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सामवेद के मन्त्र

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  • सामवेद - मन्त्रसंख्या 584
    ऋषिः - ऊरुराङ्गिरसः देवता - पवमानः सोमः छन्दः - ककुप् स्वरः - मध्यमः काण्ड नाम - पावमानं काण्डम्
    18

    ए꣣ष꣡ स्य धार꣢꣯या सु꣣तो꣢ऽव्या꣣ वा꣡रे꣢भिः पवते म꣣दि꣡न्त꣢मः । क्री꣡ड꣢न्नू꣣र्मि꣢र꣣पा꣡मि꣢व ॥५८४॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए꣣षः । स्यः । धा꣡र꣢꣯या । सु꣣तः꣢ । अ꣡व्याः꣢꣯ । वा꣡रे꣢꣯भिः । प꣣वते । मदि꣡न्त꣢मः । क्रीड꣢न् । ऊ꣣र्मिः꣢ । अ꣣पा꣢म् । इ꣣व ॥५८४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एष स्य धारया सुतोऽव्या वारेभिः पवते मदिन्तमः । क्रीडन्नूर्मिरपामिव ॥५८४॥


    स्वर रहित पद पाठ

    एषः । स्यः । धारया । सुतः । अव्याः । वारेभिः । पवते । मदिन्तमः । क्रीडन् । ऊर्मिः । अपाम् । इव ॥५८४॥

    सामवेद - मन्त्र संख्या : 584
    (कौथुम) पूर्वार्चिकः » प्रपाठक » 6; अर्ध-प्रपाठक » 2; दशतिः » 4; मन्त्र » 7
    (राणानीय) पूर्वार्चिकः » अध्याय » 5; खण्ड » 11;
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    अगले मन्त्र में सोम का धाराप्रवाह वर्णित है।

    पदार्थ

    प्रथम—सोम ओषधि के रस के पक्ष में। (एषः) यह (स्यः) वह हमारे द्वारा पर्वत से लाया गया, (अव्याः वारेभिः) भेड़ के बालों से अर्थात् भेड़ की ऊन से निर्मित दशापवित्रों से (सुतः) अभिषुत किया गया, (मदिन्तमः) अतिशय आनन्द उत्पन्न करनेवाला सोमरस (अपाम्) नदियों की (ऊर्मिः इव) लहर के समान (क्रीडन्) क्रीडा करता हुआ (धारया) धारा रूप से (पवते) द्रोणकलश में जा रहा है ॥ द्वितीय—परमात्मा के पक्ष में। (एषः) यह अनुभव किया जाता हुआ (स्यः) वह (अव्याः वारेभिः) भेड़ के बालों से निर्मित दशापवित्रों के तुल्य पवित्रताकारक यम, नियम आदि योगाङ्गों से (सुतः) हृदय में प्रकट किया गया, (मदिन्तमः) अतिशय आनन्द उत्पन्न करनेवाला सोम परमात्मा (अपाम् ऊर्मिः इव) नदियों की लहर के समान (कीडन्) क्रीडा करता हुआ (धारया) आनन्द की धारा के साथ (पवते) मेरे आत्मा में पहुँच रहा है ॥७॥ इस मन्त्र में श्लेष और उपमालङ्कार है। जलों की लहर के समान क्रीडा करता हुआ सोम ओषधि का रस जैसे दशापवित्रों से छाना हुआ द्रोणकलश में पहुँचता है, वैसे ही यम, नियम आदि योग-साधनों से हृदय में प्रकट किया गया परमात्मारूप सोम मानो क्रीडा करता हुआ आनन्दप्रवाह के साथ योगियों के आत्मा को प्राप्त होता है ॥७॥

    भावार्थ

    समाधिस्थ उपासक लोग परमात्मा के पास से अपने आत्मा में वेगपूर्वक आती हुई आनन्दधारा को साक्षात् अनुभव करते हैं ॥७॥

