर आनन्द बढ़ता ही जाता है-वहाँ अन्त में दुःखों का पूर्ण अन्त है।

    इस मार्ग पर अपने पीछे आते हुए (सखिभ्यः) = अपने मित्रों को उत्साहित करने के लिए (भद्रान्) = बड़े शुभ (इन्द्रहवान्) = सेनापति की पुकारों को (कृण्वन्) = करता है [लट् – शत]। प्रभु सेनापति हैं। सेनापति को सैनिकों को उत्साहित ही करना चाहिए। इस प्रकार समय-समय पर उत्साहित किये जाते हुए ये सैनिक विजयी बनते हुए लक्ष्य स्थान पर पहुँच ही जाते हैं। प्रभु सेनापति हों, और सैनिक हार जाए यह कभी सम्भव है?

    विजयी बनकर जब योद्धा अपने शिविर में पहुँचते हैं तो कवच उतार देते हैं, इसी प्रकार इन विजयी योद्धाओं के (रभसानि वस्त्रा) = इन जबर्दस्त शरीररूप वस्त्रों को (सोमः) = वह परमात्मा आदत्ते=वापस ले-लेता है। शरीर 'वस्त्र' है-यह विजयी बनने तक मिलता ही रहेगा। विजय-प्राप्ति के बाद प्रभु इसे वापस ले लेंगे- यही मोक्ष है। आज सचमुच 'दैवादासि पतर्दन' नाम सार्थक हुआ है।

    भावार्थ

    प्रभु सेनानी है - मैं उनका सैनिक ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( सेनानी: ) = सेना का नायक, ( शूरः ) = बलवान्, शूरवीर, सेनापति जिस प्रकार ( रथानां अग्रे ) = रथों, रथारोही सैनिकों के आगे ( गव्यन् ) = पृथिवी के विजय के लिये ( प्र एति ) = आगे २ बढ़ता हैं और ( अस्य सेना ) = इसकी सेना ( हर्षते ) = उत्साह से प्रसन्न होती है, वह ( सोमः ) = वीर राजा ( सखिभ्य: ) = अपन मित्रों के लिये ( भद्रान् ) = अति कल्याणकारी, सुखदायक ( इन्द्र - हवान् ) = ऐश्वर्ययुक्त राजोचित आह्वानों, पुकारों और आज्ञावचनों को ( कृण्वन् ) = करता हुआ ( रभसानि ) = अति वेग वाले ( वस्त्रा ) = ढक देने वाले शत्रु के आक्रमणों को ( आ दत्ते ) = हटा देता है उसी प्रकार ( सेनानी: ) = इन्द्रियगणों का नेता ( रथानाम् अंग्रे ) = रमण योग्य आनन्दप्रद देहो, या आभ्यन्तर रसों के मुख्य पद में स्थिर  होकर ( गव्यन् ) = वाणियों, या इन्द्रियसामर्थ्यो को,या आत्मभूमियों पर वश करता हुआ ( प्रएति ) = आगे बढ़ता है । ( अस्य सेना हर्षते ) = इसके समस्त इन्द्रिय, प्राणगण, या साधक प्रसन्न होते हैं । ( सखिभ्यः ) = मित्र साधकों या प्राणगण को वह ( भद्रान ) = ऐश्वर्ययुक्त ( इन्द्रह-वान ) = आत्मा के नाना ज्ञानसामर्थ्य प्रदान करता हुआ ( रभसानि वस्त्राणि ) = अति वेग से युक्त प्रबल आच्छादक आवरणों  को ( आदत्ते ) = दूर कर देता है । इन्द्रियां तन्मुख होजाती हैं। इन्द्र अर्थात् आत्मा के संस्मरण उस समय मंगलजनक जंचते हैं और तामस आवरण आत्मा के सामने से हटने लगते हैं।
     

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - प्रतर्दन:।

    देवता - पवमानः।

    छन्दः - त्रिष्टुप्।

    स्वरः - धैवतः। 

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    तत्रादौ सोमं परमात्मानं सेनानीत्वेन वर्णयति।