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    पदार्थ

    (एषः-स्यः) यह वह (मन्दितमः) अत्यन्त स्तुति योग्य शान्तस्वरूप परमात्मा (सुतः) निष्पन्न—साक्षात् किया (अव्याः) अवि—रक्षणकारिणी अध्यात्मभूमि के सूक्ष्म तत्त्वों के द्वारा (पवते) आनन्दधारा में प्रवाहित हो रहा है (अपाम् क्रीडन्-ऊर्मिः-इव) जल स्रोतों की तरङ्ग के समान खेलता हुआ-सा।

    भावार्थ

    यह वह अत्यन्त स्तुति योग्य शान्तस्वरूप परमात्मा साक्षात् हुआ रक्षण करने वाली योगभूमि के सूक्ष्म तत्त्वों द्वारा आनन्दधारा में जल तरङ्गों में खेलता-सा प्रवाहित होता है॥७॥

    विशेष

    ऋषिः—उरुराङ्गिरसः (प्राणविद्यासम्पन्न महान् आयुष्मान्)॥ छन्दः—प्रगाथः॥<br>

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    विषय

    विशालता

    पदार्थ

    प्रस्तुत मन्त्र का ऋषि 'उरु: आङ्गिरस' है। यह शब्द 'ऊर्णुञ् आच्छादने' धातु से बना है। यह प्राणिमात्र को अपने प्रेम से आच्छादित करने का प्रयत्न करता है। अपने प्रेम को विशाल बनाकर ही यह वासना से ऊपर उठकर 'आङ्गिरस' = शक्तिशाली हुआ है।

    यह इस निश्चय पर पहुँचा है कि (एषः) = यह (स्यः) = वह प्रसिद्ध (सोम) = वीर्य [vitality] (धारया) = जीवन के हेतु से (सुतः) = उत्पन्न किया गया है। इसको शरीर में ही खपाकर हमें अपने अङ्ग-प्रत्यङ्ग को 'स्वस्थ, सबल व सशक्त' बनाना है। यह सोम हमें (अव्या) = रक्षण में सर्वोत्तम- ज्ञान के मार्ग में आनेवाली रुकावटों [Bars] से (पवते) = परे ले जाता है - उनसे हमें ऊपर उठा देता है। वस्तुतः यह सोम ज्ञानाग्नि का ईंधन बनकर उसे दीप्त कर देता है। ज्ञान की प्राप्ति के साथ (मदिन्तमः) = यह हमें अत्यन्त मद व उल्लास को प्राप्त करानेवाला है। (इव) = जैसे (अपाम् उर्मि:) = जलों की तरंग (क्रीडन्) = क्रीड़ा करती हुई होती हैं उसी प्रकार यह मनुष्य सारी क्रियाओं को 'गुणा गुणेषु वर्तन्ते' - गुणों की परस्पर होती हुई क्रीड़ा ही समझता है। क्रीड़ा में उत्साह है- निराशा नहीं । सोम-सम्पन्न व्यक्ति गिरकर भी उत्साह - शून्य नहीं होता।

    भावार्थ

    प्रेम को विशाल बनाकर हम वासना पर विजय पाएँ।

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    विषय

    "Missing"

    भावार्थ

    भा० = ( सुतः ) = निष्पन्न अभिव्यक्त आनन्दरस ( अव्याः वारेभिः ) = चितिशक्ति के आवरणों से पार होकर ( मदिन्तमः ) = अति अधिक आनन्द से समृद्ध ( अपां ) = जलों के ( ऊर्मिः इव ) = प्रवाह या तरंग के समान ज्ञानों, कर्मों का तरंग ( धारया ) = अपनी निरन्तर धारा या धारक शक्ति से ( क्रीडन् ) = संसार में कीड़ा सी करता हुआ, लीला करता हुआ ( स्य: एष ) = जिसको ढूंढते हैं वह यह ( पवते ) = हृदय देश में प्रकाशित होता है ।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

     

    ऋषिः - ऊरुराङ्गिरसः।

    देवता - पवमानः ।

    छन्दः -प्रगाथ:। 

    स्वरः - मध्यमः

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    संस्कृत (1)

    विषयः

    अथ सोमो धारया पवते इत्याह।

    पदार्थः

    प्रथमः—सोमौषधिरसपक्षे। (एषः) अयम् (स्यः) सः अस्माभिः पर्वतादानीतः (अव्याः वारेभिः) अवेर्बालैः, अविबालनिर्मितदशापवित्रैरित्यर्थः। (सुतः) अभिषुतः, (मदिन्तमः) अतिशयानन्दजनकः सोमौषधिरसः (अपाम्) उदकानाम् (ऊर्मिः इव) तरङ्गः इव (क्रीडन्) क्रीडां कुर्वन् (धारया) धारारूपेण (पवते) द्रोणकलशं गच्छति। पवते गतिकर्मा। निघं० २।१४ ॥ अथ द्वितीयः—परमात्मपक्षे। (एषः अयम् अनुभूयमानः (स्यः) स प्रसिद्धः (अव्याः वारेभिः) अविबालनिर्मितदशापवित्रैरिव पवित्रताकारकैः यमनियमादिभिर्योगाङ्गैः (सुतः) हृदये प्रकटीकृतः (मदिन्तमः) अतिशयानन्दजनकः सोमः परमात्मा (अपाम् ऊर्मिः इव) नदीनां तरङ्गः इव (क्रीडन्) क्रीडां कुर्वन् (धारया) आनन्दप्रवाहेण सह (पवते) मदीयमात्मानं प्राप्नोति ॥७॥ अत्र श्लेष उपमालङ्कारश्च। अपां तरङ्ग इव क्रीडन् सोमौषधिरसो यथा दशापवित्रैः सुतः सन् द्रोणकलशं प्राप्नोति तथा यमनियमादिभिर्योगसाधनैः हृदये प्रकटीकृतः क्रीडन्निव परमात्मसोम आनन्दप्रवाहेण सार्द्धं योगिनामात्मानमधिगच्छति ॥७॥

    भावार्थः

    समाधिस्था उपासकाः परमात्मनः सकाशाद् वेगेन स्वात्मानमागच्छन्तीमानन्दधारां साक्षादनुभवन्ति ॥७॥

    टिप्पणीः

    १. ऋ० ९।१०८।५।

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    The accomplished soul, transgressing the coverings of the mind, endowed with supreme joy, plays in this world with knowledge and actions, backed by its internal strength, just as ripples play on water. He, Who is sought after, shines in the heart.

    Translator Comment

    He refers to God.

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    Meaning

    It is that Soma, most joyous spirit of lifes beauty, which, when realised by controlled minds of choice meditative order, flows pure and purifying by the stream of ecstasy, playful and exalting like waves of the sea. (Rg. 9-108-5)

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    गुजराती (1)

    पदार्थ

    પદાર્થ : (एषः स्यः) જે તે (मन्दितमः) અત્યંત સ્તુતિ યોગ્ય શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા (सुतः) નિષ્પન્નસાક્ષાત્ કરેલ (अव्याः) અવિ-રક્ષણકારિણી અધ્યાત્મભૂમિના સૂક્ષ્મ તત્ત્વો દ્વારા (पवते) આનંદધારામાં પ્રવાહિત થઈ રહ્યો છે. (अपाम् क्रीडन् ऊर्मिः इव) જળ સ્રોતાના તરંગની સમાન રમી રહ્યો છે. (૭)
     

    भावार्थ

    ભાવાર્થ : જે તે અત્યંત સ્તુતિ કરવા યોગ્ય, શાન્ત સ્વરૂપ પરમાત્મા સાક્ષાત્ થઈને, રક્ષણ કરનારી યોગભૂમિના સૂક્ષ્મ તત્ત્વો દ્વારા આનંદધારામાં જળ તરંગોમાં ખેલતો-રમતો પ્રવાહિત થઈ રહ્યો છે. (૭)
     