    पदार्थः

    (सेनानीः) देवजनानां सेनापतिः (शूरः) वीरः सोमः परमेश्वरः (गव्यन्) गाः दिव्यान् प्रकाशकिरणान् प्रापयितुमिच्छन्। अत्र छन्दसि परेच्छायां क्यच्। (रथानाम्) शरीररथारोहिणां जीवात्मरूपाणां योद्धॄणाम्। अत्र लक्षणया रथैः रथारोहिणो गृह्यन्ते। (अग्रे२) अग्रपदे (प्र एति) प्रकृष्टतया याति, अतः (अस्य) सोमस्य परमेश्वरस्य (सेना) देवसेना (हर्षते) मोदते, उत्सहते। (सखिभ्यः) सुहृद्भ्यः स्वोपासकेभ्यः (इन्द्रहवान्) रक्षां प्राप्तुम् इन्द्रं वीरं सेनापतिं राजानं वा उद्दिश्य ये हवाः यानि आह्वानानि क्रियन्ते ते इन्द्रहवा इत्युच्यन्ते तान् (भद्रान्) सुखजनकान् (कृण्वन्) कुर्वन् तेषामाह्वानानि सफलयन्नित्यर्थः (सोमः) वीररसपूर्णः परमेश्वरः (रभसानि) बलवेगादीनि (वस्त्रा) वस्त्राणि इव इति लुप्तोपमम्, (आदत्ते) गृह्णाति, यथा कश्चिच्छरीरे वस्त्राणि धारयति तथा वीरः परमेश्वरो नायकत्वं निर्वोढुं स्वात्मनि बलवेगादीनि धारयतीत्यर्थः ॥१॥ अत्र वीरो रसः। सोमे परमात्मनि सेनानीत्वारोपाद् रूपकालङ्कारः ॥१॥

    भावार्थः

    यथा कश्चिच्छूरः सेनापतिर्वीरोचितानि वस्त्राणि धारयन् रथारोहिणां सुभटानामग्रे गच्छंस्तान् प्रोत्साहयति स्वकीयां सेनां च हर्षयति तथैव परमेश्वरोऽपि वीरोचितानि बलवेगादीनि धारयन् मानसे देवासुरसंग्रामे सेनानीरिव भूत्वा दुर्विचाररूपान् शत्रून् हन्तुं दिव्यविचारांश्च वर्धयितुं देवजनान् समुत्साहयति ॥१॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।९६।१। २. संहितायां केषुचित् पुस्तकेषु अ꣢ग्ने꣣ इति पाठः, तत्र स्वरो न संगच्छते।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Just as a Valiant Commander, but on conquering the enemy’s territory, goes forth in front of the cars, and his army is pleased thereby ; and just as a brave King, announcing his benevolent behests for his associates, wards off the formidable, overpowering onslaughts of the enemy; so does the soul, the leader of all organs, ruling over bodies and controlling all faculties march onward ; whereby all its breaths and senses are gratified. Bestowing manifold, useful knowledge on its votaries, it discards the powerful coverings of ignorance.

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    Meaning

    Soma, heroic brave leader, warrior and commander, marches at the head of chariots, ardently ambitious for positive gains for the commonalty, his army follows with joyous enthusiasm. Thus nobly fulfilling the divine call of Indra for the advancement and excellence of the friends of humanity, Soma takes on the robe and role of peace and protection and the arms for the defence of humanity. (Rg. 9-96-1)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (शूरः) પ્રગતિશીલ (सेनानीः) ઇન્દ્રિયગણ-સેનાનો નેતા પ્રેરક મન (रथानाम्) શરીર રથોના (गव्यन्) ગૌ-ઇન્દ્રિયોને સ્વાનુકૂળ ચાહીને ગતિ કરતાં (अग्रे प्र एति) આગળ પ્રબળ બનીને ગતિ કરે છે. પુનઃ (अस्य सेना हर्षते) તેની ઇન્દ્રિયગણ સેના હર્ષનો અનુભવ કરે છે-વિષય પ્રવૃત્તિનો ત્યાગ કરે છે ત્યારે (सोमः) શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા (इन्द्रहवान्) મનમાં આહ્વાનો-ભાવોને (भद्रान्) કલ્યાણરૂપ (कृण्वन्) કરવા બનાવવા માટે (सखिभ्यः) મિત્રરૂપ જીવનમુક્ત ઉપાસકોને માટે મોક્ષમાં (रभसानि वस्त्रा) મહાન વિશાળ વસ્ત્રો સમાન આચ્છાદનો-રક્ષણોને (आ) સમગ્રરૂપથી (दत्ते) પ્રદાન કરે છે. (૧)

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : જ્યારે શરીર રથના ઇન્દ્રિયરૂપ ઘોડાઓનો નેતા મન તેને પોતાને વશ ચલાવે છે, ત્યારે તે અલીક-અપ્રિય બની જાય છે, પોત-પોતાની વિષય વ્યસન પ્રવૃત્તિનો ત્યાગ કરે છે ત્યારે શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા મનના ભાવોને કલ્યાણ રૂપમાં સફળ કરતાં મિત્ર રૂપ મુમુક્ષુ ઉપાસકો અથવા જીવન્મુક્તોને માટે મોક્ષમાં વસ્ત્રો સમાન વિશાળ આચ્છાદનો-રક્ષણોને સમગ્ર રૂપમાં પ્રદાન કરે છે. (૧)