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    उर्दू (1)

    Mazmoon

    یہ ُوہی پرماتما ہے

    Lafzi Maana

    یہ وہی پرماتما ہے جو ہر ایک دل میں بھی ہے اور برہمانڈ میں بھی، دُکھوں میں پھنسانے والے بھوگوں سے چھڑانے کے لئے ظاہر ہو کر آنند رس دھارا سے حاصل ہوتا ہے، وہ ہی ہماری پرارتھناؤں کو سُننے کا ادھیکاری ہے، جو دُنیا میں ایسے کھیل رہا ہے، جیسے پانی کی لہریں!

    Tashree

    ہے وہی سوامی جگتی تل کا جو ہے دل میں برہمانڈ میں بھی، دُکھ بھوگ سے چھڑوانے کیلئے جو کھیل رہا جل لہروں سی۔

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    मराठी (2)

    भावार्थ

    समाधिस्थ उपासक लोक परमात्म्याकडून आपल्या आत्म्यात वेगपूर्वक येत आनंदधारांचा साक्षात् अनुभव घेतात ॥७॥

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    विषय

    सोमाचा धाराप्रवाह

    शब्दार्थ

    (प्रथम अर्थ) (सोम औषधीपर) (एषः) हा (स्यः) तो आम्हाद्वारे पर्वतावरून आणलेला (अव्याः वारेभिः) मेंढीच्या लोकरींनी निर्मित दशापवित्रातून (सुतः) गाळलेला (मन्दितमः) अतिशय आनंद देणारा सोमरस (अपाम्) नद्यांच्या (ऊर्मिःइव) लहरीप्रमाणे (क्रीडन्) क्रीडा करीत (सरसर ध्वनी करीत) धारा रूपाने (पवते) द्रोण कलशात जात आहे.।। द्वितीय अर्थ - (परमात्मपर) (एषः) हा (मी साधक) अनुभवत असलेला (स्यः) तो (अव्याः वारेभिः) मेंढीच्या केसांनी निर्मित दशापवित्रा (गाळणी)प्रमाणे पवित्रताकारक यम, नियम आदी योग-अंगांनी (सुतः) हृदयात प्रकट केलेला (मन्दितमः) अत्यंत आनंद देणारा सोम परमेश्वर (अपाम् अर्मिः इव) नदीच्या तरंगांप्रमाणे (क्रीडन्) क्रीडा करीत (धारया) आनंदाच्या धारांसह (पवते) माझ्या हृदयात पोहचत आहे. ।।७।।

    भावार्थ

    समाधिस्य उपासकगण परमेश्वराकडून आपल्याकडे वेगाने येच असलेल्या आनंद-धारेला साक्षातवत अनुभव करतात. ।।७।।

    विशेष

    या मंत्रात श्लेष व उपमा हे दोन अलंकार आहेत. पाण्याच्या तरंगांप्रमाणे कलकल नाद करीत सोम औषधीचा रस ज्याप्रमाणे दशापवित्रातून गाळला जाऊन द्रोणकलशात पोहचतो, तद्वत यम, नियम आदी योग-साधनांनी हृदयात प्रकट होणारा परमात्मरूप सोम आनंदप्रवाहासह योगिजनांच्या आत्म्याला प्राप्त होतो. ।।७।।

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    तमिल (1)

    Word Meaning

    அமிழ்த்தப்பட்டு மகிழ்ச்சிஅளிக்கும் அவன் சலத்தின் அலை போல் விளையாடிக் கொண்டு [1]ஆட்டு ரோமங்களினாலானத்தின் வழியாய் தாரைகளால் பெருகுகிறான்.

    FootNotes

    [1]ஆட்டு ரோமங்களினாலானத்தின் வழியாய்-வானங்களின் வழியாய்

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