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    دیو اَسُر سنگرام میں جب بھگوان اپنے بھگتوں کی رہنمائی کرتا ہے

    Lafzi Maana

    جیسے بہادر کمانڈر، دھرمی دشمنوں کی پسپائی کر اُس کی حکومت کو لینے کے لئے اپنی فوجوں کے آگے چلتا ہے تو اُس کی سینا میں بھی خوشی کی لہر اُٹھتی ہے، ویسے ہی جب کام کرودھ وغیرہ پاپوں کے حملوں سے بچانے کے لئے پرمیشور اپنے بھگتوں کی سینا کے آگے آگے چلتا ہے، تو عابد عارف لوگ خوشیوں سے ناچنے لگ جاتے ہیں، تب سوم پرمیشور اُن کے پُرانے جسم روپ کپڑوں کو لے کر اُنہیں نجات دے دیتا ہے۔

    Tashree

    بھگتوں کے پاپوں کو ہرنے آگے چلتے ہیں بھگوان کہن پُرانے جسموں کو لے روح کو کرتے موکھش پردان۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    जसा एखादा शूर सेनापती वीरोचित वस्त्रे धारण करून रथावर आरूढ झालेल्या योद्ध्यांच्या पुढे पुढे चालत त्यांना प्रोत्साहित करतो व आपल्या सेनेला हर्षित करतो, तसेच परमेश्वर वीरोचित बल, वेग इत्यादी धारण करून मानसिक देवासुर संग्रामात जणू सेनापती बनून दुर्विचाररूपी शत्रूंचा संहार करण्यासाठी व दिव्य विचारांना वाढविण्यासाठी देवजनांना उत्साहित करतो ॥१॥

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    विषय

    परमेश्वराचे सेनानी रूपाने वर्णन

    शब्दार्थ

    (सेनानीः) देवजनांचा सेनापती (शूरः) शूरवीर सोम नाम परमेश्वर (गव्यन्) दिव्य प्रकाशाची (सैनिकांप्रमाणे उपासकांना प्रेरणा देत) (रथानाम्) शरीर - रथावर आरूढ जीवात्मारूप योद्धाजनांच्या (अग्रे) पुढे (अग्रस्थानी) (प्र एति) चालतो. यामुळे (अस्य) या सेनापतीची (सेना) देवसेना (हर्षते) प्रमुदित व अत्युत्साहित होते. (सखिभ्यः) त्याचे मित्रवत जे उपासक गण, त्यानी (उन्द्र हवान्) आपल्या सेनापतीला केलेले आवाहन वा दिलेली हाक तो परमेश्वर रूप सेनापती (भद्रान्) भध्र (कृण्वन्) करीत (सैनिकांच्या / उपासकांच्या हाका ऐकत) (सोमः) वीररस पूर्ण तो परमेश्वर (रभसानि) बळ, वेग आदी गुण (वस्त्रा) जसा कोणी झटपट वस्त्र नेमतो तद्वत बळ, वेगादी (आदत्ते) धारण करतो. म्हणजे जसे कोणी वस्त्र धारण करतो, तसा तो वीर परमेश्वर आपल्या सेनापतितवा नेतृत्वाची पूर्तता करण्यासाठी शक्ती व वेग धारण करतो.।। १।।

    भावार्थ

    जसे एक शूर सेनापती वीरोचित वस्त्रे धारण करून रथारोही सैनिकांच्या पुढे पुढे चालत त्यांचा उत्साह वाढवत असतो आणि आपल्या सैन्याला हर्षित करतो, तसेच परमेश्वरदखील वीरोचित शक्ती, वेग आदी धारण करीत (उत्पत्ती, कर्मफल प्रदान संचालन आदीविषयी त्वरित कार्य करीत उपासकांच्या मानसिक देवासुर - संग्रामामध्ये त्यांचासेनानी होऊन दिर्विचाररूप शत्रूंचा संहार करण्यासाठी व दिव्य विचारांच्या वृद्धीकरिता देवजनांना समुत्साहित करतो.।। १।।

    विशेष

    या मंत्रातला रस वीर रस आहे. सोम परमेश्वरावर सेनापतीचा आरोप असल्यामुळे रूपक अलंकार आहे.।। १।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    சேனாதிபதி சூரனான சோமன் ஜயம் தேடிக் கொண்டு ரதத்தின் முன்பக்கம் சந்தோஷமுடன் (சண்டைக்குச்) செல்லுகிறான்; அவன் (சேனை) சந்தோஷமுடனிருக்கின்றது. நண்பர்களுக்காக இந்திரனின் அழைப்பை சுபமாய் செய்துகொண்டு பலமுடனான (உடையை கொடுக்கிறான்).

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